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Tuesday, December 27, 2016

ग़म भुलाने के लिए ---


जो लोग नोटबंदी से अत्यंत दुखी हैं , उनका ग़म भुलाने के लिए एक दर्द भरा गीत ( पैरोडी ) :

भाग एक :

जाने वो कैसे, लोग हैं जिनको, चौबीस हज़ार मिला ,
हमने तो जब , बस दस मांगे तो , दो ही हज़ार मिला।

बैंकों की राहें ढूंढी तो , लम्बी कतारें मिली ,
अपना जब नंबर आया तो, खिड़की बंद मिली।
जेब को खाली कर गया ,  अगला, दिन इतवार मिला ------

मुकर गया हर साथी देकर , खाली वादों का जाल ,
किसको फुरसत है जो समझे , हम दीनों का हाल।
हमको अपना दोस्त भी अक्सर , बीच कतार मिला -----

ये जीना भी कोई जीना है भैया , क्या खायें पीयेंगे ,
बिन पैसों के शाम को कैसे ठेका जायेंगे।
काले धन से घबराना कैसा , पांच सौ ना हज़ार मिला -----

भाग दो :

जाने वो कैसे हैं लोग जो कहते , दो ही हज़ार मिला , 
हमने तो जब छापा मारा , धन का भण्डार मिला।  

नोटों की गड्डी ढूंढी तो , बोरियां भर के मिली ,
तन के उजले थे , पर मन पर , काली गर्त मिली।
जनता का पैसा हज़्म कर गया, हमदर्द जो यार मिला ----

बिगड़ गया हर नेता लेकर , नोटों की सौगात ,
किसको चाहत है जो खाये , शैतानों से मात ।
जिसको समझा अपना वो ही , अक्सर बेजार मिला----

ना खाऊंगा ना खाने दूंगा , खाता हूँ ये कसम ,
अब चाहे जो भी हो जाये , होगा ना ही रहम ।
विरोधों से घबराना कैसा , जब जनता का प्यार मिला -----


Monday, December 19, 2016

परिवर्तन तो अवश्यम्भावी है ---


सोच बदल रही है , देश बदल रहा है , आप माने या ना माने। हम यह जानते थे और रोज देखते थे कि कैसे हमारे देखते देखते युवा वर्ग की सोच बदल रही है।देश की लगभग आधी आबादी युवा वर्ग से बनती है। हम चाहे जितना मर्ज़ी जोर लगा लें , सोशल मीडिया पर बहस करते रहें , मोदी जी समेत नेताओं को भला बुरा कहते रहें, लेकिन यह सच है कि देश का भविष्य तो यह युवा वर्ग ही निर्धारित करेगा। और हिंदुस्तान टाइम्स के एक सर्वेक्षण ने यह साबित भी कर दिया।

इस सर्वेक्षण के अनुसार  :
* आधे से ज्यादा युवा देश में रहना नहीं चाहते क्योंकि उनको अपना भविष्य विदेशों में ज्यादा उज्जवल नज़र आता है।
* आधे से ज्यादा युवा शादी के प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं। इसीलिए शिक्षित वर्ग में शादी की औसत आयु बढ़ती जा रही है।
* आधे से ज्यादा युवा सोचते हैं कि यदि शादी कर भी लें तो पुरानी पीढ़ी की तरह अंत तक चलने वाली नहीं लगती।
* आधे से ज्यादा युवा शादी से पहले यौन सम्बन्ध रखने में कोई बुराई नहीं समझते।
* आधे से ज्यादा युवा लिव इन रिलेशशिप में कोई बुराई नहीं समझते।
* आधे से ज्यादा अपने पार्टनर के प्रति फेथफुल रहना नहीं चाहते हैं।
* जबकि आधे से कुछ ही कम समलैंगिकता को बुरा नहीं समझते।
* आधे से कुछ ही कम अंतर्जातीय विवाह का अनुमोदन करते हैं।

