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Monday, November 18, 2024

जिंदा होने का प्रमाण...


नवंबर का महीना है, 

बदन फिर भी पसीना पसीना है। 

फुर्सत थी तो सोचा, चलो बैंक चला जाए,

लगे हाथों अपने 

जिंदा होने का प्रमाण दे दिया जाए। 

आखिर पेंशन को ओवरड्यू हुए 

कई दिन हो गए,

यही सोच हम बैंक में

प्रत्यक्ष रूप से व्यू हो गए। 

और मैनेजर से कहा,

देरी के लिए हम शर्मिंदा हैं,

भई रोज रोज सबूत मांगते हो,

लो देख लो हम जिंदा हैं। 

अब तो मिल जाएगी पेंशन। 

मैनेजर को भी जाने क्या थी टेंशन। 


जाने किस चक्कर में ऐंठा था।

लगता है वो भी भरा बैठा था,

बहुत झुंझलाया था,

शायद बीवी से लड़ कर आया था।

बोला, अज़ी ऐसे कैसे मान लें,

ये प्राइवेट नहीं सरकारी धंधा है,

लिख कर दीजिए कि आप जिंदा हैं।

हमें सरकारी बुद्धि पर गुस्सा तो बहुत आया,

पर हारकर हमने खुद अपने हाथों 

अपने जिंदा होने का सर्टिफिकेट बनाया,

तब जाकर मैनेजर को यकीन आया।

कि ये जो सामने खड़ा बंदा है,

ये कोई चलता फिरता भूत नहीं, 

वाकई जिंदा हैं। 


बैंक मुझसे मेरे होने का सबूत जाने,

मैं जिंदा हूं ये कहने पर भी ना माने। 

कागज पर है इंसान से ज्यादा भरोसा,

इंसान की फितरत को सही पहचाने। 


Monday, November 4, 2024

दीवाली, नए रूप में ...

 दीवाली पर्व था मिलने मिलाने का,

खाने पीने, उपहार देने और पाने का। 

किंतु दीवाली अब डिजिटल हो ली है,

उपहार की जगह अब बधाईयों ने ले ली है,

जो प्रत्यक्ष नहीं अब आभासी हो गई हैं। 

व्यक्तिगत नहीं, वो सामूहिक हो गई हैं। 


ना कार्ड ना ई मेल ना एस एम एस करके 

बस वॉट्सएप ग्रुप्स में आती हैं भर भर के।

ग्रुप में पांच दस हों या मेंबर हों सौ पचास कहीं,

बधाई देते हैं सब, पर लेता कोई एक भी नहीं। 

जब कोई नहीं इसको लेता है,

फिर जाने क्यों कौन किसको देता है।


ऐसा हो गया है हाल, 

मानो चरितार्थ हो गई ये कहावत,

कि नेकी कर कुएं में डाल। 

कौन देखता है किसने दी किसने नहीं दी,

किसने देखा और किसने अनदेखी की। 

यह न कोई देखता है, न देखने की जरूरत है,

इस डिजिटल युग में इंसान की यही असली सूरत है। 

Sunday, October 13, 2024

रावण: एक पैरोड़ी....

 रावण को जलाता हूं, रावण ही नहीं जलता,

रावण ही नही जलता। 

कोशिशे तो बहुत की हैं, परिणाम नहीं मिलता,

रावण ही नहीं जलता। 


कलियुग के ज़माने में, दिल में हैं कई पापी,

खुद से लड़े खुद ही, जीत पाए ना कदापि।

ये पापी मिटाने का, अवसर ही नहीं मिलता,

रावण ही नहीं जलता।


पल भर के लिए इसको, कोई तो समझाओ,

दम भर को ही सही, सही रस्ता दिखलाओ,

ये दिल का दुष्ट महमां, दिल से नहीं हिलता।

रावण ही नहीं जलता। 


हर साल जलाता हूं, रावण ही नहीं जलता,

रावण ही नहीं जलता। 

Monday, September 30, 2024

हाय रे बुढ़ापा...

 वज़न घटा, पके आम से पिचके गाल, 

देख आइने में खुद का हाल घबराने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा इतराने लगे हैं। 


रफ्ता रफ्ता सर के बाल हुए हलाल,

बचे खुचे सूरजमुखी से बिखरने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा निखरने लगे हैं। 


सूखी फसल बालों की, बची खरपतवार,

उसे भी खिज़ाब से काला कर बंदर लगने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा सुंदर लगने लगे हैं। 


मुंह में बचे दांत नहीं, ओरिजिनल आंख नहीं, 

खामख्वाह हरदम जवां होने का दम भरने लगे हैं,

पर पत्नी कहती है,अब आप ज्यादा हैंडसम लगने लगे हैं। 


दिल्ली को छोड़, बने हरियाणा के हरियाणवी,

अक्ल से और शक्ल से हरियाणवी जाट दिखने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा स्मार्ट लगने लगे हैं। 


ना काम ना धाम, करते बस आराम ही आराम,

अपनी मर्ज़ी से खाते पीते और सोते जगने लगे हैं,

पत्नी कुछ भी कहे, हम फ़ाक़ामस्ती में मस्त रहने लगे हैं। 


बिना रोज लड़े पत्नी से अब तो भूख भी नहीं लगती,

पर जो पहले नहीं किया उसका इजहार करने लगे हैं, 

जीवन के पतझड़ में पत्नी से ज्यादा प्यार करने लगे है। 






Monday, September 16, 2024

ग़ज़ल...

