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Monday, April 1, 2024

आधुनिकता की दौड़...

 जिनके पास नहीं है खाने को दाने,

वे चले हैं बच्चों की फौज बनाने। 

और जिनके पास माल ही माल है,

वो बच्चों के मामले में बिलकुल कंगाल हैं। 


कहीं पर नहीं है खाने के निवाले,

तो कहीं पर नहीं हैं खाने वाले। 

अमीर देश के अमीर लोग बच्चे नहीं जनते,

गरीब देश के गरीब लोग जनने से नहीं थमते। 


विश्व का संतुलन बिगड़ता जा रहा है,

इसीलिए इंसान का सकून छिनता जा रहा है। 


आज के युवा मस्ती में इस कदर झूल गए हैं,

लगता है जैसे बच्चे पैदा करना ही भूल गए है। 

फिर पचास की उम्र में नैप्पी बदलते नज़र आते हैं,

बच्चे के पिता हैं या दादा, ये हम समझ नही पाते हैं। 


आधुनिकता की दौड़ में अकेले रहना मज़बूरी है,

अकेले ना रहें, इसलिए बच्चे पैदा करना जरूरी है। 

2 comments:

  1. आज के मौजूदा दौर पर सुंदर कविता।

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