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Monday, April 27, 2020

कोरोना को भगाना है तो घर बैठो और आराम करो --



एक मित्र बोले भैया आजकल कहां दुम दबाकर बैठे हो ,
इस कोरोना के डर से क्यों घर में मुँह छुपाकर रहते हो ।
क्या रखा है बेवज़ह डरने में, कभी मित्रों से मुलाकात करो,
कब तक डर कर घर बैठोगे, कभी मिलकर हमसे बात करो।
हम बोले सुनो मोदी जी को और ३१ मई तक पूर्ण विराम करो ,
कोरोना को भगाना है तो घर बैठो और आराम करो आराम करो।


आराम स्वास्थ्य का शस्त्र है जिससे क्वारेंटाइन होता है,
आराम ही ऐसा अस्त्र है जो कोरोना संक्रमण को खोता है।
आराम शब्द में राम है रहता जो पुरुषों में उत्तम होता है,
आ राम आ राम रटने से तो कोरोना वायरस भी डरता है।
इसलिए मैं कहता हूँ तुम भी घर बैठो कुछ ना काम करो ,
लॉकडाउन का पालन करो और आराम करो आराम करो।


यदि कुछ करना ही है तो घर के छूटे पूर्ण काम करो ,
सुबह शाम आसन लगाकर घर में ही व्यायाम करो।
क्या रखा बाहर जाने में जो मज़ा है घर में रहने में ,
जो खाली रहने में लुत्फ़ है, वो कहाँ आवारा फिरने में ।
मुझसे पूछो मैं बतलाऊँ, है मज़ा सुस्त कहलाने में ,
ज्यादा खाने में क्या रखा जो रखा सीमित खाने में।


मैं यही सोचकर घर से बाहर, कम ही जाया करता हूँ ,
जो गले पड़ने के आदि होते हैं, उनसे कतराया करता हूँ।
दिन में एक बार दूध लेने को घर से बाहर जाया करता हूँ,
पुलिस के डंडे के डर से जल्दी घर वापस आया करता हूँ।
मेरी वॉल पर लिखा हुआ, जो देश प्रेम में कौशल होते हैं,
वे केवल फेसबुक और वाट्सएप्प पर ही सोशल होते हैं।


अब नहीं ऑफिस जाने की चिंता, ये सोचकर आनंद आता है,
पेट्रोल , पार्किंग और प्रदूषण से , मन स्वच्छंद हो जाता है।
सुबह से शाम सारा समय , जब अपना नज़र आता है ,
तो सच कहता हूँ जीने का जैसे , मज़ा निखर आता है।
लेकर हाथ में चाय का प्याला फिर मैं बालकनी में बैठ जाता हूँ ,
धरा पर हरा और स्वच्छ आसमां के नीले रंगों से जुड़ जाता हूँ।


तुम को भी मैं कोरोना से बच कर रहने का ये राज़ बता देता हूँ ,
छींकते खांसते वक्त मुँह पर पकड़ा रखो ये सीख सदा देता हूँ।
मैं आरामी हूँ मुझको तो अब सब बस इसी नाम से जानते हैं ,
किन्तु उनको खांसी से चैन नहीं जो लॉकडाउन को नहीं मानते हैं।
इसीलिए मैं कहता हूँ तुम घर बैठो और मेरी तरह से काम करो ,
दो गज की दूरी रखो सबसे , और आराम करो आराम करो।

Monday, April 13, 2020

लॉकडाउन की जिंदगी --


लॉकडाउन जब हुआ तो हमने ये जाना ,
कितना कम सामां चाहिए जीने के लिए।

तन पर दो वस्त्र हों और खाने को दो रोटी ,
फिर बस अदरक वाली चाय चाहिए पीने के लिए ।

पैंट कमीज़ जूते घड़ी सब टंगी पड़ी बेकार ,
बस एक लुंगी ही चाहिए तन ढकने के लिए ।

कमला बिमला शांति पारो का क्या है करना ,
ये बंदा ही काफी है झाड़ू पोंछा करने के लिए। 

वर्क फ्रॉम होम को वर्क एट होम समझा कर ,
मैडम एक गठरी कपड़े और दे गई धोने के लिए ।

ग़र नहीं कोई जिम्मेदारी और वक्त बहुत है ज्यादा ,
एक फेसबुक ही काफी हैं वक्त गुजारा करने के लिए ।

हैण्ड वाशिंग मुंह पे मास्क रेस्पिरेटरी हाइजीन और,
लॉकडाउन का पालन करो कोरोने से बचने के लिए। 

आदमी तो बेशक हम भी थे काम के 'तारीफ़',
किन्तु घर बैठे हैं केवल औरों को बचाने के लिए। r