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Thursday, July 28, 2016

मौसम की मार , डेंगू बुखार :


जब काली घटायें छाती हैं ,
और टिप टिप बारिश आती है।  

मौसम भीगा भीगा होता है ,
सब गीला गीला सा होता है।

जब भोर के उजाले होते हैं ,
कुछ नन्हे शेर निकलते हैं।  

जो नंगे हाथों की चमड़ी में ,
अपना तीखा डंक घुसेड़ते हैं।

फिर वो खून तुम्हारा पीते हैं ,
और गिफ्ट में वायरस देते हैं।

जब ये रक्त का दौरा करता है ,
तब सारा बदन कंपकपाता है।

आप बदन दर्द से कराहते हैं ,
इसी को डेंगू बुखार कहते हैं।    
 
ना कोई दुआ काम आती है ,
ना दवा ही असर दिखाती है।

ना खाने को मन करता है ,
दिन भर पसीना टपकता है।

फिर सारा फैट झड़ जाता है ,
जब डेंगू बुखार चढ़ जाता है।

मत होने दो जमा पानी को ,
यूज करो मच्छरदानी को ।

फुल स्लीव्ज के पहनो कपडे ,
फिर तो डेंगू कभी ना पकडे।

बस एक गोली पैरासिटामोल ,
और पीओ पानी नीम्बू घोल।

ले लो एक सप्ताह की छुट्टी ,
तभी हो पायेगी डेंगू से कुट्टी।  
   

Monday, July 18, 2016

सावन की फुहार और वायरल फीवर की मार ---


सावन का महीना यूँ तो बड़ा रोमांटिक होता है , सभी बारिश का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से कर रहे होते हैं। छोटे छोटे जीव जंतुओं से लेकर , मेढक , मयूर यहाँ तक कि इंसानों का भी मन हिलोरें लेने लगता है। लेकिन दुनिया के सबसे सूक्ष्म जीव वायरस भी इन दिनों बहुत सक्रीय होकर मनुष्यों पर हल्ला बोलकर हमला कर देते हैं।  नतीजा होता है वायरल बुखार जिसका न कोई सर होता है न पैर , फिर भी सर से लेकर पैर तक आपके बदन को तोड़ मरोड़ कर , धोकर , निचोड़ डालता है। वैसे तो यह बुखार एक दिन में भी उतर सकता है लेकिन सब वायरस की मर्ज़ी पर निर्भर करता है कि उसे आपसे कितना प्यार है। वह चाहे तो सन्डे से सन्डे तक भी आपका मेहमान बना रहकर मुफ्त की रोटियां तोड़ सकता है , जबकि आप पूरे सप्ताह एक रोटी भी नहीं खा पाते।

इसकी एक खासियत यह भी है कि बुखार देने वाला वायरस डॉक्टर्स से भी नहीं डरता। इसलिए यह न जाने कितने डॉक्टर्स की इज़्ज़त दांव पर लगा देता है क्योंकि जब रोगी का बुखार उतरेगा ही नहीं तो डॉक्टर तो हो गया ना नाकाम। यदि एक सप्ताह चल गया तो आप कम से कम तीन डॉक्टर तो बदल ही लेंगे।  आखिर फ़तेह उस डॉक्टर की  होती है जो सातवें दिन देखता है। उस डॉक्टर की दवा तो जैसे रामबाण साबित होती है। हालाँकि यह घटना क्रम यूँ ही चलता रहता है और कभी एक डॉक्टर का नाम तो कभी दूसरे का नाम रौशन होता रहता है।

अब नज़र डालते हैं वायरस की कारिस्तानियों पर।  वायरस एक बार नाक या गले में आया नहीं कि महबूब की खुशबू की तरह सांसों में समा जाता है। फिर खांसी खुर्रा , नज़ला जुकाम , सर दर्द , बदन दर्द  और भी न जाने क्या क्या शारीरिक प्रतिक्रियाएं होने लगती हैं जो आपके बदन को हल्दीघाटी का मैदान समझ लेती हैं। वायरस की प्रजनन क्षमता भी ऐसी होती है कि हमारे देशवासियों की प्रजनन क्षमता भी शरमा जाये। २४ घंटे में एक से बढ़कर एक मिलियन होना इनका बाएं हाथ का खेल है। फिर रक्त स्नान करते हुए ये वायरस जब शरीर के हर अंग में प्रवेश करते हैं तब पूरा शरीर कंपकपाने लगता है , दांत किटकिटा कर तबला बजाते हैं , नाक सीटी बजाकर आने वाले आहार रहित स्टेशन के आने की सूचना देने लगते हैं।

एक सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें डॉक्टर्स का भी कोई अस्त्र शस्त्र काम नहीं आता है।  बल्कि पैरासिटामोल के अलावा कोई और यंत्र है तो वो है सादे पानी में कपडा भिगोकर सारे शरीर को हौले हौले से सहलाते हुए पुचकारना। वायरस बस इसी अर्चना को पसंद करता है।  यदि गलती से भी आपने कोई और बाण चलाने की कोशिश की तो ये आपके खून को पानी पानी कर सकता है जिससे लाले की जान को ही लाले पड़ सकते हैं।  

