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Thursday, July 28, 2011

कुछ लोग होते हैं जिनसे दिल से मिलने का दिल करता है --

एक कार्यक्रम में शामिल होने गए तो नाम पता पूछने के बाद एक आयोजक युवक ने पूछा --सर आपकी उम्र क्या लिखूं । मैंने कहा भैया , यदि लिखना ज़रूरी है तो लिख लो २५ +। यह सुनकर चौंककर उसकी आँखें ऐसे फ़ैल गई जैसी हाइपरथायरायडिज्म के रोगी की होती हैं । बोला --सर आपको नहीं लगता कि आप कुछ उल्टा बोल रहे हैं । मैंने कहा भैया मैं बिल्कुल सुलटा बोल रहा हूँ । मैंने अभी हाल ही में अपने जन्मदिन की रजत जयंती ( सिल्वर जुबली ) मनाई है ,----- दूसरी बार । अब पहली हो या दूसरी , सिल्वर जुबली तो पच्चीस साल में ही होती है

पिछले दिनों दो बार सिल्वर जुबली मना चुके ऐसे ही कुछ नौज़वानों से मुलाकात का अवसर मिला जब श्री अरविंद मिश्र जी का दिल्ली आगमन हुआ । अरविन्द जी दो तीन बार दिल्ली आये भी तो मुलाकात न हो सकी । इसलिए इस बार जब पता चला कि उनका तीन दिन रुकने का कार्यक्रम है तो हमने भी मिलने का कार्यक्रम बना ही लिया ।

सतीश सक्सेना जी से बात हुई और मिलने का दिन , समय और स्थान निश्चित हो गया । तय हुआ कि ब्लोगर मिलन न होकर व्यक्तिगत रूप से मिलना करने के लिए बस दोनों ही चलेंगे ।

और हम पहुँच गए यू पी भवन जहाँ ४० साल से दिल्ली रहते हुए भी हम कभी नहीं गए थे ।
आखिर हम भी वी आई पी लोगों के अस्थायी निवास पर पहुँच गए
अरविंद जी से पहली बार मिलना हो रहा था हालाँकि ब्लॉग पर तो अक्सर मिलते ही रहते हैं । लेकिन वीरुभाई के नाम से ब्लॉग लिखने वाले श्री वीरेंदर शर्मा जी से तो कभी ब्लॉग पर भी मुलाकात नहीं हुई थी ।



















यू पी भवन की लॉबी में दोनों से प्रथम परिचय हुआ । परिचय के दौरान वीरुभाई ने अनायास ही वही सवाल किया जो अक्सर मुझसे किया जाता है --टी एस से क्या बनता है ?
चिर परिचित सवाल सुनकर हमें भी वही घटना याद आ गई जिसका जिक्र यहाँ है ।
लेकिन हम बस मुस्करा कर रह गए क्योंकि तब तक मन में एक विचार आ चुका था --बताने की बजाय दिखाने का ।



















और हम सब तैयार हो गए , पिकनिक पर जाने के लिए ।

पहला पड़ाव था --इण्डिया गेट
वहां तक पहुँचने में ड्राइव करते हुए बातों में मशगूल होते हुए सतीश जी ने दो बार यातायात के नियमों का उल्लंघन किया ।
लेकिन ब्लोगिरी का प्रभाव देखिये कि दोनों बार चार चार ब्लोगर्स को एक साथ देखकर बेचारे पुलिस वाले की हिम्मत ही नहीं पड़ी सिवाय हाथ जोड़कर राम राम करने के

























इण्डिया गेट पर सतीश जी ने अपने एस एल आर कैमरे से जम कर शूटिंग की । शानदार कैमरा देखकर ही सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई ।


घूम घाम कर और इण्डिया गेट पर वह स्थान देखकर जहाँ हमारा नाम अंकित है , वीरुभाई को बड़ा आनंद आया




