 गांव छोड़कर शहर में गुमनाम हो गए,

सच बोलकर जग में बदनाम हो गए। 


काम बहुत था जब करते थे काम,

सेवा निवृत हुए तो नाकाम हो गए। 


तकनीकि दौर मे दिखता है विकास,

मोबाइल संग बच्चे बे लगाम हो गए। 


गुरुओं और बाबाओं के आश्रम में,

चोर उचक्के सारे सतनाम हो गए।


भ्रष्टाचार का यूं बोलबाला है यारा,

ज़मीर बेच अमीर जन तमाम हो गए। 


भेड़िए भले ही लुप्त होने को हैं पर,

इंसानी भेड़ियों के हमले आम हो गए। 


द्रोपदी की अस्मत बचाने को क्यों,

कलयुग में जुदा घनश्याम हो गए। 


जालिम अब बच नहीं पाएं सजा से,

उनके गुनाह के चर्चे सरेआम हो गए। 


बुजुर्गों का साया गर सर पर हो ' तारीफ',

समझो शुभ दर्शन चारों धाम हो गए। 



Monday, September 9, 2024

एक ग़ज़ल...

 पसीने की गंध जिनके गात नहीं आती,

नींद उनको सारी सारी रात नहीं आती। 


वो काम करते नहीं जब तलक,

काम के बदले सौगात नहीं आती। 


सड़कें टूटी, नालियां बंद, तो क्या,

इस शहर में कभी बरसात नहीं आती। 


बेटियां घर दफ्तर में महफूज हों,

देश में ऐसी कोई रात नहीं आती। 


जज़्बा बहुत है लड़ने का किंतु,

शैतान को देनी मात नही आती। 


क्या बतलाएं तुमको हम जात अपनी,

सिवा इंसानियत कोई जात नहीं आती। 


नेता हम भी बन जाते ' तारीफ', पर,

सच को छोड़ कोई बात नहीं आती। 

Monday, September 2, 2024

सेवानिवृत बुजुर्ग ...

 बुजुर्ग ना खाते हैं ना पीते है,

फिर भी चैन से मस्त जीते हैं।

ना कपड़ों का खर्च रहा ना कहीं आना जाना,

अब तो मुफ्त में गुजरता है सारा दिन सुहाना। 


ना किराए की चिंता ना बच्चों की फीस,

ना कोई कर्ज़ ना लोन चुकाने की टीस

ना सब्जीवाले, रिक्शावाले, रेहडीवाले से चकचक,

जिसने जो मांगा दे दिया ना मोल भाव की बकबक। 


खाली हाथ लटकाए बाजार जाते हैं,

बिन पैसे थैला भर सामान ले आते हैं। 

नोटों को अब तो हाथ तक नहीं लगाते हैं,

मोबाइल पर एक उंगली से काम चलाते हैं। 


सरकार भी इनकम टैक्स में देती है भारी छूट,

पेंशन कम नहीं, ये तो है ईमानदारी की सरकारी लूट। 



Monday, August 19, 2024

दरिंदे....


कहने को सारी दुनिया दमदार हुई, 

फिर एक बार पर जिंदगी शर्मसार हुई।

कुछ जंगली भेड़ियों की कारिस्तानी से,

फिर एक बार इंसानियत की हार हुई। 


सीने में जलन थी, पर रो ना सकी,

आंखों में नींद थी, पर सो ना सकी। 

इतने जख्म दिए बेदर्द जालिमों ने, 

उस दर्द की कोई दवा हो ना सकी। 


निर्मल कोमल कच्ची धूप सी होती हैं,

बेटियां भगवान का ही स्वरूप होती हैं।

जो मासूमियत को कुचलते हैं बेरहमी से,

उनकी उजली शक्ल कितनी कुरूप होती है। 


Thursday, August 1, 2024

हास्य कवि...

 पत्नी पर कविता सुनाओ तो पत्नी नाराज़ हो जाती है,

बालों पर कविता सुनाओ तो दोस्तों की हालत नासाज हो जाती है।


धर्म पर कविता सुनाओ तो

लोग सांप्रदायिक फसाद में फंस जाते हैं,

नेताओं पर कविता सुनाओ तो दोस्त ही खेमों में बंट जाते हैं। 


यही सोचकर आजकल हास्य कवि मंचों पर,

कविता नहीं, केवल चुटकले सुनाते हैं। 😅

Tuesday, July 9, 2024

बीवी और बी पी....

 डॉक्टर, मरीज़ से:

अब आपका बी पी कैसा है ?

मरीज़: डॉ साहब, आपकी दवा से बहुत फायदा हुआ है। लेकिन बी पी कभी कभी बढ़ जाता है। 

डॉक्टर: अच्छा, कब बढ़ता है ?

मरीज़: एक तो तब बढ़ता है जब मैं टी वी पर नेताओं की बहस सुनता हूं। लेकिन जब मैं टी वी बंद कर देता हूं, तब 5 मिनट में नॉर्मल हो जाता है। 

दूसरा जब मैं अख़बार पढ़ता हूं।

तब जो बी पी बढ़ता है, उसे नॉर्मल आने में पूरा एक घंटा लग जाता है। 

डाक्टर: ओह ! तो अखबार पढ़ना बंद कर दो। और भी कोई कारण ?

मरीज़ : जी एक और। जब बीवी बहस करती है, तब जो बी पी बढ़ता है, वह शाम तक नॉर्मल नहीं होता। कोई अच्छी सी दवा दीजिए ताकि बीवी बहस ना करे।

डॉक्टर: चुप कर पगले। ऐसी कोई दवा होती तो पहले मैं स्वयं ही ना लेता। इसका एक ही इलाज है, बीवी जो कहे उसे चुपचाप मान लो, कोई बहस मत करो। 

इसी में भलाई है। 😂

Saturday, June 22, 2024

सावधानी नहीं तो रंग में भंग पक्का....

