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Wednesday, December 27, 2017

स्वास्थ्य रुपी द्रोपदी के पांच पांडव ---


हमारी सेहत द्रोपदी जैसी है जिसकी सुरक्षा पांच पांडवों के हाथों में है।  लेकिन जिस तरह पांडवों की उपस्थिति में भी कौरवों ने द्रोपदी का चीर हरण किया था , और तब श्रीकृष्ण जी ने आकर उसे बचाया था, उसी तरह सेहत के पांच पांडव भी फेल हो सकते हैं , यदि किस्मत रुपी कृष्ण साथ न दे। ये पांच पांडव हैं :
१)  युधिष्ठर -- मेडिटेशन ( ध्यान ) 
२ ) अर्जुन ----योग 
३ ) भीम ------मस्कुलर एक्सरसाइज़ 
४ ) नकुल --- एरोबिक एक्सरसाइज़ 
५ ) सहदेव -- लाफ्टर ( तनाव रहित जीवन )  

आइये देखते हैं इन पांच प्रक्रियाओं का हमारे शरीर पर प्रभाव : 

* मेडिटेशन से हमारा चलायमान चित शांत होकर एकाग्र और तनाव रहित होता है। हमारी सोच में सुधार होता है और हम सात्विक जीवन की ओर अग्रसर होते हैं।  
* योग हमें शारीरिक और मानसिक रूप से अनुशासित बनाता है।  योग द्वारा हम अपनी गतिविधियों को नियंत्रित कर सकते हैं जिससे हमारी कार्यक्षमता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। 
* मस्कुलर एक्सरसाइज़ जैसे जिम या घर में ही उठक बैठक आदि लगाना एक मेहनत का काम है जिसमे बहुत पसीना बहाना पड़ता है।  लेकिन स्वास्थ्य के लिए यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। मस्कुलर एक्सरसाइज़ से हमारे शरीर में कई एंडोर्फिन्स का श्राव होता है जो शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।  
* एरोबिक एक्सरसाइज़ जैसे दौड़ना , साइक्लिंग , तैरना , सीढ़ियां चढ़ना आदि ऐसी कसरतें हैं जिससे हमारा कार्डिओ रेस्पिरेटरी सिस्टम मज़बूत होता है।  स्टेमिना बढ़ता है , साँस फूलना बंद होता है , दिल की धड़कन पर काबू होता है और कोई भी भारी काम आसानी से कर सकते हैं।  
* लाफ्टर यानि हंसना हँसाना जिंदगी का एक अहम् हिस्सा है जो हमें तनाव मुक्त रखता है और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।  

इन पांच कार्य कलापों से आप अपना स्वास्थ्य निश्चित ही बेहतर रख सकते हैं।  लेकिन फिर भी आप सदा निरोग ही रहें , इस बात की गारंटी नहीं दी जा सकती क्योंकि हमारा शरीर पूर्णतया हमारे वश में नहीं है।  यदि किस्मत ख़राब हो तो कभी कभी कुछ लोगों को ऐसी बीमारी लग जाती है जिसका कोई इलाज नहीं होता और कोई कारण भी नहीं होता, जैसे कैंसर।  यदि किस्मत से आप ऐसे रोगों से बचे रहे तो बाकि पांच पांडव रुपी गतिविधियां आपको सदा स्वस्थ रख सकती हैं।  बस इसके लिए चाहिए मन में दृढ निश्चय , लगन , मेहनत का ज़ज़्बा और विश्वास।  

मस्कुलर एक्सरसाइज़ : 

सदियों से शरीर को मज़बूत बनाने के लिए शारीरिक श्रम और कसरत का सहारा लिया जाता रहा है।  जब आधुनिक सुविधाएँ  उपलब्ध नहीं थीं तब अखाड़े , दंगल , कुश्ती आदि के लिए दंड बैठक और मुद्गल जैसी कसरतें ही काम आती थीं।  लेकिन आजकल जिम में तरह तरह के उपकरण उपलब्ध होते हैं जिनसे शरीर की एक एक मांसपेशी की कसरत की जा सकती है।  
मस्कुलर एक्सरसाइज़ सिर्फ मसल्स बनाने के लिए ही काम नहीं आती , बल्कि इससे हमारे शरीर पर और कई तरह से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।  आइये देखते हैं कि अच्छी मस्कुलर एक्सरसाइज़ से क्या होता है :

