बुजुर्ग ना खाते हैं ना पीते है,
फिर भी चैन से मस्त जीते हैं।
ना कपड़ों का खर्च रहा ना कहीं आना जाना,
अब तो मुफ्त में गुजरता है सारा दिन सुहाना।
ना किराए की चिंता ना बच्चों की फीस,
ना कोई कर्ज़ ना लोन चुकाने की टीस
ना सब्जीवाले, रिक्शावाले, रेहडीवाले से चकचक,
जिसने जो मांगा दे दिया ना मोल भाव की बकबक।
खाली हाथ लटकाए बाजार जाते हैं,
बिन पैसे थैला भर सामान ले आते हैं।
नोटों को अब तो हाथ तक नहीं लगाते हैं,
मोबाइल पर एक उंगली से काम चलाते हैं।
सरकार भी इनकम टैक्स में देती है भारी छूट,
पेंशन कम नहीं, ये तो है ईमानदारी की सरकारी लूट।
No comments:
Post a Comment