कहते हैं --एक मच्छर आदमी को क्या से क्या बना देता है । इसी तरह एक छोटी सी पिन कंप्यूटर का बेडा गर्क कर देती है । ये तो हमने अभी जाना । अब हुआ यूँ कि हम ज़नाब की सफाई करने बैठे और की बोर्ड का तार निकाल कर जब दोबारा डालने लगे तो ज़रा चक्कर खा गए। लगे अक्ल के बैल दोड़ाने । लेकिन अपनी तो बुद्धि चकरा गई और समझ ही नहीं आया कि ये कैसे डलेगा । कई दिन तक कोशिश करते रहे , कईयों से सलाह भी ली लेकिन वही ढाक के तीन पात। आखिर स्पेशलिस्ट के पास ले जाना पड़ा । और पता चला कि हमने अपनी होर्स पावर का प्रयोग करते हुए लीड की एक छोटी सी पिन तोड़ दी थी , जिसकी वज़ह से वो काम नहीं कर रहा था ।
अब हमें तो यही समझ आया कि भई अनजान रास्ते पर चलते समय लापरवाही नहीं, सावधानी बरतनी चाहिए । वर्ना एक गलत कदम बड़ी मुसीबत में डाल सकता है आपको । अब पिछले सप्ताह मैंने ब्लोगिंग कम करने की सलाह क्या दी , अपनी तो ब्लोगिंग ही बंद हो गई।
अभी कुछ दिन पहले अखबार में पढ़ा कि भीख दोगे तो सजा मिलेगी। रोड रेगुलेशंस १९८९, के नियम २२ (अ) के अंतर्गत आपको १०० रूपये जुर्माना हो सकता है। यानि एक रुपया भीख दोगे तो १०० रूपये की चपत लगेगी। अब मैंने तो ये ज्ञान सप्त.२००२ में ही पा लिया था तो मैंने तो डर कर भीख देना बंद कर दिया। पर लगता है कि दिल्ली वाले बहुत बहादुर लोग हैं। तभी तो रेड लाइट पर गाड़ी रोकते ही भिखारियों का एक सैलाब सा आ जाता है। और भिखारी भी ऐसे कि गलती से आपने एक बार उनकी तरफ़ देख लिया तो फ़िर बिना कुछ लिए पीछा नही छोड़ने वाले। इसका उपाय मैंने तो ये खोजा है कि बिना उनकी तरफ़ देखे हाथ हिला कर इशारा करो कि--- जा-जा। वो अपने आप समझ जाते हैं कि ये खडूस कुछ नही देने वाला। लेकिन आजकल भिखारी भी बड़े हाई -टेक्क हो गए हैं। कई बार तो पता ही नही चलता कि भिखारी कौन और दाता कौन है।
एक चौराहे पर जब मैं रुका और नजर घुमाई ,
फुटपाथ पर खड़े एक भिखारी ने
जेब से मोबाईल निकाला और कॉल लगाई।
और उधर से बौस पुकारा, दीनानाथ
आज तुम्हारी वी आई पी रूट पर ड्यूटी है।
भिखारी बिगड़ गया और बोला सौरी,
मेरी सी एल लगा देना , आज मेरी छुट्टी है।
नही बौस , वी आई पी ड्यूटी से मेरा लॉस हो जाएगा भारी,
अरे नेताओं से क्या मिलेगा , वो तो ख़ुद ही हैं भिखारी।
जब भी चुनाव होते हैं , ये हाथ जोड़ खड़े होते हैं,
और इस गठबंधन के ज़माने में चुनाव भी तो रोज होते हैं।
बौस बोला भैया ऐसा सोचना भी
तुम्हारी भारी गलती है।
अब नेता भी समझदार हो गए हैं ,
इसलिए गठबंधन की सरकारें ज्यादा चलती हैं।
Wednesday, April 28, 2010
Thursday, April 22, 2010
हाइपर्टेंशन ( उच्च रक्त चाप )---एक मौन कातिल ----
हाइपर्टेंशन यानि हाई ब्लड प्रेशर ( उच्च रक्त चाप ) एक ऐसी बीमारी है जिसके बीमार को बीमार होने का अहसास ही नहीं होता । और जब होता है तब तक कई मामलों में देरी हो चुकी होती है । इसीलिए इसको साइलेंट किल्लर यानि मौन कातिल कहा जाता है।
प्रो श्रीधर द्विवेदी द्वारा आयोजित लोकोपयोगी व्याख्यान श्रंखला में इस महीने इसी पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया , हमारे अस्पताल में । प्रस्तुत हैं , उसी के कुछ द्रश्य और इससे सम्बंधित जानकारी ।
सभा में श्रोताओं को सम्भोधित करते हुए प्रो द्विवेदी।
डॉ द्विवेदी ने बताया कि भारत में करीब २० करोड़ लोग बी पी के शिकार हैं । और करीब ५० % लोग इसके कगार पर हैं। इसके लिए जिम्मेदार है हमारी जीवन शैली , खान पान , और शहरीकरण जहाँ सभी भौतिक सुख सुविधाएँ आज सभी को उपलब्ध हैं।
इन्ही तत्वों से जुडी हैं --पांच महामारियां ---
उच्च रक्त चाप , मधुमेह, हृदयाघात , पक्षाघात और मोटापा ।
इनमे से यदि एक भी हो जाये तो बाकी चार भी होने का खतरा बना रहता है।
इन्ही पांच महाविनाश के पांच तत्व हैं :
१--तम्बाखू --स्मोकिंग
२--तोंद / निष्क्रियता / व्यायाम हीनता
३--तनाव
४--तला हुआ भोजन --जंक फ़ूड
५--भारतीयता । जी हाँ ये बीमारियाँ सबसे तेजी से हमारे ही देश में बढ़ रही हैं।
मंच पर आसीन पी एन बी प्रबंधक , डॉ ओ पी कालरा --प्रधानाचार्य , यू सी ऍम अस , डॉ यू सी वर्मा -चिकित्सा अधीक्षक , और डॉ हर्षवर्धन --मुख्य अतिथि।
रक्त चाप क्या होता है ?
