आज वितीय वर्ष का क्लोजिंग डे है। इत्तेफाक देखिये , आज ही 5० और ६० के दशक की मशहूर अदाकारा ट्रेजिडी क्वीन मरहूम मीना कुमारी जी की भी पुण्यतिथि है।आज का लेख उन्ही की याद में समर्पित है।
अभी कुछ दिन पहले फिल्म पाकीज़ा देखने का इतेफाक हुआ । शोले के बाद यदि कोई फिल्म है जिसे मैं बार बार देख सकता हूँ तो वो है -पाकीज़ा। इस फिल्म की विशेषता ये है की ये मीना कुमारी जी की आखिरी फिल्म थी जो उनके देहांत से कुछ ही समय पहले रिलीज़ हुई थी , लेकिन उनके मरणोपरांत हिट हुई थी। आज ३८ साल बाद भी जब भी मैं इस फिल्म को देखता हूँ तो एक सपनों की दुनिया में खो सा जाता हूँ। ऐसा जादू है इस फिल्म में ।
कहानी :
मीना कुमारी --साहिब जान की भूमिका में
इस फिल्म की कहानी एक तवाइफ़ --साहिब जान की कहानी है , जो लखनऊ के एक कोठे पर नृत्य करती है। साहिब जान दरअसल एक रईसजादे की बेटी है और इत्तेफाकन उसी के भतीजे से बेपनाह मोहब्बत करने लगती है।
इस फिल्म की कहानी एक तवाइफ़ --साहिब जान की कहानी है , जो लखनऊ के एक कोठे पर नृत्य करती है। साहिब जान दरअसल एक रईसजादे की बेटी है और इत्तेफाकन उसी के भतीजे से बेपनाह मोहब्बत करने लगती है।
लेकिन उसकी बदनामी उसका पीछा नहीं छोडती और एक दिन ऐसा आता है की साहिब जान को अपने ही प्रेमी की शादी में नृत्य करने जाना पड़ता है।
फिल्म का क्लाइमेक्स बहुत जानदार है और ट्रेजिडी मिश्रित सुखांत है।
फिल्म के मुख्य आकर्षण हैं --
१) ग़ज़लें और गीत ।
२) संवाद ।
३) कमाल अमरोही का निर्देशन और पिक्चराइज़ेशन ।
४) मीना कुमारी की अदाकारी ।
ग़ज़ल और गीत :
जहाँ उमराव जान में आशा भोंसले की गाई गज़लें आज भी मन को लुभाती हैं , वहीँ इस फिल्म में लता मंगेशकर की गाई गज़लें दिल को छू जाती हैं ।
१) इन्ही लोगों ने , इन्ही लोगों ने ---इन्ही लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा ---हो जी हो , दुपट्टा मेरा ---
२) थाडे रहियो --ओ बांके यार रे ---थाडे रहियो --- इस गाने पर मीना कुमारी का नृत्य --कत्थक --गज़ब का है।
३) चलते चलते --यूँ ही कोई --मिल गया था --सरे राह चलते चलते -- इस गाने में फिल्म का सार है। ज़रा सोचिये एक अजनबी जिसे देखा तक नहीं --लेकिन दिल में ऐसा बस गया कि जब भी ट्रेन की सीटी बजती , साहिब जान के दिल में भी घंटियाँ बजने लगती । कितना दर्द होता है , एक अनजाने इंतज़ार में ।
४) मौसम है आशिकाना --अ दिल --कहीं से उनको --ऐसे में --ढूंढ लाना --मौसम है आशिकाना ---
यह गाना बहुत ही रोमांटिक वातावरण में फिल्माया गया है । साहिब जान इत्तेफाक से उसी जगह पहुँच जाती है , जहाँ वो अनजान प्रेमी --राज कुमार --का कैम्प है। किसी निशानी से उसको पहचान उसका इंतजार करती है और गाती है।
५) चलो दिलदार चलो --चाँद के पार चलो -- हम हैं तैयार चलो ---ओ --ओ -ओ ---
