Tuesday, April 24, 2018
Monday, April 16, 2018
अध्यक्ष के चुनाव में फूलवालों की होड़ ...
सभा समाप्त होते ही :
नव निर्वाचित अध्यक्ष पर फूल मालाओं की जो लगी झड़ी।
सारे श्रोताओं में फोटो खिंचवाने की जैसे होड़ सी लग पड़ी।
देखते देखते श्रोताओं से सारा मंच खचाखच भर गया ,
मैं तो ये प्रेमासक्त अद्भुत नज़ारा देखकर ही डर गया।
एक श्रोता दूसरे श्रोताको धकाकर आगे बढ़ रहा था।
दूसरा फोटो के लिए तीसरे के काँधे पर ही चढ़ रहा था।
भीड़ अध्यक्ष के अगल बगल जब तक एक कतार लगाती ,
तब तक पहली कतार के आगे एक और कतार लग जाती।
एक बार हम भी छलांग मार करीब जाने में सफल हो गए।
पर तभी एक जोरदार धक्का खाकर गिरे और विफल हो गए।
आलम ये थे कि इधर धड़ाधड़ फोटो खींचे जा रहे थे,
उधर हम कभी दाएं कभी बाएं धकियाये जा रहे थे।
और लोग तो जंगल में हिरणों की तरह कुलांचे मारते रहे ,
हम बस शेर की तरह शिकार को हाथ से जाते देखते रहे।
फोटोग्राफर भी बेचारा दे दनादन फोटो उतार रहा था ,
हमें तो पूरा शक था कि पट्ठा खाली फलैश मार रहा था।
वैसे फोटो खिंचवाने को हम भी १5 बार ट्राई मार चुके थे,
पर मायूस से खड़े थे क्योंकि आखिरी ट्राई भी हार चुके थे।
हमें संघर्ष करते देख एक सज्जन की नज़र हम पर पड़ गई ,
पर कुछ लम्बूओं के सामने हमारी तो हाईट ही कम पड़ गई।
तभी हमें महमूद ग़ज़नवी का इतिहास याद आया ,
और १७ वीं बार प्रहार करने का प्रयास याद आया।
आखिरकार १७वीं बार में हम भी कामयाब हो गए ,
और अध्यक्ष जी के साथ कैमरे में आबाद हो गए।
नव निर्वाचित अध्यक्ष पर फूल मालाओं की जो लगी झड़ी।
सारे श्रोताओं में फोटो खिंचवाने की जैसे होड़ सी लग पड़ी।
देखते देखते श्रोताओं से सारा मंच खचाखच भर गया ,
मैं तो ये प्रेमासक्त अद्भुत नज़ारा देखकर ही डर गया।
एक श्रोता दूसरे श्रोताको धकाकर आगे बढ़ रहा था।
दूसरा फोटो के लिए तीसरे के काँधे पर ही चढ़ रहा था।
भीड़ अध्यक्ष के अगल बगल जब तक एक कतार लगाती ,
तब तक पहली कतार के आगे एक और कतार लग जाती।
एक बार हम भी छलांग मार करीब जाने में सफल हो गए।
पर तभी एक जोरदार धक्का खाकर गिरे और विफल हो गए।
आलम ये थे कि इधर धड़ाधड़ फोटो खींचे जा रहे थे,
उधर हम कभी दाएं कभी बाएं धकियाये जा रहे थे।
और लोग तो जंगल में हिरणों की तरह कुलांचे मारते रहे ,
हम बस शेर की तरह शिकार को हाथ से जाते देखते रहे।
फोटोग्राफर भी बेचारा दे दनादन फोटो उतार रहा था ,
हमें तो पूरा शक था कि पट्ठा खाली फलैश मार रहा था।
वैसे फोटो खिंचवाने को हम भी १5 बार ट्राई मार चुके थे,
पर मायूस से खड़े थे क्योंकि आखिरी ट्राई भी हार चुके थे।
हमें संघर्ष करते देख एक सज्जन की नज़र हम पर पड़ गई ,
पर कुछ लम्बूओं के सामने हमारी तो हाईट ही कम पड़ गई।
और १७ वीं बार प्रहार करने का प्रयास याद आया।
आखिरकार १७वीं बार में हम भी कामयाब हो गए ,
और अध्यक्ष जी के साथ कैमरे में आबाद हो गए।
Saturday, April 7, 2018
वाट्स अप जिंदगी ---
आंधी वर्षा से नरमाई रैन की ,
शीतल सुहानी भोर में अपार्टमेंट की,
बालकॉनी में बैठ चाय की चुस्कियां लेते,
दूर क्षितिज में छितरे बादलों की खिड़की से
शरमाये सकुचाये से सूरज को
ताक झांक करते देखकर हमें सोचना पड़ा।
कि कंक्रीट के इस जंगल में ,
ऊंचे अपार्टमेंट्स की ऊँचाईयों में ,
क्षितिज भी सिकुड़ सा गया है ऐसे ,
जैसे संसार को कर लिया है कैद मुट्ठी में,
हमने, एक स्मार्ट फोन के ज़रिये।
कुछ ही तो वर्ष पहले की बात है जब ,
घर हो या दफ्तर , घरवाले हों या मित्र ,
सब एक साथ बैठकर गपियाते थे ,
उन्मुक्त हँसते मुस्कराते थे ,
व्यस्त होकर भी मिल जाती थी फुर्सत,
आँखों में आँखें डालकर बतियाने की।
देखते देखते ये समां कैसे बदल गया !