लेकिन कहते हैं कि हर बुराई में भी अच्छाई होती है। एक बार वायरल फीवर आपको हो जाये , फिर चाहे वो एक दिन रहे या एक सप्ताह , अन्जाने में आपके कई काम कर जाता है। आप जो वर्षों से सोचते रहते हैं कि एक दिन डाईटिंग शुरू करेंगे , लेकिन निष्क्रिय रहते हुए खा खा कर वेट और पेट दोनों बढ़ा लेते हैं , वायरल होने पर आपके तन और मन दोनों की सारी एक्स्ट्रा चर्बी झड़ जाती है और आप तन से स्लिम, कोमल और मन से निर्मल सा महसूस करते हैं। अब यदि ७ दिन तक आप सिर्फ पानी , शरबत या सूप ही लेते रहेंगे तो आ गई ना आपको आर्ट ऑफ़ लिविंग।

कभी कभी हमें लगता था कि वायरस और डॉक्टर का रिश्ता थोड़ा सा अलग होता है।  इसलिए कम से कम एक डॉक्टर को तो स्टाफ समझकर ही सही , कुछ कन्सेशन मिलता होगा।  लेकिन इस महंगाई के ज़माने में अब वायरस ने डॉक्टर्स को ये रियायत देनी बंद कर दी है। ज़ाहिर है , अब वायरस ने डॉक्टर्स से डरना बंद कर दिया है।  वैसे भी ये कौन से बच्चे हैं जो सफ़ेद कोट या डॉक्टर की सूई से डर जायेंगे।      



   

Sunday, July 3, 2016

भारत पाक सुचेतगढ़ सीमा दर्शन -- एक विशिष्ठ अनुभूति।


जम्मू से करीब ३० -३५ किलोमीटर दूर सियालकोट पाकिस्तान को जाने वाली सड़क पर बना है सुचेतगढ़ बॉर्डर। यहाँ से सियालकोट मात्र ११ किलोमीटर दूर है। सुचेतगढ़ भारतीय सीमा में हमारा एक गांव है जो बिलकुल सीमा से लगा हुआ है और सैनिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि जब भी भारत पाकिस्तान में इस सीमा पर कोई तनाव होता है तो सबसे पहले गोलाबारी इसी गांव पर होती है। यहाँ प्रतिदिन सैंकड़ों सैलानी बॉर्डर के दर्शन करने के लिए जम्मू से आते हैं। सप्ताहंत पर तो ५०० से १००० की भीड़ भी हो जाती है।  जबकि पाकिस्तान का शहर सियालकोट मात्र ११ किलोमीटर है , फिर भी कोई इक्का दुक्का ही यहाँ आता है। ज़ाहिर है , हमारे देश में लोग टूरिज्म का मज़ा लेते हैं जबकि पाकिस्तान के लोग रोजी रोटी कमाने में ही लगे रहते होंगे।    




 इस बॉर्डर की सुरक्षा सीमा सुरक्षा बल को सौंपी गई है।  सर्दी हो या गर्मी या बरसात , हमारे जवान बड़ी मुस्तैदी से सीमाओं की रक्षा में तैनात रहते हैं। साथ ही पब्लिक के लिए भी बॉर्डर के दर्शन कराने का काम बखूबी करते हैं।     




बॉर्डर से करीब १०० मीटर पहले यह प्रवेश द्वार बनाया गया है।  इसके दोनों ओर एक ऊंची मिट्टी की दीवार सी है जिसके आगे पानी से भरी खाई है।  दीवार से पहले तारों की ऊंची दोहरी बाड़ लगाई गई है ताकि कोई अवैध रूप से बॉर्डर पार न कर सके। हमारे सिपाही दिन रात सीमा के साथ साथ कवायद करते रहते हैं।




सड़क पर बैरियर के नीचे दो समानांतर रेखाओं के बीच और दो तीरों के निशान के बीच जो रेखा नज़र आ रही है , वही सीमा रेखा है।  इसके बाएं वाला पिलर पाकिस्तान में और दायीं ओर एक एक पिलर भारत और पाक की सीमा में पड़ते हैं। सीमा रेखा बैरियर से करीब एक डेढ़ फुट पाकिस्तान की ओर है।  यानि उस ओर से कोई भी व्यक्ति यदि बैरियर तक आता है तो वो भारतीय ज़मीन पर कदम रखता है , जबकि भारतीय ओर से कोई भी बैरियर को पार नहीं करता।

दोनों ओर एक एक गार्ड रूम बने हैं।  बाएं वाला कक्ष हमारा है जिस पर इंग्लिश में लिखा है -- वी आर प्राउड टू बी इंडियन।  दायीं ओर पाकिस्तानी कक्ष पर लिखा है -- मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहाँ हमारा।  सोच अपनी अपनी।  दोनों पर अपने अपने देश के झंडे पेंट किये गए हैं। दायीं ओर ही दोनों देशों की अपनी अपनी सीमा में एक एक चबूतरा बना है जहाँ से जब भी आवश्यकता होती है , दोनों देशों के सैनिक अधिकारी खड़े होकर वार्तालाप या आपसी समझौता करते हैं।



