अपनी तो जैसे तैसे लाला
कट रही थी पाजामा पहन पट्टे वाला।
एक दिन शहर ने सिखला दिया पैंट पहनना,
फिर लंबे बाल और बैलबॉटम में
पता नहीं चलता था कि बंदा भाई है या बहना।
फिर बदल बदल कर पैंट के आकार,
जब चैन न मिला तो शुरू हुआ जींस का व्यापार।
पर नई जींस शहरी लोगों को पसंद नहीं आई,
तो करने लगे सड़क पर रगड़ रगड़ कर घिसाई।
आखिर मेहनत मजदूरी की ही तो थी ये निशानी
ऐशो आराम की जिंदगी में डिस्ट्रेस की कहानी।
कहते हैं नया तो नौ दिन ही रहता है,
फैशन वर्ल्ड भी बस इसीलिए बेचैन रहता है।
जब धूप संग सर्द हवा पानी भी प्रवेश पाने लगे,
तो लोग डेमेज कंट्रोल के नए तरीके आजमाने लगे।
नए तरीके से फैशन में थोड़ा काम बढ़ गया है,
अब फटी जींस के छेद पर पैबंद चढ़ गया है।
फैशन भले ही नया है पर तकनीक पुरानी है,
इसकी असली जन्मदाता तो हमारी दादी नानी है।
साठ साल पहले की महिलाएं कुशल रफूगर होती थीं,
वे अनपढ़ पर दूरदृष्टि वाली डिजाइनर होती थीं।
जिस पैबंद वाली जींस ने फैशन को नया मोड़ दिया है,
वो हमने गांव में पचास साल पहले करके छोड़ दिया है।