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Wednesday, January 3, 2024

विविधता में समानता ...

 अनेक देश, अनेक रेस, 

अनेक सूरतें हैं धरा पर।

पर एक ही मूल रूप है, 

इंसान का हर जगहां पर। 

अलग खान पान, रहन सहन, 

अलग हैं रीति रिवाज।

पर एक ही हैं प्रकृति के 

पांच तत्वों की आवाज़। 

सभी सोते हैं जागते हैं, 

खाते हैं, पीते हैं, 

अपनी अपनी जिंदगी जीते हैं। 

वही भावनाएं, वही संवेदनाएं,

वही गम, वही खुशियां। 

वही दर्द, वही चैन। 

सब कुछ एक जैसे ही तो दिखते हैं। 

फिर क्यों इंसान ने खुद को

बांट लिया है,

रंग, मजहब और सरहदों की दीवारों से। 

कुदरत नहीं करती कोई भेद भाव,

नहीं देखती देश, धर्म और रेस,

जब वो कहर बरसाती है।

फिर क्यों इंसान की फितरत 

कुदरत से टकराती है। 

ये हसीन फिजाएं कुदरत का तोहफ़ा है,

इसे व्यर्थ ना गवाएं,

इंसानियत को समझें, 

आपस में ना टकराएं। 

सब मिलकर पर्यावरण की करें रक्षा,

और विश्व को बेवक्त बर्बादी से बचाएं। 

यही हैं हमारी,

नव वर्ष की शुभकामनाएं। 



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