यह सोच हमारे शहरी, सुशिक्षित , सभ्य समाज में रहने वाले उपरिगामी गतिशील युवा वर्ग की सोच है। और निश्चित ही इस सोच को बदला नहीं जा सकता। क्योंकि जिस तरह कोरे कागज़ पर तो रंग चढ़ा सकते हैं लेकिन रंगीन पर नहीं। कुम्हार कच्ची मिट्टी से ही मनचाहे बर्तन बना सकता है , आग में पकने के बाद नहीं। इसी तरह सांस्कारिक शिक्षा मासूम बच्चों को ही दी जा सकती है , शिक्षित युवाओं को नहीं। अब हमें इसी सोच के साथ जीना होगा , स्वीकार करना होगा और देश को बदलते देखना होगा।

वधु बिन शादी , शादी बिन प्यार ,
बिन शादी के लिव इन यार !
इस व्यवहार ने कर दी ,
संस्कार की , ऐसी की तैसी !    
     

Friday, December 16, 2016

नोटबंदी के दौर में श्री कृष्ण उवाच --


गीतानुसार दुनिया में तीन तरह की प्रवृति के लोग होते हैं -- सात्विक , राजसी और तामसी। यदि नोटबंदी के दौर में पैसे की दृष्टि से देखा जाये तो पैसे वाले अमीरों को इस तरह से परिभाषित किया जा सकता है :

१ ) सात्विक : व्यक्ति वे होते हैं जो अपने मेहनत से गुजर बसर करने के लिए पैसा कमाते हैं और सरकार को निर्धारित कर अदा कर देश निर्माण कार्य में योगदान कर अपना फ़र्ज़ अदा करते हैं। आवश्यकताएं पूर्ण होने के बाद ये संतुष्टि का जीवन यापन करते हैं। लेकिन ऐसे अमीर योगी दुनिया में विरले ही होते हैं। गरीबों के पास तो पैसा ही नहीं होता , इसलिए उनको वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।

२ ) राजसी : ये दो तरह के होते हैं। एक वो जो पैसा तो मेहनत और ईमानदारी से कमाते हैं लेकिन सरकार को कर न देकर कर की चोरी करते हैं। इस श्रेणी में अधिकांश व्यापारी वर्ग के लोग आते हैं जो कमाते तो लाखों करोड़ों हैं लेकिन आय कर , बिक्री कर और वैट आदि भरने से बचते हैं। दूसरे राजसी लोग वे होते हैं जो पैसा सही गलत किसी भी ढंग से कमाकर अपनी तिजोरियां भरते रहते हैं। इस श्रेणी में वे लोग आते हैं जो रिस्वत या किकबैक से करोड़ों कमा लेते हैं या अचल संपत्ति बेचकर कैश को दबाये रहते हैं। ये लोग अपराधी किस्म के नहीं होते लेकिन वस्तुत: अपराध ही करते हैं , गैर कानूनी ढंग से पैसा कमाकर। इनमे मुख्यतया सरकारी अफ़सर , कुछ नेता लोग , प्रोपर्टी डीलर्स या पहुँच वाले सफेदपोश ज्यादा होते हैं।
दोनों ही किस्म के लोग लालची और स्वार्थी होते हैं क्योंकि इन्हें सिर्फ अपने पैसे से मतलब होता है , ये देश या किसी और के बारे में नहीं सोचते।

३ ) तामसी : प्रवृति के लोग आपराधिक प्रवृति के होते हैं जैसे चोर , डाकू , अपहरणकर्त्ता , तस्कर , जालसाज़ , सट्टेबाज़ , ड्रग्स स्मगलर्स , प्रोफेशनल हत्यारे आदि जो अपराध की दुनिया में रहकर पैसा तो कमा लेते हैं लेकिन उसका सुख कभी नहीं भोग पाते क्योंकि ये सदा कानून से भागते रहते हैं। इसलिए इनकी जिंदगी भी क्षणिक होती है और असमय ही ख़त्म हो जाती है।
लेकिन हमारे देश में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिन्हें आम आदमी कहा जाता है। वे न तो अपराधी होते हैं , न अफसर , नेता या पहुँच वाले , न व्यवसायी और न ही इतना कमा पाते हैं कि उनके पास कभी ज़रुरत से ज्यादा पैसा हो। इन लोगों की जिंदगी अक्सर २ और ३ श्रेणी के लोगों द्वारा नियंत्रित और प्रभावित रहती है, एक कोल्हू के बैल की तरह। अक्सर यही वर्ग महंगाई से प्रभावित होता है । लेकिन शायद नोटबंदी से नहीं।


