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Monday, September 9, 2024

एक ग़ज़ल...

 पसीने की गंध जिनके गात नहीं आती,

नींद उनको सारी सारी रात नहीं आती। 


वो काम करते नहीं जब तलक,

काम के बदले सौगात नहीं आती। 


सड़कें टूटी, नालियां बंद, तो क्या,

इस शहर में कभी बरसात नहीं आती। 


बेटियां घर दफ्तर में महफूज हों,

देश में ऐसी कोई रात नहीं आती। 


जज़्बा बहुत है लड़ने का किंतु,

शैतान को देनी मात नही आती। 


क्या बतलाएं तुमको हम जात अपनी,

सिवा इंसानियत कोई जात नहीं आती। 


नेता हम भी बन जाते ' तारीफ', पर,

सच को छोड़ कोई बात नहीं आती। 

12 comments:

  1. बेहद शानदार गज़ल सर।
    सादर।
    ----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १० सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. इतनी बात बनाना तो आती है सर आपको, खमखा क्यों नेताओ को बदनाम करते है! व्यंग्य गजल भी खूब विधा मालूम पड़ती है, अभी इसका dj वर्ज़न भी निकालिए सर! लिखते रहिए!

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  3. हालातों पर प्रहार करती शानदार ग़ज़ल

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  4. बहुत बहुत सुन्दर गजल

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