* करीब आधे घंटे की कड़ी एक्सरसाइज़ के बाद हमारे शरीर में न्यूरोट्रांसमिटर्स का स्राव बढ़ जाता है जिन्हे एंडोर्फिन्स कहते हैं।  यह रसायन एक दर्द निवारक का काम करता है।  इससे तनाव भी कम होता है और आप अच्छा महसूस करते हैं।  यह एंटी डिप्रेसेंट भी है यानि इससे अवसाद ख़त्म होता है और मूड एलिवेट होता है यानि आप खुश महसूस करते हैं।  
* केटाकोलअमीन्स जिसमे एड्रिनलिन और नॉरएड्रिनलिन शामिल हैं , के श्राव से शरीर में उत्साह और चुस्ती स्फूर्ति आती है। इससे शरीर के हर एक अंग की गतिविधि में तेजी आती है।  
* टेस्टोस्टिरॉन एक मेल हॉर्मोन है लेकिन मेल और फीमेल दोनों में पाया जाता है।  इससे शरीर में ताकत , चुस्ती स्फूर्ति , साहस और पुरुषत्त्व का आभास होता है।  टेस्टोस्टिरॉन के बढ़ने से मर्दाना ताकत में वृद्धि होती है तथा स्तंभन दोष ठीक होता है। यह बालों के लिए भी एक टॉनिक का काम करता है।  

इस तरह कुल मिलाकर फिजिकल एक्सरसाइज़ से तन और मन दोनों में चुस्ती स्फूर्ति महसूस होती है और आप सदा जवान बने रहते हैं। कई तरह के लाइफ स्टाइल से सम्बंधित रोग जैसे डायबिटीज , बी पी , कॉलेस्ट्रॉल आदि  स्वत: ठीक हो जाते हैं या इनमे बहुत लाभ होता है।  इसके लिए कोई आयु सीमा भी नहीं है।  हर आयु का मनुष्य , स्त्री या पुरुष , एक्सरसाइज़ करके स्वस्थ रह सकता है।    
    


Saturday, December 23, 2017

दिल तो अभी बच्चा है जी ...

जिंदगी के तीन पड़ाव -- पूर्वव्यापी।

१) बचपन :

ये दिल तो बच्चा है जी।
दिल तो अभी बच्चा है जी।
जो काम कभी नहीं किये ,
उन्हें करने की इच्छा है जी।

किसी बगिया से आम तोड़ कर लाएं ,
कभी पेड़ से चढ़ अमरुद तोड़ कर खाएं।
गन्ने के खेत से गन्ना चुराकर चूसें ,
कोल्हू के गन्ने का ताज़ा रस पी जाएँ।

पर गांव की नदी में कूदने में गच्चा है जी ,
क्योंकि अपुन तैरने में अभी कच्चा है जी।

२) जवानी :

कभी पब , बार और डिस्को में जाते ,
किसी हसींना को देख सीटी बजाते ।
कभी रात रात भर घर से गायब रहते ,
लेट क्लास का घर में बहाना बनाते ।

काहे अपनी सच्चाई पर इतना गुमान है ,
नेकी छोड़ यार , दिल तो अभी जवान है।

३ ) बुढ़ापा  :

ना किसी से बैर , ना ही किसी से यारी ,
धर्म कर्म करने की उम्र हो गई हमारी।
मोह माया के जाल से मुक्त हो जाएँ ,
ख़त्म हो जाये जब सारी जिम्मेदारी ।

