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Thursday, July 30, 2020

एक दिन किनारा मिल ही जायेगा --



जिंदगी के सागर में,
उम्र की पनडुब्बी पर खड़े ,
हम देख रहे हैं, दूर क्षितिज में ,
भीषण तूफ़ान के काले बादलों तले ,
समुद्र में उठती ऊँची लहरों में ,
गोता लगाते, डूबते उभरते एक जहाज को।

खारे पानी की हर उफनती लहर के साथ,
जहाज में सवार कुछ नाविक,
समा जाते और खो जाते समुद्र की गहराइयों में।
जिन्होंने बात ना मानी, ना पहनी
लाइफ जैकेट, कैप्टेन के आदेश पर।

पनडुब्बी चल दी जहाज की ओर ,
उसे इस घोर संकट से उबारने के लिए।
किन्तु हम जानते हैं कि ,
जहाज का बहादुर कप्तान ,
निकाल ही लेगा अपनी सूझ बूझ से,
जहाज को इस तूफान के बीच ,
किनारे की ओर ।

आशा ही नहीं,
विश्वास है हमें कि ,
कुशल  नेतृत्व के आधीन ,
देश का जहाज पा ही लेगा ,
साहिल को एक दिन ,
हराकर इस ''कोरोना'' तूफ़ान को।
 
  

Thursday, July 23, 2020

कोरोना से कैसे बदला इंसान --


1.
देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान,
कितना बदल गया इंसान , कितना बदल गया इंसान।
सब देशों में भेज कोरोना , विलेन बना वुहान। 
कितना बदल गया इंसान , कितना बदल गया इंसान।

आया समय बड़ा बेढंगा , मुंह छुपाकर रहता हर बंदा ,
बंद हुए स्कूल और कॉलेज , बंद हुआ सब काम और धंधा।
कोरोना के कारण बंद हैं शोरूम मॉल और दुकान ,
कितना बदल गया इंसान , कितना बदल गया इंसान।

ये सुन्दर से दिखने वाले , निकले कितने फरेबी बन्दे, 
तन के गोरे मन के काले, देख लिए सब इनके धंधे ।  
इन ही की काली करतूतों से , बना ये विश्व मसान । 
कितना बदल गया इंसान , कितना बदल गया इंसान।  

जो लोग घरों में ही रहते, कोरोना के केस क्यों बढ़ते ,
काहे पड़ोसी आपस में डरते, पुलिस के डंडे ना पड़ते।
क्यों बंद होती पार्टियां क्यों होती शादियां बिन मेहमान ,
कितना बदल गया इंसान , कितना बदल गया इंसान। 

2.

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान,
कितना सम्भल गया इंसान, कितना सम्भल गया इंसान।
दूर ही रह्ते, हाथ भी धोते, घर आते ही करते स्नान, 
कितना सम्भल गया इंसान, कितना सम्भल गया इंसान।


आया समय बड़ा रंगीला , हुई धरा हरी आसमाँ नीला ,
साफ़ हवा और प्रदुषण कम, हुआ सडको पे ट्रैफिक ढीला।
बंद हुए सब ठेके बार , और बंद हैं बीड़ी सिगरेट पान ,
कितना सम्भल गया इंसान , कितना सम्भल गया इंसान।


खुद ही जलेबी घर मे बनाई , नहीं चाहिए अब हलवाई ,
ना कहीं अब आना जाना , अब ना आती घर में बाई।
खुद ही लगाएं झाड़ू पोंछा , और खुद ही बनाएं पकवान ,
कितना सम्भल गया इंसान , कितना सम्भल गया इंसान।


गर्मी में भी सब काढ़ा पीते , अदरक वाली चाय बनाते
अब ना किसी से हाथ मिलाते , देख दूर से ही मुस्काते  ,
हाथ जोड़ सब करें नमस्ते, संस्कृति बनी अपनी पहचान ,
कितना सम्भल गया इंसान , कितना सम्भल गया इंसान।




