गांव छोड़कर शहर में गुमनाम हो गए,
सच बोलकर जग में बदनाम हो गए।
काम बहुत था जब करते थे काम,
सेवा निवृत हुए तो नाकाम हो गए।
तकनीकि दौर मे दिखता है विकास,
मोबाइल संग बच्चे बे लगाम हो गए।
गुरुओं और बाबाओं के आश्रम में,
चोर उचक्के सारे सतनाम हो गए।
भ्रष्टाचार का यूं बोलबाला है यारा,
ज़मीर बेच अमीर जन तमाम हो गए।
भेड़िए भले ही लुप्त होने को हैं पर,
इंसानी भेड़ियों के हमले आम हो गए।
द्रोपदी की अस्मत बचाने को क्यों,
कलयुग में जुदा घनश्याम हो गए।
जालिम अब बच नहीं पाएं सजा से,
उनके गुनाह के चर्चे सरेआम हो गए।
बुजुर्गों का साया गर सर पर हो ' तारीफ',
समझो शुभ दर्शन चारों धाम हो गए।
सराहनीय, शानदार गज़ल,हर इक शेर बहुत बढ़िया है।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
जी धन्यवाद।
Deleteबहुत अच्छी रचना .
ReplyDeleteभेड़िए भले ही लुप्त होने को हैं पर,
इंसानी भेड़ियों के हमले आम हो गए।
सामयिक विषयों का सहज चित्रण .
जी शुक्रिया।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteआभार।
Deleteज़िंदगी की हक़ीक़त से रूबरू कराती बेहतरीन शायरी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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