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Wednesday, November 29, 2023

दो हज़ार का नोट....


एक दिन तो अपना सर चकराया

जब एक पैंट की पॉकेट में पड़ा,

दो हजार का एक नोट नजर आया।

गुलाबी गुलाबी करारा करारा

लग तो रहा था बड़ा प्यारा। 

पर जब ख्याल आया कि

इसे तो बंद हुए महीने हो गए,

फिर तो हम सर्दी में भी पसीने पसीने हो गए। 

सोचा ये लापरवाही हमसे हो गई कैसे,

पता नहीं पत्नी दबाकर बैठी होगी कितने ऐसे। 

आखिर पे टी एम के ज़माने में 

कैश कौन हैंडल करता है। 

ना कभी बैंक जाते हैं ना ए टी एम,

बस पे टी एम से ही चल रहा है गुज़ारा,

नोटों से तो कभी संपर्क ही नहीं होता हमारा। 


फिर एक दिन हिम्मत करके बैंक से पता लगाया

तो उन्होंने बताया,

कि अब तो आरबीआई ही आपकी मदद कर सकता है।

पर मुसीबत भी कहां अकेले आती है,

इस उम्र में श्रवण शक्ति भी साथ छोड़ जाती है। 

बस हड़बड़ी में हो गई गड़बड़ी,

और गड़बड़ी में RBI का CBI हो गया,

जिसे सुनकर हाथ पैर के साथ दिमाग भी सुन्न हो गया। 

सोचा क्या दो हजार का नोट इतना खोटा है,

ये तो गले ही पड़ गया, 

मानो ये नोट नहीं, अकबरी लोटा है। 


फिर ये सोचकर कि ये FBI तो नहीं,

अपनी ही सीबीआई है, हम पहुंच गए दफ्तर।

मन ही मन ऐंठे, दस घंटे बेंच पर रहे बैठे।

शाम को एक इंस्पेक्टर ने अंदर बुलाया,

हमे देख ठहाका लगाकर बोला,

ये पहला दागी है जो बिना बुलाए ही चला आया। 

लेकिन जब हमने पूरी बात समझाई

तो वो बोला, ये सीबीआई है सीबीआई।

यहां हम उनको बुलाते हैं,

जिनके पास एक नहीं, लाखों पकड़े जाते हैं। 

ये और बात है कि वो खुद चलकर नहीं आते हैं। 

आप आरबीआई जाइए,

और हां, ये दस नोट मेरे भी बदलवा लाइए। 


RBI के बाहर मिल गया एक दलाल,

बोला जनाब डॉ दराल,

नोट तो हम बदलवा देंगे, पर नोट के बदले नोट लेंगे।

फिर देखते देखते हुआ ऐसा हाल,

कि कई और आ गए दलाल

और लगने लगी बोली दो हजार के नोट की।

एक ने बोला एक हजार, दूसरा बोला बारा सौ,

तीसरे से तेरा सौ , चौथे ने चौदा सौ की जब दी ऑफर,

हम समझ गए सारा चक्कर।

और पहुंच गए सीधे उस खिड़की पर,

जहां एक बाबू बैठा था मोटा चश्मा लगाए।

हमने कहा, हाए।

RBI के बाबू ने पहले तो हमें घूरा,

फिर अपना काम छोड़कर अधूरा,

बोला, नोट बदलवाने की आपको कोई जल्दी नहीं थी,

अब तो ये साबित करना पड़ेगा कि 

इसमें आपकी कोई गलती नही थी। 

हमने अपना दिमाग लगाया 

और बहना बना कर उसे ये समझाया ।

कि नोट तो बीवी के पर्स में छुपा रह गया,

और उसने आज ही है हमें बताया। 

अब आप ही बताएं हुजूर,

इसमें मेरा क्या है कसूर। 

यह सुनकर उसका दिल भर आया,

हमे प्यार से गले लगाया और बोला,

बस कर यार, अब क्या हमे रुलाएगा,

हम तो पहले ही बीवी के रुलाए हैं,

हमने भी बीवी के गुल्लक से निकालकर,

आज ही बीस नोट बड़ी मुश्किल से बदलवाए हैं। 


मेरी मानो तो मोदी जी की बात मानो 

और कैसलेस हो जाओ,

यही टेक होम मेसेज याद कर लेना।

अब तो भिखारी भी कहते हैं कि 

भैया छुट्टे नही हैं, तो कोई बात नही,

ये लो क्यू आर कोड, आप पे टी एम कर देना। 


Thursday, November 16, 2023

कोरोना हो या हो ना...

