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Saturday, June 23, 2018

कुछ बातें इतिहास के पन्नों में दब कर गुम हो जाती हैं --



देश के इतिहास में १९७५ -७७ का समय एक काला धब्बा माना जाता है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने देश में एमरजेंसी लागु कर दी थी। इसी दौरान इंदिरा गाँधी के उत्तराधिकारी माने जाने वाले उनके छोटे सुपुत्र श्री संजय गाँधी भी फैमिली प्लानिंग योजना को लागु करने में हुए कुप्रबंध और कुशासन के कारण बहुत बदनाम हुए थे। लेकिन यदि ध्यान से सोचा जाये तो हम पाते हैं कि संजय गाँधी एक बहुत ही साहसी और दूरगामी दृष्टि वाले नेता थे।  देश के इतिहास में अभी तक सिर्फ संजय गाँधी ने ही देश की अनियंत्रित बढ़ती आबादी के बारे में सोचा।  उससे पहले और उसके बाद आज तक किसी भी नेता या प्रधानमंत्री ने देश की इस सबसे बड़ी समस्या का हल निकालने के लिए कोई कदम उठाने की हिम्मत नहीं की। फैमिली प्लानिंग प्रोग्राम को बदनाम  कराने वाले भी वो सरकारी नौकर ही थे जिन्हे नसबंदी को प्रोत्साहन देने के लिए ५ - ५ केस कराने की जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन कुछ लोगों ने मेहनत करने के बजाय हेरा फेरी करते हुए नाबालिग बच्चों को पकड़कर जबरन नसबंदी करा डाली। हालाँकि इसमें डॉक्टर्स का रोल भी गैर जिम्मेदाराना ही माना जायेगा। परिणामस्वरूप न सिर्फ यह प्रोग्राम फेल हुआ बल्कि आज तक फिर किसी ने नसबंदी का नाम लेने की हिम्मत नहीं की।

आज पुरुष नसबंदी स्वैच्छिक रूप से की जाती है लेकिन स्वेच्छा से नसबंदी कराने के लिए बहुत ही कम पुरुष सामने आते हैं। नतीजा सामने है , कुछ ही वर्ष में आबादी के मामले में हम विश्व के नंबर एक देश बन जायेंगे। जहाँ चीन ने एक बच्चे की सीमा निर्धारित कर अपनी बढ़ती जनसँख्या पर नियंत्रण पा लिया , वहीँ आज भी हम   ४ - ६ बच्चे धड़ल्ले से पैदा किया जा रहे हैं। इसमें किसी धर्म विशेष को दोष न दें, क्योंकि बढ़ती जनसँख्या का कारण धार्मिक विश्वास ही नहीं बल्कि अशिक्षा , गरीबी और अज्ञानता ज्यादा है। लगता है कि अब समय आ गया है जब सरकार को चीन की तरह एकल बाल परिवार योजना लागु कर देनी चाहिए।  तभी अगले तीस सालों में हम अपनी बढ़ती जनसँख्या को स्थिर कर पाएंगे। लेकिन ऐसा करने के लिए सरकार को वोट की राजनीति से ऊपर उठना होगा , तभी इस नियम को सख्ताई से लागु कर पाएंगे।   

Monday, June 18, 2018

देश को कैसे विकास की राह पर आगे ले जाएँ ---


हमारे देश की सबसे बड़ी और जन्मदाता समस्या है जनसँख्या। १३० + करोड़ की जनसँख्या में जिस तरह निरंतर वृद्धि हो रही है, उससे यह निश्चित लगता है कि अगले ५ वर्षों में हम चीन को पछाड़ कर विश्व के नंबर एक देश हो जायेंगे। लेकिन जिस तरह के हालात हमारे देश में हैं, उससे बढ़ती जनसँख्या अन्य समस्याओं की जन्मदाता बन जाती है। महंगाई , बेरोजगारी , संसाधनों की कमी , प्रदुषण और भ्रष्टाचार इसी की अवैध संतानें हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है। हालाँकि निसंदेह देश का विकास सरकार के हाथ में है, लेकिन सिर्फ सरकार को दोष देना सर्वथा अनुचित है। जब तक देश के लोग अपना कर्तव्य नहीं समझेंगे और उसका पालन नहीं करेंगे , तब तक हालात बद से बदतर ही होते जायेंगे।