बाद में क्लब में बैठ बड़ी ही गंभीर मुद्रा में उन्होंने न जाने क्या सुनाया कि --




















सतीश जी खिलखिला कर हंस पड़े ।
लहलहाती घनी जुल्फों और काली मूंछों के साथ इस मुस्कान से उनके ही नहीं , सभी के चेहरे पर रौनक गई

इस बीच खान पान शुरू हो चुका था । आखिर क्लब में लोग जाते ही हैं गपियाते हुए खाना पानी ( खाने पीने ) का आनंद लेने ।

यहाँ अरविंद जी के साथ ब्लडी मेरी वाला प्रसंग बड़ा दिलचस्प रहा । लेकिन उन्होंने भी बखूबी ब्रह्मचर्य का पालन किया ( गीता अनुसार ) । अब यह समझ न आये तो टिप्पणियों में साफ किया जायेगा ।

अरविंद मिश्र :

हम अरविंद जी की शुद्ध और सुसंस्कृत हिंदी के तो हमेशा कायल रहे ही हैं । साथ ही पोस्ट और टिप्पणियों में उनकी स्पष्टवादिता से भी हमेशा आनंदित रहे हैं ।

ब्लोगिंग में बनावटीपन हमें भी नहीं भाता । उनके यही गुण बहुत प्रभावित करते हैं ।
क्योंकि यह ब्लोगर मीट नहीं थी , इसलिए ब्लोगिंग पर कम और व्यक्तिगत बातें ज्यादा हुई और हमारा ध्येय भी यही था ।

वीरुभाई :

उम्र में भले ही हमसे १० साल बड़े हों , लेकिन जिंदगी के प्रति उनका उत्साह देखकर हम भावी भूतपूर्व नौज़वानों को भी जिंदगी को जिन्दादिली से जीने की प्रेरणा मिली । बहुत ही हंसमुख इन्सान हैं । हों भी क्यों नहीं , आखिर लम्बे अर्से तक हरियाणा में कार्यरत जो रहे हैं ।
बस क्लब में शोर अधिक होने की वज़ह से हम उनकी कविता की फरमाइश पूरी नहीं कर सके । लेकिन वह फिर सही ।

सतीश सक्सेना :

क्या कहें ! बेशक यारों के यार हैं । ब्लॉग जगत में सबसे चहेते ब्लोगर्स में से एक हैं । कारण आप मिलकर थोड़ी देर में ही जान सकते हैं । मानवीय भावनाओं की कद्र करना तो कोई सतीश जी से सीखे ।


और इस तरह शानदार गुजरी दिल्ली की एक शाम , जो हम सबको हमेशा याद रहेगी


नोट : ब्लॉगजगत में और भी बहुत से लोग हैं जिनसे दिल से मिलने का दिल करता है . इंतजार रहेगा आपका .


Saturday, July 23, 2011

इसे पढ़कर आप भी डॉक्टर बन सकते हैं ---.

एक समाचार से पता चला की दिल्ली में हर तीसरा व्यक्ति इन दिनों वाइरल बुखार से ग्रस्त है .हालाँकि हालात इतने बुरे भी नहीं हैं , लेकिन यह सच है की बरसात के दिनों में वाइरल इन्फेक्शन बहुत बढ़ जाते हैं .

आम आदमी की जुबान में इन दिनों डॉक्टरों की चांदी हो जाती है .

लेकिन यदि आप वाइरल फीवर की चपेट में आ ही जाएँ , तो क्या करना चाहिए --आइये हम बताते हैं ( बिना किसी फीस के ).

बुखार :

अचानक बुखार होने का सबसे प्रमुख कारण है वाइरल इन्फेक्शन . यूँ तो वाइरस लाखों किस्म के होते हैं लेकिन इनमे से कुछ ही मनुष्य को प्रभावित करते हैं .
इनमे सबसे कॉमन है --राईनोवाइरस --जिससे कॉमन कोल्ड यानि जुकाम होता है .