हमारी धमनियों में रक्त के दबाव को रक्त चाप कहते हैं । यह दो प्रकार का होता है --systolic और diastolic नोर्मल बी पी १२०/८० माना जाता है ।
१४०/९० तक प्री हाइपर्टेंशन कहलाता है । यानि आगे चलकर हाई ब्लड प्रेशर रहने की सम्भावना है।
१४०/९० से ज्यादा निश्चित तौर पर हाई है।
लेकिन यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि सिर्फ एक बार बी पी हाई रीडिंग होने से आप बी पी के मरीज़ नहीं बन जाते । जब कई बार नापने पर या यूँ कहिये कि अलग अलग दिनों में नापने पर यदि रीडिंग हाई आती है , तभी इसे हाइपर्तेन्शन कहा जाता है और इलाज़ किया जाता है।
क्यों होता है उच्च रक्त चाप ?
९५ % लोगों में इसका कोई कारण नहीं होता । इसे इसेंसियल हाइपर्टेंशन कहते हैं। सिर्फ ५% लोगों में ऐसे कारण पाए जाते हैं जिसका उपचार करने से बी पी भी ठीक हो जाता है । इसे सेकंडरी हाइपर्टेंशन कहते हैं।
हाई ब्लड प्रेशर के लिए दोषी कौन ?
धूम्रपान , निष्क्रियता , मोटापा , मधुमेह , जंक फूड्स, अत्यधिक शराब का सेवन , अत्यधिक नमक और वसा का सेवन।
इसके आलावा दक्षिण एशियाई मूल के लोगों को ज्यादा होता है । यह रोग अनुवांशिक भी है।
अत्यधिक ब्लोगिंग भी निष्क्रियता का एक उदाहरण है।
लक्षण :
आरम्भ में इसका पता ही नहीं चलता । सिर्फ तभी पता चलता है जब आप किसी कारण से चेक कराएँ , या देर होने पर इसके गंभीर परिणाम आने लगें ।
इसलिए ज़रूरी है कि ४० वर्ष से ऊपर के लोगों को साल में एक बार अवश्य चेक कराना चाहिए ।
लेकिन यदि अचानक बी पी हाई हो जाये तो --ये लक्षण आ सकते हैं :
सर दर्द, मतली आना , चक्कर आना , नकसीर छूटना , दिल में धड़कन महसूस होना , सांस का फूलना आदि।
बी पी के लेट इफेक्ट्स :
हृदय रोग ( हार्ट अटैक ) , पक्षाघात ( स्ट्रोक ) , किडनी फेलियर ( गुर्दा रोग ) , मधुमेह ।
कैसे बचा जाये ?