१. जनसँख्या :  १९८० के बाद जनसँख्या वृद्धि दर भले ही २.०  से घटकर 1.२ हो गई हो , लेकिन तथ्य बताते हैं कि पिछले ४० सालों में जनसँख्या लगभग दोगुनी हो गई है। २१वीं सदी में लगभग ३० % जनसँख्या बढ़ी है। इतनी स्पीड से कोई देश नहीं बढ़ रहा। ज़ाहिर है, बढ़ती जनसँख्या में गरीबों की संख्या ही ज्यादा बढ़ रही है।  आज देश में ८०% लोगों की आय न्यूनतम वेतन के बराबर या उससे भी कम है।  भले ही हमारे देश में करोड़पति और अरबपति लोगों की संख्या भी बहुत है, लेकिन आर्थिक दृष्टि से तो हम नीचे और नीचे ही जा रहे हैं।

२. भ्रष्टाचार :  इस मामले में भी हम दूसरे देशों की अपेक्षा काफी आगे हैं। सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार ऊपर से लेकर नीचे तक व्याप्त है। निजी संस्थानों और उपक्रमों में भी पैसा कमाना ही उद्देश्य रह गया है। नेता हों या ब्यूरोक्रेसी , अफसर हो या चपरासी , सभी अपना दांव लगाते रहते हैं।  कोई भी विभाग भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं है। सरकारी नौकरी हो या कोई  हो , पैसा या सिफारिश लगाकर काम कराना लोगों की आदत सी बन गई है।

३. कर चोरी : किसी भी देश या राज्य में अनंत काल से राजा या सरकारें जनता के लिए कार्य करने हेतु जनता से कर वसूलते आये हैं। यदि कर की राशि जनहित में खर्च की जाये तो इसमें कोई बुराई भी नहीं, बल्कि एक आवश्यक प्रक्रिया है। लेकिन हमारे देश में कर की चोरी करना एक आम बात है।  ऐसा लगता है कि सरकारी नौकरों को छोड़कर जिनका कर श्रोत पर ही काट लिया जाता है , कोई भी व्यक्ति ईमानदारी से कर नहीं चुकाता।  भले ही आयकर हो या  बिक्री कर या फिर संपत्ति कर , कर चोरी एक आम बात है। बिना कर चुकाए सरकार से विकास की उम्मीद रखना भी एक बेमानी है। यहाँ सरकार का भी कर्तव्य है कि जनता से लिया गया कर देश के कार्यों में इस्तेमाल किया जाये न कि नेताओं और बाबुओं की जेब भरने के काम आये।     

४. नैतिकता : किसी भी देश में पूर्ण विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक उस देश के नागरिक नैतिक रूप से सशक्त ना हों। अक्सर हम बहुत सी समस्याओं को सरकार के भरोसे छोड़ देते हैं। जब तक सरकारी काम को भी हम अपना काम समझकर नहीं करेंगे, तब तक विकास में बढ़ाएं उत्पन्न होती रहेंगी।

५. अनुशासन : आज हमारे देश में अनुशासन की सबसे ज्यादा कमी है। घर हो या बाहर , सडकों पर , दफ्तरों में और अन्य सार्वजानिक स्थानों पर हमारा व्यवहार अत्यंत खेदपूर्ण रहता है।  सडकों पर थूकना , कहीं भी पान की पिचकारी मारना , खुले में पेशाब करना , गंदगी फैलाना , यातायात के नियमों का पालन न करना आदि ऐसे कार्य हैं जो हमें सम्पन्न होते हुए भी अविकसित देश की श्रेणी की ओर धका रहे हैं।   

६. अपराध : जनसँख्या अत्यधिक होने से अपराध भी बढ़ते हैं। लेकिन इसमें ज्यादा दोष है न्यायिक प्रणाली में ढील होना।  इंसान डर से ही डरता है।  डर सजा का या फिर जुर्माने का।  यदि डर ही न हो तो कोई भी इंसान बेईमान और हैवान बन सकता है।  विदेशों में कानून का सख्ताई से पालन किया जाता है।  इसलिए वहां कानून का उल्लंघन करने वालों की संख्या कम रहती है। लेकिन यहाँ चोरी , डकैती , लूटपाट , हत्या , बलात्कार और अपहरण जैसी वारदातें करते हुए अपराधी लोग ज़रा भी नहीं डरते। जांच पड़ताल में खामियां और न्याय में देरी  से बहुत से अपराधी साफ बरी हो जाते हैं जिससे अपराधियों का हौंसला और बढ़ जाता है।   

ज़ाहिर है, यदि हमें अपने देश को विकास की राह पर अग्रसर रखना है तो हमें सरकार पर पूर्णतया निर्भर न रहते हुए अपने फ़र्ज़ का पालन करते हुए विकास में अपना योगदान देना होगा।  तभी हमारा देश विकास की रह पर आगे बढ़ सकता है। वर्ना अमीर और अमीर होते जायेंगे और गरीब बहुत गरीब।  यह बिगड़ती हुई  सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था कभी भी विनाश की जड़ बन सकती है।    
    

Thursday, June 7, 2018

डर है तो इंसान है , वर्ना हैवान है ...