१) कॉमन कोल्ड : यह सबसे कॉमन इन्फेक्शन है , बदलते मौसम में . सबसे पहले नाक बहने लगती है , फिर गला ख़राब और खांसी , साथ में बुखार . अक्सर बहती नाक २-३ दिन में रुक जाती है लेकिन खांसी यदि ज्यादा हो जाए तो दवा लेना ज़रूरी हो जाता है . बुखार भी २-४ दिन में उतर जाता है .
डॉक्टर्स इसे यु आर आई कहते हैं .

२) वाइरल फीवर : इसमें सिर्फ बुखार होता है , साथ में सर दर्द , बदन दर्द , कमजोरी और थकावट होती है . ज़ाहिर है , इस बुखार में जुकाम और खांसी नहीं होती . यह बुखार १--७ दिन में अपने आप उतर जाता है , बिना दवा लिए भी .

१ और २ नंबर के बुखार एयर बोर्न इन्फेक्शन हैं यानि इनके वाइरस वायु में रहते हैं और साँस के साथ शरीर में प्रवेश करते हैं . इसलिए इनसे बच पाना लगभग नामुमकिन है .

३) अन्य वाइरल फीवर : डेंगू , चिकनगुनिया , येल्लो फीवर आदि . इनमे से डेंगू और चिकनगुनिया कॉमन हैं , लेकिन ये बुखार मच्छर के काटने से होते हैं , इसलिए इनकी रोकथाम की जा सकती है . येल्लो फीवर भारत में नहीं होता .

४) मलेरिया : ठण्ड के साथ अचानक बुखार चढ़ जाता है . यह भी मच्छर के काटने से ही होता है . इसलिए रोकथाम की जा सकती है .

५) यदि ७ दिन तक बुखार न उतरे और रोगी की हालत सही न लग रही हो तो typhoid होने की सम्भावना बढ़ जाती है .

६) यदि खांसी के साथ हल्का बुखार २-३ सप्ताह से चल रहा हो तो टी बी हो सकती है .

बुखार के उपरोक्त कारण हमारे देश में मुख्य तौर पर पाए जाते हैं . इस तरह के संक्रमण मुख्यतया विकासशील देशों में ही होते हैं जहाँ रहन सहन का स्तर ज्यादा अच्छा नहीं है .

बुखार का घरेलु इलाज :

बुखार का इलाज स्वयं नहीं करना चाहिए . डॉक्टर से परामर्श लेना अनिवार्य होता है वर्ना बहुत बड़ा धोखा खा सकते हैं .
लेकिन जब तक डॉक्टर के पास जा पायें , तब तक घर में क्या उपचार किया जा सकता है , यह जानिए :

१) आराम : बुखार में पहला काम करें --आराम . इससे बुखार जल्दी उतरेगा .
२) दवा : यदि बुखार १०० के आस पास या ज्यादा है तो एक गोली पेरासिटामोल ले सकते हैं जिसे ४-६ घंटे में दोबारा लिया जा सकता है . यह सबसे सुरक्षित दवा है . कभी भी एस्पिरिन न लें , यह खतरनाक हो सकती है .
३) हाइड्रोथेरपी : बुखार १०१-१०२ या इससे ऊपर होने पर स्पोंजिंग करने से राहत मिलेगी .
४) खाना : हल्का खाना अवश्य खाएं . न खाने से कमजोरी ज्यादा आएगी .
५) पानी : बुखार में dehydration होने का खतरा रहता है . इसलिए द्रव्य जैसे पानी , दूध , चाय , शरबत आदि उचित मात्रा में पीते रहना चाहिए .
६) समय मिलते ही एक बार डॉक्टर को अवश्य मिल लें .