बी पी को नोर्मल रखने के लिए आवश्यक हैं :
नियमित जांच।
वज़न को कम रखें या घटायें । प्रति किलो कम करने से २.५ /१.५ mm बी पी कम होता है ।
नियमित व्यायाम । पैदल चलना , साइकल चलाना , तैरना आदि सबसे बेहतर व्यायाम हैं।
योगासन --प्राणायाम और शवासन --दिल का दौरा पड़ने के बाद भी लाभदयक सिद्ध होते हैं।
स्वस्थ आहार --नमक , घी, मीठा , तला हुआ भोजन , टिंड फूड्स से परहेज़ करें या कम से कम खाएं ।
फल, सब्जियां , दालें , मछली , अंडे की सफेदी , लीन मीट , चिकन अच्छे आहार माने जाते हैं।
सचुरेतेड फैट्स की जगह अन्सैचुरेतद और पोली अन्सैचुरेतद तेलों का उपयोग बेहतर है।
शराब :
एक या दो पेग ( ३० ऍम अल ) प्रतिदिन ह्रदय रोग से बचाती है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप आज से पीना शुरू कर दें। वैसे तो सात्विक भोजन का अपना ही मज़ा है।
पुरुषों को सप्ताह में २१ पेग्स ( एक दिन में ४ से ज्यादा नहीं ) , और स्त्रियों को १४ पेग्स से जयादा नहीं ( एक दिन में ३ ) पीना चाहिए । यह मूलत: उन लोगों के लिए है जो शराब का नियमित रूप से सेवन करते हैं।
आदर्श खानपान :
केला , अनार , मोसमी , संतरा ,आदि फल
आंवला , पपीता , लौकी , हरी सब्जियां , दाल , राजमा , और मेवे ( ड्राई फ्रूट्स )
मिश्रित दालें और मिश्रित आटा ।
यदि इस प्रकार जीवन शैली को नियंतरण में रखा जाये तो बी पी की सम्भावना काफी कम हो जाती है ।
यदि फिर भी बी पी हाई रहने लगे , तो फ़िक्र मत करिए --हम डॉक्टर्स हैं ना --हम आपको दवाइयाँ खिलाएंगे --और आप ठीक रहेंगे । बस दवा उम्र भर खानी पड़ सकती है ।
इसलिए जहाँ तक हो सके , जीवन नैया को सीधे चलाइये , भटकने मत दीजिये ।
यदि भटक जाये , तो डॉक्टर को याद करिए ।
इस अवसर पर डॉ द्विवेदी द्वारा लिखा गया यू सी ऍम अस कुलगीत --जय हो --गाया गया ।
इस गीत को संगीतबद्ध और स्वरबद्ध किया डॉ उज्जवल ने ।
आप भी इस गीत का आनंद लीजिये ।
चिकित्सक भी , कवि भी , गीतकार भी , संगीतकार भी और गायक भी । डॉक्टर्स भी सब कुछ हो सकते हैं।
प्रो श्रीधर द्विवेदी द्वारा आयोजित लोकोपयोगी व्याख्यान श्रंखला में इस महीने इसी पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया , हमारे अस्पताल में । प्रस्तुत हैं , उसी के कुछ द्रश्य और इससे सम्बंधित जानकारी ।
सभा में श्रोताओं को सम्भोधित करते हुए प्रो द्विवेदी।
डॉ द्विवेदी ने बताया कि भारत में करीब २० करोड़ लोग बी पी के शिकार हैं । और करीब ५० % लोग इसके कगार पर हैं। इसके लिए जिम्मेदार है हमारी जीवन शैली , खान पान , और शहरीकरण जहाँ सभी भौतिक सुख सुविधाएँ आज सभी को उपलब्ध हैं।
इन्ही तत्वों से जुडी हैं --पांच महामारियां ---
उच्च रक्त चाप , मधुमेह, हृदयाघात , पक्षाघात और मोटापा ।
इनमे से यदि एक भी हो जाये तो बाकी चार भी होने का खतरा बना रहता है।
इन्ही पांच महाविनाश के पांच तत्व हैं :
१--तम्बाखू --स्मोकिंग
२--तोंद / निष्क्रियता / व्यायाम हीनता
३--तनाव
४--तला हुआ भोजन --जंक फ़ूड
५--भारतीयता । जी हाँ ये बीमारियाँ सबसे तेजी से हमारे ही देश में बढ़ रही हैं।
मंच पर आसीन पी एन बी प्रबंधक , डॉ ओ पी कालरा --प्रधानाचार्य , यू सी ऍम अस , डॉ यू सी वर्मा -चिकित्सा अधीक्षक , और डॉ हर्षवर्धन --मुख्य अतिथि।
रक्त चाप क्या होता है ?
हमारी धमनियों में रक्त के दबाव को रक्त चाप कहते हैं । यह दो प्रकार का होता है --systolic और diastolic नोर्मल बी पी १२०/८० माना जाता है ।
१४०/९० तक प्री हाइपर्टेंशन कहलाता है । यानि आगे चलकर हाई ब्लड प्रेशर रहने की सम्भावना है।
१४०/९० से ज्यादा निश्चित तौर पर हाई है।
लेकिन यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि सिर्फ एक बार बी पी हाई रीडिंग होने से आप बी पी के मरीज़ नहीं बन जाते । जब कई बार नापने पर या यूँ कहिये कि अलग अलग दिनों में नापने पर यदि रीडिंग हाई आती है , तभी इसे हाइपर्तेन्शन कहा जाता है और इलाज़ किया जाता है।
क्यों होता है उच्च रक्त चाप ?
९५ % लोगों में इसका कोई कारण नहीं होता । इसे इसेंसियल हाइपर्टेंशन कहते हैं। सिर्फ ५% लोगों में ऐसे कारण पाए जाते हैं जिसका उपचार करने से बी पी भी ठीक हो जाता है । इसे सेकंडरी हाइपर्टेंशन कहते हैं।
हाई ब्लड प्रेशर के लिए दोषी कौन ?
