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Friday, July 16, 2021

इंसान की असलियत कागज़ देखकर ही पता चलती है --

 

ये बात हमें अभी तक समझ में नहीं आई , 

कि ६० तो क्या, ६५  की उम्र भी जल्दी कैसे चली आई।  


अब हम क्या बताएं आखिर ये किसकी गलती है, 

भई सरकारी काग़ज़ों में तो उम्र भी नकली ही चलती है।  


इंसान की असलियत भी चेहरे से कहां झलकती है , 

यह तो इंसान के कागज देखकर ही पता चलती है।  


गाड़ी के कागज़ ना हों तो पुलिसवाला भी तन जाता है, 

और ख़ामख़्वाह एक शरीफ इंसान मुज़रिम बन जाता है।  


लाख समझाते हैं बैंक मैनेजर को, पर वो नहीं पहचानता है,   

हम जिन्दा हैं , वो यह हमारे कागज देखकर ही मानता है।    


कागज़ की अहमियत तो सरकारें भी समझती है , 

तभी तो आधी सरकारी योजनाएं कागज़ पर ही चलती हैं।  


इन कागज़ों के चक्कर में तो हम भी धकाये गए , 

इसीलिए तो समय आने से पहले ही घर बिठाये गए।  


हट्टे कट्टे हो फिर भी बेचारगी का नाटक करते हो,

प्रमाणित बूढ़े हो फिर भी खों खों तक नहीं करते हो। 


हाथ पैर काम करते हैं , बाबा दांत भी असली रखते हो, 

कब तक निठल्ले घूमोगे, कुछ काम क्यों नही करते हो। 


सोचो बेचारे भिखारी भी रोज रोज कितने ताने सहते हैं,

इधर हम रिटायर हुए तो अब यही घरवाले हमसे कहते हैं।


Tuesday, July 13, 2021

डर कर मेरे घर, कोई आया ना गया --

 


डर कर मेरे घर में कभी , 

कोई आया ना गया। 

कोरोना संसार से, 

मिल के भगाया ना गया। 


याद हैं वो दिन जब ,

होती थीं खूब मुलाकातें। 

जाम लिए हाथ में 

करते थे ढेरों सी बातें।  

देखते देखते फिर 

आ गईं कर्फ्यू की रातें।  

वो समां आज तलक 

फिर से बनाया ना गया। 

डर कर मेरे घर, कोई आया ना गया ----



क्या ख़बर थी के कहेंगे,

मज़बूरी है दूर बिठाने के लिए। 

मास्क हमने बनाये हैं 

मुंह छुपाने के लिए।  

सेनेटाइजर बनाया था 

हाथों को रगड़ने के लिए।  

इस तरह रगड़ा के फिर

हाथ मिलाया ना गया।  

डर कर मेरे घर कोई आया ना गया ---


खांसी उठती है और,

तेज बुखार चढ़ जाता है। 

साँस फूलती है मगर,

ऑक्सीजन स्तर गिर जाता है। 

जो चले जाते हैं उनका , 

दर्दे जिगर रह जाता है। 

दर्द जो तूने दिया दिल से, 

मिटाया न गया। 

डर कर मेरे घर, कोई आया ना गया ,

कोरोना संसार से , भगाया ना गया।