एक समाचार से पता चला है कि न्यूयॉर्क के स्टोनी ब्रूक यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ़ मेडिसिन में किये गए शोध कार्य से पता चला है कि मनुष्य की मृत्यु के बाद व्यक्ति विशेष को कुछ समय तक अपनी मृत्यु के बारे में अहसास रहता है कि वह मर गया है। इसका कारण यह है कि हृदयगति रुकने पर डॉक्टर तो रोगी को मृत घोषित कर देते हैं लेकिन रक्त संचार बंद होने के बाद भी मनुष्य का मस्तिष्क कुछ समय के लिए कार्यशील रहता है। इससे डॉक्टरों द्वारा मृत घोषित करने के बाद भी मनुष्य कुछ समय तक देख, सुन और समझ सकता है। यानि उसे मृत्यु के कुछ समय बाद भी जब तक डॉक्टर्स उसे पुनर्जीवित करने में प्रयासरत रहते हैं , रोगी को अपने आस पास घटित होने वाली घटनाओं का पता चलता रहता है। यहाँ तक कि पुनर्जीवन की प्रक्रिया के दौरान डॉक्टर्स और नर्सें क्या बातें करते हैं , यह भी उसे सुनाई और दिखाई देता है और समझ में आता है। ये बातें उन लोगों से पता चली हैं जो हृदयगति बंद होने के बाद डॉक्टरों के प्रयास से पुनर्जीवित हुए थे।
लेकिन इस शोध में बताई गई कुछ बातें सही नहीं लगती। केवल हृदयगति बंद होने पर डॉक्टर्स किसी भी रोगी को मृत घोषित नहीं करते। मृत घोषित तभी किया जाता है जब मस्तिष्क काम करना बंद कर देता है जिसे डॉक्टर्स कुछ टैस्ट्स द्वारा तय करते हैं। हृदयगति बंद होने पर सी पी आर द्वारा रोगी का हृदय दोबारा चालू करने का प्रयास किया जाता है जो अक्सर सफल रहता है और रोगी ठीक हो जाता है। इस बीच निश्चित ही रोगी को सब अहसास रह सकता है। लेकिन हृदय के साथ जब मस्तिष्क भी काम करना बंद कर देता है , तब मृत्यु घोषित की जाती है जो कम से कम १० मिनट या उससे भी ज्यादा तक पुनर्जीवन प्रक्रिया के प्रयास के बाद किया जाता है। ऐसे में निश्चित ही रोगी के अहसासों के बारे में किसी को पता नहीं चल सकता।
यहाँ यह बात भी महत्त्वपूर्ण है कि पुनर्जीवन प्रक्रिया के दौरान क्योंकि रोगी को सब अहसास होता रहता है , इसलिए यह आवश्यक है कि इस दौरान डॉक्टर्स या नर्सें अपना सारा ध्यान रोगी को पुनर्जीवित करने में ही लगाएं और कोई भी ऐसी बात मुँह से न निकालें जो तर्कसंगत न हो या रोगी की दृष्टि से अशोभनीय हो। साथ ही डॉक्टर्स द्वारा पुनर्जीवित करने का भरपूर प्रयास किया जाना भी आवश्यक है क्योंकि जब तक मस्तिष्क काम करता है , तब तक पुनर्जीवन निश्चित ही संभव है। लेकिन ब्रेन डेड होने के बाद हृदयगति का आना न सिर्फ निष्फल और निरुपयोगी है, बल्कि रोगी और उसके घरवालों के लिए भी एक असहनीय और लंबित पीड़ा साबित होती है।
लेकिन मृत्यु शैया पर निश्चेतन या अर्धचेतन अवस्था में लेटे हुए व्यक्ति को वास्तविक रूप से मृत्यु होने तक और
मृत्यु के बाद क्या क्या अनुभव और अहसास होते हैं, यह एक रहस्य ही बना रहेगा।