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Wednesday, August 2, 2023

यमुना की बाढ़...

 यमुना के प्रचंड बहाव को दिल्ली सह नहीं पाती,

फितरत है इसकी, इसलिए बिन बहे रह नहीं पाती।


प्रकृति जब रौद्र रूप धारण कर लेती है,

तब यह आकस्मिक भार सह नहीं पाती। 


पथ में जब आती हैं बाधाएं इंसान के कुकर्मों की,

प्रवृति अनुसार स्वाभाविक रूप से बह नहीं पाती। 


निर्जीव नहीं है, न निर्बल है और न ही है बेजुबान,

मां है, ममतामई है, जुबां से कुछ कह नहीं पाती। 


किंतु जब मानव प्रलोभन वार करता है अस्मत पर,

तब तुरंत चंडी रूप धारण किए बिना रह नहीं पाती। 


ये जमना है जीवनदायिनी है, मिलकर करो विचार,

सरल है सहिष्णु है परंतु हद से आगे सह नहीं पाती।


Saturday, June 3, 2023

अफ़सर से बने नौकर ...

 एक शोध पत्र से पता चला है कि,

किचन में काम करने से वज़न घट जाता है।


हम भी लॉकडाउन में पतले कैसे हुए,

ये राज़ हमें अब जाकर समझ में आता है।


पत्नी तो चली जाती है रोज अस्पताल,

अपना आधा दिन किचन में गुजर जाता है। 


फिर भी सुननी पड़ती है यही शिकायत,

कि कोई काम ठीक से करना ही नहीं आता है !


दफ़्तर में रहे हों कितने ही बड़े अफ़सर,

घर में अफ़सर भी नौकर बन कर रह जाता है।  😅

Tuesday, May 30, 2023

वक्त वक्त की बात है ...

 यूं ही जिंदगी बिता दी काम करते करते,

दुनिया आगे निकल गई आहिस्ते आहिस्ते।


हम पूर्वी दिल्ली में अटके रहे जीवन भर,

गुड़गांव पॉश शहर बन गया देखते देखते। 


मैट्रो का शानदार सफ़र करती है युवा पीढ़ी,

हम डी टी सी सफ़र करते रहे लटके लटके। 


एंबियंस मॉल का एम्बिएंस दिखे है शानदार,

हम आई एन ए की गलियों में रहे भटकते।


युवा ही युवा हैं चमकते मॉल्स की दुनिया में,

हम तो एवै ही देखो बूढ़े हो गए घूमते घूमते। 


ज़रूरत की चीजें खरीदते थे जरूरत पड़ने पर,

पर अब बीवी थका देती है शॉपिंग करते करते। 


--- सीधे गुरुग्राम के एंबियंस मॉल से।

Monday, March 13, 2023

मॉडर्न भिखारी --

 

सामने आया एक युवा भिखारी , 

बोला, बाबूजी बहुत बड़ी है लाचारी।  

ज़रा मेहरबानी कीजिये, 

बहुत भूख लगी है , 

खाने को कुछ पैसे दे दीजिये।  


मैंने कहा, हट्टे कट्टे हो ,

कुछ काम क्यों नहीं करते हो।  

वैसे भी मेरे पास छुट्टे नहीं हैं।  

वो बोला, चिंता मत कीजिए,

मैं कैशलेस काम करता हूँ, 

आप पेटीएम या गूगल पे कर दीजिए।   


Monday, January 23, 2023

सर्दियों के दिन ---

सर्दियों के दिन, हैं बहुत कठिन,

कास्तकार लोगों के जीने के लिए।


धोबी का लड़का रोज पूछता है,

कपड़े हैं क्या प्रैस करने के लिए।


कपड़े भी ऐसे हैं कि फटते ही नहीं,

दर्जी भी पूछे, हैं क्या सीने के लिए।


ना कोला, ना शरबत, ना ही ठंडाई,

एक चाय ही काफ़ी है पीने के लिए।


बैठे बैठे खाते रहते हैं मूंगफली रेवड़ी,

कोई काम नहीं होता पसीने के लिए।


सर्दियों का मौसम होता स्वस्थ मौसम, पर

कामवालों के लाले पड़े रहते जीने के लिए।

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Saturday, January 14, 2023

मित्रो, दोस्तो, यारो , 

ना न्यू ईयर, ना ओल्ड ईयर ,

ना व्हिस्की, ना बीयर।  

कभी तो पुकारो ।    


ना मिठाई, ना बधाई, 

ना शादी, ना सगाई , 

बस कम्बल और रज़ाई, 

कमी को सुधारो ।  


ना डेंगू , ना कोरोना , 

ना मास्क, ना हाथ धोना, 

फिर काहे का रोना , 

कभी तो कहीं पधारो।   


मित्रो, दोस्तों, यारो, 

कभी तो पुकारो।  

Thursday, December 1, 2022

वो भी इक दौर था ...

 कभी दो कमरों में रहता था छह जनों का परिवार,

अब छह कमरों के मकान में दो जनों का ठौर है। 

घर में बच्चे बड़े और बुजुर्ग मिल जुल कर रहते थे,

अब बुजुर्गों के अलावा घर में रहता न कोई और है। 

जो गुजर गया वो भी इक दौर था, ये भी इक दौर है। 


कुएं का मीठा पानी पीते, लेते स्वच्छ वायु में सांस,

अब RO का नकली पानी, हवा में धुआं घनघोर है। 

वहां हरे भरे खेतों की पगडंडी पर मीलों तक चलना,

यहां जिम की घुटन में ट्रेड मिल पे चलने पर जोर है। 

शुद्ध सा वो भी इक दौर था, अशुद्ध ये भी इक दौर है। 


ब्याह शादियों में समुदाय का शामिल होना था जरूरी,

अब वॉट्सएप ज़माने में शादी के न्यौते भी कमजोर हैं। 

चौपाल में बुजुर्गों के हुक्के की गुड़गुड़ लगती थी मधुर,

अब वॉट्सएप फेसबुक में सबके जीवन की डोर है।

मस्त मस्त वो भी इक दौर था, पस्त ये भी इक दौर है।