Wednesday, May 25, 2022
ऐसा भी होता है-
Wednesday, May 18, 2022
एक लघु कथा:
Monday, May 9, 2022
प्राकृतिक संसाधन और आधुनिक सुविधाएँ --
एक ज़माना था जब घर में मनोरंजन के साधन के रूप में या तो एक छोटा सा ट्रांजिस्टर होता था या एक ब्लैक एंड वाइट टी वी, जिस पर सप्ताह में एक दिन आधे घंटे का चित्रहार और सप्ताहंत में एक हिंदी फिल्म दिखाने के अलावा कृषि दर्शन जैसे कुछ कार्यक्रम ही प्रसारित किये जाते थे। फिर देश में एशिया ८२ गेम्स का आयोजन हुआ और रंगीन टी वी का आगमन हुआ। अब मनोरंजन रामायण और महाभारत जैसे कार्यक्रमों से होता हुआ हम लोग और बुनियाद जैसे मेगा सीरियल्स में तब्दील हो गया। फिर केबल टी वी, डिश टी वी और अंतत: ओ टी टी के उपलब्ध होने से मनोरंजन हमारी पकड़ में पूरी तरह से आ गया। साथ ही स्मार्ट मोबाइल के आने से तो दुनिया ने दुनिया को सचमुच अपने मुट्ठी में ही कर लिया।
इस बीच इंसान देखिये कैसे कैसे दौर से गुजरा। ९० के दशक में टी वी मनोरंजन का सबसे बड़ा घरेलु साधन बन गया था। अनेक चैनलों पर २४ घंटे न्यूज ही नहीं बल्कि तरह तरह के सीरियल्स ने भारतीय घरों को एकजुट कर दिया था। वर्षों चलने वाले सीरियल्स को देख देख कर बच्चे युवा हो गए, युवा बुजुर्ग हो गए और बुजुर्ग अमर हो गए। हाल ये होता था कि यदि टी वी खराब हो जाये तो ज़िंदगी वीरान सी लगने लगती थी। ठीक करने पर ऐसा लगता था जैसे ज़िंदगी में फिर से बहार आ गई हो।
नए मिलेनियम में पहले मोबाइल, फिर दूसरा दशक आते आते सबके हाथों में स्मार्ट फोन आ गया। इसके बाद तो जैसे टी वी की छुट्टी ही हो गई। अब बुजुर्गों को छोड़कर शायद ही कोई युवा टी वी देखता हो। देखें भी क्यों, जब सब कुछ फोन पर ही देखा सुना जा सकता है। धीरे धीरे फोन के फीचर्स एक से बढ़कर एक आधुनिक और सुविधाजनक होते गए और अब ये आलम है कि शायद ही कोई उपकरण हो जिसकी स्मार्ट फोन ने छुट्टी न कर दी हो। लेकिन यह भी सच है कि आज हम स्मार्ट फोन पर इतने निर्भर हो गए हैं कि एक पल की जुदाई भी सहन करना मुश्किल हो गया है। यदि फोन खराब हो जाये या चार्ज खत्म हो जाये और चार्जर न मिले तो कुछ ही घंटों की जुदाई से जैसे विश्व से नाता ही टूट जाता है। वाट्सएप्प और फेसबुक के बिना मन उदास हो जाता है जैसे ज़िंदगी में कुछ छूट गया हो। आज सचमुच इंसान स्मार्ट फोन का गुलाम बन गया है।
पहले टी वी और फिर मोबाइल फोन, दोनों ने इंसान को अपने मुट्ठी में कर लिया है। लेकिन दोनों में एक समानता है। दोनों को चलते रहने के लिए बिजली चाहिए। यदि बिजली गुल हो जाये और एक दो दिन तक वापस ही न आये तो न टी वी चल पाता है, न मोबाइल चार्ज हो सकता है। इन्वर्टर भी ६ -८ घंटे से ज्यादा नहीं चलता। बस समझिये कि आपकी ज़िंदगी हो गई ठप्प।
