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Tuesday, February 28, 2012

डिप्टीगंज --पुरानी दिल्ली का एक व्यवसायिक क्षेत्र,जहाँ मेहनत का पसीना खून से मिलकर रगों में दौड़ता है -- --.


दिल्ली में सबसे खूबसूरत है नई दिल्ली नई दिल्ली में एक तरफ वी आई पी एरिया आता है जहाँ राष्ट्रपति भवन , मंत्रियों और सांसदों के सरकारी निवास हैं , दूसरी ओर सरकारी कॉलोनियां और दक्षिण दिल्ली के पौश एरिया

कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ पुनर्निवास कॉलोनियां बनी हैं जहाँ दूसरे राज्यों से आए गरीब लोग २५ गज़ के मकान में ६ परिवारों के साथ रहते हैं

तीसरे किस्म के क्षेत्र हैं दिल्ली के गाँवदिल्ली में ३६० गाँव हैं जिनमे अधिकतर अब शहरी क्षेत्रों में चुके हैं

लेकिन सबसे पुराना क्षेत्र है --पुरानी दिल्ली जिसे वॉल्ड सिटी भी कहते हैं यह वह क्षेत्र है जिसे शाहजहाँबाद के नाम से जाना जाता हैपुरानी दिल्ली में मौजूद हैं --लाल किला , ज़ामा मस्जिद , चांदनी चौक , नई सड़क , सदर बाज़ार , दरीबा और कितने ही कूचे , गलियां और बाज़ार आदि

ऐसे क्षेत्र को विदेशों में डाउनटाउन कहा जाता है

इस क्षेत्र में मुख्यतय: मुस्लिम आबादी रहती है लेकिन व्यवसायिक बनिया लोग भी बहुत मिल जायेंगेये दोनों समुदाय सदियों से मिल जुल कर यहाँ रहते हुए अपनी गुजर बसर कर रहे हैं
बाहरी लोगों के लिए यहाँ की गलियों और बाज़ारों में घुसना अपने आप में एक अद्भुत अनुभव होता है

ऐसा ही अनुभव हमें हुआ जब एम बी कर रही हमारी बिटिया ने एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में सदर क्षेत्र में स्थित डिप्टीगंज ( दिप्तिगंज ) के बाज़ार में जाने का कार्यक्रम बनायाहमने तो इस क्षेत्र का नाम भी नहीं सुना थानेट पर ही सारा नक्शा देख कर किसी तरह हमने जाने का रूट पता किया

पहाड़गंज से होकर सदर तक पहुँचते पहुँचते हमें चक्कर आने लगेसड़क पर रिक्शा , ठेले , साईकल , तांगा और पैदल आदमियों की भीड़ में गाड़ी चलाना एक बड़ा ज़ोखिम भरा काम थाकिसी तरह रास्ता पूछते हुए आखिर हम पहुँच ही गए डिप्टीगंजपार्किंग मिलने का तो सवाल ही नहीं थाकिसी तरह एक दुकान के आगे गाड़ी खड़ी कर हमने गाड़ी में बैठे रहना ही उचित समझाजब तक बिटिया अपना काम ख़त्म करती , बैठे बैठे हमने जिंदगी के विभिन्न रूपों का दर्शन किया


यहाँ सारे इलाके में मजदूर किस्म के लोग नज़र रहे थे
रिक्शा में सवारी और सामान दोनों एक साथ


या फिर ट्राईसाईकल में दस फुट ऊंचे तक भरा सामान


हाथ से चलाने वाली रहड़ी



बाल्टी को ही हेलमेट बनाकर




सर पर बोझा लादकर


अकेले रहड़ी को खींचना कितना मुश्किल होता होगा


साईकल रिक्शा को खींचना फिर भी आसान है



हाथ में लटकाकर



दो हों तो काम थोडा आसान हो जाता है



इक्का दुक्का गाड़ियाँ भी नज़र रही थी


रियर व्यू मिरर में एक दृश्य


यहाँ आकर जीवन का एक अलग ही रूप देखा

ऐसा जीवन जिसमे मेहनत का पसीना खून से मिलकर रगों में दौड़ता होगा

जहाँ दुनिया की रंगीनियाँ नहीं , बल्कि जीवन यापन के लिए निरंतर संघर्ष रहता है

इक्कीसवीं सदी में रहते हुए भी जिनका जीवन उन्नीसवीं सदी के लोगों जैसा प्रतीत होता है