धूम्रपान , निष्क्रियता , मोटापा , मधुमेह , जंक फूड्स, अत्यधिक शराब का सेवन , अत्यधिक नमक और वसा का सेवन।
इसके आलावा दक्षिण एशियाई मूल के लोगों को ज्यादा होता है । यह रोग अनुवांशिक भी है।
अत्यधिक ब्लोगिंग भी निष्क्रियता का एक उदाहरण है।
लक्षण :
आरम्भ में इसका पता ही नहीं चलता । सिर्फ तभी पता चलता है जब आप किसी कारण से चेक कराएँ , या देर होने पर इसके गंभीर परिणाम आने लगें ।
इसलिए ज़रूरी है कि ४० वर्ष से ऊपर के लोगों को साल में एक बार अवश्य चेक कराना चाहिए ।
लेकिन यदि अचानक बी पी हाई हो जाये तो --ये लक्षण आ सकते हैं :
सर दर्द, मतली आना , चक्कर आना , नकसीर छूटना , दिल में धड़कन महसूस होना , सांस का फूलना आदि।
बी पी के लेट इफेक्ट्स :
हृदय रोग ( हार्ट अटैक ) , पक्षाघात ( स्ट्रोक ) , किडनी फेलियर ( गुर्दा रोग ) , मधुमेह ।
कैसे बचा जाये ?
बी पी को नोर्मल रखने के लिए आवश्यक हैं :
नियमित जांच।
वज़न को कम रखें या घटायें । प्रति किलो कम करने से २.५ /१.५ mm बी पी कम होता है ।
नियमित व्यायाम । पैदल चलना , साइकल चलाना , तैरना आदि सबसे बेहतर व्यायाम हैं।
योगासन --प्राणायाम और शवासन --दिल का दौरा पड़ने के बाद भी लाभदयक सिद्ध होते हैं।
स्वस्थ आहार --नमक , घी, मीठा , तला हुआ भोजन , टिंड फूड्स से परहेज़ करें या कम से कम खाएं ।
फल, सब्जियां , दालें , मछली , अंडे की सफेदी , लीन मीट , चिकन अच्छे आहार माने जाते हैं।
सचुरेतेड फैट्स की जगह अन्सैचुरेतद और पोली अन्सैचुरेतद तेलों का उपयोग बेहतर है।
शराब :
एक या दो पेग ( ३० ऍम अल ) प्रतिदिन ह्रदय रोग से बचाती है । लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आप आज से पीना शुरू कर दें। वैसे तो सात्विक भोजन का अपना ही मज़ा है।
पुरुषों को सप्ताह में २१ पेग्स ( एक दिन में ४ से ज्यादा नहीं ) , और स्त्रियों को १४ पेग्स से जयादा नहीं ( एक दिन में ३ ) पीना चाहिए । यह मूलत: उन लोगों के लिए है जो शराब का नियमित रूप से सेवन करते हैं।
आदर्श खानपान :
केला , अनार , मोसमी , संतरा ,आदि फल
आंवला , पपीता , लौकी , हरी सब्जियां , दाल , राजमा , और मेवे ( ड्राई फ्रूट्स )
मिश्रित दालें और मिश्रित आटा ।
यदि इस प्रकार जीवन शैली को नियंतरण में रखा जाये तो बी पी की सम्भावना काफी कम हो जाती है ।
यदि फिर भी बी पी हाई रहने लगे , तो फ़िक्र मत करिए --हम डॉक्टर्स हैं ना --हम आपको दवाइयाँ खिलाएंगे --और आप ठीक रहेंगे । बस दवा उम्र भर खानी पड़ सकती है ।
इसलिए जहाँ तक हो सके , जीवन नैया को सीधे चलाइये , भटकने मत दीजिये ।
यदि भटक जाये , तो डॉक्टर को याद करिए ।
इस अवसर पर डॉ द्विवेदी द्वारा लिखा गया यू सी ऍम अस कुलगीत --जय हो --गाया गया ।
इस गीत को संगीतबद्ध और स्वरबद्ध किया डॉ उज्जवल ने ।
आप भी इस गीत का आनंद लीजिये ।
चिकित्सक भी , कवि भी , गीतकार भी , संगीतकार भी और गायक भी । डॉक्टर्स भी सब कुछ हो सकते हैं।
Monday, April 19, 2010
यादों के झरोखों से --१९६९ का भारत ऑस्ट्रेलिया क्रिकेट टेस्ट मैच ---