सावधानी में ही समझदारी है। यदि उचित जानकारी ना हो तो ना केवल निराशा हाथ लग सकती है, बल्कि परेशानी भी हो सकती है। 

हमने जब सिक्किम का प्रोग्राम बनाया, तब किसी जानकार ने बताया था कि सिक्किम में जून के महीने में नहीं जाना चाहिए, विशेषकर मिड जून के बाद, क्योंकि उसके बाद भारी बारिश होने लगती है और भूस्खलन का खतरा निरंतर बना रहता है जो कभी कभी बहुत खतरनाक हो सकता है। हमने भी देखा कि 12 जून के बाद होटल आसानी से और सस्ते मिल रहे थे। यानी सीजन खत्म। इसीलिए सोच समझकर हमने मई की बुकिंग कराई, भले ही थोड़ा ज्यादा खर्च करना पड़ा। 

आज ही पेपर में पढ़ा कि कल नॉर्थ सिक्किम में भारी बारिश के कारण हुए भूस्खलन के कारण जान माल का काफी नुकसान हो गया। करीब 2000 यात्री अभी भी फंसे पड़े हैं। ज़ाहिर है, किसी दूर दराज के क्षेत्र में जाने से पहले वहां की पर्याप्त जानकारी ले लेनी चाहिए। 

अब चलते चलते बताते चलें कि दार्जिलिंग से बागडोगरा वापस आने वाला रूट सबसे खूबसूरत और मजेदार रहा। घनी हरियाली और ऊंचे ऊंचे पेड़ों से ढके पहाड़ से होती हुई सुंदर सड़क पर ट्रैफिक भी ना के बराबर था। पहाड़ खत्म होने के बाद मीलों तक फैले चाय के बागान देखकर आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हो रही थी। पता चला वे बागान किसी कंपनी के थे । 

पूरे रास्ते में बस एक ही ढाबा मिला जहां से हमने लंच के लिए आलू परांठे पैक करा लिए क्योंकि यह भी पता लगा लिया था कि एयरपोर्ट पर खाने की कोई विशेष सुविधा नहीं है। वैसे भी ढाई सौ रुपए की बासी सैंडविच से तो 50 रुपए का ताजा आलू परांठा एक बेहतर विकल्प था। ढाबेवाले ने पैक भी इतना अच्छा किया कि परांठे 3 घंटे बाद भी piping hot निकले। इसके बाद एयरलाइन का कॉरपोरेट मील भी फीका लगा था। 

गर्मियों के सीजन में लोग गर्मी से राहत पाने के लिए पहाड़ों की ओर कूच करते हैं लेकिन पहाड़ों का ही तापमान बढ़ा देते हैं। कोई हैरानी नहीं कि अब वहां भी पंखे ही नहीं, ए सी भी चलने लगे हैं। जाने कब तक पहाड़ ये बोझ सहन कर पाएंगे !

Tuesday, June 11, 2024

सिक्किम दार्जिलिंग यात्रा ...

 सिक्किम, दार्जिलिंग का संक्षिप्त लेखा जोखा:

पिछले पचास सालों में हमने देश के लगभग सभी हिल स्टेशंस की यात्रा की है। उत्तर, दक्षिण, पश्चिम के सभी और उत्तर पूर्व में गंगटोक और दार्जिलिंग। लेकिन इन सब में से जहां सबसे ज्यादा हरियाली दिखती है वे उत्तर पूर्व में स्थित सिक्किम, और पश्चिमी बंगाल के पर्वतीय स्थल दार्जिलिंग और कलिंपोंग। आइए आपको संक्षिप्त में बताते हैं यहां कब, क्यों और क्यों नहीं जाना चाहिए। 

गंगटोक:

सिक्किम की राजधानी गंगटोक यहां का सबसे लोकप्रिय टूरिस्ट स्टेशन है। यहां का मुख्य आकर्षण है यहां का MG रोड यानि माल रोड। बिलकुल यूरोपियन शहरों जैसा माल रोड इतना साफ सुथरा है जितना देश में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा। पक्की टाइल्ड सड़क पर ट्रैफिक की अनुमति नहीं है, बीसियों बेंच बैठकर सुस्ताने के लिए, अनेक डस्टबिंस और कूड़ा डालने पर जुर्माना इस शहर को बहुत खूबसूरत बनाता है। 

यहां घूमने के लिए विशेष तौर पर नथुला पास का डे ट्रिप है जो अपने आप में एक अद्भुत अनुभव है। लेकिन यहां जाने के लिए परमिट लेना पड़ता है जो आपकी टैक्सी वाला ही लेता है लेकिन आपसे 5000 रुपए चार्ज करता है। इसी के रास्ते में छांगू लेक आती है जहां फोटो लेने के अलावा और कुछ खास नहीं है करने के लिए। युवा दंपत्ति और बच्चे अवश्य याक की सवारी और कॉस्ट्यूम पहनकर फोटो खिंचवाते हुए नजर आ जाएंगे। यहां टैक्सी बहुत महंगी हैं। अधिकांश गाड़ियां इनोवा चलती हैं जिनका एक दिन का किराया 6000 से 7000 तक होता है। नथुला ट्रिप 12000 में पड़ेगा। 

इसके अलावा यहां देखने के लिए कई मोनेस्ट्री हैं जो सब लगभग एक जैसी ही होती हैं। शहर में ट्रॉली की सवारी अवश्य रोमांचक लगती है। 