दिल को संभालें वरना, टूटना पक्का है जी ,
दिल ना अब जवान है , न ये बच्चा है जी।

Monday, December 11, 2017

दोष डॉक्टर्स का नहीं , अस्पतालों का है ---


यह कहावत तो आपने सुनी ही होगी। कुछ ऐसी ही हालत हो गई है आजकल मेडिकल प्रॉफ़ेशन की।  नोबल प्रॉफ़ेशन कहलाये जाने वाले चिकित्सा जगत में डॉक्टर्स को कभी भगवान माना जाता था।  लेकिन अब नहीं , बल्कि अब तो डॉक्टर्स पर आए दिन हमले और दुर्व्यवहार होते जा रहे हैं। इसका मुख्य कारण है आम जनता के लिए समुचित चिकित्सा सम्बन्धी सेवाओं का उपलब्ध न होना। हमारे देश में मुख्य रूप से चिकित्सा सेवाएं दो तरह से प्रदान की जा रही हैं।  एक सरकारी अस्पताल और डिस्पेंसरीज।  दूसरे प्राइवेट अस्पताल , नर्सिंग होम्स और क्लिनिक्स।  लेकिन जब से निजी अस्पतालों पर कॉर्पोरेट का कब्ज़ा हुआ है तब से न सिर्फ छोटे नर्सिंग होम्स बंद हो गए हैं या बंद होने की कगार पर हैं , बल्कि इन फाइव स्टार अस्पतालों का एक छत्र राज होता जा रहा है।  अधिकांश प्राइवेट अस्पताल बड़े बिजनेस घरानों द्वारा चलाये जा रहे हैं।  उनका मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना होता है।  बेशक , बड़ी इन्वेस्टमेंट द्वारा ये अस्पताल सब तरह के आधुनिक उपकरण और सुविधाएँ मुहैया कराने में सफल रहते हैं , लेकिन यहाँ इलाज कराना इतना महंगा पड़ता है कि या तो यह आम आदमी की पहुँच से बाहर होता है या फिर वे अपना पेट काटकर इलाज कराते हैं।

लेकिन अपनी हैसियत से ज्यादा खर्च कर के भी जब या तो रोगी की मृत्यु हो जाती है या ज़रुरत से ज्यादा और अपेक्षित रूप से ज्यादा बड़ा बिल सामने आता है तो रोगी के सम्बन्धी दुर्व्यवहार पर उतर आते हैं।  हालाँकि लोगों को इस तरह स्वास्थ्यकर्मियों के साथ दुर्व्यवहार करने का कोई अधिकार नहीं है , और मार पीट तथा तोड़ फोड़ तो निश्चित ही गैर कानूनी है।  लेकिन अक्सर भावनाओं में बहकर लोग यह धृष्टता कर बैठते हैं। रोगियों के रिश्तेदारों की इन प्रतिक्रियाओं को किसी भी रूप में सही नहीं ठहराया जा सकता और न्यायालय द्वारा उन पर यथोचित कानूनी कार्यवाई करने का प्रावधान है। लेकिन इस के बावजूद कभी कभी तोड़ फोड़ की बड़ी घटनाएं घट जाती हैं जो निंदनीय हैं।

जहाँ जनता को भी यह समझना होगा कि वास्तव में डॉक्टर्स भगवान नहीं होते।  वे केवल उपचार करते हैं और सही उपचार से अधिकांश रोगी रोगमुक्त भी हो जाते हैं।  लेकिन डॉक्टर्स किसी को भी अमर नहीं कर सकते।  डॉक्टर क्या भगवान भी किसी को अमर नहीं बनाता।  यदि ऐसा होता तो दुनिया में किसी की मृत्यु ही नहीं होती। एक डॉक्टर केवल रोग का उपचार करता है , दर्द का निवारण करता है और गंभीर रोगों का भी दवा या शल्य चिकित्सा द्वारा उपचार कर रोगी को रोगमुक्त करता है।  लेकिन जितनी आयु विधाता ने निश्चित कर दी , उस से एक दिन ज्यादा भी कोई नहीं जिन्दा रख सकता।  यह बात जनता को समझानी पड़ेगी और उन्हें समझनी पड़ेगी।

तथापि चिकित्सा जगत को भी अपनी कार्यप्रणाली में कुछ सुधार लाना आवश्यक हैं। अति आधुनिक कॉर्पोरेट अस्पतालों को सिर्फ अपने आर्थिक लाभ के बारे में न सोचकर , अपने सामाजिक उत्तरदायित्त्व के बारे में भी सोचना होगा। यदि पैसा ही कमाना है तो और बहुत से व्यवसाय हैं।  कम से कम चिकित्सा को धंधा और अस्पतालों को पैसा कमाने की मशीन तो न बनाया जाये। यहाँ यह समझना आवश्यक है कि कोई भी डॉक्टर जान बूझ कर कभी किसी रोगी के साथ लापरवाही नहीं बरतता।  बल्कि सरकारी हो या प्राइवेट , हर डॉक्टर के लिए सबसे ज्यादा आवश्यक और सुखद अनुभव होता है जब उसका रोगी उसके उपचार से ठीक हो जाता है। रोगी का सही उपचार करना सभी डॉक्टर्स के लिए एक चुनौती होती है जिसे स्वीकार करना एक डॉक्टर का पेशा ही नहीं बल्कि धर्म होता है और हर डॉक्टर उसे बखूबी निभाने की कोशिश करता है।

