कोरोना से जग ने खुद को बचाना सीख लिया है ,
कलियुग में सात्विक बनकर दिखाना सीख लिया है।
सीख लिया है सबने कम में गुजारा करना ,
भौतिक इच्छाओं को दबाना सीख लिया है।
ना लगे मेले ना मिले किसी से साल भर ,
बुजुर्गों ने एकाकी जीवन बिताना सीख लिया है।
पार्टियां रहीं बंद और बंद सब सैर सपाटा ,
युवाओं ने भी खाना पकाना सीख लिया है।
ना पार्क ना कॉलेज ना सिनेमा हॉल की मस्ती,
आशिकों ने डिजिटल इश्क़ फरमाना सीख लिया है।
शादियां भी होने लगी बिन बैंड बाज़ा बारात के ,
लोगों ने अरमानों पर रोक लगाना सीख लिया है।
हॉल पंडाल पड़े रहे खाली पूरे साल, कवियों ने ,
मुफ्त में ऑनलाइन कविता सुनाना सीख लिया है।
यार दोस्त नाते रिश्तेदार सब रहे साल भर दूर,
इंसान ने खुद का खुद से नाता निभाना सीख लिया है।