याद रहे वाइरल बुखार एक से सात दिन में बहुधा उतर जाता है . इससे ज्यादा चलने पर जांच आवश्यक हो जाती हैं .
कहते हैं वाइरल फीवर दवा लेने से एक सप्ताह में ठीक हो जाता है . दवा न लेने से सात दिन में उतर जाता है .
अब ज़रा सोचिये -- एक मरीज़ एक डॉक्टर से ६ दिन तक इलाज कराता रहा लेकिन बुखार नहीं उतरा . सातवें दिन उसने डॉक्टर बदल लिया . दूसरे डॉक्टर ने दवा दी और बुखार ख़त्म . दूसरा डॉक्टर मरीज़ की नज़र में काबिल डॉक्टर बन गया .

क्या करें हमारे देश में ऐसा ही होता है .


Tuesday, July 19, 2011

मैं आपसे फिल्म के टिकेट पर खर्च किये गए पैसे में से २५ % के रिफंड की मांग करता हूँ --मिस्टर आमिर खान .

बुरा मत सुनो , बुरा मत देखो , बुरा मत कहो . गाँधी जी का यह कथन बचपन से सुनते आए है .
इनमे से केवल कहना ही अपने हाथ में होता है . हालाँकि सभी तरह की बुराइयाँ देख और सुनकर , उनसे बचे रहना भी अपने ही हाथ में है .

लेकिन जब यही बुराइयाँ फिल्मों द्वारा दिखाई जाती हैं तो युवाओं पर कितना प्रभाव छोडती हैं , यह हमने प्रत्यक्ष में जाना , जब हमने आमिर खान की ताज़ा फिल्म देल्ही बेल्ली देखी .

यूँ तो श्री अरविन्द मिस्र जी ने पहले ही सबको सचेत कर दिया था अपनी एक पोस्ट में . और उन्होंने न देखने की सलाह भी दी थी . लेकिन बहुत दिनों से जिंदगी में गंदगी नहीं देखी थी . फिर आमिर खान, जो बोलीवुड के चार खान अभिनेताओं में हमें सबसे ज्यादा पसंद रहे हैं , के बारे में हम सोच भी नहीं सकते थे की सरफ़रोश और लगान जैसे फिल्मों में काम करने या बनाने वाले, आमिर खान कुछ गलत भी कर सकते हैं .

बस इसी जिज्ञासा के रहते हमने फिल्म देखने का विचार बना लिया , पूर्णतया एक क्रिटिक की दृष्टि से .

देखकर यही लगा :

* आमिर खान की सोच को क्या हो गया है ?
* क्या सचमुच हमारा समाज इतना नीचे गिर गया है जो ऐसी फिल्म को पसंद करने लगा है ?
* क्या सेंसर बोर्ड बंद हो गया है या उनकी मति मारी गई है ?


यूँ तो यह फिल्म एक मनोरंजक फिल्म हो सकती थी . कहानी , छायांकन और अभिनय की दृष्टि से फिल्म अच्छी लगी .
लेकिन गालियाँ और फूहड़ सेक्स सीन्स को जिस तरह ज़बर्ज़स्ती घुसेड़ा गया है फिल्म में , वह तुच्छ और विकृत मानसिकता की उपज लगता है .

गालियाँ यदि कहानी का अभिन्न अंग हों तो बुरी नहीं लगती जैसे किसी कोठे वाली के मूंह से सुनना . लेकिन सुशिक्षित युवा जो पत्रकार भी हैं , उनको ऐसी भद्दी बातें करते देखकर किसी भी भद्र व्यक्ति के लिए असहनीय हो सकता है .


आम जिंदगी में भी गालियों का प्रचलन है . सम्बन्धियों पर आधारित गालियाँ जैसे --साला , ससुरा आदि सुनने में ज्यादा अभद्र नहीं लगती .
लेकिन शारीरिक अंगों और शारीरिक संबंधों पर आधारित गालियाँ निश्चित ही सभ्य समाज का अंग नहीं कहला सकती .

गालियों के नाम पर जिस तरह के शब्दों का प्रयोग इस फिल्म में किया गया है , वह सभ्य , सुशिक्षित समाज के मूंह पर एक तमाचा है .