यहाँ सरकार की भी बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। भले ही आम आदमी के लिए सरकारी अस्पतालों में मुफ्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है , लेकिन एक ओर रोगियों की बढ़ती संख्या और दूसरी ओर स्टाफ और सुविधाओं की कमी , सरकारी अस्पतालों में उपचार में बाधा उत्पन्न करते हैं। यदि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर्स और अन्य कर्मियों की संख्या समुचित हो तो किसी को भी उपचार से वंचित न होना पड़े।  दूसरी ओर प्राइवेट अस्पतालों में इलाज बहुत महंगा पड़ता है।  हालाँकि , अधिकांश बड़े प्राइवेट अस्पतालों को सरकार से भूमि कम दाम पर उपलब्ध कराई गई है , ताकि वे गरीबों का इलाज नियमनुसार निशुल्क कर सकें , लेकिन सरकार इस नियम को लागु करने में लगभग विफल रही है। इसलिए सभी अस्प्तालों में २५ % बाह्य विभाग और १०% बेड्स गरीबों के लिए उपलब्ध होने का प्रावधान होने के बावजूद , बहुत कम रोगी ही इसका लाभ प्राप्त करने में सफल रहते हैं। 

इस मामले में मीडिया का रोल भी बहुत महत्त्वपूर्ण रहता है।  अक्सर मीडिया एक छोटी सी घटना को बहुत बड़ी दुर्घटना का रूप देकर सनसनी फ़ैलाने का प्रयास करता है।  यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। मीडिया को अपना उत्तरदायित्त्व समझते हुए जिम्मेदारी से काम करना चाहिए। लेकिन ऐसा लगता है कि प्रचंड प्रतिस्पर्धा के ज़माने में समाचारों को बढ़ चढ़ कर दिखाना जैसे उनकी मज़बूरी सी बन गई है।   

कहते हैं शराब ख़राब नहीं होती , खराबी पीने वाले में होती है।  यदि कोई पीकर उधम मचाये या नाली में गिरा मिले तो यह पीने वाले की कमी है।  इसी तरह चिकित्सा जगत में अक्सर डॉक्टर्स का कोई कसूर नहीं होता। जहाँ सरकारी डॉक्टर्स को अत्यधिक रोगियों की संख्या का सामना करना पड़ता है , वहीँ प्राइवेट अस्पतालों में डॉक्टर्स को प्रबंधन की अनुचित मांगों को मानते हुए विवशतापूर्ण वातावरण में काम करना पड़ता है। इसीलिए अक्सर सरकारी अस्प्तालों में इलाज में कमी और प्राइवेट अस्पतालों में अनावश्यक टैस्ट्स और ओवर ट्रीटमेंट का आरोप लगाया जाता है। लेकिन यदि कहीं कमी रहती है तो वो क्रमश: सरकार और कॉर्पोरेट में मालिकों के प्रबंधन और कार्य प्रणाली में होती है। इसलिए किसी भी दुर्घटना या इलाज में कौताही के आरोप पर डॉक्टर्स के विरुद्ध आँख बंद कर कार्यवाई करना अनुचित और दुर्भाग्यपूर्ण लगता है। डॉक्टर्स समाज का सबसे ज्यादा शिक्षित और प्रशिक्षित हिस्सा है।  इन्हे यूँ बदनाम न किया जाये और जीवन भर के कठिन परिश्रम का ऐसा इनाम न दिया जाये कि उन्हें समाज में लज़्ज़ित होना पड़े।

यहाँ यह कहना सर्वथा अनुचित नहीं होगा कि डॉक्टर्स को भी हिप्पोक्रेटिक ओथ के अंतर्गत अपने कर्तव्य का पालन करते हुए समाज और रोगियों की सेवा में तत्पर रहते हुए ईमानदारी और श्रद्धापूर्वक अपना काम करना चाहिए।