top hindi blogs

Monday, November 25, 2019

महा चुनावों पर एक पैरोड़ी ---


नगरी नगरी , होटल होटल , छुपता जाये बेचारा ,
ये सियासत का मारा  ....

चुनावों तक का साथ था इनका , जीतने तक की यारी,
आज यहाँ तो कल उस दल में , घुसने की तैयारी।
नगरी नगरी , होटल होटल ----

मंत्री पद के पीछे क्यों हैं , ये नेता सब पगले ,
यहाँ की ये कुर्सी नहीं मिलेगी , ग़र होटल से निकले ।
नगरी नगरी , होटल होटल ----

कदम कदम पर नेता बैठे , अपना हाथ बढ़ाये ,
सियासत के खेल में जाने , कौन कहाँ मिल जाये।
नगरी नगरी , होटल होटल ---

काले नोटों में बिकता हो, जहाँ दलों का प्यार ,
वोट्स भी बेकार वहां पर , वोटर भी बेकार।
नगरी नगरी , होटल होटल  ----

उन जैसों के भाग में लिखा , कुर्सी का वरदान नहीं ,
जिसने उनको नेता चुना वो , अवसर है मतदान नहीं।
नगरी नगरी , होटल होटल ---




Monday, November 18, 2019

पत्नी पर एक गंभीर विचार विमर्श --



वो पास होती है तो फरमान सुनाती है।
अज़ी ऐसा मत करना , वैसा मत करना ,
ये मत खाना , वो मत खाना ,
कुछ भी खाना पर ज्यादा मत खाना।

वो दूर होती है तो समझाती है ,
अज़ी ऐसा करना , वैसा करना ,
ये खा लेना , वो खा लेना ,
कुछ भी खाना पर भूखा मत रहना।

हम तो हर हाल में ,
बस पत्नी का हुक्म बजाते हैं।
वो दिन को रात भी कहे तो ,
आँख बंद कर रात ही बताते हैं।

वो , हो , तो मुसीबत,
ना हो तो और बड़ी मुसीबत।
पत्नी तो एक दोधारी तलवार होती है।
परन्तु पत्नी पास हो या दूर,
सोते जागते उसके मन पर बस ,
पति और बच्चों की ही चिंता सवार होती है। 


Thursday, November 7, 2019

शादी करवा के मारे गए --एक हास्य कविता --


एक दिन एक हास्य कवि से हो गई मुलाकात,
अवसर देख कर मैं करने लगा उनसे बात।

मैंने कहा ज़नाब आप सारी दुनिया को हंसाते हैं ,
लेकिन खुद कभी हँसते हुए नज़र नहीं आते हैं।

क्या बता सकते हैं आप इस चक्कर में कब फंसे थे ,
और दिल खोलकर आखिरी बार कब हँसे थे। 

वो बोले, ज़रूर बता सकता हूँ मैं इस चक्कर में कब फंसा था ,
मैं आखिरी बार दिल खोलकर अपने शादी वाले दिन हंसा था।

भला क्या बताऊँ वो दिन मेरे लिए कैसा था,
बस यूँ समझ लो बिलकुल ९/११ जैसा था।

मैंने कहा ज़नाब आप ऐसे विचार क्यों रखते हैं,
और पत्नी को ऐसी मुसीबत क्यों समझते हैं।

वो बोले यार तुम भी कमाल करते हो ,
शादी शुदा होकर ये सवाल करते हो।

क्या आपको पत्नी कभी नहीं लगती अच्छी ,
वो बोले नहीं भाई , ये बात नहीं है सच्ची। 

एक दिन बड़ी अच्छी लगी थी जब वो बोली,
मैं एक सप्ताह के लिए मायके जा रही हूँ।

पर दिल पर चोट सी लगी जब अगले दिन बोली,
अज़ी मैं आज शाम को ही घर वापस आ रही हूँ।

एक ही दिन का विरह उन्हें तो खलने लगा था ,
पर मैं कैसे बताता, मेरा दिल तो तभी लगने लगा था।

मैंने कहा, मान लीजिये आपकी पत्नी भाग जाये,
तो ऐसे में आप क्या करेंगे उपाय।

वो झट से बोले, अब तो मानकर ही दिल समझाना पड़ेगा,
वरना मुझे पता है, ये कष्ट तो जिंदगी भर उठाना पड़ेगा।

पर ऐसा हुआ कभी तो मैं दिल से नहीं दिमाग से काम लूंगा,
और भगाने वाले को दस हज़ार रूपये इनाम दूंगा।