यदि बैरियर से अपने देश की ओर देखें तो दूर प्रवेश द्वार नज़र आता है।  करीब ५० कदम दूर तारों की बाड़ लगी है।  आम तौर पर आगुंतकों को यहीं तक आने दिया जाता है।  लेकिन उस दिन लगभग खाली होने से और विशिष्ठ मेहमान के दर्ज़े से हमें बैरियर तक ले जाया गया और बहुत अच्छे से सीमा के बारे में बताया गया। दरअसल यहाँ आकर एक बड़ी अजीब सी फीलिंग आती है जिसमे देशभक्ति की भावना और मन में दुश्मन के प्रति शंका और संदेह की मिली जुली प्रतिक्रिया आने की सम्भावना रहती है।  इसलिए विशेषकर जब दोनों ओर से आगुंतक आमने सामने होते हैं तब किसी अनहोनी का ध्यान रखना पड़ता है।  इसलिए अधिकतर  लोगों को पीछे ही रोक दिया जाता है।  





हमसे पहले भारतियों का एक ७-८ हाई फाई लोगों का समूह था जिन्हे वहीँ से वापस कर दिया गया।  उधर पाकिस्तान से भी कोई एक युवा नेता विशिष्ठ मेहमान के रूप में आया हुआ था।  सच मानिये , किसी ने भी एक दूसरे से नज़र मिलाने का प्रयास नहीं किया। जब तक वो चले नहीं गए , एक अजीब सी ख़ामोशी वातावरण में छाई रही। उनके जाने के बाद हमने जमकर फोटोग्राफी की। हमारे साथ सीमा सुरक्षा बल के एक सब इन्स्पेक्टर गाइड के रूप में थे जिन्होंने बहुत अच्छे तरीके से सब जानकारी दी।     



सड़क के दोनों ओर तारों की बाड़ लगी है।  दोनों और खेत हैं जिनमे किसान खेती करते हैं।  वास्तविक सीमा एक काल्पनिक रेखा के रूप में है जिसकी पहचान हर १०० मीटर पर गाड़े गए और नम्बर किये गए पिल्लर्स से होती है।  पिल्लर्स के बीच में कोई निशानदेही नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार सीमा के 100 मीटर तक किसी भी निर्माण कार्य की अनुमति नहीं है।  इसलिए सीमा भी एक काल्पनिक रेखा ही होती है। एक अजीब बात यह लगी कि पाकिस्तान साइड के खेत जोते गए थे जबकि हमारे खेत यूँ ही पड़े थे। हालाँकि जब भी किसान खेती बाड़ी का काम करते होंगे , तब निश्चित ही दोनों आमने सामने ही होते होंगे। दूसरी अजीब बात यह भी थी कि सारा इंतज़ाम हमारी साइड ही था जबकि उनकी ओर ऐसा कोई ताम झाम नहीं था। ज़ाहिर है , सीमा पार गुसपैठ की चिंता हमें ही सताती है। भूखे नंगों को किस बात की फ़िक्र !       



यदि गौर से देखें तो पाएंगे कि मिट्टी की दीवार में जगह जगह बंकर बनाए गए हैं जहाँ से विपक्ष की गतिविधियों पर नज़र रखी जा सकती है। ये बंकर बहुत मोटी दीवारों से बने होते हैं जिनपर छोटे मोटे गोले का कोई असर नहीं होता।  यहाँ से सिपाही दुश्मन पर गोली भी चला सकते हैं और शांति के समय आराम करने का भी प्रबंध होता है।

सीमा सुरक्षा का काम वास्तव में बड़ा साहस , धैर्य और समझ बूझ का काम है। यहाँ कब क्या हो जाये , कोई खबर नहीं होती। हालाँकि संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा समय समय पर प्रेक्षक दल निरीक्षण के लिए भेजा जाता है, फिर भी तस्करी और आतंकवाद की समस्या को ध्यान में रखते हुए हमारे जवानों को सदैव मुस्तैद रहना पड़ता है।
कुल मिलाकर भारत पाकिस्तान बॉर्डर यात्रा एक विशेष अनुभव रहा जिसमे इतिहास और भूगोल को ध्यान में रखते हुए इंसानी रिश्तों पर रोमांच और भय मिश्रित गुदगुदाने वाली अनुभूति रही। अंत में सीमा सुरक्षा बल के सब इन्स्पेक्टर श्री राकेश धोबल जिन्होंने भयंकर गर्मी में बिजली न होते हुए भी हमारा विशेष ध्यान रखते हुए न सिर्फ हमें अच्छी तरह से बॉर्डर के दर्शन कराये , बल्कि सम्पूर्ण जानकारी देते हुए चाय पानी से भी हमारी आवभगत की, का आभार व्यक्त करते हैं। जवानों को शत शत नमन।