ब्लॉगिंग शुरू किये हुए चार साल पूरे होने को आये. एक जनवरी २००९ को ब्लॉग बनाकर पहली पोस्ट नव वर्ष की शुभकामनाओं पर डाली थी . देखते देखते , पोस्ट लिखते लिखते , टिप्पणियों का इंतजार करते करते और टिपियाते हुए कब चार साल गुजर गए , पता ही नहीं चला. इस बीच जीवन की उपलब्धियों में ब्लॉगर नाम का शब्द भी जुड़ गया. इन चार सालों में मानव प्रवृति और मानसिकता के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला. लेकिन कुछ समय से ब्लॉगिंग में काफी परिवर्तन देखने को मिल रहा है. हालाँकि यह बदलाव हर ३-४ साल में होना स्वाभाविक ही लगता है. तथापि, समय के साथ फेसबुक जैसी सोशल साइट्स का लोकप्रिय होना, ब्लॉगिंग के लिए घातक सिद्ध हो रहा है. लेकिन सिर्फ फेसबुक को दोष देना ही सही नहीं है. और भी ग़म हैं ज़माने में , जो ब्लॉगिंग में बाधा पहुंचाते हैं .
तुम न जाने किस जहाँ में खो गए :
ब्लॉगिंग को सबसे बड़ा धक्का लगा डॉ अमर कुमार की असामयिक मृत्यु से. उनकी टिप्पणियों का कोई तोड़ नहीं होता था. हमारा तो अभी परिचय ही हुआ था की तभी वे इस दुनिया को छोड़ कर चले गए. उनकी कमी ब्लॉगजगत में कभी पूरी नहीं हो पायेगी. कुछ समय पहले श्री चंदर मोलेश्वर प्रसाद जी को भी काल ने हमसे छीन लिया . हिंदी का एक ज्ञाता विद्वान हमसे हमेशा के लिया छिन गया. उधर ब्लॉगिंग के तकनीकि स्तंभ माने जाने वाले और हर दिल अज़ीज़ श्री पाबला जी को पुत्र शोक होने से जैसे ब्लॉगिंग की रीढ़ ही टूट गई . हालाँकि फिर भी पाबला जी बड़ी हिम्मत से मौजूद हैं ब्लॉगिंग में.
हम तो हैं परदेश में , देश में निकला होगा चाँद :
कुछ मित्र ऐसे हैं जो स्वदेश की गलियां तो छोड़ गए लेकिन ब्लॉगिंग के जरिये देश की माटी से हमेशा जुड़े रहे . लेकिन फिर दुनियादारी में ऐसे फंसे की ब्लॉगिंग भूल गए . इनमे सबसे ज्यादा जो नाम याद आता है वह है अदा जी का. कनाडा के ओटवा ( हिन्दुस्तानी में ओटावा ) शहर में रहने वाली अदा जी ( मञ्जूषा ) ने हमेशा धुआंधार और बेबाक ब्लॉगिंग की . लेकिन फिर शायद फिल्म निर्माण के कार्य में ऐसी फंसी की ब्लॉग से गायब ही हो गईं. उधर ब्लॉगिंग के नंबर एक माने जाने वाले और नए ब्लॉगर्स का सदा प्रोत्साहन करने वाले श्री समीर लाल जी की उड़न तश्तरी की उड़ान में अचानक काफी कमी आ गई . एक समय था जब हर पोस्ट पर १०० से ज्यादा टिप्पणियां सिर्फ उन्ही के ब्लॉग पर आती थी. अब कहीं नहीं आती. कहीं ये टिप्पणियां ही तो नहीं जो ब्लॉगिंग में इंधन का काम करती हैं. इनके अलावा दीपक मशाल की जब से शादी हुई है , तबसे उन्होंने लगभग ब्लॉगिंग छोड़ दी है. आखिर शादी है ही ऐसी चीज़ की बस नमक तेल लकड़ी याद रहती है. हालाँकि यु एस में इनका प्रयोग शायद ही होता हो. और भी कई दोस्त हैं जिनका उत्साह कम हो गया है. जब से हम दुबई होकर आए हैं , तब से दुबई वाले श्री दिगंबर नासवा जी अचानक गायब हो गए .हम तो हैरान थे , पर फिर पता चला नासवा जी की माताजी नहीं रही। विदेश में रहकर अपनों से बिछुड़ने का दर्द और भी ज्यादा महसूस होता है। ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली बबली उर्फ़ उमा चक्रवर्ती चार पंक्तियों में सदा किसी को ढूंढती रहती थी . शायद उनको वो मिल गया और नाता जोड़ लिया , इसलिए ब्लॉगिंग से नाता तोड़ लिया.जर्मनी में रह रहे राज भाटिया जी को क्या शिकायत है ब्लॉग से , यह तो पता नहीं चला लेकिन फेसबुक पर जर्मनी के फोटो दिखाकर हमें खुश करते रहते हैं.