साथ ही ये बात भी हम उसे ज़रूर समझायेंगे ,
कि भैया रख ले, तेरे बुरे दिनों में काम आएंगे।

पर देखिये एक बात आपको भी बतलाऊंगा ,
कुछ भी हो जाये पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखवाऊंगा।

पिछली बार लिखवाई थी, संकट के ऐसे बदल छाये,
नालायक नामुराद, ढूंढ कर घर वापस ले आये।

बोले देखिये, अब सुपरदारी पर आपके पास छोड़ रहे हैं ,
संभाल कर रखियेगा, आप बार बार कानून तोड़ रहे हैं।

मैंने कहा यार, मेरे जीवन में अभी तो आने लगी थी बहार,
फिर क्यों पकड़ लाये इस मुसीबत को फिर एक बार।

कविवर, अपने अनुभवों की माला के कुछ मोती लुटा दीजिये,
और देश के कुंवारों को शादी के कुछ गुर बता दीजिये।

बोले मैं तो अब अगले जन्म में कुंवारा ही रहना चाहूंगा ,
लेकिन देश के कुंवारों को बस यही कहना चाहूंगा।

कि बेटा जिंदगी में शादी एक बार ज़रूर कराना ,
वरना जिंदगी भर बिना वजह ही पड़ेगा पछताना।

शादी करके आपकी हालत जो होगी सो होगी,
पर कम से कम पछताने की एक वजह तो होगी।

""एक दूल्हे की किस्मत सही वक्त पर जाग गई ,
फेरों से पहले दुल्हन खिड़की से कूदकर भाग गई।
दूल्हा भी कौन सा दूध का धुला और सीधा सादा था ,
पिछली शादी में वो खुद घोड़ी के साथ भागा था।""


Friday, November 1, 2019

भ्रष्टाचार पर एक हास्य व्यंग पैरोडी --


प्रस्तुत है, प्रसिद्ध हास्य व्यंग कवि श्री आशकरण अटल जी की एक दिलचस्प हास्य व्यंग कविता पर आधारित एक हास्य व्यंग पैरोडी कविता :

एक बिन बुलाये कवि ने,
कवि सम्मेलन में एंट्री ली।
कवि जी अभी मंच पर पहुंचे भी नहीं ,
कि संयोजक ने उसे पहले ही संभाल लिया,
और सवाल किया।

आप यहाँ क्या कर रहे हैं ?
जी मैं समझा नहीं, कहाँ क्या कर रहे हैं।
आप यहाँ इस कवि सम्मेलन में क्या कर रहे हैं ?
जी हम यहाँ कविता सुनाने आये हैं।
क्या बुलाने पर आये हैं ?
जी नहीं, हम बिन बुलाये स्वयं ही चले आये हैं।
क्या आपको पता है, बिन बुलाये कविता सुनाने पर
आपको पैसे नहीं मिलेंगें ?
जी, पता है।
जब आपको पता था कि बिन बुलाये
कविता सुनाने पर आपको पैसे नहीं मिलेंगे,
तो फिर आप यहाँ क्यों आये ?
जी, राष्ट्र हित में आये।

अच्छा, कविता सुनाकर आप क्या करेंगे ?
जी, कविता सुनाकर हम चले जायेंगे।
क्या कभी फिर आएंगे ?
जी अवश्य आएंगे।
आप जबरदस्ती कवितायेँ कब तक सुनाते रहेंगे ?
जी जब तक हमें बिना बुलाये,
आप कवि सम्मेलन कराते रहेंगे।
आप निशुल्क कविता सुनाकर,
ये आर्थिक त्याग क्यों कर रहे हैं ?
जी राष्ट्रहित में कर रहे हैं।

आखिर आप मुफ्त कविता क्यों सुनाते हैं ,
जबकि कविता सुनकर आप कुछ धन राशि कमा सकते हैं। 
क्योंकि हम गवर्न्मेंट सर्वेंट हैं ,
आप चाहें तो हमें सरकारी बाबू कहकर भी बुला सकते हैं।
और सरकारी बाबू सीट छोड़कर,
पैसा कमाने कहीं नहीं जाते हैं।
क्योंकि नेताओं की तरह वे भी
कुर्सी पर बैठे बैठे ही बिक जाते हैं।
और खुले आम निडर होकर दोनों हाथों से ,
विशुद्ध करमुक्त धन कमाते हैं।

क्या इस परम्परा को निभाया जाना चाहिए ?
और बाकि कवियों को भी राष्ट्र हित में ,
मुफ्त कविता सुनाने के लिए ,
आगे आना चाहिए , आगे आना चाहिए !