 

एक जगह मास्क और सेनेटाइजर 

एक साथ बैठे थे,

दोनों उदास थे जाने किस टेंशन में ऐंठे थे। 

तभी मास्क बोला, 

यार ये कैसी ज़लालत हो गई है, 

अपनी तो एक सेवानिवृत कर्मचारी जैसी 

हालत हो गई है।

अब ना कोई हमें पूछता है, ना मुंह लगाता है,

ना कोई पार्टी या शादी में साथ लेकर जाता है। 

जब अपनी गर्ज थी 

तब मुंह पर लपेटना मंजूर था,

अब मतलब निकल गया तो 

हमारी ओर कोई नहीं ताकता है। 

इस खुदगर्ज इंसान को यही समझाना है,

कि कोई दूसरा आया तो फिर हमे ही मुंह लगाना है। 


सेनेटाइजर बोला,

अब हमे भी कोई हाथ नहीं लगाता है, 

जाने कैसे काम चलाता है। 

जब कोरोना से डरता था, 

तब दिन में पचास बार हाथ मिलाता था। 

पिंक हैंड रब से हैंड्स रब कर कर के

हैंड्स भी पिंक हो जाते थे,

घर में रहें या बाहर या जाएं दफ्तर

हमे जेब में बिठाकर साथ ले जाते थे। 

अब कोई हाथ तक नहीं लगाता,

ये बेरुखा व्यवहार हमें बिलकुल नहीं भाता। 


तभी वहां पर चलता हुआ 

ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर आ गया,

उन दोनों की बातें सुनकर सकपका गया।

बोला, हमें तो विदेशी भारतीयों ने 

बड़े प्रेम से समझाया था,

देश प्रेम में पड़कर 

समाज सेवा के लिए देश भिजवाया था।

पर जब से आए हैं, बंद डिब्बों में कैद पड़े हैं,

अब तो अपना भी सांस घुटने लगा है,

क्योंकि हमारे चेहरे पर धूल के अंबार चढ़े हैं। 


लगता है इंसान की तो आंखें ही बंद है,

या फिर कलयुगी इंसान की बुद्धि जरा मंद है। 

हरे भरे पेड़ों से भरे जंगलों को छांट रहा है,

नादान ये भी नहीं जानता कि

जिस डाल पर बैठा है, उसी को काट रहा है। 


माना कि मास्क और सेनेटाइजर की तरह 

हम प्रिवेंटिव नहीं, क्यूरेटिव हैं,

आम जन नहीं केवल रोगियों के लिए इफेक्टिव हैं।

किंतु गर बचाव पर नहीं दिया ध्यान, तो ए इंसान,

निरोग कोई नही होगा, सब रोगी हो जायेंगे,

तब हम ऑक्सीजन कंसेंट्रेटर ही याद आयेंगे। 


इसीलिए कहते हैं भैया, कोरोना हो या हो ना,

सेनेटाइजर का करो सदा इस्तेमाल 

और मुंह पर मास्क लगाओ,

पर्यावरण की रक्षा करो और पेड़ों को कटने से बचाओ। 

फिर ना कोरोना का रोना होगा 

और ऑक्सीजन भी मिलेगी pure,

आखिर डॉक्टर्स सच ही तो कहते हैं,  

prevention is better than cure....


Monday, October 30, 2023

ये पैबंद वाली जींस...