आई पी एल ३ निकला जा रहा है । और हम तो एक भी मैच नहीं देख पाए । कल दिल्ली में दिल्ली का आखिरी मैच भी हो गया । क्या करें काम , काम और काम । लगता है इस बार भी ख्वाबों ख्यालों में ही रह जाएगी क्रिकेट।
लेकिन अपना तो उसूल है की जब गर्मी सताए और कहीं जा न पायें तो पर्वतों के बारे में सोचना शुरू कर दो। सारी गर्मी उड़न छू हो जाएगी।
तो भई , आइये आपको ले चलते हैं भारत और ऑस्ट्रेलिये के बीच होने वाले १९६९ -१९७० सीरीज के तीसरे क्रिकेट टेस्ट मैच में जो दिसंबर १९६९ में दिल्ली के फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान पर खेला गया ।
मैच का पहला दिन । जसदेव सिंह आँखों देखा हाल सुना रहे हैं।
जसदेव सिंह ---
दोनों टीमों के खिलाडी मैदान में हाज़िर। पंक्तिबद्ध खड़े हुए । आज प्रधान मंत्री जी से दोनों टीमों के खिलाडियों का परिचय कराया जायेगा। दिसंबर की सुहानी सुबह । कोटला मैदान सर्दियों की नर्म धूप में नहाया हुआ।यमुना के शीतल जल से होकर पूरब से आती मंद मंद बहती पुरवाई मानो ये सन्देश देती हुई कि प्रधान मंत्री जी अब आने ही वाली हैं।
इस मैच के लिए जिन १३ खिलाडियों के नाम घोषित किये गए हैं , वो इस प्रकार हैं ।
अभी वो शुरू करने ही वाले थे कि पता चला कि पी ऍम जी आ गई हैं। जसदेव सिंह जी ने जल्दी जल्दी नाम लेने शुरू किये ---
लॉरी , स्टैक्पोल, चैपल, शीहन , वाल्टर्स , रेडपाथ , कोनली , मैकेंजी , टेबर , ग्लिसन , फ्रिमन , मेने , मैलेट ।
और फिर थोड़ी देर बाद जब परिचय ख़त्म हुआ तो इत्मीनान से नाम बताये --बल्लेबाज़ी के क्रम में --
बिल लॉरी
कीथ स्टैक्पोल
इयान चैपल
लेकिन अपना तो उसूल है की जब गर्मी सताए और कहीं जा न पायें तो पर्वतों के बारे में सोचना शुरू कर दो। सारी गर्मी उड़न छू हो जाएगी।
तो भई , आइये आपको ले चलते हैं भारत और ऑस्ट्रेलिये के बीच होने वाले १९६९ -१९७० सीरीज के तीसरे क्रिकेट टेस्ट मैच में जो दिसंबर १९६९ में दिल्ली के फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान पर खेला गया ।
मैच का पहला दिन । जसदेव सिंह आँखों देखा हाल सुना रहे हैं।
जसदेव सिंह ---
दोनों टीमों के खिलाडी मैदान में हाज़िर। पंक्तिबद्ध खड़े हुए । आज प्रधान मंत्री जी से दोनों टीमों के खिलाडियों का परिचय कराया जायेगा। दिसंबर की सुहानी सुबह । कोटला मैदान सर्दियों की नर्म धूप में नहाया हुआ।यमुना के शीतल जल से होकर पूरब से आती मंद मंद बहती पुरवाई मानो ये सन्देश देती हुई कि प्रधान मंत्री जी अब आने ही वाली हैं।
इस मैच के लिए जिन १३ खिलाडियों के नाम घोषित किये गए हैं , वो इस प्रकार हैं ।
अभी वो शुरू करने ही वाले थे कि पता चला कि पी ऍम जी आ गई हैं। जसदेव सिंह जी ने जल्दी जल्दी नाम लेने शुरू किये ---
लॉरी , स्टैक्पोल, चैपल, शीहन , वाल्टर्स , रेडपाथ , कोनली , मैकेंजी , टेबर , ग्लिसन , फ्रिमन , मेने , मैलेट ।
और फिर थोड़ी देर बाद जब परिचय ख़त्म हुआ तो इत्मीनान से नाम बताये --बल्लेबाज़ी के क्रम में --
बिल लॉरी
कीथ स्टैक्पोल
इयान चैपल
पॉल शीहन
डग वाल्टर्स
इयान रेडपाथ
कोनली
ग्राहम मैकेंजी
इयान रेडपाथ
कोनली
ग्राहम मैकेंजी
टेबर , ग्लिसन , फ्रिमन , मेने ,
और
एशली मैलेट।