नोट : साभार आशकरण अटल जी।


Thursday, October 17, 2019

करवा चौथ स्पेशल --


कहते हैं,
खरबूजे को देखकर
खरबूजा रंग बदलता है।
लेकिन पत्नी पर भैया, भला
किसका वश चलता है।

हमने पत्नी से कहा ,
आप में बस एक कमी है।
आपको हमारी लम्बी उम्र की,
फ़िक्र ही नहीं है।

पत्नी बोली,
देखो मेरा गला ख़राब है,
ज्यादा जोर से बोल नहीं सकती।
लेकिन ना पहले की है नक़ल ,
ना अभी मैं कभी कर नहीं सकती।

माना कि हमारा वर्षों का साथ है ,
किन्तु आपकी उम्र और आपकी सेहत,
आपके ही हाथ है।
जब रोजाना जिम जाते थे ,
६० में भी गबरू नज़र आते थे। 
अब सारा दिन घर में पड़े पड़े,
रोटियां तोड़ते हो।
और लम्बी उम्र का ठीकरा,
हम पर फोड़ते हो।

अज़ी शर्म करो, बिस्तर से उठो,
ज़रा शारीरिक श्रम करो । 
डांस क्लास ही ज्वाइन कर लो,
पर हम पर रहम करो।     
आजकल डांस में भी,
एक्सरसाइज ही तो कराते हैं।
तभी तो सभी डांसर,
एकदम फिट नज़र आते हैं।

पत्नी की बात हमारी समझ में आ गई ,
समझो अकल में समां गई।
किन्तु डांस क्लास ज्वाइन की तो समझे कि ,
इस उम्र में ये बात ,
आहिस्ता आहिस्ता ही समझ में आती है।
जिंदगी भर तो पत्नी ,
एक उंगली पर नचाती रही ,
अब डांस मास्टर अपने इशारों पर नचाती है।


Thursday, October 10, 2019

ज़ुर्माने के हंगामे पर एक पैरोड़ी --



जुर्माना है क्यों इतना, थोड़ी सी तो ही पी है,
नाका तो नहीं तोड़ा, लाइट जम्प तो नहीं की है। 

क्यों उनको नहीं पकड़ा , जिनके हैं शीशे काले ,
क्या जाने उस गाड़ी में , बैठा कोई बलात्कारी है। 

जुर्माना है क्यों इतना ,थोड़ी सी तो ही पी है,
शीशा तो नहीं काला , लाइन क्रॉस भी नहीं की है।...

गाड़ी को लगे धक्का, ट्रैफिक के नतीज़े हैं ,
धुत हमको कहे मालिक, खुद जिसने ही पी है ।

जुर्माना है क्यों इतना. , थोड़ी सी तो ही पी है,
स्पीड लिमिट तो क्रॉस नहीं की, पी यू सी भी है।...

नासमझ और नादाँ, लोगों की ये बातें हैं ,
स्कॉच को क्या जाने, देसी जिसने पी है ।
जुर्माना है क्यों इतना..

हर ठर्रा निकलता है , मंज़ूर ऐ सिपाही से ,
हर बेवड़ा कहता है , रम है तो नशा भी है।

जुर्माना है क्यों इतना, थोड़ी सी तो ही पी है,
नाका तो नहीं तोड़ा, लाइट जम्प तो नहीं की है।

जुर्माना है क्यों इतना...

नोट : यह व्यंगात्मक हास्य पैरोडी सिर्फ यातायात के नियम तोड़ने वालों पर लिखी गई है।


Tuesday, October 1, 2019

मोटर वाहन अधिनियम लागु हो रहा है धीरे धीरे --


जो दौड़ते थे ८० -९० पर , सरकने लगे हैं धीरे धीरे।
मेरे शहर के लोग आखिर, बदलने लगे हैं धीरे धीरे।

हाथ में लटकाकर हेलमेट, उड़ती थी हवा में ज़ुल्फ़ें,
गंजे सर भी अब तो हेलमेट,पहनने लगे हैं धीरे धीरे।

डंडे के डर से मदारी, नचाता है अपने बन्दर को ,
चालान के डर से इंसान, सरकने लगे हैं धीरे धीरे। 

ड्रंक ड्राइविंग का ख़ौफ़, रहता था ११ बजे के बाद ,
मदिरा छोड़ अब फ्रूट जूस , गटकने लगे हैं धीरे धीरे।