छोड़ आए हम वो गलियां :
अब देश में भी ब्लॉगिंग के चाँद लुप्त होते जा रहे हैं . एक बार हमने श्री चन्द्र मोहन गुप्त की लापता होने की खबर ब्लॉग पर डाली थी . तब पता चला था की ट्रांसफर होने की वज़ह से ब्लॉगिंग से दूर हो गए हैं . एक दो बार छुट्टियों में पोस्ट लिखने के बाद उन्होंने तौबा कर ली और शायद अपने काम में ही व्यस्त हो गए.
नोयडा के खुशदीप सहगल ने हमारे साथ ही ब्लॉगिंग शुरू की थी और प्रतिदिन एक पोस्ट नियमित रूप से लिखते थे . उनका जुनून देखकर कई बार हमने उन्हें टोका भी, लेकिन जुनून कहाँ ख़त्म होता है. फिर एक दिन अचानक वो जुनून ख़त्म हो गया . जब बच्चों के बोर्ड के एग्जाम पास हों तो यही सही भी लगता है. आखिर , ब्लॉगिंग ही तो जिंदगी नहीं. दिल्ली के अनेक ब्लॉगर ऐसे हैं जो या तो सामूहिक ब्लॉग्स चलाते थे , या स्वयं ही ब्लॉग्स का समूह चलाते थे . लेकिन अब सब बंद हो चुका . हमें तो सामूहिक ब्लॉग्स का औचित्य ही समझ नहीं आया. और एक दो से ज्यादा ब्लॉग्स का भी . अविनाश वाचस्पति जी अस्वस्थ रहते हैं , ब्लॉगिंग छोड़ अब फेसबुक के स्वामी बन गए हैं . अजय कुमार झा का ब्लॉगिंग जोश ठंडा पड़ गया है, लेकिन फेसबुक पर सारा आक्रोश निकाल रहे हैं . ( भाई अभी एक भयंकर रोग से निज़ात पाकर स्वस्थ हुए हैं . उन्हें स्वस्थ और दीर्घायु के लिए शुभकामनायें ). राजीव तनेजा ने एक बार हमारे जन्मदिन पर हमारे ब्लॉग की सारी पोस्ट्स पर टिप्पणियां देकर एक कीर्तिमान सा स्थापित कर दिया था. लेकिन हम उनके गज भर लम्बे हास्य व्यंग पर हमेशा उन्हें टोकते रहते थे . उन्होंने तंग आकर ब्लॉग पर लिखना ही छोड़ दिया और अब फेसबुक पर दो दो लाइना लिख कर चिढाते रहते हैं .