अब ज़रा कल्पना कीजिये कि आप बहुमंज़िला इमारत में रहते हैं, दो दिन से बिजली नहीं है। कोई बैकअप भी नहीं है। अब आपके पास न तो पानी आ रहा है, पानी हुआ भी तो पीने लायक नहीं होगा क्योंकि आर ओ काम नहीं करेगा। फोन भी काम नहीं कर रहा, इसलिए न किसी से बात कर सकते हैं और न ही बाहर से सामान मंगा सकते हैं। लिफ्ट भी काम नहीं कर रही, इसलिए २० - ३० फ्लोर से नीचे आना और फिर सामान लेकर सीढियाँ चढ़ना एवरेस्ट पर चढ़ने जैसा लगेगा। और सबसे बड़ी मुसीबत, अब दिन भर ऑफिस का काम भी नहीं कर सकते, क्योंकि कंप्यूटर भी तो बिजली से ही चलता है। जिंदगी में सब कुछ होते हुए भी लगेगा जैसे कुछ भी नहीं है।
ऐसे में आप सोचने पर मज़बूर हो जायेंगे कि जब बिजली का अविष्कार ही नहीं हुआ था, तब लोग कैसे जिंदा रहते थे। निश्चित ही लोग न केवल जिंदा रहते थे, बल्कि बड़े बड़े साम्राज्य होते थे, महाराजाओं के ठाठ बाठ भी होते थे। आम आदमी भी जीवन निर्वाह कर ही लेते थे। बस तब इंसान बिजली का गुलाम नहीं था। अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति के दम पर सब काम करते थे। बस यही ताकत अब कहीं ग़ुम होती जा रही है। आज हम वास्तव में तकनीक और आधुनिक सुविधाओं के गुलाम से हो गए हैं। लेकिन ज़रा सोचिये कि सभी प्राकृतिक संसाधन सीमित हैं। जिस दिन ये खत्म हो गए या इनकी उपलब्धता कम हो गई, उस दिन कैसा हाहाकार मच जायेगा। इसलिए प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल, वायु , तेल , कोयला , वन और पर्वतों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि ये हैं तो हमें बिजली मिलती रहेगी और सब ऐशो आराम चलता रहेगा, ये नहीं तो कुछ नहीं बचेगा।
Saturday, February 12, 2022
काव्यात्मक प्रवचन --
जो कविता के चक्कर में अपनी कविता को भूल जाए,
उसे कवि कहते हैं।
Friday, February 4, 2022
इंसान खुद निष्काम हो गया --
इंसान ने अपने आराम के
सभी संसाधन तो बना लिए,
Saturday, January 15, 2022
हँसलोपैथी -- हँसो हँसाओ, सेहत बनाओ।
एक समय था जब हमारे देश में बीमारियां भी ग़रीब या अविकसित देशों वाली होती थीं, जैसे चेचक, हैजा, तपेदिक आदि संक्रमण जिनका संबंध निम्न स्तर के रहन सहन और अस्वच्छ वातावरण से होता है। जबकि दूसरी ओर विकसित देशों में हृदयरोग, मधुमेह और कैंसर जैसे भयंकर रोग ज्यादा पाये जाते थे। ये रोग हमारे देश में केवल उच्च आय वर्ग में ही देखे जाते थे। लेकिन समय के साथ साथ ये रोग अब हमारे जैसे विकासशील देश में बहुतायत से देखे जाते हैं। इसका कारण है जीवन शैली में परिवर्तन। जिस तरह भौतिक सुविधाओं का विकास हुआ है, मध्यम वर्गीय लोगों की जीवन शैली भी आरामदायक बन गई है, उसका प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ रहा है। डायबिटीज, हाइपर्टेंशन, उच्च कॉलेस्ट्रॉल और मोटापे के साथ साथ मानसिक तनाव आम आदमी के जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। जहाँ बाकी सभी रोगों का उपचार डॉक्टर ही कर पाता हैं , वहीं मानसिक तनाव को दूर करना या रखना स्वयं आपके अपने ही हाथ में होता है। आज जिसे देखो वही तनाव में नज़र आता है। माथे पर तनी भृकुटि, अपने आप में ग़ुम, सदा गंभीर चेहरा और कभी हँसते हुए नज़र न आना आदि ऐसे लक्षण हैं जो मानसिक तनाव को दर्शाते हैं। आज इंसान हँसना मुस्कराना ही भूल सा गया है। इसी का परिणाम है कि अब हमारे जैसे विकासशील देश में भी विकसित देशों की बीमारियां घर कर चुकी हैं।