देर से ही सही मोटर वाहन अधिनियम आया तो ,
धीरे धीरे ही सही लोग, सुधरने लगे हैं धीरे धीरे।

Wednesday, September 25, 2019

फेसबुक के चक्कर में ब्लॉगिंग भूल गए --

फेसबुक पर हम इतना झूल गए,
के कविता ही लिखना भूल गए।

जिसे देनी थी जीवन भर छाया ,
उस पेड़ को सींचना भूल गए।

मतलब में अपने कुछ ऐसे डूबे,
देश पर मर मिटना भूल गए ।

नींद में देखते रहे जिसे रात भर ,
आँख खुली तो वो सपना भूल गए।

बड़े भोले थे जाल में जा फंसे ,
फंसे तो पर निकलना भूल गए।

आँखों पर ऐसा पर्दा पड़ा यारो,
भीड़ में कौन है अपना भूल गए।

Tuesday, September 3, 2019

यदि देश में विकास लाना है तो जनता को अनुशासित होना पड़ेगा --


बचपन में अक्सर नेताओं और मंत्रियों को विदेश जाते देखते थे जो सरकारी खर्चे पर अपने विभाग से सम्बंधित विषय पर जानकारी प्राप्त करने के लिए विदेश का दौरा बनाते थे।  उनके साथ परिवार के सदस्य और विभाग के ऑफिसर्स भी जाते थे। इस तरह हर दौरे पर सरकार के लाखों रूपये खर्च होते थे जो आज के करोड़ों के बराबर होते होंगे। 
लेकिन अपने स्वयं के खर्चे पर विदेश जाकर जो हमने देखा तो पाया कि विदेशों की विकसित व्यवस्था का ज़रा सा भी प्रभाव या अनुसरण यहाँ नज़र नहीं आता। ऐसा प्रतीत होता है कि ये दौरे मात्र सैर सपाटे के लिए ही उपयोग में लाये गए।  आइये देखते हैं टोरंटो कनाडा जैसे शहर में किस तरह की नागरिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं जो हमारे यहाँ नहीं हैं।

सड़कें :

टोरंटो की सड़कें एकदम साफ और समतल हैं।  कहीं कोई गड्ढा नज़र नहीं आता। शहर हो या हाइवे , गाड़ियां सुचारु रूप से चलती हैं। तापमान में बदलाव के कारण सडकों में दरारें अवश्य आती हैं लेकिन इन्हे तुरंत भर दिया जाता है। ज़ाहिर है, सडकों में लगायी गई सामग्री उत्तम गुणवत्ता और बिना किसी मिलावट के होती है। सड़क पर कोई वाहन चालक हॉर्न नहीं बजाता। सभी शांति के साथ बत्ती हरी होने का इंतज़ार करते हैं।  स्टॉप लाइन को कोई पार नहीं करता। पैदल लोगों के लिए भी ज़ेबरा क्रॉसिंग पर लाइट होती है जिस पर हाथ बना होता है।  जहाँ लाइट नहीं होती वहां वाहन चालक पैदल को प्राथमिकता देते हैं। वहां की सडकों पर पैदल चलने वालों का पूरा ध्यान रखा जाता है।  यदि किसी को चोट लग जाये तो भारी जुर्माना होता है। सडकों पर मुख्यतया कारें ही चलती हैं।  हाइवे पर कुछ ट्रक भी नज़र आ जायेंगे। आपको एक भी गाड़ी पर कोई खरोंच या डेंट नज़र नहीं आएगा। सभी कारें साफ और चमचमाती हुई नज़र आती हैं। इन्हे धोने के लिए ऑटोमेटेड वाशिंग स्टेशन्स होते हैं जिसमे कार में ही बैठकर जाना पड़ता है। 

सार्वजनिक परिवहन :

शहर में कारें भी चलती हैं।  लेकिन बसें भी बहुतायत में हैं। बसों के अलावा ट्राम भी चलते हैं। दोनों का एक कॉमन टिकट होता है जिसे एक ही दिशा में  जाने के लिए अंत तक उपयोग में लाया जा सकता है।  टिकट खुद ही लेना पड़ता है। यहाँ सब ईमानदारी से टिकट खरीदते हैं।  बिना टिकट पकड़े जाने पर भारी जुर्माने का प्रावधान है।  हालाँकि हमें एक भी टिकट चेकर नज़र नहीं आया। शहर से बाहर सबअर्ब जाने के लिए ट्रेन चलती है जो बहुत ही आरामदायक है।  सबअर्ब में रहने वाले गाड़ी स्टेशन पर पार्क करते हैं और ट्रेन द्वारा डाउनटाउन में काम करने आते हैं। 