अब अंदर हों या बाहर ,
घर हो या दफ्तर , या हो मैट्रो का सफर ,
जिसे देखो वही ,
सज़दे में सर झुकाये नज़र आता है।
न ढंग से खाता है न सोता है ,
बस अपने आप में गुम सा नज़र आता है।
अब नहीं करते पति पत्नी प्यार की बातें ,
नहीं चह्चहाते चिड़ियों से, बच्चे गले लगकर ।
अब कोई नहीं करता बातें नज़रों से नज़रें मिलाकर ,
नहीं आती कानों में दोस्तों की मधुर आवाज़।
लेकिन आती हैं रोजाना ढेरों शुभकामनायें ,
फूल पत्तियों में लिपटी हुई प्रभात की ''सुप्रभात" ।
आते है नित नए सैंकड़ों सन्देश ,
कॉपी पेस्ट किये हुए, यहाँ से वहां से, जिनके
न जन्मदिन का पता होता है न जन्मदाता का।
यंत्रवत ये जिंदगी बस आभासी बनकर रह गई है।
वाट्सएप्प ने जैसे जिंदगी को गुलाम बना लिया है।
हार्डवेयर ने सरकारी सॉफ्टवेयर को किया था क्रैश ,
परन्तु स्मार्ट फोन के सॉफ्टवेयर ने,
जिंदगी के हार्डवेयर को ही क्रैक कर दिया है।
रोज सुबह होते ही वाट्सएप्प पूछता है,
''वाट्स अप'' जिंदगी !
Tuesday, April 3, 2018
हमारे रंग देख कर तो गिरगिट क्या नेता भी जलते हैं --
एक हास्य कवि ने चुनाव में नामांकरण पत्र भर दिया,
एक पत्रकार ने मंच पर ही कवि जी को धर लिया।
बोला, ज़नाब आप तो कवि हैं, फिर आप जनता को क्या दे पाएंगे !
कवि बोला, हम हंसा हंसा कर देश को एक स्वस्थ भारत बनाएंगे।
पत्रकार ने पूछा, अच्छा एक बात बतलायेंगे ,
क्या आप विरोधी पक्ष के लोगों को भी हंसाएंगे !
कवि बोला भैया, कवियों का न कोई पक्ष न विपक्ष होता है।
हमारा तो बस जनता को हंसाने का ही लक्ष होता है।
श्रोताओं
का मन भांप कर बनाते हैं सुनाने का मन ,
और कितना सुनाना है, ये तय करता है लिफाफे का वज़न।
भक्तों की भीड़ देखी तो मोदी का गुणगान कर दिया ,
विरोधियों
के जलसे में जुमलों का व्याख्यान कर दिया।
बसपा ने बुलाया तो मायावती को बहन बना लिया ,
किया ग़र मुशायरा तो ग़ालिब को चचा बता दिया।
हम कवि भी हवा का रुख देखकर ही रंग बदलते हैं ,
हमारे रंग देख कर तो गिरगिट क्या नेता भी जलते हैं।
बस एक बार चुनाव जीत जाऊं तो मंत्री भी बन जाऊँगा ,
फिर सभी हास्य कवियों को उनके अधिकार दिलवाऊंगा।
अरे मंच पर सारी तालियां तो ओज के कवि बटोर ले जाते हैं ,
एक ही पंक्ति को दस बार दोहराकर शायर वाह वाह करवाते हैं।
हास्य कवि सम्मलेन में भी पाकिस्तान की धज्जियाँ उड़ाते हैं ,
और हास्य कवियों को बस ऐसा वैसा चुटकलेबाज बतलाते हैं।
कभी किसी को चुटकले पर आशीर्वाद मांगते देखा है,
या हास्य कवि को ठहाकों की फरियाद करते देखा है !
माना कि हास्य कवि नहीं कोई साहित्यकार होते हैं ,
लेकिन वे भी देश और समाज सेवा के ठेकेदार होते हैं।
क्योंकि जब लोग हँसते हैं तो अपना तनाव हटाते हैं ,
जो लोग हंसाते हैं , वे दूसरों के तनाव भगाते हैं।
हँसाना भी एक परोपकारी काम है दुनिया में।
इसलिए हम तो सदा हंसी की ही दवा पिलाते हैं।
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