ये युगल गीत तब आता है जब कैम्प में दोनों की पहली बार मुलाकात होती है । ज़ाहिर है मोहब्बत की आग दोनों तरफ बराबर लगी थी। इस गाने को जितनी बार भी सुनेंगे , हर बार एक नशा सा छा जायेगा ।
६) आज हम अपनी दुआओं का असर देखेंगे --तीरे नज़र देखेंगे --जख्मे जिगर देखेंगे --
इस ग़ज़ल के बोल सुनकर आप दांतों तले उंगलियाँ दबा लेंगे।
हो ओ , आप तो आंख , मिलाते हुए शरमाते हैं
आप तो दिल के , धड़कने से भी डर जाते हैं --
हो ओ , प्यार करना दिले नादाँ , बुरा होता है
सुनते आये हैं के ये ख्वाब , बुरा होता है ---
और आखिरी पंक्तियाँ तो सचमुच जानलेवा हैं --
जानलेवा है मोहब्बत का समां आज की रात
शमा हो जाएगी , जल जल कर धुआं , आज की रात
आज की रात --बसेंगे तो सहर देखेंगे --
आज की रात --बसेंगे तो --सहर देखेंगे ---
इसके बाद मीना कुमारी ने जो नृत्य किया है , वह अपने आप में एक मिसाल है , अदाकारी की।
कुछ अविस्मर्णीय संवाद और द्रश्य :
१) साहिब जान ट्रेन से कहीं जा रही है । बर्थ पर लेटकर पढ़ते पढ़ते नींद आ जाती है । मेहंदी लगे पांव , ट्रेन की गति के साथ हौले हौले हिल रहे हैं। तभी राजकुमार डिब्बे में घुस जाते हैं , सारा द्रश्य देखकर अवाक् रह जाते हैं। एक पन्ने पर कुछ लिखकर किताब में रख देते हैं । बाद में वो पढ़ती है , लिखा था ---
इत्तेफाकन आप के कम्पार्टमेंट में चला आया । आपके पैर देखे --बहुत हसीं हैं ये --इन्हें ज़मीन पर मत उतारियेगा --मैले हो जायेंगे ।
उफ़ ! हकीकत और हालात का ऐसा विरोधाभास पहले कहीं नहीं देखा।
२) साहिब जान , राजकुमार के टेंट में लेटी है। आज उनसे पहली मुलाकात है । राजकुमार आता है --मीना कुमारी आँख बंद कर लेटी है । राजकुमार खड़ा खड़ा देख रहा है --मीना मन ही मन कह रही है --
वो खड़े खड़े मुझे देख रहे हैं --और मैं तो उन्हें देख भी नहीं सकती --उफ़ ये सजा क्यों दे रहे हैं --ये भी नहीं देखते कि हम साँस भी नहीं ले पा रहे हैं --सांस तेज़ी से चलने लगती है।
३) साहिब जान एक नवाब के साथ डेट पर --खूबसूरत झील में आलिशान शिकारा --नवाब साहिब जान को गाने के लिए कहते हैं --वो गाती है --
आज की शाम , वो आये हैं ज़रा देर के बाद
आज की शाम , ज़रा देर के बाद आई है --
तभी हाथियों का एक झुण्ड हमला कर देता है --नवाब मारा जाता है । यहाँ इस द्रश्य को इतनी खूबसूरती से फिल्माया गया है कि , नवाब की तहजीब और तमीज देखकर हैरानी होती है , और कहीं न कहीं उसके किरदार से सहानुभूति सी होने लगती है।
३) साहिब जान एक नवाब के साथ डेट पर --खूबसूरत झील में आलिशान शिकारा --नवाब साहिब जान को गाने के लिए कहते हैं --वो गाती है --
आज की शाम , वो आये हैं ज़रा देर के बाद
आज की शाम , ज़रा देर के बाद आई है --
