चार कवि मित्र आपस में बैठे बातें कर रहे थे । सब अपनी अपनी पत्नी की बातें सुनाने लगे। हालाँकि , यह काम अक्सर महिलाएं किया करती हैं लेकिन कवि ही ऐसे पुरुष होते हैं जो अपनी घरवाली की बातें सरे आम कर सकते हैं। देखा जाये तो बहुत से कवियों की रोजी रोटी का माध्यम ही यही चर्चा है।
1) पहला कवि :
मेरी पत्नी मुझ से इस कद्र प्यार करती है,
कि रात रात भर जाग कर मेरा इंतजार करती है।
एक रात जब मैं एक बजे तक भी घर नहीं आया,
उसकी नींद खुली तो मेरे मोबाईल पर फोन लगाया।
और बड़े प्यार से बोली -- अज़ी कहाँ हो ,
क्या आज विचार नहीं है घर आने का !
जिसने फोन उठाया वो बोला मेडम ,
भला ये भी कोई वक्त है घर बुलाने का !
इसी कहा सुनी में उसकी बीबी जाग गई
और इतनी लड़ी झगड़ी कि सुबह होते ही घर छोड़कर भाग गई।
2) दूसरा कवि :
मेरी पत्नी तो ऐसा कमाल करती है
कि बात बात पर मिस काल करती है।
लेकिन मेरा फोन एक ही रिंग पर उठाती है,
फिर फोन पर ही मुझे समझाती है।
अज़ी ज़रा बुद्धि का इस्तेमाल कर लिया होता ,
दो पैसे की बचत हो जाती, यदि एक मिस काल कर दिया होता।
३) तीसरा कवि :
मेरी पत्नी भी बस कमाल करती है ,
मेरा इतना ज्यादा ख्याल रखती है !
कि एक दिन जब मैं जल्दी में मोबाईल घर भूल आया ,
उसकी नज़र पड़ी तो मेरी परेशानी का ख्याल आया।
और ये बात मुझे बताने को फ़ौरन उसने ,
अपने मोबाईल से मेरे मोबाईल पर फोन मिलाया।
४) चौथा कवि :
मेरी पत्नी तो बड़ी हाई टेक हो गई है ,
मोडर्न टेक्नोलोजी में इस कद्र खो गई है !
कि सारी शॉपिंग क्रेडिट कार्ड से करती है ,
सारे बिल भी अपने ही कार्ड से भरती है।
फिर जब बिल आता है हजारों का,
तो उसकी पेमेंट मेरे कार्ड से करती है।
इस पर भी कहती है--मियां क्यों इतने मायूस हो गए हैं।
एक पैसा तो खर्च नहीं करते, आजकल आप बड़े कंजूस हो गए हैं।
कवियों की बातें सुनकर हमें यही लगा कि --
इक हम ही नहीं हैं तन्हा, पत्नी के रुलाये हुए ,
और भी हैं ज़माने में , इस ग़म के सताये हुए !
नोट : नोट : पति पत्नी एक दूसरे के पूरक होते हैं। लेकिन थोड़ा हंसी मज़ाक जीवन में रास घोल देता है।
( कौन सी ज्यादा पसंद आई , ज़रा बताएं ! )