गंगटोक में सीजन में भीड़ बहुत होती है, इसलिए ट्रैफिक भी बहुत होता है। सारा ट्रैफिक छोटी छोटी संकरी गलियों से होकर ही गुजरता है। लेकिन कुछ प्रशासन का प्रबंधन, कुछ लोगों का अनुशासन, दोनों मिलकर ट्रैफिक को आसानी से मैनेज कर लेते हैं। 

सिक्किम जाने के लिए सबसे बढ़िया मौसम अक्टूबर या फिर जनवरी फरवरी रहेगा, क्योंकि इस समय मौसम साफ होता है और दूर हिमालय पर्वत की विभिन्न चोटियां साफ दिखाई देती हैं। बेशक अप्रैल से मई में सबसे ज्यादा भीड़ होती है गर्मी से बचने के लिए। लेकिन मध्य जून के बाद बिलकुल नहीं जाना चाहिए क्योंकि भारी बारिशों में भूस्खलन की घटनाएं होती रहती हैं जो जानलेवा भी हो सकती हैं। यदि कहीं फंस गए तो घंटो नहीं बल्कि पूरे दिन फंसे रहना पड़ सकता है, क्योंकि यहां कोई बाईपास या विकल्प नहीं होता। 

अगली पोस्ट में दार्जिलिंग की वास्तविक स्थिति के बारे में अवश्य पढ़िएगा।

Friday, May 31, 2024

विश्व धूम्रपान रहित दिवस:


सिगरेट पीते थे हमदम, हम दम भर कर,

अब हरदम हर दम पर, दम निकलता है। 


गुटखा खाते थे सनम, मुंह में चबा चबा कर,

अब खाने के लिए भी, मुंह ही नहीं खुलता है।

Saturday, May 25, 2024

तोड़ मरोड़ कर :

 

हमारी परेशानी को तुम क्या समझोगे दोस्त,

हम जब गुजरते हैं कब्रिस्तान से,

तो मुर्दे भी उठकर कहने लगते हैं,

डॉक्टर साहब, एक कविता तो सुनाते जाओ। 

😅

Monday, May 20, 2024

दोहे...

 कमर का नाप राखियो, ज्यों बैल्ट पहन पाय,

कमीज़ भी अटकी रहे, पैंट खिसक ना पाय। 


डाइटिंग एसन कीजिये, वज़न घट नहीं पाय,

आप भी ना भूखा रहे, रात नींद आ जाय। 


झूठ की मैराथन में, जो अव्वल आ जाय,

आज कल राजनीति में, वो नेता कहलाय।


नेता जी दल बदल के, फिर सी एम बन जाय, 

सज्जन सोशल साइट्स पे, बेबात भिड़त जाय। 


नेता जी धांधले में, अगर कभी फंस जाय,

बीवी को सी एम बना, खुद राज करत जाय। 


Monday, May 13, 2024

ले भाई, हो गया हिसाब बराबर...


आजकल साइबर फ्रॉड के केस बहुत नज़र आते हैं,

फ्रॉड करने वाले भी रोज नए नए तरीके अपनाते हैं। 

हम तो सावधानी में इस कदर सावधान हो गए हैं कि,

बीवी की बेवक्त कॉल को भी डर के मारे नही उठाते हैं।


शादियों में सबसे पहले मेजबान को लिफाफा थमाते हैं,

फिर प्लेट पकड़ पंडाल का चक्कर लगा जम कर खाते हैं।

फिर मेजबान को ढूंढ कर, अच्छा जी चलते हैं बोलकर,

मिठाई का डिब्बा देना हो तो दे दो, ये याद दिलाते हैं। 


सरकारी अस्पताल में मरीज़ दिखते हैं बदहाल से,

जेब में किसी के माल नहीं होता, लगते हैं कंगाल से। 

चार बच्चों की अम्मा जब अपनी उम्र बताती है बीस,

तो डॉक्टर को भी पूछना पड़ता है, कितने साल से।


एक बाइक वाला उधर से आ रहा था,

एक रिक्शावाला उधर को जा रहा था। 

एक गाड़ी वाला दोनों से जा टकराया,

वो ग्रीन लाइट जंप करके जा रहा था ।


रोज सोचते हैं सेहत बनाने कल से जिम जाएंगे,

या सुबह शाम पार्क की सैर करने ही चले जाएंगे।

परंतु पत्नी कहती है, घर के काम काज किया करो,

वरना मेरी तरह ही हाथ पैरों के जोड़ जाम हो जाएंगे। 


कुछ सरकारी अफसर दफ्तर खुद लेट आते हैं,

लेकिन पी ए लेट आए तो जमकर डांट लगाते हैं। 

दरअसल अंदर की बात बताएं तो ये वही लोग हैं,

जो घर में सुबह शाम खुद पत्नी से डांट खाते हैं।


उच्च शिक्षा से जिंदगी के कई अहम मुद्दे हल होते हैं,

कभी सुशिक्षित भी जिंदगी के इम्तिहान में विफल होते हैं।

जो लोग शादी को सादी और आशा को आसा बोलते हैं,

वे अक्सर हास्य कवि के रूप में ज्यादा सफल होते हैं। 


हरियाणवी ताऊ खुश रहते हैं रोज हलवा खाकर,

जलेबी और लड्डू खूब उड़ाते हैं शादियों में जाकर।

डायबिटिक भी हों तो आधा किलो लड्डू खाने के बाद,

एक पाव करेला खाकर बोलेंगे, हो गया हिसाब बराबर।














Monday, May 6, 2024

कुछ और मुक्तक...