तभी हाथियों का एक झुण्ड हमला कर देता है --नवाब मारा जाता है । यहाँ इस द्रश्य को इतनी खूबसूरती से फिल्माया गया है कि , नवाब की तहजीब और तमीज देखकर हैरानी होती है , और कहीं न कहीं उसके किरदार से सहानुभूति सी होने लगती है।
४) साहिब जान अपने कोठे पर है । संगमरमर के चिकने फर्श पर वो लेटी है , गोलाकार बने तरण ताल के किनारे --बाल खुले हुए --पानी में तैरते हुए --एक किताब पढ़ रही है । इस द्रश्य को देखकर मन बाग़ बाग़ हो जाता है।
५) सलीम खान ( राज कुमार ) की शादी तय हो गई है । साहिब जान को नृत्य के लिए बुलाया गया है। वो ऐसा जमकर नाचती है कि पैर लहू लुहान हो जाते हैं। तभी उसकी अमी जान बोलती है --शहाबुद्दीन , देख आज तेरी आबरू --- जिस खून पर तेरे पाँव पड़े हैं वो खून तेरी ही बेटी का है।
कमाल अमरोही :
और मीना कुमारी की शादी १९५२ में हुई थी . यह फिल्म कमाल अमरोही द्वारा १९५८ में प्लान की गई थी जब वो दोनों पति पत्नी थे । फिल्म की आधी शूटिंग १९६४ में हुई , लेकिन तभी उनका तलाक हो गया । इसलिए फिल्म रुक गई। फिर १९६९ में सुनील दत्त और नर्गिस जी की पहल पर दोनों ने फिर शादी कर ली। फिल्म बनकर तैयार हुई १९७२ में और रिलीज़ हुई १ फरवरी १९७२ को।
कहते हैं की कमाल अमरोही ने यकीन दिलाया मीना कुमारी को कि वो उम्र के प्रभाव को कुछ इस तरह छुपा देंगे कि देखने वालों को पता ही नहीं चलेगा । हालाँकि कुछ द्रश्यों में उम्र का अंतर साफ़ नज़र आता है।
मीना कुमारी :
इनका असली नाम था -महज़बीं बानो --गरीब परिवार में पैदा हुई, १ अगस्त १९३२ को --दो बड़ी बहने थी --१९३९ में फिल्मो में काम करना शुरू कर दिया --मीना कुमारी को ट्रेजिडी क्वीन के नाम से जाना जाता था ।
इस सूरत पर भला कौन न न्योछावर हो जाये ।
पाकीज़ा में कमाल अमरोही ने इन्हें बेहतरीन तरीके से पेश किया है। गोल चेहरा , सुन्दर होंठ , खूबसूरत आँखें , लम्बी नाक , और उसपर लम्बे काले घुंघराले बाल --मीना कुमारी की खूबसूरती देखने लायक थी। उनकी आवाज़ में नेजल टोन से ग़मगीन द्रश्यों में जैसे जान सी आ जाती थी।
एक बात बहुत कम लोग जानते हैं --उनकी बाएं हाथ कि एक उंगली ( छोटी उंगली ) कट गई थी , जिसे वो बहुत खूबसूरती से छुपा लेती थी । इस फिल्म में दोनों द्रश्य हैं , यानि उंगली समेत और बिना उंगली के ।
लेकिन ट्रेजिडी क्वीन कहलाने वाली इस अदाकारा का जीवन अपने आप में एक बड़ी ट्रेजिडी बन कर रह गया । तलाक के बाद , वो बेहद शराब पीने लगी । जिसका असर उनके जिगर पर बहुत बुरा पड़ा और उन्हें सिरोसिस हो गया । ३१ मार्च १९७२ को उन्होंने इस संसार को अलविदा कहा , मात्र ३९ वर्ष की आयु में ।
मीना कुमारी जी भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं , लेकिन उनके द्वारा निभाए गए किरदार आज भी हमारे दिल में उनकी याद ताज़ा बनाये हुए हैं।
हम इस बेहतरीन अदाकारा को उनकी पुण्य तिथि पर श्रधा सुमन अर्पित करते हैं।