इसका विरोध अवश्य होना चाहिए .
सिर्फ ऐ सर्टिफिकेट देने से सेंसर की भी जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती .


लेकिन हैरान हूँ की इसके विरोध में कुछ विशेष आवाज़ नहीं उठी .
किसी धर्म के नाम पर छोटी सी बात पर लोगों की भावनाएं चोट खा जाती हैं और बवाल खड़ा हो जाता है .
लेकिन यहाँ पूरे समाज की संवेदनाओं और शिष्टाचार पर प्रहार किया गया है और सब चुप हैं .

आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी मिस्टर आमिर खान .
मैं आपसे फिल्म के टिकेट पर खर्च किये गए पैसे में से २५ % के रिफंड की मांग करता हूँ .

यह हमारा फिल्म में दिखाई और सुनाई गई अश्लीलता पर विरोध प्रकट करने का तरीका है .

नोट : सभी ब्लोगर बंधुओं से यही कहना है --हम तो अपना विरोध प्रकट कर चुके , अब आपकी बारी है .

Thursday, July 14, 2011

क्या आपके किसी रिश्तेदार में कभी भूत प्रेत आया है ?

दृश्य १ :( बचपन में गाँव में )

घर के आँगन में एक २५ -३० वर्ष की महिला ज़मीन पर बैठी जोर जोर से हिल रही है और हाथ पैर पटकती हुई सर को गोल गोल घुमाती हुई भर्राई हुई आवाज़ में बडबडा रही है --मैं सबको देख लूँगा ---अगर तुमने मेरी बात नहीं मानी--- आज से हर सोमवार मेरे लिए हलवा पूरी बनाया करो---- पहले घर की बहु को खिलाओ , फिर सब लोग खाओ--वगैरह वगैरह .

सारे गाँव में खबर फ़ैल जाती है --फलाने की बहु में फलाना दादा आ गया .


अक्सर ऐसे किस्से सुनने में आते रहते थे . एक परिवार के पूर्वज जो रिश्ते में हमारे परदादा लगते थे --अक्सर उनके नाम का भूत उन्ही के परिवार के किसी न किसी व्यक्ति में आ जाता था . अक्सर वह व्यक्ति घर की कोई बहु होती थी .

फिर गाँव के ओझा को बुलाया जाता . ओझा गाँव के निम्न जाति के समुदाय से होता था जिसका दावा था की उसने शमशान में घोर तपस्या करने के बाद भूतों से छुटकारा दिलाने की सिद्धि प्राप्त की है .
वह आता और अपने तंत्र मन्त्र से बहु में आए भूत को बोतल में बंद कर ले जाता और दबा देता कहीं दूर ज़मीन के नीचे .

यह और बात है की कुछ दिन बाद वही भूत फिर किसी बहु के शरीर में प्रवेश कर तहलका मचा देता .

शहर में आने के बाद मैं अक्सर सोचा करता --यहाँ शहर में कभी किसी में भूत क्यों नहीं आता ?



दृश्य २ : ( अस्पताल के आपातकालीन विभाग में )

एक २५-३० वर्षीय महिला को उसके रिश्तेदार लेकर आते हैं . महिला प्रत्यक्ष में बेहोश दिख रही है लेकिन हाथ पैर पटक रही है . टेबल पर लिटाकर उसके पतिदेव जुट जाते हैं उसकी सेवा करने में --हाथ पैरों को मसल रहे हैं . दूसरा रिश्तेदार आकर घबराई आवाज़ में कहता है --डॉक्टर जल्दी कीजिये --देखिये इसे क्या हुआ --बेहोश हो गई है --बैठी बैठी अचानक बेहोश हो गई . पूछने पर पता चलता है की पति पत्नी में कुछ कहा सुनी हुई , उसके बाद वह बेहोश हो गई .

पति बताता है --इसको अक्सर ऐसे दौरे पड़ जाते हैं .

