बहुत समय से हास्य काविता लिखने का समय और विषय नहीं मिल रहा था. हालाँकि दीवाली पर उपहारों के आदान प्रदान पर लिखने का बड़ा मूड था. इस बार अवसर मिल ही गया. आप भी आनंद लीजिये :
साहब के दिल की, धड़कन बढ़ जाती है।
जाने इस बार कितनी गिफ्ट्स आयेंगी
कम रह गई तो घर में, क्या इज्ज़त रह जाएगी।
दीवाली की गिफ्ट्स का फंडा भी सिंपल होता है
भई यह तो अफसरों का, स्टेटस सिम्बल होता है।
पिछले साल दीवाली पर हो गया ट्रांसफर
दीवाली की गिफ्ट, आधी रह गई घटकर।
पहले जो लोग तीन तीन पेकेट लेकर आये थे
अब वो तीन महीने से नज़र तक नहीं आये थे।
लेन देन का तो सारा हिसाब ही खो गया
ऊपर से पत्नी का भी मूड ख़राब हो गया।
तुनक कर बोली -- यदि दफ्तर में और टिक जाते
तो निश्चित ही दस बीस पेकेट, और मिल जाते ।
गिफ्ट की संख्या रूपये की कीमत सी घट गई
अज़ी पड़ोसी के आगे अपनी तो नाक ही कट गई।
आप यहाँ हारे नेता से अकेले पड़े हैं
पड़ोसी के द्वार पर देखो, दस बन्दे खड़े हैं।
बाजु वाले शर्मा जी भी बने बैठे हैं शेर
घर के आगे लगा है, खाली डिब्बों का ढेर।
सा'ब को अब फिर लग रहा था घाटे का डर
इस बार फिर आ गया था, ट्रांसफर का नंबर।
मन में ऊंचे नीचे राजसी विचार आने लगे
सपने में फिर रंग बिरंगे, उपहार आने लगे।
नए दफ्तर में सा'ब ने शान से मिठाई मंगवाई
फिर सारे स्टाफ को बुलाकर, शान से दी बधाई।
सूट बूट पहनकर बैठे लगाकर रेशमी टाई
पर ताकते रह गए, गिफ्ट एक भी ना आई।
बैठे रहे अकेले कुर्सी पर लेते हुए जम्हाई
खाली एस एम् एस पर ही मिलती रही बधाई।
खीज कर सा'ब ने अपने पी ऐ को डांट लगाई
उसने जब बताया , तो ये बात समझ में आई।
जो कोंट्रेक्टर सप्लायर दफ्तर में चक्कर लगाते थे
जो कोंट्रेक्टर सप्लायर दफ्तर में चक्कर लगाते थे
वही तो दीवाली पर मोटी मोटी गिफ्ट लेकर आते थे।
लेकिन अब बेचारे सारे क़र्ज़ में धंसे पड़े है
डॉलर के चक्कर में सबके पैसे फंसे पड़े है।
इनकी सेवाओं का तो हम पर ही क़र्ज़ है
सर आपका लेने का नहीं , देने का फ़र्ज़ है।
पुरुषों को दवा दारू की दो घूँट देनी चाहिए
महिलाओं को लेट आने की, छूट देनी चाहिए।
घर के कुछ काम तो ऑफिस में करने दीजिये
खुद भी करिए हमें भी, मनमानी करने दीजिये।
सरकारी नौकर तो बेचारा बेसहारा होता है ,
दफ्तर में बॉस और घर में बीबी का मारा होता है।
यह सुनकर बॉस का दिल भावनाओं से भर आया,
इसलिए सारे स्टॉफ को बुलवाकर लंच करवाया।
घर के कुछ काम तो ऑफिस में करने दीजिये
खुद भी करिए हमें भी, मनमानी करने दीजिये।
सरकारी नौकर तो बेचारा बेसहारा होता है ,
दफ्तर में बॉस और घर में बीबी का मारा होता है।
यह सुनकर बॉस का दिल भावनाओं से भर आया,
इसलिए सारे स्टॉफ को बुलवाकर लंच करवाया।
कभी दीवाली पर मिलना, मिलकर बातचीत करना
और भेंट का आदान प्रदान, दिलों में भरता था प्यार।
अब घर बैठे ही मोबाईल या नैट पर करते हैं चैट,
और दीवाली के उपहार, बन कर रह गए हैं व्यापार।
नोट : कृपया इसे कवि की कल्पना ही समझें . इसका सम्बन्ध किसी भी जीवित या अजीवित व्यक्ति या घटना से नहीं है.