 समय दिन महीने और साल दिखा देता है, 

जमा घटा गुना और भाग सिखा देता है। 

ये स्मार्ट फोन कुछ ज्यादा ही नौटी हो गया है,

पत्नी की कॉल को भी जंक कॉल बता देता है। 


क्वारेंटिन और डिस्टेंसिंग जैसे शब्द अब यक्ष हो गए,

आइसोलेशन में पति पत्नी के जुदा शयन कक्ष हो गए। 

कोरोना की ऐसी तैसी, पत्नी तो इस बात से खुश है कि,

लॉकडाउन में पति और बेटा गृह कार्यों में दक्ष हो गए। 


गृह कार्य करने से  स्वास्थ्य सुधर जाता है,

जोड़ सलामत रहते हैं, वजन घट जाता है। 

हम भी लॉकडाउन में पतले कैसे हुए,

ये राज़ तो हमें अब समझ में आता है। 


रोज सोचते हैं सेहत बनाने कल से जिम जाएंगे,

या सुबह शाम पार्क की सैर करने ही चले जाएंगे।

परंतु पत्नी कहती है, घर के काम काज किया करो,

वरना मेरी तरह ही हाथ पैरों के जोड़ जाम हो जाएंगे। 


हर साल दीवाली पर ऑड इवन की बात होती है,

दिन भर भारी प्रदूषण और घनी काली रात होती है।

अकेले नहीं पर गाड़ी में पत्नी संग मुंह पर मास्क हो,

सोचता हूं क्या सच में पत्नी इतनी खतरनाक होती है।











Monday, April 29, 2024

कुछ मज़ेदार मुक्तक...


बच्चों को शोर मचाते देख कर झुंझलाने लगे हैं,

बात बात पर संगी साथियों को गरियाने लगे हैं।

किसी भी बात पर कभी बिना बात आता है गुस्सा,

लगता है हम सत्तर साल से पहले ही सठियाने लगे हैं। 


आजकल मैं ना कोई काम करता हूं,

बस दिन भर केवल आराम करता हूं।

जब आराम करते करते थक जाता हूं,

तो सुस्ताने को फिर से आराम करता हूं। 


आज के युवाओं में देशप्रेम की लौ जलती ही नहीं,

पॉश एरिया के मतदान केंद्रों में भीड़ दिखती ही नहीं। 

हम बड़े जोश से मतदान करने गए पर कर ना सके,

अधिकारी बोला, शक्ल आधार कार्ड से मिलती ही नही। 


गर्म कपड़ों को जब अलमारी में रख देते हैं धोकर,

मायूस से देखते हैं जब रोज सुबह उठते हैं सोकर। 

कि सर्दी खत्म होते ही गर्म कपड़े ऐसे वेल्ले हो गए हैं,

जैसे सेवानिवृत होने के बाद होते हैं सरकारी नौकर। 


जाने क्यों कुछ लोग बालों पर खिजाब लगाते हैं,

सिर के सफेद बाल तो अनुभव का अहसास दिलाते हैं,

एक सफेद बालों वाले युवक ने जब हमें अंकल कहा,

तब जाना कि भैया बाल धूप में भी सफेद हो जाते है।


आधुनिकता ने लोगों की जिंदगी को ही मोड़ दिया है,

रहा सहा कोरोना ने आपसी रिश्तों को भी तोड़ दिया है,

घर में पति और बाहर बुजुर्गों की बात कोई नहीं सुनता,

इसलिए हमने तो भैया अब बोलना ही छोड़ दिया है। 














Sunday, April 21, 2024

देश की बढ़ती जनसंख्या...

 जिनके पास नहीं है खाने को दाने,

वे चले हैं बच्चों की फौज बनाने। 

और जिनके पास माल ही माल है,

वो बच्चों के मामले में बिलकुल कंगाल हैं। 


कहीं पर नहीं है खाने के निवाले,

तो कहीं पर नहीं हैं खाने वाले। 

अमीर देश के अमीर लोग बच्चे नहीं जनते,

गरीब देश के गरीब लोग जनने से नहीं थमते। 

विश्व का संतुलन बिगड़ता जा रहा है,

इसीलिए इंसान का सकून छिनता जा रहा है। 


दूसरी ओर:

आज के युवा मस्ती में इस कदर झूल गए हैं,

लगता है जैसे बच्चे पैदा करना ही भूल गए है। 

फिर पचास की उम्र में नैप्पी बदलते नज़र आते हैं,

बच्चे के पिता हैं या दादा, ये हम समझ नही पाते हैं। 

आधुनिकता की दौड़ में अकेले रहना मज़बूरी है,

अकेले ना रहें, इसलिए बच्चे पैदा करना जरूरी है। 

Wednesday, April 17, 2024

छोटे प्रकाशक की व्यथा ...

 बुक स्टॉल पर रखी अपनी पुस्तक जब दिखी,

तो हमने प्रकाशक महोदय से पूछा, कोई बिकी ?


वो बोला, सर स्टॉल पर लोग तो बहुत आते हैं,

परंतु बस आप जैसे लेखक ही आते हैं। 


वे आते हैं, अपनी खुद की किताब उठाते हैं,

फोटो खिंचवाते हैं, और चले जाते हैं। 


भई सारे पाठक तो बड़े प्रकाशकों ने ही हैं निगले, 

एक दिन एक पाठक जी आए, पर वे भी लेखक ही निकले। 


रखे रखे बिन बांटे मिठाइयां कसैली हो गईं हैं,

विमोचन करते करते किताबें भी मैली हो गईं हैं। 


पुस्तक मेले में छोटे प्रकाशक की बड़ी दुर्गति होती है, 

अज़ी हम से ज्यादा तो चाय वाले की बिक्री होती है। 


सोचता हूं अब अगले साल मेले में कतई नहीं आऊंगा,

और आया भी तो बुक स्टॉल नही, टी स्टॉल लगाऊंगा। 


हमने कहा, भैया बड़ी मछली हमेशा छोटी को निगलती है,

पर खुद को छोटी मछली समझना तुम्हारी भारी गलती है। 


अरे छोटे प्रकाशक ही साहित्य की असली सेवा करते हैं,

उन्हीं के सहारे तो हम जैसे नौसिखिए भी लेखक बनते हैं। 


देखना इस साल कमल का फूल देश में फिर खिलेगा,

भैया कर्म करते जाओ, एक दिन फल जरूर मिलेगा। 


Monday, April 1, 2024

आधुनिकता की दौड़...

