कहने को सारी दुनिया दमदार हुई,
फिर एक बार पर जिंदगी शर्मसार हुई।
कुछ जंगली भेड़ियों की कारिस्तानी से,
फिर एक बार इंसानियत की हार हुई।
सीने में जलन थी, पर रो ना सकी,
आंखों में नींद थी, पर सो ना सकी।
इतने जख्म दिए बेदर्द जालिमों ने,
उस दर्द की कोई दवा हो ना सकी।
निर्मल कोमल कच्ची धूप सी होती हैं,
बेटियां भगवान का ही स्वरूप होती हैं।
जो मासूमियत को कुचलते हैं बेरहमी से,
उनकी उजली शक्ल कितनी कुरूप होती है।
आक्रोशित अभिव्यक्ति सर।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २० अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद।
Deleteसटीक
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteसटीक.
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteआप सभी का शुक्रिया।
ReplyDeleteआह! बहुत मार्मिक।
ReplyDeleteजो मासूमियत को कुचलते हैं बेरहमी से,
ReplyDeleteउनकी उजली शक्ल कितनी कुरूप होती है। //
जी डॉक्टर दराल वो लोग निश्चित रूप से इस sansar के सबसे वीभत्स लोग हैं जो किसी बेटी को उसकी देह से ही देखते हैं। इस देह के साथ वे उनका कोमल मन भी कुचलकर इंसान होने का दावा करते हैं। एक मर्मांतक रचना जो बेटी की अस्मिता को तार तार करती घटना का जीवंत दस्तावेज है 😞😞🙏
जी धन्यवाद। बहुत कष्ट होता है ये असहाय स्थिति देखकर। 🙏
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