अपनी तो जैसे तैसे लाला 

कट रही थी पाजामा पहन पट्टे वाला। 

एक दिन शहर ने सिखला दिया पैंट पहनना,

फिर लंबे बाल और बैलबॉटम में

पता नहीं चलता था कि बंदा भाई है या बहना। 


फिर बदल बदल कर पैंट के आकार,

जब चैन न मिला तो शुरू हुआ जींस का व्यापार।

पर नई जींस शहरी लोगों को पसंद नहीं आई,

तो करने लगे सड़क पर रगड़ रगड़ कर घिसाई। 

आखिर मेहनत मजदूरी की ही तो थी ये निशानी

ऐशो आराम की जिंदगी में डिस्ट्रेस की कहानी। 


कहते हैं नया तो नौ दिन ही रहता है,

फैशन वर्ल्ड भी बस इसीलिए बेचैन रहता है। 

जब धूप संग सर्द हवा पानी भी प्रवेश पाने लगे,

तो लोग डेमेज कंट्रोल के नए तरीके आजमाने लगे।

नए तरीके से फैशन में थोड़ा काम बढ़ गया है,

अब फटी जींस के छेद पर पैबंद चढ़ गया है। 


फैशन भले ही नया है पर तकनीक पुरानी है,

इसकी असली जन्मदाता तो हमारी दादी नानी है। 

साठ साल पहले की महिलाएं कुशल रफूगर होती थीं,

वे अनपढ़ पर दूरदृष्टि वाली डिजाइनर होती थीं। 

जिस पैबंद वाली जींस ने फैशन को नया मोड़ दिया है,

वो हमने गांव में पचास साल पहले करके छोड़ दिया है। 


Wednesday, October 18, 2023

प्रस्थान


ढलती उम्र में हम कैसा कहर ढाने लगे हैं,

पुरानी पत्नी संग नया घर बसाने लगे हैं ।


उम्र तो है वन की ओर प्रस्थान करने की,

उपवन में कोयल संग दिल बहलाने लगे हैं। 


ना जग का लिहाज़ रहा ना उम्र की फिक्र,

कुटिया की जगह कोठियां बनाने लगे हैं। 


मकान है बड़ा और घर में नहीं कोई नौकर,

आधा दिन हम रसोईघर में बिताने लगे हैं। 


नहीं कोई संगी साथी, रहते हैं दिन भर अकेले,

मानो सूनी गलियों में चौकीदारा निभाने लगे हैं। 


ज़िंदगी भर जीते रहे ईमानदारी की ज़िंदगी,

अब पड़ोसी के अमरूद देख ललचाने लगे हैं। 


उम्र तो दिखाई देती है योगी बन जाने की,

भोगी बनकर ऐश्वर्य संसाधन जुटाने लगे हैं। 


ज़िंदगी भर रहे दिल्ली के हरियाणवी बन कर,

अब हरियाणा के हरियाणवी कहलाने लगे हैं। 


दो कश्तियों में पांव रख कर घूम रहे हैं हम,

यहां वहां दो दो जगह रिश्ता निभाने लगे हैं। 


मकान हों अनेक भले ही पर बीवी तो एक भली,

बस यही समझने और सब को समझाने लगे हैं। 











Wednesday, August 2, 2023

यमुना की बाढ़...

 यमुना के प्रचंड बहाव को दिल्ली सह नहीं पाती,

फितरत है इसकी, इसलिए बिन बहे रह नहीं पाती।


प्रकृति जब रौद्र रूप धारण कर लेती है,

तब यह आकस्मिक भार सह नहीं पाती। 


पथ में जब आती हैं बाधाएं इंसान के कुकर्मों की,

प्रवृति अनुसार स्वाभाविक रूप से बह नहीं पाती। 


निर्जीव नहीं है, न निर्बल है और न ही है बेजुबान,

मां है, ममतामई है, जुबां से कुछ कह नहीं पाती। 


किंतु जब मानव प्रलोभन वार करता है अस्मत पर,

तब तुरंत चंडी रूप धारण किए बिना रह नहीं पाती। 


ये जमना है जीवनदायिनी है, मिलकर करो विचार,

सरल है सहिष्णु है परंतु हद से आगे सह नहीं पाती।


Saturday, June 3, 2023

अफ़सर से बने नौकर ...

