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Monday, March 18, 2024

अभी बाकी है ....

 कारवां गुज़र गया, पर गुबार अभी बाकी है। 

मुर्झाने लगे हैं चमन, पर बहार अभी बाकी है।


अब ना मुंह में दांत हैं, बिनाई भी है कमज़ोर,

बूढ़ा मत समझो जानम, खुमार अभी बाकी है। 


गिरे सर के बाल सर के बल, निकला चांद बेदाग,

सूखी फसल बालों की, खरपतवार अभी बाकी हैं।


इश्क हम बहुत करते रहे उनसे यूं तो जिंदगी भर,

उम्र निकल गई पर, प्यार का इजहार अभी बाकी है। 


ताउम्र करते रहे इंतजार मन में यही उम्मीद लिए,

कि इज़हार हो ना हो, पर इनकार अभी बाकी है। 


आधुनिकता की होड़ में दौड़ रहा है सारा संसार,

खुशकिस्मत हैं हम, देश में संस्कार अभी बाकी है। 


बदल लिया है यूं तो हमने भी आशियां अपना,

कहने को दूर भले है, पर प्यार अभी बाकी है। 


Monday, March 11, 2024

विदेश...

 

अज़ीब यहां के लोग हैं, अजीबो गरीब यहां का हाल है,

ना किसी की जेब में बटुआ, ना कोई रखता नकद माल है। 


प्लास्टिक कार्ड या स्मार्ट फोन से करते हैं सारी खरीदारी,

और उसी से होती है है, बस, स्ट्रीट कार या ट्रेन की सवारी। 


इन्हें देख हम भी प्रेस्टो और क्रेडिट कार्ड से लैस हो गए हैं,

और विदेश आ कर ही सही, पूर्णतया कैशलैस हो गए हैं।  


यहां ना किसी के हाथ में पहनी घड़ी दिखती है, 

ना किसी के गले में सोने की चेन पड़ी दिखती है। 


ना कोई शर्ट पैंट पहनता है ना कोट ना सूट ना टाई,

ना घर में बीवी होती है, ना आती कामवाली बाई। 


खाना खुद नहीं बनाते हैं, रेस्टोरेंट का जंक फूड खाते हैं,

इसीलिए यहां स्टोर्स विटामिंस की  गोलियों से भरे पाते हैं।


ना कोई बैक पॉकेट में कंघी रखता है ना जेब में रूमाल,

ना घर में बाल बच्चे होते हैं, ना सिर पर बचे होते हैं बाल। 


बच्चा कोई पैदा नहीं करता, पर घर में कुत्ता सब पालते हैं,

बेघर इंसान भी सामान के साथ, पैट जरूर संभालते हैं। 


यहां ना कोई किसी से बात करता है ना कोई पूछता हाल,

ना कोई हमें अंकल कहता, ना कोई बुलाता डॉक्टर दराल। 


बड़ा कन्फ्यूजन है, अजीब हमारी हालत हो गई है,

ऐसा लगता है जैसे हमारी तो पहचान ही खो गई है। 


यहां अपना परिचय देना भी लगता है एक काम,

ज़रा ज़रा से बच्चे भी कहते हैं, नाम बताओ नाम। 


लिफ्ट में सब सर झुकाए रहते हैं, कोई मुंह नहीं खोलता,

सॉरी और थैंक यू के सिवा, तीसरा लफ़्ज़ नहीं बोलता। 


ना कोई फोन करता, ना है मिलने का कोई अरेंजमेंट,

बात करने के लिए भी पहले लेना पड़ता है अपॉइंटमेंट।


किंतु गर हो कोई पार्टी तो सब नॉन स्टॉप बतियाते हैं,

ये और बात है कि हम वो चपड़ चपड़ समझ नहीं पाते हैं। 


यहां बूंद बूंद कीमती है, पानी है लोगों की जिंदगानी,

वहां वो झीलों का शहर है, चारों ओर है पानी ही पानी।


नलों में भी पीने का साफ पानी चौबीस घंटे रहता है,

टैप खोलो तो गर्म पानी बड़ी हाई स्पीड से बहता है। 