 जिनके पास नहीं है खाने को दाने,

वे चले हैं बच्चों की फौज बनाने। 

और जिनके पास माल ही माल है,

वो बच्चों के मामले में बिलकुल कंगाल हैं। 


कहीं पर नहीं है खाने के निवाले,

तो कहीं पर नहीं हैं खाने वाले। 

अमीर देश के अमीर लोग बच्चे नहीं जनते,

गरीब देश के गरीब लोग जनने से नहीं थमते। 


विश्व का संतुलन बिगड़ता जा रहा है,

इसीलिए इंसान का सकून छिनता जा रहा है। 


आज के युवा मस्ती में इस कदर झूल गए हैं,

लगता है जैसे बच्चे पैदा करना ही भूल गए है। 

फिर पचास की उम्र में नैप्पी बदलते नज़र आते हैं,

बच्चे के पिता हैं या दादा, ये हम समझ नही पाते हैं। 


आधुनिकता की दौड़ में अकेले रहना मज़बूरी है,

अकेले ना रहें, इसलिए बच्चे पैदा करना जरूरी है। 

Saturday, March 23, 2024

चचा छक्कन के केले...

 चाचा छक्कन जब सुबह से 

आराम करते करते थक गए

तो यकायक उन्हें गोल गप्पे याद आ गए।

यह सोचकर ही चचा एक बार तो शरमा गए।

आखिर औरों को हाइजीन का पाठ पढाते थे आप,

फिर खुद कैसे करते ये पाप। 


तभी याद आया कि वो मिठाई वाला

तो ग्लव्ज पहनकर खिलाता है। 

और स्वाद भी नंबर वन पर आता है। 

सोचा चलो चलते हैं लेके राम का नाम,

इसी बहाने वॉक करके हो जाएगा व्यायाम। 

लेकिन वहां गोल गप्पे का काउंटर खाली पड़ा था,

उसकी जगह एक बड़ा सा टेंट गड़ा था। 

चारों ओर बिखरी थीं गुज्जियां ही गुज्जियाँ,

हाइजीन की तो फिर उड़ रही थीं धज्जियां। 

होली तो अभी तीन दिन थी दूर,

फिर जाने लोगों में किस बात का था सुरूर। 


चाचा ने सोचा, खोमचा वाला भी तो खिलाता है,

और चटकारे लेकर खाने में सचमुच बड़ा मज़ा आता है।

खोमचे वाले तो दिखाई दिए अनेक,

पर हर एक पर भीड़ बड़ी थी,

वो मिठाई वाले की कस्टमर नारियां,

अब सब खोमचे वाले के पास खड़ी थीं। 

अब तो गोल गप्पे का पानी देखकर

मुंह में पानी आने लगा था।

लेकिन इसका भी डर सताने लगा था,

कि खुले में गोल गप्पे कैसे खाएंगे।

कोई जान पहचान वाला दिख गया

तो क्या मुंह दिखाएंगे। 


बस फिर मन में एक कसक लिए

मुंह में आए पानी को सटक, 

चचा वहां से खिसक लिए।

अभी जा ही रहे थे सर झुकाए,

मन ही मन शरमाए,

तभी रेहड़ी पर रखे केले दिखे,

तो चाचा ने फौरन एक दर्जन खरीद लिए,

और घर की राह पर निकल लिए। 


अब चचा छक्कन हर आधे घंटे में 

एक केला खाए जा रहे हैं,

और मन में हिसाब लगाए जा रहे हैं,

कि पत्नी के आने तक कितने बचेंगे,

या बचेंगे भी नहीं, यदि पत्नी देर से आई।

वैसे भी उन्हें केले पसंद हैं ही नहीं,

उनको खिला देंगे वही मिठाई वाले की मिठाई। 

और इस तरह गोल गप्पे के चक्कर में

चचा एक दर्जन केले गप गए,

पहले आराम कर के थके थे, 

अब केले खाकर पस्त हो गए। 

और आराम से लंबी तान मस्त सो गए। 


Monday, March 18, 2024

अभी बाकी है ....

 कारवां गुज़र गया, पर गुबार अभी बाकी है। 

मुर्झाने लगे हैं चमन, पर बहार अभी बाकी है।


अब ना मुंह में दांत हैं, बिनाई भी है कमज़ोर,

बूढ़ा मत समझो जानम, खुमार अभी बाकी है। 


गिरे सर के बाल सर के बल, निकला चांद बेदाग,

सूखी फसल बालों की, खरपतवार अभी बाकी हैं।


इश्क हम बहुत करते रहे उनसे यूं तो जिंदगी भर,

उम्र निकल गई पर, प्यार का इजहार अभी बाकी है। 


ताउम्र करते रहे इंतजार मन में यही उम्मीद लिए,

कि इज़हार हो ना हो, पर इनकार अभी बाकी है। 


आधुनिकता की होड़ में दौड़ रहा है सारा संसार,

खुशकिस्मत हैं हम, देश में संस्कार अभी बाकी है। 


बदल लिया है यूं तो हमने भी आशियां अपना,

कहने को दूर भले है, पर प्यार अभी बाकी है। 


Monday, March 11, 2024

विदेश...