पूरा मुआयना करने के बाद डॉक्टर उसका मर्ज़ समझ जाता है . वह उसे एक मेडिकल ईत्र सुंघाता है . महिला पहले तो साँस रोक लेती है लेकिन जल्दी ही उसका साँस टूट जाता है और वह आँख खोल देती है और होश में आ जाती है . उसकी आँखों के कोर से आंसू की एक बूँद बह निकलती है .

रोगी आज के लिए ठीक हो गई है .
डॉक्टर उसके पति को समझाता है --जितनी सेवा तुम आज कर रहे थे , घर में यदि इसकी आधी भी करो तो यह ठीक रहेगी . इसका ख्याल रखा करो .

निष्कर्ष :

मनुष्य के व्यक्तित्त्व पर परिस्तिथियों का बहुत प्रभाव पड़ता है . बहुत सी बातें हमारे सब्कौन्शिय्स ( अर्धचेतन ) मस्तिष्क में जमा होती रहती हैं . विपरीत परिस्तिथियों में ये बातें अन्जाने ही बाहर आने लगती हैं . अक्सर अज्ञानतावश हम इन्हें कोई विकार मान लेते हैं . इन्ही बातों का नाजायज़ फायदा उठाकर कई तरह के ओझा , बाबा , तथाकथित साधू महात्मा तंत्र मन्त्र का नाटक कर सीधे सादे लोगों को बेवक़ूफ़ बनाते हैं .

सच तो यह है --भूत प्रेत नाम की कोई चीज़ होती ही नहीं .

विपरीत परिस्तिथियों में मानव मस्तिष्क अलग अलग तरह से प्रतिक्रिया करता है .
ऐसे हालातों में अक्सर तीन तरह के रोगी आते हैं :

१ ) मैलिंगर्स :

ये वे रोगी होते हैं जो जान बूझ कर बीमार होने का नाटक करते हैं . इसका सबसे कॉमन उदहारण है --जेब कतरे .
यदि पकडे जाएँ तो उनका नाटक देखने लायक होता है .
वैसे बड़े बड़े नेता , धर्म गुरु या पहुंचे हुए लोग भी इस विद्या में कुछ कम नहीं .

२ ) फंक्शनल :

चिकित्सा की भाषा में ये वे रोगी होते हैं जैसा दृश्य १ और २ में दिखाया गया है .
मन में दबी हुई भावनाओं और इच्छाओं को लिए ये लोग अक्सर विपरीत परिस्तिथियों में बीमार होने का बहाना करते हैं लेकिन इनको पता नहीं होता की ये बहाना कर रहे हैं . यानि ये अर्ध चेतन अवस्था में बीमार होते हैं . कभी कभी इसका इलाज करना भी बहुत सरल नहीं होता जैसे हिस्टीरिया .
इन्हें सायकोथेरपी की ज़रुरत होती है .
हालात सुधरने पर सुधार की आशा की जा सकती है .

३) सिजोफ्रेनिक :

ये वास्तव में मानसिक रोगी होते हैं . अक्सर इनका रोग हालातों पर निर्भर नहीं करता . लेकिन फिर भी हालात का थोडा रोल रह सकता है . इन्हें यथोचित उपचार द्वारा ही ठीक किया जा सकता है . इन्हें पागल कहना या पागल समझ कर दुत्कारना सही नहीं .

निश्चित ही दुनिया का कोई ओझा , बाबा ,या सिद्ध पुरुष इनका इलाज नहीं कर सकता. इनके धोखे में न आएं .

नोट : भूत प्रेतों का कोई अस्तित्त्व होता है या नहीं , इनका कोई प्रमाण है या नहीं --यह वाद विवाद का विषय हो सकता है . लेकिन ये रोगी किसी भूत प्रेत के शिकार नहीं होते, यह निश्चित है .

