बाल यौन शोषण किसी न किसी रूप में सदियों से होता आया है। भले ही वो इजिप्ट, ग्रीक या रोमन बाल वेश्यालयों का इतिहास हो या पाकिस्तान में बाल्की या आशना रीति , नेपाल में देवकी या दक्षिण भारत में देवदासी प्रथा, बाल यौन शोषण सदियों से प्रचलित रहा है, लेकिन समाज में इसे कभी पहचाना नहीं गया। विश्वव में पहली बार पश्चिमी देशों में १९६० में बच्चों के शारीरिक शोषण की पहचान हुई। बाल यौन शोषण के अस्तित्व के बारे में तो १९८० के दशक में विश्व ने पहली बार जाना और माना। भारत जैसे विकासशील देशों में इस सामाजिक समस्या के बारे में जन जागरूकता अभी भी बहुत ही कम है। पता चला है कि विश्व भर में प्रति वर्ष १४ वर्ष से कम आयु के ४ करोड़ बच्चे किसी न किसी रूप में शोषण के शिकार होते हैं। ऐसा पाया गया है कि १८ वर्ष तक की आयु के हर ५-६ लड़कों में से एक लड़का कभी न कभी यौन शोषण का शिकार हुआ होता है। इनमे से अधिकांश मामले कभी उजागर नहीं होते। और सबसे आश्चर्यजनक और कष्टदायक तथ्य यह है कि यौन शोषण करने वाला बहुधा बच्चे का कोई रिश्तेदार या जान पहचान वाला ही होता है। एक गैर सरकारी संगठन ''प्रयास'' द्वारा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के साथ मिलकर २००३ में १३ राज्यों में १६८०० बच्चों में किये गए सर्वेक्षण द्वारा पता चलता है कि लगभग ५० % बच्चे किसी न किसी रूप में शोषण का शिकार हुए होते हैं। लगभग ३०% का यौन शोषण जान पहचान के व्यक्ति द्वारा किया गया होता है।
बच्चे देश के भावी नागरिक होते हैं। बालावस्था शारीरिक और मानसिक विकास का समय होता है। इस कालावधि में हुआ कोई भी हादसा बच्चे के मन मस्तिष्क पर गहरी और अमिट छाप छोड़ जाता है। यह बच्चे के व्यक्तित्त्व पर अपरिवर्तनीय परिवर्तन का कारण बनता है। एक शोषित बच्चा बड़ा होकर स्वयं भी शोषक बन सकता है। बच्चे अक्सर मासूम होते हैं, सामाजिक बुराइयों को समझ नहीं पाते। वे अपने बड़ों पर निर्भर भी होते हैं और अक्सर मानव अधिकारों से अनभिज्ञ और वंचित होते हैं। इसलिए बच्चे शोषण के लिए ग्रहणक्षम होते हैं।
बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए अभिभावकों में यौन शोषण के लक्षणों की जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। यदि बच्चे को चलने या बैठने में कष्ट हो रहा है, या अचानक उसके व्यवहार में परिवर्तन आ गया है , विधालय जाने में आनाकानी करने लगा है , शैक्षिक स्तर में गिरावट आ गई है , बुरे सपने आने लगे हैं , बिस्तर गीला करना आरम्भ कर दिया है, बच्चा अचानक ज्यादा या कम खाने लगा है , यौन सम्बंधित बातें करने लगा है या कोई गुप्त रोग या गर्भावस्था हो गई है तो ये लक्षण निश्चित ही बच्चे के यौन शोषण की सम्भावना की ओर इशारा करते हैं और ऐसे में अभिभावकों को सचेत हो जाना चाहिए।
बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए आवश्यक है कि पारिवारिक संबंधों को मज़बूत बनायें। बच्चे के व्यवहार और गतिविधियों पर ध्यान रखें। नियमित रूप से बच्चे के अध्यापक के संपर्क में रहें। जहाँ तक संभव हो , बच्चे को घर में अकेला ना छोड़ें और किसी भी रिश्तेदार पर आँख मूँद कर विश्वास ना करें। बच्चे को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में अवश्य बताएं। यदि कुछ भी विपरीत नज़र आये तो फ़ौरन ध्यान दें और उचित कार्रवाई करें। आवश्यकता पड़ने पर "किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 (जेजे एक्ट)'' के अंतर्गत स्थापित ''बाल कल्याण समिति'' अथवा ''किशोर न्याय बोर्ड'' की सहायता लें। किसी भी अवस्था में सहायतार्थ १०९८ पर फोन कर चाइल्ड हेल्पलाइन की सहायता प्राप्त की जा सकती है। यथासंभव इस विषय पर समाज में अधिकाधिक रूप से विचार विमर्श करें ताकि जनसाधारण तक बाल यौन शोषण के बारे में जानकारी पहुँच सके। तभी बच्चों का भविष्य सुरक्षित रह पायेगा।