आपको बता दें कि इस श्रंखला में बिल लॉरी कप्तान थे और ओपनर थे और स्तैक्पौल रन्नर थे । भारत ने ये मैच ७ विकेट से जीता था। इस मैच में लॉरी दूसरी इनिंग्स में ४९ रन बनाकर नोट आउट रहे थे । ऐसा करके वे विश्व के ३७ वें बल्लेबाज़ बने थे जिसने बैट कैरीड किया था ।
ऑस्ट्रेलिये की दूसरी इनिंग्स में कप्तान बेदी और प्रसन्ना ने ५-५ विकेट लेकर ऑस्ट्रेलिये को मात्र १०७ रन पर आउट कर दिया था ।
भारत ने यह मैच ७ विकेट से जीता । जिसमे बेदी ने २० रन बनाये और वे आउट नहीं हुए । पहली बार उन्होंने ३ छक्के भी लगाये ।
मैच का एक द्रश्य :
जोगा राव जी हिंदी में कमेंट्री कर रहे हैं।
बिशन बेदी बाएं हाथ से ओवर दी विकेट --ये गेंद फैंकी --जिसे बल्लेबाज़ ने खेल दिया है उस ओर जिधर क्षेत्र रक्षण कर रहे है प्रसन्ना --भारी भरकम शरीर के प्रसन्ना --गेंद तेज़ी से होती हुई प्रसन्ना के पास से निकल गई --और प्रसन्ना लुढ़कते पुढ़कते गेंद के पीछे दोड़े जा रहे हैं --लेकिन गेंद उनसे ज्यादा तेज़ --और ये हुई सीमा रेखा से बाहर।
प्रसन्ना लुढ़कते पुढ़कते गेंद के पीछे दोड़े जा रहे हैं ---ये शब्द अभी भी मेरे कानों में गूँज रहे हैं। जी हाँ बिलकुल यही शब्द।
इस वर्णन का एक एक शब्द सच है। मुझे आज भी याद है । हमने भले ही क्रिकेट ना खेली हो , लेकिन कमेंट्री सुनने का बड़ा शौक था । इसी का नातेज़ा है कि ये सब याद है।
इस पूरे विवरण में बस एक गलती है । आपको बतानी है कि ये गलती क्या है ।
आइये देखते हैं आप क्रिकेट के कितने बड़े शौक़ीन हैं।
आपको बता दें कि इस श्रंखला में बिल लॉरी कप्तान थे और ओपनर थे और स्तैक्पौल रन्नर थे । भारत ने ये मैच ७ विकेट से जीता था। इस मैच में लॉरी दूसरी इनिंग्स में ४९ रन बनाकर नोट आउट रहे थे । ऐसा करके वे विश्व के ३७ वें बल्लेबाज़ बने थे जिसने बैट कैरीड किया था ।
ऑस्ट्रेलिये की दूसरी इनिंग्स में कप्तान बेदी और प्रसन्ना ने ५-५ विकेट लेकर ऑस्ट्रेलिये को मात्र १०७ रन पर आउट कर दिया था ।
भारत ने यह मैच ७ विकेट से जीता । जिसमे बेदी ने २० रन बनाये और वे आउट नहीं हुए । पहली बार उन्होंने ३ छक्के भी लगाये ।
मैच का एक द्रश्य :
जोगा राव जी हिंदी में कमेंट्री कर रहे हैं।
बिशन बेदी बाएं हाथ से ओवर दी विकेट --ये गेंद फैंकी --जिसे बल्लेबाज़ ने खेल दिया है उस ओर जिधर क्षेत्र रक्षण कर रहे है प्रसन्ना --भारी भरकम शरीर के प्रसन्ना --गेंद तेज़ी से होती हुई प्रसन्ना के पास से निकल गई --और प्रसन्ना लुढ़कते पुढ़कते गेंद के पीछे दोड़े जा रहे हैं --लेकिन गेंद उनसे ज्यादा तेज़ --और ये हुई सीमा रेखा से बाहर।
प्रसन्ना लुढ़कते पुढ़कते गेंद के पीछे दोड़े जा रहे हैं ---ये शब्द अभी भी मेरे कानों में गूँज रहे हैं। जी हाँ बिलकुल यही शब्द।
इस वर्णन का एक एक शब्द सच है। मुझे आज भी याद है । हमने भले ही क्रिकेट ना खेली हो , लेकिन कमेंट्री सुनने का बड़ा शौक था । इसी का नातेज़ा है कि ये सब याद है।
इस पूरे विवरण में बस एक गलती है । आपको बतानी है कि ये गलती क्या है ।
आइये देखते हैं आप क्रिकेट के कितने बड़े शौक़ीन हैं।
Friday, April 16, 2010
क्या आप ब्लोगिंग नाम के नशे के शिकार हैं ----ज़रा सोचिये ---
सूत न कपास , जुलाहों में लट्ठम लट्ठा !