(प्रकृति की गोद में जाकर भी आधे रोग दूर हो जाते हैं )


Saturday, July 9, 2011

नेशनल डॉक्टर्स डे पर डॉक्टर्स को मिला सम्मान ---एक रिपोर्ट. .

एक जुलाई को हमने अपने अस्पताल में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया . इस अवसर पर अस्पताल के चुनिन्दा १९ डॉक्टर्स को उनकी विशिष्ठ सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया .

नेशनल डॉक्टर्स डे डॉ बी सी रॉय की याद में प्रति वर्ष १ जुलाई ओ मनाया जाता है जो उनका जन्मदिन भी है और पुण्य तिथि भी .
१ जुलाई १८८२ को पटना में जन्मे डॉ बिधान चन्द्र रॉय कलकत्ता में पले बढे और पढ़े लिखे . कलकत्ता मेडिकल कॉलिज से एम् बी बी एस करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा के लिए १९०९ में इंग्लेंड के लिए प्रस्थान किया . लेकिन वहां उनके आवेदन पत्र को खारिज कर दिया गया . लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लगातार ३० बार आवेदन भरा . अंत में हार कर उन्हें दाखिला दे दिया गया .

और वे इतिहास में गिने चुने डॉक्टर्स में से एक बने जिन्होंने एम् आर सी पी और ऍफ़ आर सी एस दो साल और तीन महीने में एक साथ कर लिया .

वापस आकर उन्होंने कलकत्ता में ही सरकारी नौकरी शुरू की और अपने कार्य काल में बहुत से अस्पताल , कॉलिज और अन्य संस्थान स्थापित किये . भारत के स्वतंत्र होने के बाद वे बंगाल के दुसरे मुख्य मंत्री बने और अंत तक रहे . १ जुलाई १९६२ को उनका देहांत हुआ .

सरकार ने १९६१ में उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान --भारत रत्न से सुशोभित किया .

१९७६ में सरकार ने उनके सम्मान में चिकित्सा , विज्ञानं , आर्ट , और राजनीति के क्षेत्र में विशिष्ठ कार्य के लिए डॉ बी सी रॉय नेशनल अवार्ड घोषित किया .
इस दिन हर वर्ष सभी चिकित्सक संस्थाएं अपने उन डॉक्टर्स को सम्मानित करती हैं , जो अपने क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहे हैं .

हमारे अस्पताल में पहली बार यह कार्यक्रम आयोजित हुआ .


इस अवसर पर मुख्य अतिथि थे दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री डॉ ऐ के वालिया और विशिष्ठ अतिथि थे स्थानीय विधायक श्री वीर सिंह धिंगान . साथ में चिकित्सा अधीक्षक डॉ राजपाल .

कार्यक्रम के संचालन का भार हमने संभाला .


अतिथियों के स्वागत के बाद पुरुस्कार वितरण शुरू हुआ , जिसके लिए सभी अतिथियों को मंच पर आगे बुलाया गया . साथ में प्रधानाचार्य डॉ ओ पी कालरा और अतिरिक्त चिकित्सा अधीक्षक डॉ ऐ के चैटर्जी .



पुरुस्कार लेते हुए हमारे मित्र डॉ जी एल अरोरा .



अस्पताल के सभी गणमान्य चिकित्सक .

इस अवसर पर यही सन्देश दिया गया :

एक डॉक्टर में तीन विशेषताएं होनी चाहिए -- १) समय पर उपलब्ध होना . (availability ) २) रोगियों के साथ नम्र व्यवहार (affability ) ३) योग्यता (ability )
इन्ही तीन गुणों के द्वारा हम रोगियों का उचित उपचार कर सकते हैं .
आशा है यह प्रयास सभी डॉक्टर्स को बेहतर कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करेगा .

नोट : दिन में हमने अपने डॉक्टर्स को पुरुस्कार दिलवाए . शाम को दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में हमें भी सम्मानित किया गया .

