चेहरा मास्क से ढका हुआ ,
मास्क के ऊपर से झांकती दो आँखें,
आँखों में अक्सर
दिखती है एक बेबसी।
बाकि त्योरियों से भरा मस्तक।
आजकल इंसान की
बस यही पहचान रह गई है।
वो दिखता नहीं है ,
न ही कार्बन मोनोऑक्साइड की तरह,
उसमे कोई गंध है न रंग।
एक अदृश्य दुश्मन की तरह,
घात लगाकर करता है आक्रमण।
एक अणु ने परमाणु शक्ति को भी ,
शक्तिविहीन बना दिया है।
नादाँ सभी जानते तो हैं ,
किन्तु मानते नहीं।
इस सूक्षम शत्रु से लड़ने के
तौर तरीके।
शत्रु जो सीमा पार से नहीं,
न ही देश के जंगलों से आता है।
वो रहता है आपके ही हाथों में,
गले लगने को तत्पर,
गले लगा तो गले पड़ने को तैयार।
माना कि जिंदगी आजकल अधूरी है,
परन्तु जो है तो ,
कभी पूरी भी होगी।
बस संयम और संतुलन चाहिए,
टैस्ट, रैस्ट और वैक्स
तीनों मिलकर लगाएंगे बेडा पार।