अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला देखने का अपना द्विदिवसीय कार्यक्रम आख़िर कामयाब रहा। द्विदिवसीय इसलिए की एक दिन तो मेले में एंट्री करने का जुगाड़ करने में ही निकल गया। हालाँकि मैं तो रिसर्च कहूँगा। हुआ यूँ की पहले दिन जब हम मेला पहुंचे तो पार्किंग के गेट पर अटेंडेंट ने बताया---- ज़नाब, पार्किंग फीस ७० रूपये है और एंट्री का टाइम भी ख़त्म हो चुका है। मैंने कहा भाई, पार्किंग के लिए ७० हमारे पास होते तो क्या हम ऐसे होते। शुरू में ही बिजनेस टिकेट लेकर न एंट्री मारते। खैर , पहला दिन हमने जानकारी जुटाने में लगाया और पूरी तरह से जानकारी से लैश होकर , हमने अगले दिन का प्रोग्राम बनाया।
अगले दिन ---टिकेट पेट्रोल पम्प से लेकर, इंडिया गेट पर ३० रूपये में गाड़ी पार्क करके, पार्क एंड राइड सुविधा का फायदा उठाया और मेले की गाड़ी में बैठकर , पहुँच गए । लगा अरे, ये तो बड़ा आसान था। लेकिन गेट तक पहुँचते ही पुलिस वाले की आवाज़ सुनाई दी --- अरे गेट बंद करो, टाइम हो गया है। शायद उस गेट से घुसने वाले हम आखरी सेनानी थे।
अब आगे का हाल, सचित्र ---
अन्दर आते ही सड़कों पर जो भीड़ का हांल देखा तो लगा की पवेलियंस के अन्दर तो जाना ही मुश्किल होगा। लेकिन बाद में पता चला की सारी भीड़ बाहर ही थी , पवेलियंस तो खाली पड़े थे।
शायद मंदी की मार मेले पर भी पड़ी थी।
पति: बहुत हो गया, चलो अब घर चलते हैं।
पत्नी: क्या बहुत हो गया। अभी तो कुछ भी नही देखा।
पति: इतना टाइम नही है मेरे पास।
पत्नी: लेकिन मेरे पास बहुत टाइम है।
पति- पत्नी का आपस का मामला समझ हम तो आगे बढ़ गए।
ओपन एयर थियेटर में , लक्षद्वीप का लोक नृत्य ---
रंगों की ये छटा तो इतनी मनभावन थी की अब तक की सारी थकान इसे देखकर छूमंतर हो गई।
हस्त- शिल्प पर्दार्शिनी से बाहर निकले तो पहुँच गए इन वादियों में ---
जी हाँ, मेले के बीचों बीच ये मानसरोवर झील , थके मांदे पर्यटकों को शकुन प्रदान करती हुई।
वैसे डाइटिंग पर हैं, इसलिए कॉफ़ी पीकर ही काम चला लिया। ऐसे मौके पर डाइटिंग का बहाना बड़ा किफायती रहता है।
शुक्र रहा की आर्टिफिशियल जयुएलरी की ही दूकान थी, तो बस ९०० का ही चूना लगा।
कर्नाटक पेवेलियन
आन्ध्र प्रदेश पेवेलियन
लेकिन हमने तो अपने लिए खरीदा बस एक शीशी आयुर्वेदिक तेल , बालों के लिए।
क्योंकि मुझे इस दुनिया में दो ही चीज़ों के घटने की चिंता लगी रहती है ---
एक हिमालय के ग्लेशियर्स की और दूजे हमारे सर के बाल ।
बाकि सब तो बढ़ ही रहे हैं, फ़िर चाहे वो आबादी हो या महंगाई, प्रदुषण हो या भ्रष्टाचार , आतंकवाद हो या अलागवाद।