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Monday, March 30, 2020

लॉकडाउन की मज़बूरी --


शोर मचाते
छोटे छोटे बच्चे
'बेघर' नर नारी
'घर' जाने को आतुर
जा रहे थे एक ओर
अपने अपने 'घरों' से निकल।
जाने वालों की कतारें में
हज़ारों की भीड़ देख
आने लगे वापस
जाने को विद्यालय
मिटाने को भूख
सरकारी लंगर में।
भूख और आशियाना
कोरोना पर भारी पड़ गया।
हम खड़े खड़े देखते रहे
सातवें माले की बालकनी से
लॉकडाउन के नाज़ुक
ताले को टूटते हुए।

Wednesday, March 25, 2020

डेढ़ सौ साल पहले लिखी गई कविता आज चरितार्थ हो रही है --


और लोग घरों में बंद रहे
और पुस्तकें पढ़ते सुनते रहे
आराम किया कसरत की
कभी खेले कभी कला का लिया सहारा 
और जीने के नए तरीके सीखे।
फिर ठहरे
और अंदर की आवाज़ सुनी
कुछ ने ध्यान लगाया
किसी ने की इबादत
किसी ने  नृत्य किया
कोई अपने साये से मिला
और लोगों का नजरिया बदला।
लोग स्वस्थ होने लगे 
उनके बिना जो थे नासमझ 
ख़तरनाक़, अर्थहीन, बेरहम 
और समाज के लिए खतरा।
फिर ज़मीं के जख्म भी भरने लगे
और जब खतरा खत्म हुआ 
लोगों ने एक दूसरे को ढूँढा 
मिलकर मृत लोगों का शोक मनाया अंग्रेज़ी
और नया विकल्प अपनाया 
एक नयी दृष्टि का स्वप्न बुना
जीवन के नए रास्ते निकाले
और पृथ्वी को पूर्ण स्वस्थ बनाया
जिस तरह स्वयं को स्वस्थ बनाया।

* एक मित्र से प्राप्त कैथलीन ओ मीरा (Kathleen O'Meara) द्वारा १८६९ में अंग्रेजी में लिखित कविता का हिंदी रूपांतरण।  

Saturday, March 21, 2020

कोरोना और वर्क फ्रॉम होम --


कोरोना का कहर जब शहर में छाया ,
तब हुकमरान ने ये फरमान सुनाया।

कि स्कूल, कॉलेज, ज़िम, क्लब सब होंगे बंद ,
पर हमें तो वर्क फ्रॉम होम का आईडिया बड़ा पसंद आया।

लेकर बुजुर्गी का सहारा हमने अर्ज़ी लगाई,
कि कमज़ोर तो नहीं है ये साठ साल की काया।

इसलिए कोरोना से तो हम कभी ना डरेंगे ,
परन्तु कल से हम वर्क फ्रॉम होम ही करेंगे।

किन्तु पत्नी को देर न लगी ये बात समझते ,
कि घर तो क्या हम तो ऑफिस में भी कुछ काम नहीं करते। 

हम भी वर्क फ्रॉम होम का मतलब तब समझे ,
जब पत्नी ने कहा कि अब ये सुस्ती नहीं चलेगी।

उठो और हाथ में झाड़ू पोंछा सम्भालो,
आज से कामवाली बाई भी वर्क फ्रॉम होम ही करेगी।



Monday, March 16, 2020

इस साल गले मिलने को गले ही नहीं मिले --


हर साल होली पर मिलते थे हर एक से गले,
इस साल गले मिलने वाले वो गले ही नहीं मिले।  

कोरोना का ऐसा डर समाया दिलों में,
कि दिलों में ही दबे रह गए सब शिकवे गिले।

पडोसी पार्क में बुलाते रहे पकौड़े खाने को,
डरे सहमे लोग अपने अपने घरों से ही नहीं हिले।