विकास जिनके लिए एक एलियन शब्द हैबरसों से जिनकी जिंदगी यूँ ही चलती रही है और चलती रहेगी

अंत में यही लगा कि क्या कभी हम भी पूर्ण विकसित देश हो पाएंगे


Friday, February 24, 2012

क्या भगवान को भी फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाना चाहिए ?


पिछली पोस्ट में भ्रष्टाचार पर लिखी ग़ज़ल को आपने पसंद किया दरअसल यह एक ऐसा ज़टिल मुद्दा है जिसका निकट भविष्य में कोई निश्चित समाधान नज़र नहीं आता । भ्रष्ट लोग अपने भ्रष्ट आचरण में मग्न रहते हुए निश्चिन्त रहते हैं जबकि सदाचारी व्यक्ति को भ्रष्ट प्रणाली में कदम कदम पर कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । यह पानी में रहकर मगरमच्छ से वैर जैसी स्थिति हो जाती है ।

कहते हैं भगवान के घर में देर है लेकिन अंधेर नहीं यानि बुरे कर्म करने वालों को सज़ा तो मिलती है लेकिन देर से । हालाँकि देर से न्याय मिलना तो न्याय से वंचित रहने जैसा है ।

अब देखिये , एक व्यक्ति जो जीवन भर शराफ़त के रास्ते पर चलता रहा, कभी भी कोई बुरा काम नहीं किया , उसे तरह तरह की मुसीबतों में घिरा देखकर यही लगता है कि इसके साथ ऐसा क्यों हुआ । अक्सर ऐसी स्थिति में यही कहा जाता है कि ज़रूर पिछले जन्म में बुरे कर्म किये होंगे । या फिर पिछले बुरे कर्मों का फल भुगतना पड़ रहा है । यानि जो बुरे कर्म इतने पहले किये थे कि किसी को भी याद नहीं , उनका फल अब भुगत रहे हैं जबकि अब वह सत्य मार्ग पर चल रहा है ।

दूसरी ओर हर तरह से पापी , दुराचारी और भ्रष्ट लोग मौज उड़ाते नज़र आते हैं । ज़ाहिर है , उनके पिछले कर्म अच्छे रहे होंगे जिनका फल अभी मिल रहा है । आजकल ऐसे ही लोगों की संख्या बढती जा रही है ।

लेकिन इस विरोधाभास की स्थिति से एक भ्रामक सन्देश उत्पन्न होता है । और वो यह कि आप कुछ भी करिए , कोई फर्क नहीं पड़ता । यदि गलत तरीके से पैसा बनाया जा सकता है तो बनाइये । वैसे भी पैसे का महत्त्व दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है । यदि आपके पास पैसा है तो डरना कैसा । पैसे की ताकत से आप जिसे चाहे खरीद सकते हैं ।

यही कारण है कि भ्रष्टाचार को ख़त्म करना आसान नहीं है । हमारी सामाजिक , राजनीतिक और न्यायिक प्रणाली ऐसी है कि भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध करना और भ्रष्टाचारी को सज़ा दिलाना लगभग असंभव सा लगता है ।

ऐसे में आशा की एक ही किरण दिखाई देती है, ईश्वर का न्याय लेकिन उसमे भी देर होने से न्याय के साथ न्याय नहीं हो पाता। यदि पापी को सज़ा नहीं मिली तो पाप करने से कौन डरेगा ! और जब सज़ा मिली , तब तक वह पापी ही नहीं रहा । फिर सज़ा तो पापी को मिली ही नहीं

ऐसे में एक सवाल उठता है कि क्या भगवान को भी हमारे न्यायालयों की तरह फास्ट ट्रेक कोर्ट बनाना चाहिए ?
शायद लगता तो ऐसा ही है ।
इस बारे में आपका क्या कहना है ?