 

अज़ीब यहां के लोग हैं, अजीबो गरीब यहां का हाल है,

ना किसी की जेब में बटुआ, ना कोई रखता नकद माल है। 


प्लास्टिक कार्ड या स्मार्ट फोन से करते हैं सारी खरीदारी,

और उसी से होती है है, बस, स्ट्रीट कार या ट्रेन की सवारी। 


इन्हें देख हम भी प्रेस्टो और क्रेडिट कार्ड से लैस हो गए हैं,

और विदेश आ कर ही सही, पूर्णतया कैशलैस हो गए हैं।  


यहां ना किसी के हाथ में पहनी घड़ी दिखती है, 

ना किसी के गले में सोने की चेन पड़ी दिखती है। 


ना कोई शर्ट पैंट पहनता है ना कोट ना सूट ना टाई,

ना घर में बीवी होती है, ना आती कामवाली बाई। 


खाना खुद नहीं बनाते हैं, रेस्टोरेंट का जंक फूड खाते हैं,

इसीलिए यहां स्टोर्स विटामिंस की  गोलियों से भरे पाते हैं।


ना कोई बैक पॉकेट में कंघी रखता है ना जेब में रूमाल,

ना घर में बाल बच्चे होते हैं, ना सिर पर बचे होते हैं बाल। 


बच्चा कोई पैदा नहीं करता, पर घर में कुत्ता सब पालते हैं,

बेघर इंसान भी सामान के साथ, पैट जरूर संभालते हैं। 


यहां ना कोई किसी से बात करता है ना कोई पूछता हाल,

ना कोई हमें अंकल कहता, ना कोई बुलाता डॉक्टर दराल। 


बड़ा कन्फ्यूजन है, अजीब हमारी हालत हो गई है,

ऐसा लगता है जैसे हमारी तो पहचान ही खो गई है। 


यहां अपना परिचय देना भी लगता है एक काम,

ज़रा ज़रा से बच्चे भी कहते हैं, नाम बताओ नाम। 


लिफ्ट में सब सर झुकाए रहते हैं, कोई मुंह नहीं खोलता,

सॉरी और थैंक यू के सिवा, तीसरा लफ़्ज़ नहीं बोलता। 


ना कोई फोन करता, ना है मिलने का कोई अरेंजमेंट,

बात करने के लिए भी पहले लेना पड़ता है अपॉइंटमेंट।


किंतु गर हो कोई पार्टी तो सब नॉन स्टॉप बतियाते हैं,

ये और बात है कि हम वो चपड़ चपड़ समझ नहीं पाते हैं। 


यहां बूंद बूंद कीमती है, पानी है लोगों की जिंदगानी,

वहां वो झीलों का शहर है, चारों ओर है पानी ही पानी।


नलों में भी पीने का साफ पानी चौबीस घंटे रहता है,

टैप खोलो तो गर्म पानी बड़ी हाई स्पीड से बहता है। 


सर्दी का ये हाल है कि बाहर तापमान माइनस में होता है,

घर के अंदर पंखा ना चलाओ तो गर्मी से पसीना बहता है। 


हम तो अपने घर के सारे कपड़े पहनकर ही घर छोड़ते हैं, 

वहां के युवा - तीन डिग्री में भी निकर पहन कर दौड़ते हैं। 


एक तो सर्दी ने घर में कैद करके झमेला कर दिया है,

उस पर मोबाइल ने सबको भीड़ में अकेला कर दिया है। 


जाने क्या ढूंढती रहती हैं नजरें, जो सर झुकाए रहते हैं,

चलते फिरते, उठते बैठते, बस मोबाइल में समाए रहते हैं। 


चमक धमक है, सुख साधन हैं, वहां तकनीकि महारत है,

पर जहां अपनों का प्यार है, वह केवल अपना भारत है। 



Sunday, January 28, 2024

ये सिक्योरिटी चेक वाले...

 हर बार निकल जाती थी, इस बार नहीं निकली,

अटक गई। 

वो गोरी गोरी, लंबी सी जर्मन छोरी, हमारी शेविंग क्रीम झटक गई। 

किफायत का सौदा था, उसमे डिस्काउंट का 33% माल ज्यादा था,

फिर पुराने को छोड़कर, हमने केबिन बैग भी नया नया खरीदा था। 

सुंदर सुघड़ था और उसका डिजाइन भी निराला था,

बस इसी नए डिजाइन ने हमें दुविधा में डाला था। 


यूरोप में सिक्योरिटी चेक में बड़ी मारामारी सहन करनी पड़ती है,

घड़ी, पर्स ,मोबाइल , जूते और बेल्ट तक भी उतारनी पड़ती  है। 

फिर हाथ फैलाकर वे यहां वहां जाने कहां कहां से हाथ निकालते हैं,

बिना बेल्ट के लोग बड़ी मुश्किल से खिसकती पैंट को संभालते हैं। 


इधर सिक्योरिटी जेनटलमेन की जांच खत्म हुई तो हमने खुद को संभाला,

जैसे तैसे ओरिजनल रूप में आए और शर्ट को पेंट में डाला। 


फिर शुरू हुई बैग की तलाश, जब बैग कहीं नज़र नही आया,

और एक सरदारजी को हमे हमारे बैग जैसा बैग थामे पाया। 


तो हमने कहा पा जी कित्थे चले, साड्डा बैग ते छड़ते जाओ,

वो बोला ओए केड़ा बैग, ए ते साड्डे पिंड वाला बैग है बादशाहो। 

तभी सिक्योरिटी वाली लड़की एक बैग को अल्टी पलटी मारती दी दिखाई,

हमने बैग को पहचाना तो सोचा लगता है कोई नई मुसीबत आई। 

हमने डरते डरते कहा मैडम क्या बैग में कोई फजीहत  हो गई,

वो बोली आपकी तो नहीं, परंतु हमारी ज़रूर मुसीबत हो गई। 

डिटेक्टर का सेंसर बार बार आपके बैग में प्रॉब्लम दिखा रहा है, 

पर प्रॉब्लम क्या है कहां है, ये बिलकुल समझ में नहीं आ रहा है। 

आखिर उसके गोरे पर निर्भाव चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई,

