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Monday, September 30, 2024

हाय रे बुढ़ापा...

 वज़न घटा, पके आम से पिचके गाल, 

देख आइने में खुद का हाल घबराने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा इतराने लगे हैं। 


रफ्ता रफ्ता सर के बाल हुए हलाल,

बचे खुचे सूरजमुखी से बिखरने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा निखरने लगे हैं। 


सूखी फसल बालों की, बची खरपतवार,

उसे भी खिज़ाब से काला कर बंदर लगने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा सुंदर लगने लगे हैं। 


मुंह में बचे दांत नहीं, ओरिजिनल आंख नहीं, 

खामख्वाह हरदम जवां होने का दम भरने लगे हैं,

पर पत्नी कहती है,अब आप ज्यादा हैंडसम लगने लगे हैं। 


दिल्ली को छोड़, बने हरियाणा के हरियाणवी,

अक्ल से और शक्ल से हरियाणवी जाट दिखने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा स्मार्ट लगने लगे हैं। 


ना काम ना धाम, करते बस आराम ही आराम,

अपनी मर्ज़ी से खाते पीते और सोते जगने लगे हैं,

पत्नी कुछ भी कहे, हम फ़ाक़ामस्ती में मस्त रहने लगे हैं। 


बिना रोज लड़े पत्नी से अब तो भूख भी नहीं लगती,

पर जो पहले नहीं किया उसका इजहार करने लगे हैं, 

जीवन के पतझड़ में पत्नी से ज्यादा प्यार करने लगे है। 






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