Tuesday, December 6, 2016

फोन पर नक्कालों से सावधान ---

यूँ ही बैठे ठाले , एक फोन के बाद :

मोबाईल पर जानी पहचानी रिंग टोन के बाद -- हैलो !
"हेल्लो , टी एस द -- र --ल जी बोल रहे हैं ? "
-- जी।
"जी मैं स्टेट बैंक से बोल रहा हूँ।"
यह सुनते ही कान खड़े हो गए , मन में बिजली सी कौंधी और हम चौकन्ने हो गये।  फिर शरारत सूझी तो हमने कहा -- हाँ भैया , का होयो ।
"जी स्टेट बैंक में आपका अकाउंट है ?"
--- जे तै पतौ ना भैया। पण गोरमेंट पिल्सण तौ भेजै है खात्ते में।
"आप डेबिट कार्ड इस्तेमाल करते हैं ? "
--- यो घिट पिट का होवै है भैया ? मोहे तौ पतौ ना।
"जी डेबिट कार्ड , जिससे ऐ टी एम मशीन से पैसे निकलते हैं।"
--- अच्छा अच्छा वो पिलास्टिक की पतरी। हाँ वो तौ लौंडा ले जा है अर मसीन में डालतै ई नोट बऱसण लग ज्यां। पण ईब तौ चलै ई ना।
"देखिये , आपका कार्ड ब्लॉक हो गया है।  आप जल्दी से उसे बदलवा लीजिये वरना बहुत पेनल्टी लग जाएगी। आप अपना कार्ड नंबर और पासवर्ड हमें बताइये , हम उसे अभी चालू कर देंगे।"
--- भैया ईब इस बुढ़ापा में तै अपणी बुढ़िया का नाम भी याद ना रहै , फिर कारड का लम्बर कैसे याद रह सकै। तू ठहर , मैं लौंडा कु बुला कै मंगवाऊँ हूँ। पण तू न्यू बता के तू कौण है अर कहाँ सू बोल रह्या है।  
"जी मैं स्टेट बैंक से बोल रहा हूँ।"
--- भैया रे , देस में तौ २९ इस्टेट हैंगे। तेरा कौण सौ इस्टेट बैंक है , न्यू बता ।
"जी , स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया।"
--- रै तू मनै बावला मति बणावै । इंडिया भारत नै ही तो कहैं हैं ना। आच्छा , ईब न्यू बता , तेरो नाम का है अर बैंक का पता का है ।
"जी मेरा नाम ----"
-- अरै रुक ज्या ससुर के नाती , न्यू याद न रहैगो , कागच पै लिखणा पड़ैगो।  अरै पप्पू , भैया मेरी कलम दवात तै दीज्यो।
पप्पू -- दद्दू , कलम तो ये रही लेकिन दवात में स्याही नहीं है।  वो मां ने नील समझ कर कपड़ों में डाल दी धोते समय।
--- अरै नासपिट्टे , तम उज्जड के उज्जड ही रहियो।  चल वो नई ल्या जै कल ल्यायो हौ।
"दद्दू , उसे तो पापा बैंक ले गये। लोगों की उंगली पर लगाने के लिए। "
--- सत्यानास हो थारा ,  कदी तौ दिमाग का इस्तेमाल कर लिया करो। ईब मैं काय से लिखूं , दिखै ना है बैंक सौ साब का फोन आयो है। अच्छा भैया , तम ऐसौ करो , तम नाम पतौ बोलो , हम फोन में ही रिकॉर्ड कर लेंग्गे। इरै कहौं है इसकौ रिकॉर्ड बटन।
उधर से तुरंत फोन कट।

नोट : जनहित में जारी।