Monday, February 20, 2012

जीवन में फ़ाका मस्ती का अपना ही मज़ा है --


कुछ महीने पहले ऐसा समां बन गया था कि जिसे देखो खुद को अन्ना कहता नज़र आता थासोचता हूँ अन्ना के समर्थकों में कितने लोग ऐसे होंगे जो वास्तव में भ्रष्टाचार से दूर होंगे

हमें तो चारों ओर सफेदपोश ही नज़र आते हैंबाहर से कुछ और , अन्दर से कुछ और

प्रस्तुत है , ऐसे ही माहौल में लिखी एक ग़ज़ल :

वो
जीवन भी क्या जीवन पिया
जो जीवन भर डर डर कर जिया

क्या कहिये उसको जिसने भला
ज़ुल्मों के आगे होठों को सिया

वो मर्द भी क्या जिसका ना कभी
औरों के दर्द में रोये जिया

हमसे था ये शिकवा सा उन्हें
जीवन भर हमने कुछ ना किया

हम तो कलमाड़ी हो ना सके
अणणा हमको होने ना दिया

हम भी थे ऐसे चिकने घड़े
ना खुद लेते, ना लेने दिया

रब की मरज़ी से 'तारीफ', हैं
जिंदगी में फ़ाका ही मस्त मियां

पिया = प्रियतम
जिया = अंतर्मन

नोट : मात्रिक क्रम है -- २२ २२ २२ २१२ -- कितना सही है , यह ग़ज़ल के जानकार ही बता सकते हैं


Wednesday, February 15, 2012

चुनावों के सीजन में हमारी भी बल्ले बल्ले --


देश में चुनावों का माहौल चल रहा हैनेताओं की चहल पहल चारों ओर नज़र रही हैफ़रवरी के माह में दिल्ली में भी डॉक्टरों के चुनाव हर साल होते हैंदिल्ली मेडिकल एसोसिएशन में करीब १४००० डॉक्टर सदस्य हैंहर वर्ष एक प्रेजिडेंट और दो वाइस प्रेजिडेंट की पोस्ट्स के लिए जमकर संघर्ष होता है

वोटिंग के लिए सेन्ट्रल दिल्ली के अलावा चारों कोनो में मतदान केंद्र बनाये जाते हैंपूर्वी दिल्ली का मतदान केंद्र यह है --


हमारी ब्रांच ने बहुत मेहनत कर चार मंजिला अपना भवन बनाया हैयहीं पर सब आते हैं वोट डालने


भवन के द्वार पर दोनों ओर दोनों पार्टियों के उम्मीदवार खड़े हो जाते हैं अपने सहयोगियों के साथदोपहर तक एक एक कर वोटर आते हैंलेकिन दोपहर के बाद क्लिनिक बंद होने पर भीड़ लग जाती है

डॉक्टर्स के जीवन में चुनाव एक ऐसा समय होता है जब सब मिलकर उम्मीदवार के खर्चे पर पार्टियों में मौज उड़ाते हैंअक्सर अधिकतर डॉक्टर्स दो खेमों में बंटे होते हैंलेकिन काफी ऐसे भी होते हैं जो इधर होते हैं , उधरबल्कि जहाँ मिला अवसर, बे पेंदे के लोटे की तरह लुढ़क जाते हैं

सच पूछा जाए तो सर्दियों का सीजन चुनाव का सीजन यानि पार्टियों का सीजन होता है
इसीलिए अक्सर सर्दियों में हमारा भी वज़न - किलो बढ़ जाता है

