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Monday, October 30, 2023

ये पैबंद वाली जींस...


अपनी तो जैसे तैसे लाला 

कट रही थी पाजामा पहन पट्टे वाला। 

एक दिन शहर ने सिखला दिया पैंट पहनना,

फिर लंबे बाल और बैलबॉटम में

पता नहीं चलता था कि बंदा भाई है या बहना। 


फिर बदल बदल कर पैंट के आकार,

जब चैन न मिला तो शुरू हुआ जींस का व्यापार।

पर नई जींस शहरी लोगों को पसंद नहीं आई,

तो करने लगे सड़क पर रगड़ रगड़ कर घिसाई। 

आखिर मेहनत मजदूरी की ही तो थी ये निशानी

ऐशो आराम की जिंदगी में डिस्ट्रेस की कहानी। 


कहते हैं नया तो नौ दिन ही रहता है,

फैशन वर्ल्ड भी बस इसीलिए बेचैन रहता है। 

जब धूप संग सर्द हवा पानी भी प्रवेश पाने लगे,

तो लोग डेमेज कंट्रोल के नए तरीके आजमाने लगे।

नए तरीके से फैशन में थोड़ा काम बढ़ गया है,

अब फटी जींस के छेद पर पैबंद चढ़ गया है। 


फैशन भले ही नया है पर तकनीक पुरानी है,

इसकी असली जन्मदाता तो हमारी दादी नानी है। 

साठ साल पहले की महिलाएं कुशल रफूगर होती थीं,

वे अनपढ़ पर दूरदृष्टि वाली डिजाइनर होती थीं। 

जिस पैबंद वाली जींस ने फैशन को नया मोड़ दिया है,

वो हमने गांव में पचास साल पहले करके छोड़ दिया है। 


Wednesday, October 18, 2023

प्रस्थान


ढलती उम्र में हम कैसा कहर ढाने लगे हैं,

पुरानी पत्नी संग नया घर बसाने लगे हैं ।


उम्र तो है वन की ओर प्रस्थान करने की,

उपवन में कोयल संग दिल बहलाने लगे हैं। 


ना जग का लिहाज़ रहा ना उम्र की फिक्र,

कुटिया की जगह कोठियां बनाने लगे हैं। 


मकान है बड़ा और घर में नहीं कोई नौकर,

आधा दिन हम रसोईघर में बिताने लगे हैं। 


नहीं कोई संगी साथी, रहते हैं दिन भर अकेले,

मानो सूनी गलियों में चौकीदारा निभाने लगे हैं। 


ज़िंदगी भर जीते रहे ईमानदारी की ज़िंदगी,

अब पड़ोसी के अमरूद देख ललचाने लगे हैं। 


उम्र तो दिखाई देती है योगी बन जाने की,

भोगी बनकर ऐश्वर्य संसाधन जुटाने लगे हैं। 


ज़िंदगी भर रहे दिल्ली के हरियाणवी बन कर,

अब हरियाणा के हरियाणवी कहलाने लगे हैं। 


दो कश्तियों में पांव रख कर घूम रहे हैं हम,

यहां वहां दो दो जगह रिश्ता निभाने लगे हैं। 


मकान हों अनेक भले ही पर बीवी तो एक भली,

बस यही समझने और सब को समझाने लगे हैं।