एक ओर जहाँ गांवों में अभी भी लोग सामुदायिक जीवन जीते हैं, वहीँ दूसरी ओर बड़े शहरों में लोग अक्सर एकाकी जीवन जीने पर ही मज़बूर रहते हैं। मित्रों का मिलना जुलना, फुर्सत से बैठकर गप्पें मारते हुए हँसना हँसाना, आम आदमी के जीवन में बहुत कम रह गया है। हँसने का हमारे तन और मन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। हँसने से न केवल हमारे शरीर के हर अंग की कसरत होती है, बल्की मस्तिष्क में भी कुछ लाभदायक रसायनों का श्राव होता है जो हमारे स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव डालते हैं। इसलिए नियमित रूप से हँसना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है।
हँसना हँसाना हमारी मानसिक परिस्थिति और सोच पर बहुत निर्भर करता है। एक हास्य कवि की दृष्टि से देखें तो हास्य महज़ एक कवि की कल्पना ही नहीं होती। यदि आप अपने आस पास घटित होने वाली घटनाओं को ध्यान से देखें और उन पर शांत और प्रसन्नचित भाव से विचार करें तो हर प्रतिकूल घटना या स्थिति से हास्य निकल सकता है। हास्य भी दो प्रकार का होता है। एक जो विशुद्ध या कोरा हास्य, जिसे सुनकर या पढ़कर हँसी तो खूब आती है लेकिन उसमें काम की कोई बात नहीं होती। हालाँकि हँसने के लिए यह भी पर्याप्त होता है, तथापि यदि हास्य के साथ साथ कोई सामाजिक और उपयोगी संदेश भी श्रोताओं या पाठकों तक पहुँच सके, तो यह सोने पर सुहागा जैसा होता है। इसलिए हास्य कविताओं में हास्य के साथ मर्म की बात भी कह जाना एक कवि का विशेष कर्तव्य होता है।
इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर प्रस्तुत है हास्य व्यंग कविताओं पर आधारित हमारी प्रथम पुस्तक। इस पुस्तक का शीर्षक है - "हँसलोपैथी हँसो हँसाओ, सेहत बनाओ" इस पुस्तक में हास्य व्यंग की ७१ रचनाएँ हैं जो वास्तविक जीवन से जुड़ी छोटी छोटी घटनाओं को हास्य के रूप में दर्शाती हैं। इन्हे पढ़कर निश्चित ही आपको आनंद आएगा। यह पुस्तक अमेज़ॉन पर आसानी से उपलब्ध है।
Thursday, December 30, 2021
डॉक्टर्स की हड़ताल पर एक हास्य व्यंग रचना --
अभी अस्पताल से फोन आया,
फोन करने वाले ने फ़रमाया,
डॉक्टर साहब को अस्पताल में बुला रहे हैं।
जूनियर डॉक्टर्स की हड़ताल है,
इसलिए साहब की ड्यूटी लगा रहे हैं।
फोन जिस मेड ने सुना,
वो यूँ तो मेड इन इंडिया की पात्रा थी,
किंतु एम ऐ पोल साइंस की छात्रा थी।
बोली,
काहे इस उम्र में साहब से काम करा रहे हैं !
हड़ताल बच्चों ने की है और,
सज़ा उनके मात पिता को दिला रहे हैं।
एक ओर तो उन्हें कोरोना वारियर कहते हैं,
पर तीन का काम दो रेजिडेंट्स से करा रहे हैं।
अरे ज़रा सोचो समझो,
ये कोर्ट कचहरी का चक्कर छोड़ो,
और तुरंत पी जी एडमिशन खोलो,
वरना हम आपको बता रहे हैं,
तीसरी लहर लेकर समझो,
ओमिक्रोन महाराज बस आ रहे हैं।
वैसे रिटायर होकर भी साहब सदा तैयार हैं,
किंतु अभी व्यस्त हैं, किचन में रोटियां बना रहे हैं।