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Wednesday, April 17, 2024

छोटे प्रकाशक की व्यथा ...

 बुक स्टॉल पर रखी अपनी पुस्तक जब दिखी,

तो हमने प्रकाशक महोदय से पूछा, कोई बिकी ?


वो बोला, सर स्टॉल पर लोग तो बहुत आते हैं,

परंतु बस आप जैसे लेखक ही आते हैं। 


वे आते हैं, अपनी खुद की किताब उठाते हैं,

फोटो खिंचवाते हैं, और चले जाते हैं। 


भई सारे पाठक तो बड़े प्रकाशकों ने ही हैं निगले, 

एक दिन एक पाठक जी आए, पर वे भी लेखक ही निकले। 


रखे रखे बिन बांटे मिठाइयां कसैली हो गईं हैं,

विमोचन करते करते किताबें भी मैली हो गईं हैं। 


पुस्तक मेले में छोटे प्रकाशक की बड़ी दुर्गति होती है, 

अज़ी हम से ज्यादा तो चाय वाले की बिक्री होती है। 


सोचता हूं अब अगले साल मेले में कतई नहीं आऊंगा,

और आया भी तो बुक स्टॉल नही, टी स्टॉल लगाऊंगा। 


हमने कहा, भैया बड़ी मछली हमेशा छोटी को निगलती है,

पर खुद को छोटी मछली समझना तुम्हारी भारी गलती है। 


अरे छोटे प्रकाशक ही साहित्य की असली सेवा करते हैं,

उन्हीं के सहारे तो हम जैसे नौसिखिए भी लेखक बनते हैं। 


देखना इस साल कमल का फूल देश में फिर खिलेगा,

भैया कर्म करते जाओ, एक दिन फल जरूर मिलेगा। 


3 comments:

  1. देखना इस साल कीचड भी उसी तरह बना रहेगा | सटीक |

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  2. फूल खिलते रहें . चंपा, चमेली, मोगरा, गुलाब...रहिमन देख बरेन कूं , लघु न दीजिये डारि ..... सबकी अपनी जगह है...

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