इंजिनियर सतीश सक्सेना जी के गीत हमेशा लोकप्रिय रहे . लेकिन अब उनकी तान और गान भी कम ही सुनाई देती है. आखिर पारिवारिक जिम्मेदारी तो सर्वप्रथम होनी ही चाहिए।
आदरणीय निर्मला कपिला जी अस्वस्थ और अजित गुप्ता जी व्यस्त रहने के कारण अब ब्लॉगिंग से दूर हो गई हैं, हालाँकि अजित जी ने फिर से समय निकालना शुरू कर दिया है। हरकीरत हीर जी की पोस्ट कितनी भी दर्दीली हो लेकिन उनकी टिप्पणियां हमेशा चुटकीली होती थी. लेकिन अब न पोस्ट आती है, न टिपण्णी .
दानिश ( डी के मुफलिस ) की शानदार ग़ज़लें अब पढने को नहीं मिलती.
हमने पहली पोस्ट ३ जनवरी २००९ को लिखी थी जिसपर बस एक टिप्पणी आई थी-- अनुरागी अनुराग ने भी नव वर्ष पर उसी दिन कविता लिखी थी जो उनकी सिर्फ तीसरी पोस्ट थी. उसके बाद न अनुराग दिखे , न उनका राग. यह भी एक रहस्य बन कर रह गया. हमें ब्लॉगिंग में लेकर आए श्री अशोक चक्रधर जी . लेकिन हमें इस चक्कर में फंसा कर उन्होंने अपनी चकल्लस ही बंद कर दी। अन्य कवि मित्रों में राजेश चेतन जी , अलबेला जी , योगेन्द्र मोदगिल जी ने मंच के आगे ब्लॉगिंग को तुच्छ समझ त्याग दिया। भई ब्लॉगिंग से रोजी रोटी तो नहीं चल सकती ना.
याद किया दिल ने कहाँ हो तुम :
याद किया दिल ने कहाँ हो तुम :
हम लगभग १०० से ज्यादा मित्रों को फोलो करते हैं , पढ़ते हैं और टिप्पणी का भोग लगाने का प्रयास भी करते हैं . लेकिन जब पोस्ट ही न आए तो हम कहाँ जाएँ टिपियाने. सुलभ सतरंगी रंग बिरंगी दुनिया के इंद्रजाल में पैर ज़माने की कोशिश में लगे हैं , सुनीता शर्मा जी ने लगता है इमोशंस पर ज्यादा कंट्रोल कर लिया है . इसलिए अब कभी कभी ही विदित करती हैं। ताऊ रामपुरिया के ब्लॉग पर पढ़ा था -- यहाँ सब ज्ञानी हैं , यहाँ ज्ञान मत बाँटिये. हमने उनकी एक न सुनी तो उन्होंने ही सुनाना बंद कर दिया. मुफलिस जी की तर्ज़ पर सब खूब झूमते थे , लेकिन उन्होंने तर्ज़ बयां करना ही बंद कर दिया. अजय कुमार अपनी गठरी लेकर जाने कहाँ खो गए . राजेश उत्साही का उत्साह भी ठंडा पड़ गया लगता है. ज्योति मिश्रा की P: D: आदि हमें कभी समझ नहीं आती थी लेकिन अब वो ही नहीं आती. सुशील बाकलीवाल जी ने रिकोर्ड तोड़ ब्लॉगिंग की और फिर अचानक सन्यास ले लिया . एम् वर्मा जी के ज़ज्बातों को कैसे ठेस लगी , यह समझ न आया. डॉ अनुराग अब दिल की बातें किसी को नहीं बताते, सीक्रेट रखते हैं. मिथलेश दुबे का बेबाक अंदाज़ शायद लोगों को हज़्म नहीं हुआ, इसलिए सलीम के साथ चुप हो गए. डॉ मनोज मिश्र को शायद ज्येष्ठ भ्राता ने कह दिया -- अपना काम करो भाई , क्यों समय व्यर्थ करते हो , उसके लिए मैं हूँ ना. :). शरद कोकस अब रात में ३-४ बजे नहीं उठते. शायद देर से उठने की आदत पड़ गई है. हमें लगा मासूम भाई को शायद समझ आ गया की ये दुनिया इतनी मासूम नहीं है. इसलिए लिखना बंद कर दिया। वो तो बाद में पता चला कि भाई तो बड़ी गंभीर बीमारी से निजात पाकर संभले हैं। खुदा उन्हें सलामत रखे। ऐसे नेक बन्दों की बहुत ज़रुरत है। डॉ मुकेश सिन्हा ने क्यों राजनीति छोड़ दी , यह बात समझ के परे है.
