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Monday, March 11, 2024

विदेश...

 

अज़ीब यहां के लोग हैं, अजीबो गरीब यहां का हाल है,

ना किसी की जेब में बटुआ, ना कोई रखता नकद माल है। 


प्लास्टिक कार्ड या स्मार्ट फोन से करते हैं सारी खरीदारी,

और उसी से होती है है, बस, स्ट्रीट कार या ट्रेन की सवारी। 


इन्हें देख हम भी प्रेस्टो और क्रेडिट कार्ड से लैस हो गए हैं,

और विदेश आ कर ही सही, पूर्णतया कैशलैस हो गए हैं।  


यहां ना किसी के हाथ में पहनी घड़ी दिखती है, 

ना किसी के गले में सोने की चेन पड़ी दिखती है। 


ना कोई शर्ट पैंट पहनता है ना कोट ना सूट ना टाई,

ना घर में बीवी होती है, ना आती कामवाली बाई। 


खाना खुद नहीं बनाते हैं, रेस्टोरेंट का जंक फूड खाते हैं,

इसीलिए यहां स्टोर्स विटामिंस की  गोलियों से भरे पाते हैं।


ना कोई बैक पॉकेट में कंघी रखता है ना जेब में रूमाल,

ना घर में बाल बच्चे होते हैं, ना सिर पर बचे होते हैं बाल। 


बच्चा कोई पैदा नहीं करता, पर घर में कुत्ता सब पालते हैं,

बेघर इंसान भी सामान के साथ, पैट जरूर संभालते हैं। 


यहां ना कोई किसी से बात करता है ना कोई पूछता हाल,

ना कोई हमें अंकल कहता, ना कोई बुलाता डॉक्टर दराल। 


बड़ा कन्फ्यूजन है, अजीब हमारी हालत हो गई है,

ऐसा लगता है जैसे हमारी तो पहचान ही खो गई है। 


यहां अपना परिचय देना भी लगता है एक काम,

ज़रा ज़रा से बच्चे भी कहते हैं, नाम बताओ नाम। 


लिफ्ट में सब सर झुकाए रहते हैं, कोई मुंह नहीं खोलता,

सॉरी और थैंक यू के सिवा, तीसरा लफ़्ज़ नहीं बोलता। 


ना कोई फोन करता, ना है मिलने का कोई अरेंजमेंट,

बात करने के लिए भी पहले लेना पड़ता है अपॉइंटमेंट।


किंतु गर हो कोई पार्टी तो सब नॉन स्टॉप बतियाते हैं,

ये और बात है कि हम वो चपड़ चपड़ समझ नहीं पाते हैं। 


यहां बूंद बूंद कीमती है, पानी है लोगों की जिंदगानी,

वहां वो झीलों का शहर है, चारों ओर है पानी ही पानी।


नलों में भी पीने का साफ पानी चौबीस घंटे रहता है,

टैप खोलो तो गर्म पानी बड़ी हाई स्पीड से बहता है। 


सर्दी का ये हाल है कि बाहर तापमान माइनस में होता है,

घर के अंदर पंखा ना चलाओ तो गर्मी से पसीना बहता है। 


हम तो अपने घर के सारे कपड़े पहनकर ही घर छोड़ते हैं, 

वहां के युवा - तीन डिग्री में भी निकर पहन कर दौड़ते हैं। 


एक तो सर्दी ने घर में कैद करके झमेला कर दिया है,

उस पर मोबाइल ने सबको भीड़ में अकेला कर दिया है। 


जाने क्या ढूंढती रहती हैं नजरें, जो सर झुकाए रहते हैं,

चलते फिरते, उठते बैठते, बस मोबाइल में समाए रहते हैं। 


चमक धमक है, सुख साधन हैं, वहां तकनीकि महारत है,

पर जहां अपनों का प्यार है, वह केवल अपना भारत है। 



12 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

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  2. सुंदर रचना, पर क्या ऐसा ही कुछ अब यहाँ नहीं होने लगा?

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    1. जी, बिलकुल सही कहा। बस फर्क ये है कि यहां ऐसे लोग शायद 1% हैं, जबकि वहां सब ऐसे ही रहते हैं।

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    2. जो समृद्ध संस्कृति,सादगी और संपदा हमारे पास है हम न तो उसका सदुपयोग कर पाते है न ही सम्मान ।
      बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सर।सादर।
      ------
      जी नमस्ते,
      आपकी लिखी रचना मंगलवार १२ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
      पांच लिंकों का आनंद पर...
      आप भी सादर आमंत्रित हैं।
      सादर
      धन्यवाद।

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  3. चमक धमक है, सुख साधन हैं, वहां तकनीकि महारत है,

    पर जहां अपनों का प्यार है, वह केवल अपना भारत है।
    वाह!!!
    बहुत ही लाजवाब ।

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  4. शानदार श्रृजन ।

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