सर्दी का ये हाल है कि बाहर तापमान माइनस में होता है,

घर के अंदर पंखा ना चलाओ तो गर्मी से पसीना बहता है। 


हम तो अपने घर के सारे कपड़े पहनकर ही घर छोड़ते हैं, 

वहां के युवा - तीन डिग्री में भी निकर पहन कर दौड़ते हैं। 


एक तो सर्दी ने घर में कैद करके झमेला कर दिया है,

उस पर मोबाइल ने सबको भीड़ में अकेला कर दिया है। 


जाने क्या ढूंढती रहती हैं नजरें, जो सर झुकाए रहते हैं,

चलते फिरते, उठते बैठते, बस मोबाइल में समाए रहते हैं। 


चमक धमक है, सुख साधन हैं, वहां तकनीकि महारत है,

पर जहां अपनों का प्यार है, वह केवल अपना भारत है। 



Sunday, January 28, 2024

ये सिक्योरिटी चेक वाले...

 हर बार निकल जाती थी, इस बार नहीं निकली,

अटक गई। 

वो गोरी गोरी, लंबी सी जर्मन छोरी, हमारी शेविंग क्रीम झटक गई। 

किफायत का सौदा था, उसमे डिस्काउंट का 33% माल ज्यादा था,

फिर पुराने को छोड़कर, हमने केबिन बैग भी नया नया खरीदा था। 

सुंदर सुघड़ था और उसका डिजाइन भी निराला था,

बस इसी नए डिजाइन ने हमें दुविधा में डाला था। 


यूरोप में सिक्योरिटी चेक में बड़ी मारामारी सहन करनी पड़ती है,

घड़ी, पर्स ,मोबाइल , जूते और बेल्ट तक भी उतारनी पड़ती  है। 

फिर हाथ फैलाकर वे यहां वहां जाने कहां कहां से हाथ निकालते हैं,

बिना बेल्ट के लोग बड़ी मुश्किल से खिसकती पैंट को संभालते हैं। 


इधर सिक्योरिटी जेनटलमेन की जांच खत्म हुई तो हमने खुद को संभाला,

जैसे तैसे ओरिजनल रूप में आए और शर्ट को पेंट में डाला। 


फिर शुरू हुई बैग की तलाश, जब बैग कहीं नज़र नही आया,

और एक सरदारजी को हमे हमारे बैग जैसा बैग थामे पाया। 


तो हमने कहा पा जी कित्थे चले, साड्डा बैग ते छड़ते जाओ,

वो बोला ओए केड़ा बैग, ए ते साड्डे पिंड वाला बैग है बादशाहो। 

तभी सिक्योरिटी वाली लड़की एक बैग को अल्टी पलटी मारती दी दिखाई,

हमने बैग को पहचाना तो सोचा लगता है कोई नई मुसीबत आई। 

हमने डरते डरते कहा मैडम क्या बैग में कोई फजीहत  हो गई,

वो बोली आपकी तो नहीं, परंतु हमारी ज़रूर मुसीबत हो गई। 

डिटेक्टर का सेंसर बार बार आपके बैग में प्रॉब्लम दिखा रहा है, 

पर प्रॉब्लम क्या है कहां है, ये बिलकुल समझ में नहीं आ रहा है। 

आखिर उसके गोरे पर निर्भाव चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई,

जब कपड़ों के बीच हमारी शेविंग क्रीम उसके हाथ आ गई। 


बोली इसका वजन सवा सौ ग्राम है, ये प्लेन में नहीं जा पाएगा,

हम सोचने लगे कि 25 ग्राम एक्स्ट्रा से प्लेन कैसे भारी हो जाएगा। 


हिम्मत कर हमने कहा मैडम, 25 ग्राम को निकाल दें तो चलेगा,

वो बोली निकाल कर तो देखो, अभी 100 यूरो का चालान कटेगा। 


और इस तरह हमारी नई शेविंग क्रीम हमारे देखते देखते फिसल गई,

उस जर्मन छोरी के हाथों हमारी शेविंग क्रीम हमारे हाथों से निकल गई। 


Saturday, January 20, 2024

सर्दियों के दिन ...