व्यस्त हो गए हैं या अस्त व्यस्त -- यह बात तो मित्र लोग स्वयं ही बताएँगे :
पिट्सबर्ग में ठण्ड बढ़ गई लगती है , इसलिए अनुराग शर्मा जी अब कभी कभार ही लिखते हैं . अली सा ने पता नहीं क्यों, कहानियों की सारी किताबें कबाड़ी को बेच दीं लगती हैं . अब बस फेसबुक पर संतोष त्रिवेदी जी को टिप्पणी का प्रसाद चढाते हैं. :) संजय भास्कर अब बाल बच्चों में व्यस्त हो गए हैं . राकेश कुमार जी के प्रवचन सुने हुए मुद्दतें हो गई .( उम्मीद करता हूँ , स्वास्थ्य सही है ) . दर्शन कौर जी के दर्शन अब दुर्लभ हो गए हैं. हालाँकि फेसबुक पर दर्शनों की झड़ी लगी रहती है. :). रोहित कुमार कभी कभी ही बिंदास मूड में आते हैं. कुश्वंश जी , वंदना अवस्थी दुबे , रश्मि रविजा, महेंद्र मिश्रा ने भी लिखना कम कर दिया है.
बीकानेर के भाई राजेन्द्र स्वर्णकार की पोस्ट हमेशा स्वर्ण की तरह ही चमकती है लेकिन आजकल सोने की तरह ही बहुत महंगे हो गए हैं :) महफूज़ अली ने अब ब्लॉग पर डोले दिखाना बंद कर दिया है . लेकिन फेसबुक पर नापसंद लोगों का मूंह तोड़ने को तैयार रहते हैं . :)
बीकानेर के भाई राजेन्द्र स्वर्णकार की पोस्ट हमेशा स्वर्ण की तरह ही चमकती है लेकिन आजकल सोने की तरह ही बहुत महंगे हो गए हैं :) महफूज़ अली ने अब ब्लॉग पर डोले दिखाना बंद कर दिया है . लेकिन फेसबुक पर नापसंद लोगों का मूंह तोड़ने को तैयार रहते हैं . :)
हम से है ज़माना :
इस बीच कई नए ब्लॉगर्स का प्रवेश हुआ जो इस विधा को ससम्मान आगे बढ़ा रहे हैं . उत्तरांचल की राजेश कुमारी जी , काजल कुमार के कार्टून्स , अनु जी के ड्रीम्स और एक्सप्रेशंस, प्रेरणा अर्गल की कल्पनाएँ , गोदियाल जी का अंधड़ , और द्विवेदी जी की अदालत अभी भी खूब चल रही है . संदीप पंवार का सफ़र जारी है, पल्लवी सक्सेना जी अपने अनुभव बखूबी बाँटती रहती हैं , अशोक सलूजा जी की यादें , रचना दीक्षित जी की सन्डे के सन्डे साप्ताहिक रचनाएँ , वंदना जी के अहसास , धीरेन्द्र जी की काव्यांजलि , संगीता स्वरुप जी के हाइकु और लघु कवितायेँ , रश्मि प्रभा जी की प्रभावशाली रचनाएँ अभी भी मन मोह रही हैं . वीरेन्द्र शर्मा ( वीरुभाई जी) के जानकारी पूर्ण स्वास्थ्य सम्बन्धी लेख एकदम ताज़ी जानकारी से परिपूर्ण होते हैं .काजल कुमार जी के ताज़ा और सटीक कार्टून हालात पर गहरी चोट करते हुए भी मनोरंजक होते हैं। लेकिन कुमार राधारमण जी जो पहले दिन में दो तीन लेख लिखते थे , अब दो तीन दिन में लिखते हैं . वाणी शर्मा जी की ज्ञानवाणी और नीरज गोस्वामी जी की पुस्तकों की खोज भी दिल लुभाती रही हैं. डॉ जाकिर अली रजनीश की वैज्ञानिक बातें काफी ज्ञानवर्धक रही . अंजू चौधरी और शाहनवाज़ भी नियमित हैं . रमाकांत सिंह जी की एंट्री अभी हाल में ही हुई है.