ना निकली बस्ती में मस्तों की टोली,
ना पिचकारी ना रंग गुलाल ही लगे भले। 

ना रंग बरसे ना भीगी किसी की चुनड़िया,
लेकर गुलाल बुजुर्ग भी बैठे रह गए पेड़ों तले।

गुमसुम से रहे कवि जेब रह गई खाली,
होली के कवि सम्मलेन भी जब कल पर टले।

होलिका तो जल गई होली दहन में ,
ये मुए कोरोना वायरस फिर भी नहीं जले।

जले मगर मकान और दुकानें तो बहुत ''दोस्तों'',
अब दुआ करो कि कोरोना नहीं सद्भावना फूले फले।

Wednesday, March 11, 2020

बुरा ना मानो होली है , टी वी प्रोग्राम्स --


हमें अभी अहसास हुआ कि हम पिछली चार बार से हर वर्ष टी वी पर होली मनाते आये हैं। प्रस्तुत हैं कुछ झलकियां : 




२०१७ की होली , यू पी के एक चैनल पर।






२०१८ की होली, दूरदर्शन के नैशनल चैनल पर। 





२०१९ की होली, आज तक के तेज चैनल पर.




२०२० की होली, CCN DEN चैनल पर।   




साल में एक बार ही सही, टी वी पर प्रोग्राम देना अच्छा लगता है। 


Friday, March 6, 2020

कोई ऐसा काम करो ना , कि गले पड़ जाये कोरोना --


जो जंगली जानवरों को जाल में फंसाते हैं,
फिर उनको अधमरा अधपका खा जाते हैं ,
कोरोना वायरस को वही लोग पसंद आते हैं।

जब यही लोग विदेश के सफ़र पर जाते हैं ,
खुले आम छींक मारने से बाज नहीं आते हैं,
यही लोग हवा में रोग के कीटाणु फैलाते हैं।

जो रोगी बिना हाथ धोये ही हाथ मिलाते हैं ,
दूसरों को ज़बरदस्ती प्यार से गले लगाते हैं ,
वही यारी दोस्ती में दोस्तों को रोग दे जाते हैं।

जो लोग डर कर रोग के लक्षणों को छुपाते हैं,
कोरोना वायरस का टैस्ट कराने से घबराते हैं,
वही संक्रमण को रोकने में बाधा बन जाते हैं।

जो लोग त्रासदी का नाज़ायज़ फायदा उठाते हैं,
चीज़ों की जमाखोरी कर ज्यादा मुनाफ़ा कमाते हैं,
वही व्यापारी देश के असली दुशमन कहलाते हैं।

कोरोना वायरस के नाम से ही लोग घबरा जाते हैं ,
जाने क्यों लोग दहशत में आसानी से आ जाते हैं,
बस स्वास का संक्रमण है डॉक्टर्स यही समझाते हैं। 

होली पर चलो प्यार से नहीं ध्यान से गले लगाते हैं,
ग़र हो जाए सर्दी खांसी बुखार तो मिलने से कतराते हैं,
सात्विक भोजन और नमस्कार ही कोरोना से बचाते हैं।


Wednesday, March 4, 2020

छोटी बह्र की ग़ज़ल --


फ़िल्मी मशहूर हस्तियों और मॉडल्स के परिधान देखकर उपजी ये छोटी बह्र की ग़ज़ल :

वस्र छै गज रंगा ,         ( वस्र = वस्त्र )
तन फिर भी नंगा।

कहने को मैया ,
मैली क्यों गंगा।

मन में रख विग्रह ,       ( विग्रह = वैर / शत्रुता )
कर दें कब दंगा ।

धर्म के हैं गुरु ,
मत लेना पंगा ।

जग में हो अमन ,
मन रहता चंगा।

तज दे हर व्यसन ,
बीड़ी  या   छंगा ।        ( छंगा छाप तम्बाकु )

नोट : मैट्रिक क्रम = २,२,२,२,२