 सर्दियों के दिन, हैं बहुत कठिन,

कास्तकार लोगों के जीने के लिए।


धोबी का लड़का रोज पूछता है,

कपड़े हैं क्या प्रैस करने के लिए।


कपड़े भी ऐसे हैं कि फटते ही नहीं,

दर्जी भी पूछे, हैं क्या सीने के लिए। 


ना कोला, ना शरबत, ना ही ठंडाई, 

एक चाय ही काफ़ी है पीने के लिए। 


बैठे बैठे खाते रहते हैं मूंगफली रेवड़ी,

कोई काम नहीं होता पसीने के लिए। 


सर्दियों का मौसम होता स्वस्थ मौसम, पर 

कामवालों के लाले पड़े रहते जीने के लिए।

Friday, January 12, 2024

ग्लोबल वार्मिंग और बदलता मौसम...

 दिल्ली में दिसंबर गर्म है, और शिमला भी सूखा है,

बिना स्नोफॉल कनाडा का, क्रिसमस भी रूखा है। 


कोहरा है, धुंध है, आसमान का रंग भी गहरा है,

घर बैठे हैं, बाहर धीमी धीमी बारिश का पहरा है। 


बारिश की फुहारें भी अदृश्य है, दिखाई नहीं दे रहीं,

बूंदें नवजात शिशु के नर्म स्पर्श सा बस अहसास दे रहीं। 


झील का पानी शांत है, ना कोई बोट ना पानी की कलकल है,

सड़कें वीरान हैं, ना गाड़ियों का शोर है ना हवा में कोई हलचल है।


सुना है पहली बार दिसंबर बिना स्नोफॉल निकल रहा है,

एक चेतावनी है समझो तो, विश्व का मौसम बदल रहा है। 


पृथ्वी की सतह का तापमान हर साल बढ़ता जा रहा है,

लगता है जैसे इस प्लेनेट का अन्तकाल निकट आ रहा है। 


पता चला है पृथ्वी पर 1.3 मिलियन बिलियन मनुष्य रह सकते हैं,

यानि अभी हम और दो लाख गुणा लोगों का बोझ सह सकते हैं। 

किंतु वो जिंदगी भी क्या होगी जब चप्पे चप्पे पर जिंदगानी होगी,

प्राकृतिक संसाधन सब खत्म होंगे, आदिकाल सी कहानी होगी।  


आओ आपसी भेद भाव को भूलकर सब एक जुट हो जाएं,

सब मिलकर करें विचार और धरा को बेवक्त बर्बादी से बचाएं। 


Wednesday, January 3, 2024

विविधता में समानता ...

 अनेक देश, अनेक रेस, 

अनेक सूरतें हैं धरा पर।

पर एक ही मूल रूप है, 

इंसान का हर जगहां पर। 

अलग खान पान, रहन सहन, 

अलग हैं रीति रिवाज।

पर एक ही हैं प्रकृति के 

पांच तत्वों की आवाज़। 

सभी सोते हैं जागते हैं, 

खाते हैं, पीते हैं, 

अपनी अपनी जिंदगी जीते हैं। 

वही भावनाएं, वही संवेदनाएं,

वही गम, वही खुशियां। 

वही दर्द, वही चैन। 

सब कुछ एक जैसे ही तो दिखते हैं। 

फिर क्यों इंसान ने खुद को

बांट लिया है,

रंग, मजहब और सरहदों की दीवारों से। 

कुदरत नहीं करती कोई भेद भाव,

नहीं देखती देश, धर्म और रेस,

जब वो कहर बरसाती है।

फिर क्यों इंसान की फितरत 

कुदरत से टकराती है। 

ये हसीन फिजाएं कुदरत का तोहफ़ा है,

इसे व्यर्थ ना गवाएं,

इंसानियत को समझें, 

आपस में ना टकराएं। 

सब मिलकर पर्यावरण की करें रक्षा,

और विश्व को बेवक्त बर्बादी से बचाएं। 

यही हैं हमारी,

नव वर्ष की शुभकामनाएं। 



Wednesday, November 29, 2023

दो हज़ार का नोट....