जब कपड़ों के बीच हमारी शेविंग क्रीम उसके हाथ आ गई। 


बोली इसका वजन सवा सौ ग्राम है, ये प्लेन में नहीं जा पाएगा,

हम सोचने लगे कि 25 ग्राम एक्स्ट्रा से प्लेन कैसे भारी हो जाएगा। 


हिम्मत कर हमने कहा मैडम, 25 ग्राम को निकाल दें तो चलेगा,

वो बोली निकाल कर तो देखो, अभी 100 यूरो का चालान कटेगा। 


और इस तरह हमारी नई शेविंग क्रीम हमारे देखते देखते फिसल गई,

उस जर्मन छोरी के हाथों हमारी शेविंग क्रीम हमारे हाथों से निकल गई। 


Saturday, January 20, 2024

सर्दियों के दिन ...

 सर्दियों के दिन, हैं बहुत कठिन,

कास्तकार लोगों के जीने के लिए।


धोबी का लड़का रोज पूछता है,

कपड़े हैं क्या प्रैस करने के लिए।


कपड़े भी ऐसे हैं कि फटते ही नहीं,

दर्जी भी पूछे, हैं क्या सीने के लिए। 


ना कोला, ना शरबत, ना ही ठंडाई, 

एक चाय ही काफ़ी है पीने के लिए। 


बैठे बैठे खाते रहते हैं मूंगफली रेवड़ी,

कोई काम नहीं होता पसीने के लिए। 


सर्दियों का मौसम होता स्वस्थ मौसम, पर 

कामवालों के लाले पड़े रहते जीने के लिए।

Friday, January 12, 2024

ग्लोबल वार्मिंग और बदलता मौसम...

 दिल्ली में दिसंबर गर्म है, और शिमला भी सूखा है,

बिना स्नोफॉल कनाडा का, क्रिसमस भी रूखा है। 


कोहरा है, धुंध है, आसमान का रंग भी गहरा है,

घर बैठे हैं, बाहर धीमी धीमी बारिश का पहरा है। 


बारिश की फुहारें भी अदृश्य है, दिखाई नहीं दे रहीं,

बूंदें नवजात शिशु के नर्म स्पर्श सा बस अहसास दे रहीं। 


झील का पानी शांत है, ना कोई बोट ना पानी की कलकल है,

सड़कें वीरान हैं, ना गाड़ियों का शोर है ना हवा में कोई हलचल है।


सुना है पहली बार दिसंबर बिना स्नोफॉल निकल रहा है,

एक चेतावनी है समझो तो, विश्व का मौसम बदल रहा है। 


पृथ्वी की सतह का तापमान हर साल बढ़ता जा रहा है,

लगता है जैसे इस प्लेनेट का अन्तकाल निकट आ रहा है। 


पता चला है पृथ्वी पर 1.3 मिलियन बिलियन मनुष्य रह सकते हैं,

यानि अभी हम और दो लाख गुणा लोगों का बोझ सह सकते हैं। 

किंतु वो जिंदगी भी क्या होगी जब चप्पे चप्पे पर जिंदगानी होगी,

प्राकृतिक संसाधन सब खत्म होंगे, आदिकाल सी कहानी होगी।  


आओ आपसी भेद भाव को भूलकर सब एक जुट हो जाएं,

सब मिलकर करें विचार और धरा को बेवक्त बर्बादी से बचाएं। 


Wednesday, January 3, 2024

विविधता में समानता ...

 अनेक देश, अनेक रेस, 

अनेक सूरतें हैं धरा पर।

पर एक ही मूल रूप है, 

इंसान का हर जगहां पर। 

अलग खान पान, रहन सहन, 

अलग हैं रीति रिवाज।

पर एक ही हैं प्रकृति के 

पांच तत्वों की आवाज़। 

सभी सोते हैं जागते हैं, 

खाते हैं, पीते हैं, 

अपनी अपनी जिंदगी जीते हैं। 

वही भावनाएं, वही संवेदनाएं,

वही गम, वही खुशियां। 

वही दर्द, वही चैन। 

सब कुछ एक जैसे ही तो दिखते हैं। 

फिर क्यों इंसान ने खुद को

बांट लिया है,

रंग, मजहब और सरहदों की दीवारों से। 

कुदरत नहीं करती कोई भेद भाव,

नहीं देखती देश, धर्म और रेस,

जब वो कहर बरसाती है।

फिर क्यों इंसान की फितरत 

कुदरत से टकराती है। 

ये हसीन फिजाएं कुदरत का तोहफ़ा है,

इसे व्यर्थ ना गवाएं,

इंसानियत को समझें, 

आपस में ना टकराएं। 

सब मिलकर पर्यावरण की करें रक्षा,

और विश्व को बेवक्त बर्बादी से बचाएं। 

यही हैं हमारी,

नव वर्ष की शुभकामनाएं।