Tuesday, July 21, 2020

मूंछों पर कोरोना की मार --



एक मित्र हमारे ,
बन्दे सबसे न्यारे।

मूंछें रखते भारी   ,
सदा सजी संवारी ।

कोई छेड़ दे मूंछों की बात ,
फरमाते लगा कर मूछों पर तांव।

भई मूंछें होती है मर्द की आन ,
और मूंछ्धारी , देश की शान ।

जिसकी जितनी मूंछें भारी ,
समझो उतना बड़ा ब्रह्मचारी ।



फिर एक सुहाने सन्डे ,
जोश में आकर , मूंछ मुंडवाकर ,
बन गए मुंछ मुंडे।


मैंने कहा मित्र , अब क्या है टेंशन ,
माना कि साइज़ जीरो का है फैशन।

और फैशन भी है नेनो टेक्नोलोजी का शिकार ,
तो क्या ब्रह्मचर्य को छोड़ इस उम्र में ,
अब बसाने निकले हो घर संसार ।


वो बोला दोस्त , ये फैशन नहीं ,
रिसेशन की मार है ।
जिससे पीड़ित सारा संसार है ।

और मैंने भी मूंछें नहीं कटवाई हैं ,
ये तो खाली कॉस्ट कटिंग करवाई है ।

अरे ये तो घर की है खेती ,
फिर निकल आएगी ।

पर सोचो जिसकी नौकरी छूटी ,
क्या फिर मिल पाएगी ?

वो देखो जो सामने बेंच पर बैठा है ,
अभी अभी पिंक स्लिप लेकर लौटा है ।

और ये जो फुटपाथ पर लेटा है ,
शायद किसी मज़दूर का बेटा है ।

दो दिन हुए शहर से गांव आया है ,
तब से एक टूक भी नहीं खाया है ।

कृषि प्रधान देश में ये जो नौबत आई है,
हमने अपने ही हाथों बनाई है ।

अरे अन्न के भरे पड़े हैं भंडार ,
फिर क्यों मची खाने की दुहाई है !


ग़र देश की जनता में हो अनुशासन ,
लॉक डाउन के नियमों का करें पालन।

हाथ धोते रहें बार  बार ,
बाहर जाएँ तो मास्क पहने हर बार। 

लक्ष्मण रेखा का ना अतिक्रमण हो ,
फिर कभी ना कोरोना का संक्रमण हो।

देश जब कोरोना मुक्त हो जायेगा ,
खुशहली का वो दौर फिर आएगा।

जनता जब भय मुक्त हो जाएगी,
तो भैया ये मूंछें भी तब लम्बी हो जाएँगी ।


माना कि मूंछें मर्द की आन हैं ,
मूंछ्धारी देश की शान हैं ।

मगर इस मंदी की मार से ,
कोरोना से मचे हाहाकार से ,
ग़र सबको मिले मुक्ति ,
तो ये मूंछें , एक नहीं ,
बारम्बार कुर्बान हैं , बारम्बार कुर्बान हैं ।


Saturday, July 18, 2020

कामवाली बाई - वर्क फ्रॉम होम --


तीन महीने
वर्क फ्रॉम होम करके,
जब कामवाली बाई ,
काम करने आई ।
पत्नी को कोरोना का ख्याल आया,
तो उसे बस ,
झाड़ू पोंछा करने को लगाया।
तीन दिन काम करके,
कामवाली बेचैन सी होली,
और पत्नी से बोली ।
बीबी जी हमारा कैसे काम चलेगा,
यदि आप हमसे झाड़ू पोंछ ही लगवाएंगे।
अब हमसे देखा नही जाता,
आखिर कब तक साहब से बर्तन मंजवाएंगे।
पत्नी ने हालात को फ़ौरन संभाल लिया,
और अगले ही दिन कामवाली को,
झाड़ू पोंछे के काम से भी निकाल दिया।

और फिर हमसे कहा, 
अब लगिये काम पर,  
आप बहुत दिनों से आराम कर रहे हैं। 
आखिर दफ्तर से छुट्टी मारकर, 
आप भी तो वर्क फ्रॉम होम ही कर रहे हैं।  

*निर्मल हास्य*