हम भारतीय अपने देश में जितना चाहे अराजकता फैला लें , लेकिन विदेश जाकर सभ्य इंसानों की तरह व्यवहार करना शुरू कर देते हैं।  इसका कारण है वहां नियमों और कानून का सख्ताई से पालन किया जाना। यानि कोई नियम या कानून तोड़ने पर आपको भारी जुर्माना भरना पड़ सकता है। उस दशा में ना कोई चाचा ( सिफारिश ) काम आता है न ही धन दौलत ( रिश्वत )। इसका साक्षात उदाहरण हमने देखा अपने यूरोप टूर पर। आईये देखते हैं , कैसे :

१. सीट बेल्ट :

यूरोप में बस की सभी सीटों पर बैल्ट लगी होती हैं और हर यात्री को सीट बैल्ट बांध कर रखनी पड़ती है। टूर मैनेजर ने बताया कि हाईवे पर कहीं भी कभी भी अचानक पुलिस सामने आ जाती है और गाड़ी की चेकिंग करती है।  यदि कोई बिना सीट बैल्ट बांधे पकड़ा गया तो जुर्माना सीधे १५० यूरो होता है। ज़ाहिर है , सभी ने तुरंत हिसाब लगा लिया कि १२००० रूपये का जुर्माना ! फिर तो सभी बैठते ही बैल्ट बांध लेते थे।

२. बाथरूम को गीला करना :

यह जानकर आपको अजीब लगेगा कि वहां बाथरूम में ड्रेनेज नहीं होता। नहाने के लिए टब बने होते हैं जिसमे पर्दा या स्क्रीन का पार्टीशन होता है जिससे कि पानी बाहर ना आये। इसलिए यदि वॉशबेसिन में हाथ धोते हुए आपने पानी बिखेर दिया तो उसे निकलने की जगह ही नहीं मिलेगी। मैनेजर ने बताया कि ऐसा होने पर चेक आउट के समय आपसे बड़ी रकम हरज़ाने के रूप में वसूल की जा सकती है।  एक बार एक मेहमान को २०० यूरो (१६००० रूपये) भरने पड़ गए थे। हो सकता है यह बात सिर्फ डराने के लिए कही गई हो, लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि सभी बाथरूम का इस तरह ध्यान रखते थे जैसे वो बाथरूम नहीं बल्कि घर का मंदिर हो।

३. समय का पाबंद होना :

पैकेज टूर में यात्रा कार्यक्रम पहले से बना होता है और समय की बड़ी पाबन्दी होती है। इसलिए सभी यात्रियों का समय पर तैयार होना और बस में बैठना आवश्यक होता है।  हमारी मैनेजर बार बार यही ध्यान दिलाती थी कि यदि समय पर नहीं पहुंचे तो बस छोड़कर चली जाएगी , किसी का इंतज़ार नहीं करेगी।  फिर आना खुद टैक्सी पकड़कर।  साथ ही वह बड़ी गंभीरता से अगले गंतव्य का पता और रुट भी बता देती थी। अब यह सुनकर सभी को सोचने पर मज़बूर होना पड़ता था कि अनजान शहर में टैक्सी पकड़कर कैसे पहुंचेंगे।  इसी से सभी ने समय का ध्यान रखा और नियमितता का पालन किया।

उपरोक्त बातें छोटी छोटी सी हैं और हम सब जानते हैं।  लेकिन अपने देश में न तो पालन करने की आवश्यकता मह्सूस करते हैं और न ही किसी का डर होता है।  लेकिन विदेशों में भारी जुर्माने के डर से हम भीगी बिल्ली बन जाते हैं और अनुशासित रूप में व्यवहार करने लगते हैं।  ज़ाहिर है, इंसान डर से ही डरता है।  डर चाहे वो जुर्माने का हो, या सज़ा का। डर नहीं तो इंसान इंसान नहीं रहता। पता नहीं हमारे देश में यह डर कब पैदा होगा और कब हम भी इंसान बनेंगे !