अक्सर किसी को कहते सुना होगा--क्या करें , दिल नहीं मानता । इन्सान के दिल और दिमाग में एक द्वंद्ध हमेशा चलता रहा है । दिल कुछ और कहता है , दिमाग कुछ और । और हम सोचते रहते हैं कि दिल की माने या दिमाग की ।
वैसे तो हमारे शरीर में दिल यानि हृदय का काम शरीर में रक्त का संचार बनाये रखना है । लेकिन यहाँ दिल से तात्पर्य है --अंतर्मन , ज़ेहन , या हमारी चेतना ।
इस दिल का काम है हमें सही दिशा दिखाना । हमें सही रास्ते पर चलाना ।
लेकिन दिमाग यानि मष्तिष्क एक कंप्यूटर की तरह काम करता है जिसमे न भावनाएं होती हैं , न संवेदनाएं । वह नाप तोल कर कुछ का कुछ बनाने में सक्षम होता है । इसीलिए दिमाग सच को झूठ , झूठ को सच --सत्य को असत्य और असत्य को सत्य बना सकता है ।
यह दिमाग ही है जिसकी वज़ह से आज तक कोई बड़ा आदमी कोई भी जुर्म करके भी जीवन भर जेल में नहीं रहा । यहाँ वकीलों का दिमाग काम करता है ।
दिमाग ही मनुष्य को बुरे कामों की ओर ले जाता है । और तर्क वितर्क से उसे सही भी ठहरा देता है ।
लेकिन दिमाग प्रैक्टिकल भी होता है । वह भावनाओं के आवेश में नहीं बहता । वह स्वतंत्र रूप से कार्य करने की क्षमता रखता है ।
जबकि दिल अक्सर भावनाओं में बहकर कभी कभी गलत निर्णय ले सकता है ।
ऐसे में सवाल उठता है कि --दिल की माने या दिमाग की ।
आम तौर पर तो यही कहा जाता है कि जो दिल कहे , वही काम करना चाहिए ।
लेकिन कहते हैं --दिल तो पागल होता है । हमेशा दिल की मानने में हानि भी हो सकती है ।
अब आप ही बताइए , क्या किया जाये --दिल की माने या दिमाग की ?
Monday, November 28, 2011
Friday, November 25, 2011
दिल्ली दर्शन में आज --अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला २०११ की सैर --
टिकेट बूथ पर तो ज्यादा समय नहीं लगा क्योंकि लेडिज की लाइन छोटी थी लेकिन प्रवेश द्वार पर लम्बी लाइन में लग कर ही एंट्री मार पाए ।
सुरक्षा सम्बन्धी औपचारिकताओं के बाद हम पहुँच गए गेट नंबर दो के अन्दर जिसके सामने है हॉल नंबर ६ ।
लेकिन यहाँ ये तिलपट्टी देखकर तो अपना भी दिल कर आया खरीदने का ।
अब शुरू हुई सैर विभिन्न राज्यों के पेवेलियंस की ।
और इस तरह हमने इस उम्र में भी चार घंटे में सारा मेला घूमकर देख लिया , अलबत्ता बाहर से ही । किसी भी पेवेलियन में अन्दर जाने की हिम्मत जल्दी ही ख़त्म हो गई थी , भीड़ के कारण ।
लेकिन हमारे जैसे फोटोग्राफी का शौक रखने वाले को भला क्या ग़म । जो आनंद बाहर आया , वह अन्दर कहाँ आ सकता था ।
Wednesday, November 23, 2011
दिल्ली में आयोजित हुआ --काईट फेस्टिवल --एक झलक .