मतदान शिविर का नज़ारा भी बड़ा मनोरंजक होता है
एक मोटे ताज़े बन्दे को देखकर एक बोलता है -- गईवोट गईबॉस ये तो पक्की हमारी है
इस पर दूसरा बोलता है --छोड़ यार , साला दारू तो हमारी पीता है , वोट उन्हें दे जाता है

लेकिन दिल के अन्दर कुछ भी हो , वोट मांगने में डॉक्टर्स भी किसी नेता से कम नहीं होतेहाथ जोड़कर इतना मीठा बोलते हैं कि एक दिन ही सही , आम आदमी को भी खास होने का अहसास होता है

९९ % लोग निर्णय लेकर ही आते हैं कि किसे वोट देनी हैफिर भी मतदान स्थल पर वोटर पर सब ऐसे टूट पड़ते हैं जैसे उनकी जिंदगी उसी के हाथ में हो

लेकिन वोटिंग के मामले में यारी दोस्ती काम नहीं आतीअक्सर व्यक्तिगत जीवन में जो मित्र होते हैं , वोट दूसरी पार्टी को देते हैंऐसे लोग आँख बचाकर निकलने की कोशिश करते हैंकुछ तो ऐसे मूंह फेरकर निकल जाते हैं जैसे पहचानते ही हों


खाने का इंतज़ाम चुनाव वाले दिन भी किया जाता हैयह सुविधा शायद डॉक्टर्स के चुनाव में ही देखने को मिलती है

पिछले दस साल से हम भी चुनावों में सक्रीय रूप से भाग लेते रहे हैंपूर्वी दिल्ली में अपनी पार्टी की कोर कमिटी में आते हैंहालाँकि बड़े नेताओं की तरह स्वयं कभी चुनाव नहीं जीता , लेकिन सर्वसम्मति से ब्रांच के वाइस प्रेजिडेंट ज़रूर रह चुके हैं
अब हम भी किंग मेकर का ही काम करते हैंयानि दूसरों को लड़ाते हैं

एक ख़ुशी की बात यह रही कि १२ फ़रवरी को हुए चुनाव में हमारी पार्टी का उम्मीदवार प्रेजिडेंट का चुनाव जीत गया और एक वाइस प्रेसिडेंट का
फिर अगले दिन पार्टी तो होनी ही थी

पूरे जोर शोर से जश्न मनाया गया
इस फोटो में हम इसलिए नहीं है कि फोटो तो हमीं ने खिंचा है मोबाईल से



और विजयी उम्मीदवारों का विधिवत स्वागत किया गया
ढोल और नगाड़ों की ताल पर सब झूम कर नाचेसेबरस , सोमरस-- सब का सेवन करते हुए जश्न चलता रहा

और इस तरह एक और साल के लिए डॉक्टर्स के हितों के लिए संघर्ष करने के लिए टीम तैयार हो गई

किसी भी संस्था के लिए एक एसोसिएशन का होना अत्यंत आवश्यक होता हैइसका काम होता है संस्था के सदस्यों के हितों की रक्षा करना
मेडिकल प्रोफेशन में भी बहुत सी समस्याएँ हैं जिन्हें आम आदमी नहीं समझ सकता

नर्सिंग होम का पंजीकरण , पी एन डी टी एक्ट , निवासीय कॉलोनियों में क्लिनिक्स की वैधता , कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट में डॉक्टर्स का प्रोटेक्शन आदि अनेक समस्याएँ हैं जिनसे हर प्राइवेट प्रेक्टिशनर को जूझना पड़ता है

साथ ही मेडिकल नॉलेज में निरंतर हो रहे परिवर्तन से सब को सूचित रखने के लिए सी एम् , सेमिनार्स , कॉन्फेरेन्स आदि का आयोजन , सभी पर्वों और राष्ट्रीय दिवसों पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करना और अवसर मिलने पर सदस्यों के लिए मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन एसोसिअशन द्वारा किया जाता है

आशा है कि इस वर्ष भी हम चिकित्सा समाज के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य करने में सफल होंगे