 एक शोध पत्र से पता चला है कि,

किचन में काम करने से वज़न घट जाता है।


हम भी लॉकडाउन में पतले कैसे हुए,

ये राज़ हमें अब जाकर समझ में आता है।


पत्नी तो चली जाती है रोज अस्पताल,

अपना आधा दिन किचन में गुजर जाता है। 


फिर भी सुननी पड़ती है यही शिकायत,

कि कोई काम ठीक से करना ही नहीं आता है !


दफ़्तर में रहे हों कितने ही बड़े अफ़सर,

घर में अफ़सर भी नौकर बन कर रह जाता है।  😅

Tuesday, May 30, 2023

वक्त वक्त की बात है ...

 यूं ही जिंदगी बिता दी काम करते करते,

दुनिया आगे निकल गई आहिस्ते आहिस्ते।


हम पूर्वी दिल्ली में अटके रहे जीवन भर,

गुड़गांव पॉश शहर बन गया देखते देखते। 


मैट्रो का शानदार सफ़र करती है युवा पीढ़ी,

हम डी टी सी सफ़र करते रहे लटके लटके। 


एंबियंस मॉल का एम्बिएंस दिखे है शानदार,

हम आई एन ए की गलियों में रहे भटकते।


युवा ही युवा हैं चमकते मॉल्स की दुनिया में,

हम तो एवै ही देखो बूढ़े हो गए घूमते घूमते। 


ज़रूरत की चीजें खरीदते थे जरूरत पड़ने पर,

पर अब बीवी थका देती है शॉपिंग करते करते। 


--- सीधे गुरुग्राम के एंबियंस मॉल से।

Monday, March 13, 2023

मॉडर्न भिखारी --

 

सामने आया एक युवा भिखारी , 

बोला, बाबूजी बहुत बड़ी है लाचारी।  

ज़रा मेहरबानी कीजिये, 

बहुत भूख लगी है , 

खाने को कुछ पैसे दे दीजिये।  


मैंने कहा, हट्टे कट्टे हो ,

कुछ काम क्यों नहीं करते हो।  

वैसे भी मेरे पास छुट्टे नहीं हैं।  

वो बोला, चिंता मत कीजिए,

मैं कैशलेस काम करता हूँ, 

आप पेटीएम या गूगल पे कर दीजिए।   


Monday, January 23, 2023

सर्दियों के दिन ---

सर्दियों के दिन, हैं बहुत कठिन,

कास्तकार लोगों के जीने के लिए।


धोबी का लड़का रोज पूछता है,

कपड़े हैं क्या प्रैस करने के लिए।


कपड़े भी ऐसे हैं कि फटते ही नहीं,

दर्जी भी पूछे, हैं क्या सीने के लिए।


ना कोला, ना शरबत, ना ही ठंडाई,

एक चाय ही काफ़ी है पीने के लिए।


बैठे बैठे खाते रहते हैं मूंगफली रेवड़ी,

कोई काम नहीं होता पसीने के लिए।


सर्दियों का मौसम होता स्वस्थ मौसम, पर

कामवालों के लाले पड़े रहते जीने के लिए।

All reactions:
Devendra Kumar Pandey, Satish Chetal and 15 others

Saturday, January 14, 2023

मित्रो, दोस्तो, यारो , 

ना न्यू ईयर, ना ओल्ड ईयर ,

ना व्हिस्की, ना बीयर।  

कभी तो पुकारो ।    


ना मिठाई, ना बधाई, 

ना शादी, ना सगाई , 

बस कम्बल और रज़ाई, 

कमी को सुधारो ।  


ना डेंगू , ना कोरोना , 

ना मास्क, ना हाथ धोना, 

फिर काहे का रोना , 

कभी तो कहीं पधारो।   


मित्रो, दोस्तों, यारो, 

कभी तो पुकारो।