Wednesday, July 6, 2011

न जाने किस भेष में नारायण मिल जाये---

दो दोस्त आपस में बात कर रहे थे
एक बोला --यार मैंने तुझे कल टी वी पर देखा पर ये बता तू उस रैली में क्या कर रहा था
दूसरा बोला --यार कमाल है मैंने तो मास्क से मूंह ढक रखा था तूने फिर भी पहचान लिया !
पहला दोस्त बोला --यार मैं तो यूँ ही मज़ाक कर रहा था , पर तू तो सच में --निकला

यह दृश्य था दिल्ली में दूसरी बार हुए एल जी बी टी जलसे का

एल जी बी टी यानि --लेस्बियन , गे , बाई सेक्सुअल , ट्रांसजेंडर

ये टर्म्स हैं आजकल यौन सम्बन्धी विकृतियों के फलस्वरूप उत्त्पन्न होने वाली परिस्थितियों में लोगों के यौन व्यवहार अनुसार विभागीकरण की

आइये देखते हैं --क्या अर्थ होता है इन शब्दों का

लेस्बियन : समलैंगिक यौन सम्बन्ध रखने वाली महिला
गे : समलैंगिक यौन सम्बन्ध रखने वाला पुरुष
बाईसेक्सुअल : स्त्री पुरुष दोनों से यौन सम्बन्ध रखने वाला/वाली
ट्रांसजेंडर : स्त्री या पुरुष --पुरुष या स्त्री के भेष में यानि अपने लिंग के विपरीत व्यवहार करने वाला /वाली

ज़ाहिर है , ये लोग सामान्य लोगों से भिन्न होते हैं शारीरिक तौर पर या मानसिक तौर पर या दोनों तरह

लेकिन गौर से देखा जाए तो केवल ट्रांसजेंडर ही ऐसे होते हैं जिनके साथ प्रकृति ने धोखा किया है यानि उन्हें पुरुष के शरीर में स्त्री या स्त्री के शरीर में पुरुष बनाकर संसार में भेज दिया है


यही वो लोग भी हैं , जिनका सर्जरी द्वारा और हॉर्मोन्स देकर लिंग परिवर्तन किया जा सकता हैहालाँकि प्रजनन क्षमता तो नहीं आती

लेकिन बाकि तीन तरह के लोग अपनी मर्जी से ऐसा व्यवहार करते हैं
एक मत यह भी है कि उनका सायकोलोजिकल मेकप ऐसा होता है इसलिए वे विवश होते हैं

हकीकत क्या है , यह तो कोई सायकोलोजिस्ट या सायकायट्रिस्ट ही बता सकता है
लेकिन यह भी हकीकत है कि ऐसे लोगों को समाज में नीची नज़रों से देखा जाता है और वे उपहास के पात्र भी बनते हैं

अब वैसे तो उच्च न्यायालय ने समलैंगिक संबंधों को मान्यता देते हुए , इन्हें कानूनी तौर पर सुरक्षा प्रदान कर दी है इसलिए सरकार को भी झुकना पड़ा

लेकिन क्या सामाजिक तौर पर इन्हें स्वीकार किया जायेगा ? क्या समाज में इन्हें वही इज्ज़त मिल पायेगी जो सामान्य लोगों को मिलती है ? और क्या सचमुच यह व्यवहार स्वीकार्य होना चाहिए ?


फ़िलहाल स्थिति यह हो सकती है कि जहाँ पहले सिर्फ लड़कियों को संभल कर चलना पड़ता था , अब लड़कों को भी यह ध्यान रखना पड़ेगा कि कहीं कोई ऐसा मिल जाए जिसका व्यवहार आपको असमंजस्य में डाल दे

आखिर जाने किस भेष में नारायण मिल जाये


नोट : इस विषय पर माननीय स्वास्थ्य मंत्री जी के बयान पर मिडिया ने बहुत शोर मचाया है
इस बारे में जन साधारण का क्या सोचना है , यह जानने की उत्सुकता रहेगी