पिछले रविवार को इण्डिया गेट पर आयोजित किया गया --काईट फेस्टिवल जिसमे विभिन्न प्रकार की पतंगों की प्रतियोगिता का आयोजन किया गया ।
प्रस्तुत हैं इस शाम की कुछ झलकियाँ :
ऐसे में हम तो भल्ला पापड़ी और मेडम आलू टिक्की ही पसंद करती हैं ।
पहले जादूगर ने जादू दिखाया ।
फिर शुरू हुआ पंजाबी अकादमी के कलाकारों द्वारा भांगड़ा और गीत संगीत ।
पंजाबी गानों की धुनों पर स्वयं ही श्रोताओं के पैर थिरकने लगते हैं ।
साथ में लेज़र शो भी समारोह में चार चाँद लगा रहा था ।
ज़ाहिर है , यूँ ही नहीं दिल्ली देश का दिल है ।
नोट : काईट फेस्टिवल की कुछ और तस्वीरें चित्रकथा पर देखिये ।
![Link](img/blank.gif)
Monday, November 21, 2011
दिल्ली में विकास का एक उदाहरण --
इस वर्ष हम नई दिल्ली की शताब्दी मना रहे हैं । नई दिल्ली का निर्माण कार्य १९११ में आरम्भ हुआ था । वैसे तो दिल्ली का इतिहास ५००० साल से भी ज्यादा पुराना है । पांडवों से लेकर मुग़ल सल्तनत और फिर अंग्रेजों के आधीन रहकर दिल्ली ने बहुत उतार चढाव देखे हैं ।
लेकिन आज जहाँ एक ओर पुरानी दिल्ली और कई पुरातत्व स्मारक हमारे इतिहास की धरोहर हैं , वहीँ आधुनिक विकास में भी दिल्ली ने अभूतपूर्व और अतुल्य उन्नति की है ।
प्रस्तुत है , इस कड़ी में पहली किस्त :
मनुष्य की प्रकृति रही है कि वह अपनी ज़रुरत पूरी करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहा है ।
लेकिन जो पहले ज़रुरत होती है , वह बाद में आदत बन जाती है और अंत में लत बनकर मनुष्य को अपने वश में कर लेती है ।
अब देखिये , सुबह उठते ही अख़बार के साथ चाय की लत , शाम को टी वी देखने की लत और एक ब्लोगर के लिए समय मिलते ही कंप्यूटर की लत ।
कंप्यूटर भी बिना इंटरनेट के ऐसा हो जाता है जैसे बिना पेट्रोल के गाड़ी ।
अभी पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हुआ हमारे साथ । हुआ यूँ कि पिछले महीने हमारा टेलीफोन का बिल नहीं मिल पाया । दीवाली की वज़ह से हमें भी ख्याल नहीं आया । पता तब चला जब एक दिन पाया कि फोन डेड पड़ा है । वैसे भी लेंड लाइन पर निर्भरता अब बिलकुल ही ख़त्म हो गई है ।
लेकिन असली शॉक तो तब लगा जब देखा कि उससे जुड़ा नेट कनेक्शन भी डेड हो गया है ।
अब सोचिये एक ब्लोगर के लिए इससे बड़ा शॉक और क्या हो सकता है ।
खैर , पता चलते ही हमने फ़ौरन डुप्लीकेट बिल बनवाया । लेकिन इत्तेफाक से जमा करने में कई दिन लग गए ।
आखिर किसी तरह समय निकालकर चेक जमा कर ही दिया ।
वैसे भी यहाँ बिल जमा करना भी हमारे लिए तो एक उपलब्धि जैसा ही लगता है ।
और फिर लगे इंतजार करने कनेक्शन रीकनेक्ट होने का । डर तो यही था कि चेक दो दिन में क्लियर होगा , फिर एक सप्ताह बाद जाकर कनेक्शन शुरू होगा ।
वैसे भी जिस फोन के बिल पर पता अंग्रेजी में लिखा हो --PPGIP EXT ( पतपरगंज आई पी एक्सटेंशन ) और उसका हिंदी में अनुवाद हो --पप्गिप एक्सटेंशन और तारीफ सिंह का अनुवाद टैरिफ सिंह हो , उनसे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ।
जिस दिन चेक जमा किया , हमने श्रीमती जी को अपनी दुविधा बताई तो वो बोली -अरे आपको कैश जमा करना चाहिए था । तब जल्दी शुरू हो जाता ।
बहुत अफ़सोस हो रहा था कि अब वीक एंड पर बहुत बोर होना पड़ेगा , बिना ब्लोगिंग के । आखिर लत जो पड़ गई है ।
लेकिन फिर दिल नहीं माना और आशा के विपरीत मन में आस लिए हमने नेट खोल ही लिया ।
और यह क्या , नेट तो चालू था । यानि चेक जमा करने के ४-५ घंटे के अन्दर फोन और नेट दोनों चालू हो गए थे ।