एक दिन तो अपना सर चकराया

जब एक पैंट की पॉकेट में पड़ा,

दो हजार का एक नोट नजर आया।

गुलाबी गुलाबी करारा करारा

लग तो रहा था बड़ा प्यारा। 

पर जब ख्याल आया कि

इसे तो बंद हुए महीने हो गए,

फिर तो हम सर्दी में भी पसीने पसीने हो गए। 

सोचा ये लापरवाही हमसे हो गई कैसे,

पता नहीं पत्नी दबाकर बैठी होगी कितने ऐसे। 

आखिर पे टी एम के ज़माने में 

कैश कौन हैंडल करता है। 

ना कभी बैंक जाते हैं ना ए टी एम,

बस पे टी एम से ही चल रहा है गुज़ारा,

नोटों से तो कभी संपर्क ही नहीं होता हमारा। 


फिर एक दिन हिम्मत करके बैंक से पता लगाया

तो उन्होंने बताया,

कि अब तो आरबीआई ही आपकी मदद कर सकता है।

पर मुसीबत भी कहां अकेले आती है,

इस उम्र में श्रवण शक्ति भी साथ छोड़ जाती है। 

बस हड़बड़ी में हो गई गड़बड़ी,

और गड़बड़ी में RBI का CBI हो गया,

जिसे सुनकर हाथ पैर के साथ दिमाग भी सुन्न हो गया। 

सोचा क्या दो हजार का नोट इतना खोटा है,

ये तो गले ही पड़ गया, 

मानो ये नोट नहीं, अकबरी लोटा है। 


फिर ये सोचकर कि ये FBI तो नहीं,

अपनी ही सीबीआई है, हम पहुंच गए दफ्तर।

मन ही मन ऐंठे, दस घंटे बेंच पर रहे बैठे।

शाम को एक इंस्पेक्टर ने अंदर बुलाया,

हमे देख ठहाका लगाकर बोला,

ये पहला दागी है जो बिना बुलाए ही चला आया। 

लेकिन जब हमने पूरी बात समझाई

तो वो बोला, ये सीबीआई है सीबीआई।

यहां हम उनको बुलाते हैं,

जिनके पास एक नहीं, लाखों पकड़े जाते हैं। 

ये और बात है कि वो खुद चलकर नहीं आते हैं। 

आप आरबीआई जाइए,

और हां, ये दस नोट मेरे भी बदलवा लाइए। 


RBI के बाहर मिल गया एक दलाल,

बोला जनाब डॉ दराल,

नोट तो हम बदलवा देंगे, पर नोट के बदले नोट लेंगे।

फिर देखते देखते हुआ ऐसा हाल,

कि कई और आ गए दलाल

और लगने लगी बोली दो हजार के नोट की।

एक ने बोला एक हजार, दूसरा बोला बारा सौ,

तीसरे से तेरा सौ , चौथे ने चौदा सौ की जब दी ऑफर,

हम समझ गए सारा चक्कर।

और पहुंच गए सीधे उस खिड़की पर,

जहां एक बाबू बैठा था मोटा चश्मा लगाए।

हमने कहा, हाए।

RBI के बाबू ने पहले तो हमें घूरा,

फिर अपना काम छोड़कर अधूरा,

बोला, नोट बदलवाने की आपको कोई जल्दी नहीं थी,

अब तो ये साबित करना पड़ेगा कि 

इसमें आपकी कोई गलती नही थी। 

हमने अपना दिमाग लगाया 

और बहना बना कर उसे ये समझाया ।

कि नोट तो बीवी के पर्स में छुपा रह गया,

और उसने आज ही है हमें बताया। 

अब आप ही बताएं हुजूर,

इसमें मेरा क्या है कसूर। 

यह सुनकर उसका दिल भर आया,

हमे प्यार से गले लगाया और बोला,

बस कर यार, अब क्या हमे रुलाएगा,

हम तो पहले ही बीवी के रुलाए हैं,

हमने भी बीवी के गुल्लक से निकालकर,

आज ही बीस नोट बड़ी मुश्किल से बदलवाए हैं। 


मेरी मानो तो मोदी जी की बात मानो 

और कैसलेस हो जाओ,

यही टेक होम मेसेज याद कर लेना।

अब तो भिखारी भी कहते हैं कि 

भैया छुट्टे नही हैं, तो कोई बात नही,

ये लो क्यू आर कोड, आप पे टी एम कर देना।