अनिल पुसदकर जी की यह पोस्ट पढ़कर , बहुत दिनों से जो मैं महसूस कर रहा था और एक बार एक व्यंग लेख के रूप में इशारा भी कर चुका हूँ , आज खुल्लम खुल्ला लिखने का मन कर रहा है ।
मेडिकल प्रोफेशन , ब्लोगिंग , कवितायेँ , हास्य , मेडिकल एसोसियेशन , सामाजिक संस्थाएं और व्यक्तिगत शौक जैसे घूमना फिरना आदि --इन सबके रहते अक्सर मुझसे पूछा जाता है इन सब के लिए आप के पास टाइम कहाँ से आता है ।
मेरा एक ही ज़वाब होता है :
मेरी पत्नी को मुझसे एक ही शिकायत रहती है कि मैं अस्पताल जाकर घर को बिलकुल भूल जाता हूँ। अब कम से कम इस मामले में वो बिलकुल सही कहती हैं । क्योंकि ये सच है कि मैं जब ९ से ४ बजे तक अस्पताल में होता हूँ तो सिर्फ और सिर्फ अपने काम के बारे में सोचता हूँ। लेकिन उसके बाद जो १७ घंटे बचते हैं , उनमे से १-२ घंटे अपने शौक पूरे करने के लिए न निकल सकें , ऐसा नहीं हो सकता ।
लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि सिर्फ १-२ घंटे , --१७ घंटे नहीं ।
अब देखते हैं कि नशा क्या होता है । मुझे तो लगता है कि आदमी की जिंदगी ही एक नशा है । हर काम में नशा । बस फर्क इतना है कि हर नशे का नशा अलग अलग होता है , कोई थोडा कम कोई थोडा ज्यादा।
बेड टी :
सुबह उठते ही आपको चाहिए एक प्याला गरमा गर्म चाय । लेकिन अगर किसी दिन घर में दूध न हो तो --मजबूरी में काली चाय भी चलेगी । चीनी ख़त्म --कोई बात नहीं आज फीकी ही सही । लेकिन अगर चाय की पत्ती ही नहीं है तो --मारे गए । अब बिना चाय के आप तड़प उठेंगे । ---नशा ।
अखबार :
रोज सुबह उठते ही पहला काम होता है , अखबार देखना । जब तक नहीं आ जाता आदमी एडियाँ उठा उठा कर देखते रहते हैं । साल में एक आध दिन छुट्टी होती है तो ऐसा लगता है जैसे आज कुछ मिस कर रहे हैं । कुछ लोगों को तो नित्य क्रिया से निपटने में भी तकलीफ होती है , इसके न होने से ।
टी वी :
यदि एक दिन खराब हो जाये तो सारा मूढ़ भी खराब हो जाता है । आप कंट्रोल कर भी लें तो घर वाले ही नाक में दम कर देते हैं। एक मायूसियत सी छा जाती है घर में ।
कंप्यूटर :
एक आवश्यकता ही नहीं , एक मजबूरी भी बन गई है । सारा काम तो इसी से होता है ।
इंटरनेट :
कंप्यूटर ठीक भी हो और नेट न आ रहा हो , तो ऐसी हालत होती है , जैसे जल बिच मीन प्यासी ।
इस बात को ब्लोगर से ज्यादा भला और कौन बेहतर समझ सकता है ।
अब बीडी , सिगरेट , पान , तम्बाखू , खैनी , ज़र्दा ,---शराब --चरस , गांजा , स्मैक , हेरोइन , एल एस डी आदि नशीले पदार्थों के बारे में क्या कहें । ये तो जान लेवा हैं।
कितने लोग हैं , जो इनमे से किसी एक का भी नशा नहीं करते । शायद कोई नहीं ।
अब नशे की एक नई किस्म आ गयी है , और वो है --सोशल नेट वर्किंग साइट्स जैसे ऑरकुट, फेसबुक, ट्विटर और ब्लोगिंग ।
मुझे तो ये सभी वाहियात लगते हैं, समय नष्ट करने के साधन।
सिवाय ब्लोगिंग के , जहाँ सभी वर्ग के लोग अपनी अपनी बात कह सकते हैं , साथ ही दूसरों के साथ सार्थक विचार विमर्श भी कर सकते हैं।
लेकिन ज़रा संभल के ।
जी हाँ , क्योंकि यह भी एक भयंकर नशा है । पता भी नहीं चलता आप कब नशेड़ी बन गए । फिर चाहकर भी नहीं छोड़ पाते ।
घर या ऑफिस का काम छोड़कर , व्यक्तिगत दिनचर्या छोड़कर , सामाजिक जिम्मेदारियां छोड़कर , घर बार को छोड़कर --यदि आप ब्लोगिंग करते हैं , तो समझ लीजिये --आप नशे के शिकार हो चुके हैं।
ब्लोगिंग अभिव्यक्ति के मरीजों के लिए एक दवा है। लेकिन दवा है तो सही डोज़ भी होना अत्यंत आवश्यक है ।
यदि कम रहे तो असर पूरा नहीं आएगा --यदि ज्यादा हो गई तो साइड इफेक्ट्स आने लाजिमी हैं।
टोक्सिक डोज़ में तो कुछ भी हो सकता है ।
इसलिए दोस्तों सावधान हो जाइये । यह नशा बहुत प्यारा है , लेकिन जब प्यार ही जान का दुश्मन बन जाये तो प्यार में कुर्बान होना न कोई बहादुरी है , न समझदारी।
सप्ताह में एक या दो पोस्ट लिखिए --बाकी के दिन दूसरों को पढ़िए ।
प्यार बांटिये , प्यार पाइये ।