पंडित अरविन्द मिश्र जी का ट्रांसफर होने से ब्लॉग से दूरियां बढ़ गई हैं लेकिन फेसबुक पर हींग और फिटकरी दोनों लगाते रहते हैं। फिर रंग तो आएगा ही . :). संतोष त्रिवेदी जी तो फेसबुक और अख़बारों की सुर्ख़ियों में छाये रहते हैं, इसलिए ब्लॉग पर अब ज्यादा माथा पच्ची नहीं करते. लेकिन देवेन्द्र पाण्डेय जी एक बहादुर इन्सान की तरह डटे हुए हैं अपना कैमरा संभाल कर. शिखा वार्ष्णेय जी हमेशा की तरह ब्लॉग पर और अब फेसबुक पर भी नियमित रूप से सुन्दर लेखों के साथ नज़र आती रहती हैं. श्री रूप चंद शास्त्री जी भले ही सम्मान समारोह में आहत हुए हों , लेकिन पूरी श्रद्धा से ब्लॉगिंग में अपनी सेवा दे रहे हैं. शिवम् मिश्रा महापुरुषों की विभिन्न तिथियों पर हमें याद दिलाना कभी नहीं भूलते. केवल राम का भी गंभीर लेखन जारी है चलते चलते. शेर खान ब्लो ललित शर्मा ने छत्तीसगढ़ छान मारा और बड़े रोचक अंदाज़ में विस्तार से सारा हाल बयाँ करके महत्त्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं . शायद अकेले हैं जो ब्लॉग और फेसबुक , दोनों पर सक्रीय हैं. अत्यंत गुणवान और क्रातिकारी विचार रखने वाले श्री विजय माथुर जी के विचारों को लोग कम ही समझ पाते हैं. इसलिए वे अब ब्लॉग पर कम और फेसबुक पर ज्यादा नज़र आते हैं.
न तुम हमें जानो , न हम तुम्हे जाने :
आश्चर्य की बात है की इन चार सालों में हम कई धुरंधर माने जाने वाले ब्लॉगर्स से कभी रूबरू नहीं हो पाए. श्री ज्ञान दत्त पाण्डेय, अनूप शुक्ल जी , रवि रतलामी जी , अजित वडनेरकर , कविता वाचकनवी जी, सुमन , गिरिजेश राव समेत कई ऐसे ब्लॉगर्स हैं जिनसे या तो कभी आदान प्रदान नहीं हुआ या न के बराबर . एक दो ब्लॉगर ऐसे भी रहे जिनसे ब्लॉग नाता टूट गया. ब्लॉग पर नाता बनाये रखने के लिए पारस्परिक सम्मान, विश्वास और समझ बूझ की आवश्यकता होती है. डॉ दिव्या श्रीवास्तव के साथ ब्लॉग सम्बन्ध विच्छेद होना कभी कभी अखरता है.
