जो लोग नोटबंदी से अत्यंत दुखी हैं , उनका ग़म भुलाने के लिए एक दर्द भरा गीत ( पैरोडी ) :
भाग एक :
जाने वो कैसे, लोग हैं जिनको, चौबीस हज़ार मिला ,
हमने तो जब , बस दस मांगे तो , दो ही हज़ार मिला।
बैंकों की राहें ढूंढी तो , लम्बी कतारें मिली ,
अपना जब नंबर आया तो, खिड़की बंद मिली।
जेब को खाली कर गया , अगला, दिन इतवार मिला ------
मुकर गया हर साथी देकर , खाली वादों का जाल ,
किसको फुरसत है जो समझे , हम दीनों का हाल।
हमको अपना दोस्त भी अक्सर , बीच कतार मिला -----
ये जीना भी कोई जीना है भैया , क्या खायें पीयेंगे ,
बिन पैसों के शाम को कैसे ठेका जायेंगे।
काले धन से घबराना कैसा , पांच सौ ना हज़ार मिला -----
भाग दो :
जाने वो कैसे हैं लोग जो कहते , दो ही हज़ार मिला ,
हमने तो जब छापा मारा , धन का भण्डार मिला।
हमने तो जब छापा मारा , धन का भण्डार मिला।
नोटों की गड्डी ढूंढी तो , बोरियां भर के मिली ,
तन के उजले थे , पर मन पर , काली गर्त मिली।
जनता का पैसा हज़्म कर गया, हमदर्द जो यार मिला ----
तन के उजले थे , पर मन पर , काली गर्त मिली।
जनता का पैसा हज़्म कर गया, हमदर्द जो यार मिला ----
बिगड़ गया हर नेता लेकर , नोटों की सौगात ,
किसको चाहत है जो खाये , शैतानों से मात ।
जिसको समझा अपना वो ही , अक्सर बेजार मिला----
किसको चाहत है जो खाये , शैतानों से मात ।
जिसको समझा अपना वो ही , अक्सर बेजार मिला----
ना खाऊंगा ना खाने दूंगा , खाता हूँ ये कसम ,
अब चाहे जो भी हो जाये , होगा ना ही रहम ।
विरोधों से घबराना कैसा , जब जनता का प्यार मिला -----
अब चाहे जो भी हो जाये , होगा ना ही रहम ।
विरोधों से घबराना कैसा , जब जनता का प्यार मिला -----