अनिल पुसदकर जी की यह पोस्ट पढ़कर , बहुत दिनों से जो मैं महसूस कर रहा था और एक बार एक व्यंग लेख के रूप में इशारा भी कर चुका हूँ , आज खुल्लम खुल्ला लिखने का मन कर रहा है ।
मेडिकल प्रोफेशन , ब्लोगिंग , कवितायेँ , हास्य , मेडिकल एसोसियेशन , सामाजिक संस्थाएं और व्यक्तिगत शौक जैसे घूमना फिरना आदि --इन सबके रहते अक्सर मुझसे पूछा जाता है इन सब के लिए आप के पास टाइम कहाँ से आता है ।
मेरा एक ही ज़वाब होता है :
मेरी पत्नी को मुझसे एक ही शिकायत रहती है कि मैं अस्पताल जाकर घर को बिलकुल भूल जाता हूँ। अब कम से कम इस मामले में वो बिलकुल सही कहती हैं । क्योंकि ये सच है कि मैं जब ९ से ४ बजे तक अस्पताल में होता हूँ तो सिर्फ और सिर्फ अपने काम के बारे में सोचता हूँ। लेकिन उसके बाद जो १७ घंटे बचते हैं , उनमे से १-२ घंटे अपने शौक पूरे करने के लिए न निकल सकें , ऐसा नहीं हो सकता ।
लेकिन यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि सिर्फ १-२ घंटे , --१७ घंटे नहीं ।
अब देखते हैं कि नशा क्या होता है । मुझे तो लगता है कि आदमी की जिंदगी ही एक नशा है । हर काम में नशा । बस फर्क इतना है कि हर नशे का नशा अलग अलग होता है , कोई थोडा कम कोई थोडा ज्यादा।
बेड टी :
सुबह उठते ही आपको चाहिए एक प्याला गरमा गर्म चाय । लेकिन अगर किसी दिन घर में दूध न हो तो --मजबूरी में काली चाय भी चलेगी । चीनी ख़त्म --कोई बात नहीं आज फीकी ही सही । लेकिन अगर चाय की पत्ती ही नहीं है तो --मारे गए । अब बिना चाय के आप तड़प उठेंगे । ---नशा ।
अखबार :
रोज सुबह उठते ही पहला काम होता है , अखबार देखना । जब तक नहीं आ जाता आदमी एडियाँ उठा उठा कर देखते रहते हैं । साल में एक आध दिन छुट्टी होती है तो ऐसा लगता है जैसे आज कुछ मिस कर रहे हैं । कुछ लोगों को तो नित्य क्रिया से निपटने में भी तकलीफ होती है , इसके न होने से ।
टी वी :
यदि एक दिन खराब हो जाये तो सारा मूढ़ भी खराब हो जाता है । आप कंट्रोल कर भी लें तो घर वाले ही नाक में दम कर देते हैं। एक मायूसियत सी छा जाती है घर में ।
कंप्यूटर :
एक आवश्यकता ही नहीं , एक मजबूरी भी बन गई है । सारा काम तो इसी से होता है ।
इंटरनेट :
कंप्यूटर ठीक भी हो और नेट न आ रहा हो , तो ऐसी हालत होती है , जैसे जल बिच मीन प्यासी ।
इस बात को ब्लोगर से ज्यादा भला और कौन बेहतर समझ सकता है ।
अब बीडी , सिगरेट , पान , तम्बाखू , खैनी , ज़र्दा ,---शराब --चरस , गांजा , स्मैक , हेरोइन , एल एस डी आदि नशीले पदार्थों के बारे में क्या कहें । ये तो जान लेवा हैं।
कितने लोग हैं , जो इनमे से किसी एक का भी नशा नहीं करते । शायद कोई नहीं ।
अब नशे की एक नई किस्म आ गयी है , और वो है --सोशल नेट वर्किंग साइट्स जैसे ऑरकुट, फेसबुक, ट्विटर और ब्लोगिंग ।
मुझे तो ये सभी वाहियात लगते हैं, समय नष्ट करने के साधन।
सिवाय ब्लोगिंग के , जहाँ सभी वर्ग के लोग अपनी अपनी बात कह सकते हैं , साथ ही दूसरों के साथ सार्थक विचार विमर्श भी कर सकते हैं।
लेकिन ज़रा संभल के ।
जी हाँ , क्योंकि यह भी एक भयंकर नशा है । पता भी नहीं चलता आप कब नशेड़ी बन गए । फिर चाहकर भी नहीं छोड़ पाते ।
घर या ऑफिस का काम छोड़कर , व्यक्तिगत दिनचर्या छोड़कर , सामाजिक जिम्मेदारियां छोड़कर , घर बार को छोड़कर --यदि आप ब्लोगिंग करते हैं , तो समझ लीजिये --आप नशे के शिकार हो चुके हैं।
ब्लोगिंग अभिव्यक्ति के मरीजों के लिए एक दवा है। लेकिन दवा है तो सही डोज़ भी होना अत्यंत आवश्यक है ।
यदि कम रहे तो असर पूरा नहीं आएगा --यदि ज्यादा हो गई तो साइड इफेक्ट्स आने लाजिमी हैं।
टोक्सिक डोज़ में तो कुछ भी हो सकता है ।
इसलिए दोस्तों सावधान हो जाइये । यह नशा बहुत प्यारा है , लेकिन जब प्यार ही जान का दुश्मन बन जाये तो प्यार में कुर्बान होना न कोई बहादुरी है , न समझदारी।
सप्ताह में एक या दो पोस्ट लिखिए --बाकी के दिन दूसरों को पढ़िए ।
प्यार बांटिये , प्यार पाइये ।
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