यहाँ दो नाम विशेष रूप से ज़ेहन में आते हैं . बंगलौर में रहने वाले रेलवे में काम करने वाले प्रवीण पाण्डेय की टिप्पणी भले ही चंद शब्दों में सिमटी रहती है , लेकिन लगभग हर ब्लॉग पर नियमित रूप से और सबसे पहले हाज़िर होते हैं. कम शब्दों में पोस्ट का सार देना भी एक कला है. दूसरे ब्लॉगर हैं दिनेश 'रविकर' गुप्ता जी जिनके काका हाथरसी जैसे छक्के रुपी टिप्पणियां बहुत से ब्लॉग्स पर देखी जा सकती हैं. हर टिप्पणी में तुरंत एक कविता छाप देना भी एक अद्भुत गुण है. हालाँकि ब्लॉगिंग में इतना समय और ऊर्जा लगाना हैरत में डाल देता है. लेकिन आजकल उनकी अनुपस्थिति ही हैरान कर रही है।
विशेष:
एक और नाम जिनके बगैर पोस्ट अधूरी रहेगी , वो हैं श्री जे सी जोशी जी. सेवा निवृत इंजीनियर जे सी जी अब आध्यात्मिक अध्ययन में लगे हैं और इस लोक से बाहर परलोक का रहस्य समझने में संलग्न हैं. स्वयं कोई पोस्ट नहीं लिखते लेकिन कुछ चुनिन्दा ब्लॉग्स पर अपने ज्ञान का प्रकाश फैलाकर ब्लॉग को रौशन करते हुए अपना योगदान देते हैं.लेकिन पिछली चार पोस्ट्स पर उनकी अनुपस्थिति चिंता में डाल रही है। अभी तक इ मेल का ज़वाब भी नहीं आया। आशा करता हूँ कि सकुशल होंगे।
सम्मान समारोह और ब्लॉगर मिलन :
इस बीच दो बार ऐसा हुआ की ब्लॉगर्स के लिए विशेष सम्मान समारोह आयोजित किये गए. जैसा की ऐसे में अक्सर होता है , ये समारोह भी विवादित रहे. वैसे भी सभी को खुश करना बड़ा मुश्किल होता है. लेकिन हमारे लिए तो यह भी एक विडम्बना ही रही की इनके आयोजक और कर्ता धर्ता श्री रविन्द्र प्रभात जी से सपने में भी कभी मुलाकात / वार्तालाप नहीं हुई. हालाँकि अनेक ब्लॉगर्स से समय समय पर मुलाकातें होती रही जिनमे श्री समीर लाल जी , राज भाटिया जी , अरविन्द मिश्रा जी , वीरुभाई जी , ललित शर्मा जी , सतीश सक्सेना जी और खुशदीप सहगल से मुलाकात अन्तरंग रही. दिगंबर नासवा जी और पी सी रामपुरिया जी से एक शादी में मिलना सुखद रहा. वैसे फोन पर अनेक मित्रों से बात चीत होती ही रहती है. अभी हाल ही में छत्तीसगढ़ के श्री राहुल सिंह जी से फोन पर बात हुई लेकिन किसी कारणवश मुलाकात का अवसर न मिल सका.
और इस तरह पूर्ण हुआ यह ब्लॉग पुराण . इसमें शामिल किये गए नाम वे हैं जिन्हें हम जानते हैं . बेशक , और भी बहुत से ऐसे ब्लॉगर्स होंगे जिनका बड़ा नाम होगा, लेकिन हम नहीं जानते. मित्रों में कुछ और नाम भी छूट गए होंगे , कृपया बिना बुरा माने स्वयं ही याद दिला दें.
नोट : वर्ष की इस आखिरी पोस्ट को कृपया हास्य व्यंग के रूप में ही लें , भले ही इसमें सच्चाई दिखाई दे।
और इस तरह पूर्ण हुआ यह ब्लॉग पुराण . इसमें शामिल किये गए नाम वे हैं जिन्हें हम जानते हैं . बेशक , और भी बहुत से ऐसे ब्लॉगर्स होंगे जिनका बड़ा नाम होगा, लेकिन हम नहीं जानते. मित्रों में कुछ और नाम भी छूट गए होंगे , कृपया बिना बुरा माने स्वयं ही याद दिला दें.
नोट : वर्ष की इस आखिरी पोस्ट को कृपया हास्य व्यंग के रूप में ही लें , भले ही इसमें सच्चाई दिखाई दे।