हम हैरान रह गए , टेलीफोन विभाग की तत्परता देखकर ।
पहली बार हमें भी विश्वास हुआ कि समय बदल गया है ।
सचमुच विकास जोरों पर है ।
एम् टी एन एल की इस उपलब्धि पर मैं इस विभाग को और दिल्ली वालों को बधाई देता हूँ ।
अब तो हम भी कह सकते हैं --दिल्ली है मेरी जान , दिल्ली है मेरी शान ।
नोट : शताब्दी वर्ष के उपलक्ष में दिल्ली में अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं । हमसे जुड़े रहिये , आपको घर बैठे दिल्ली दर्शन कराते रहेंगे ।
लेकिन आज जहाँ एक ओर पुरानी दिल्ली और कई पुरातत्व स्मारक हमारे इतिहास की धरोहर हैं , वहीँ आधुनिक विकास में भी दिल्ली ने अभूतपूर्व और अतुल्य उन्नति की है ।
प्रस्तुत है , इस कड़ी में पहली किस्त :
मनुष्य की प्रकृति रही है कि वह अपनी ज़रुरत पूरी करने के लिए निरंतर प्रयासरत रहा है ।
लेकिन जो पहले ज़रुरत होती है , वह बाद में आदत बन जाती है और अंत में लत बनकर मनुष्य को अपने वश में कर लेती है ।
अब देखिये , सुबह उठते ही अख़बार के साथ चाय की लत , शाम को टी वी देखने की लत और एक ब्लोगर के लिए समय मिलते ही कंप्यूटर की लत ।
कंप्यूटर भी बिना इंटरनेट के ऐसा हो जाता है जैसे बिना पेट्रोल के गाड़ी ।
अभी पिछले दिनों कुछ ऐसा ही हुआ हमारे साथ । हुआ यूँ कि पिछले महीने हमारा टेलीफोन का बिल नहीं मिल पाया । दीवाली की वज़ह से हमें भी ख्याल नहीं आया । पता तब चला जब एक दिन पाया कि फोन डेड पड़ा है । वैसे भी लेंड लाइन पर निर्भरता अब बिलकुल ही ख़त्म हो गई है ।
लेकिन असली शॉक तो तब लगा जब देखा कि उससे जुड़ा नेट कनेक्शन भी डेड हो गया है ।
अब सोचिये एक ब्लोगर के लिए इससे बड़ा शॉक और क्या हो सकता है ।
खैर , पता चलते ही हमने फ़ौरन डुप्लीकेट बिल बनवाया । लेकिन इत्तेफाक से जमा करने में कई दिन लग गए ।
आखिर किसी तरह समय निकालकर चेक जमा कर ही दिया ।
वैसे भी यहाँ बिल जमा करना भी हमारे लिए तो एक उपलब्धि जैसा ही लगता है ।
और फिर लगे इंतजार करने कनेक्शन रीकनेक्ट होने का । डर तो यही था कि चेक दो दिन में क्लियर होगा , फिर एक सप्ताह बाद जाकर कनेक्शन शुरू होगा ।
वैसे भी जिस फोन के बिल पर पता अंग्रेजी में लिखा हो --PPGIP EXT ( पतपरगंज आई पी एक्सटेंशन ) और उसका हिंदी में अनुवाद हो --पप्गिप एक्सटेंशन और तारीफ सिंह का अनुवाद टैरिफ सिंह हो , उनसे और उम्मीद भी क्या की जा सकती है ।
जिस दिन चेक जमा किया , हमने श्रीमती जी को अपनी दुविधा बताई तो वो बोली -अरे आपको कैश जमा करना चाहिए था । तब जल्दी शुरू हो जाता ।
बहुत अफ़सोस हो रहा था कि अब वीक एंड पर बहुत बोर होना पड़ेगा , बिना ब्लोगिंग के । आखिर लत जो पड़ गई है ।
लेकिन फिर दिल नहीं माना और आशा के विपरीत मन में आस लिए हमने नेट खोल ही लिया ।
और यह क्या , नेट तो चालू था । यानि चेक जमा करने के ४-५ घंटे के अन्दर फोन और नेट दोनों चालू हो गए थे ।
हम हैरान रह गए , टेलीफोन विभाग की तत्परता देखकर ।
पहली बार हमें भी विश्वास हुआ कि समय बदल गया है ।
सचमुच विकास जोरों पर है ।
एम् टी एन एल की इस उपलब्धि पर मैं इस विभाग को और दिल्ली वालों को बधाई देता हूँ ।
अब तो हम भी कह सकते हैं --दिल्ली है मेरी जान , दिल्ली है मेरी शान ।
नोट : शताब्दी वर्ष के उपलक्ष में दिल्ली में अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं । हमसे जुड़े रहिये , आपको घर बैठे दिल्ली दर्शन कराते रहेंगे ।
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