पार्किंग :

गाड़ियां सिर्फ पार्किंग में ही पार्क होती हैं। सडकों पर भी एक साइड में पार्किंग स्लॉट्स बने होते हैं जिसमे आप गाड़ी पार्क कर सकते हैं।  वहीँ साथ में पेमेंट के लिए किऑस्क बना होता है जिसमे कार्ड से पेमेंट कर टिकट ले लिया जाता है।  कहीं किसी भी पार्किंग में कोई अटेंडेंट नहीं होता। सब जगह ईमानदारी से स्वचालित होता है। 

सफाई :

शहर में कहीं भी कूड़ा या कूड़े के ढेर नज़र नहीं आते।  यहाँ कदम कदम पर डस्टबिंस रखे होते हैं जिनमे सामान्य कचरा और रिसाईक्लेबल वेस्ट अलग अलग डालना होता है। कूड़ा कभी ओवरफ्लो नहीं करता। कूड़ा ले जाने वाले ट्रक भी नज़र नहीं आते क्योंकि शायद वे रात में खाली किये जाते हैं। घरों में भी वेस्ट सेग्रिगेशन ईमानदारी से किया जाता है। हर घर में तीन तरह के बैग्स होते हैं। एक में आर्गेनिक वेस्ट दूसरे में प्लास्टिक आदि और तीसरे में सामान्य पेपर आदि।     

ड्रेनेज सिस्टम:

यहाँ अक्सर बारिश होती रहती है।  लेकिन पानी की निकासी इतनी बढ़िया है कि कहीं पानी इकठ्ठा नहीं हो पाता। कहीं कोई ओपन ड्रेन्स नज़र नहीं आती। सारा ड्रेनेज सिस्टम अंडरग्राउंड है। नालियां ब्लॉक होने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। 

शिष्टाचार :

वैसे तो यहाँ सब अपने आप में मस्त रहते हैं।  कोई किसी के काम में दखलअंदाज़ी नहीं करता। लेकिन सार्वजानिक स्थानों पर सब शिष्टाचार निभाते हैं।  पंक्ति में अपनी बारी का इंतज़ार करते हैं। कोई धक्का मुक्की नहीं करता।  बस या ट्रेन में पहले उतरने वाले उतरते हैं ,फिर चढ़ने वाले चढ़ते हैं। 

लगभग २८ लाख की आबादी वाले शहर टोरंटो में विश्व के लगभग सभी देशों से आये लोग रहते हैं। इनमे चीनी, भारतीय, फिलिपिनी , जापानी लोग बहुत हैं। लगभग ५० % गोर लोग हैं।  लेकिन सभी मिलजुल कर रहते हैं। जून से अगस्त तक के महीने गर्मियों के होते हैं जिनमे स्कूलों की भी छुट्टियां होती हैं। इस समय में यहाँ के लोग आउटडोर लाइफ को  एन्जॉय करते हैं।  सर्दियाँ अक्सर बहुत ठंडी होती हैं। लेकिन सभी घर फुल्ली एयर कण्डीशंड होने के कारण आरामदायक रहते हैं। 

भारत में १ सितम्बर से मोटर वेहिकल एक्ट लागु होने पर कुछ लोग बहुत हो हल्ला मचा रहे हैं। उनका कहना है कि अब पुलिस को ज्यादा रिश्वत देनी पड़ेगी।  यह बहुत अफसोसजनक विचारधारा है। यदि हमें अपने शहर और देश को भी विकसित देशों की तरह उच्च श्रेणी में लाना है और रहने लायक बनाना है तो जनता को अनुशासित होना पड़ेगा। जब तक जनता अपनी सोच नहीं बदलेगी , तब तक खाली सरकार के भरोसे रहकर कुछ उपलब्धि प्राप्त नहीं हो पायेगी। सरकार को भी भ्रष्ट तंत्र से जनता को मुक्ति दिलानी होगी ताकि सार्वजनिक कार्यों पर खर्च होने वाला पैसा कार्यों पर ही खर्च हो सके , न कि भ्रष्ट अफसरों और ठेकेदारों की तिजोरियों में समा जाये।       





  

Tuesday, July 16, 2019

उफ़्फ़ ये दिल्ली की सड़कें --

1.

सोते हुए आदमी ने जागते हुए आदमी से कहा ,
जाग जाओ।
जागते हुए आदमी ने सोते हुए आदमी से कहा ,
भाग जाओ।
ना जागता हुआ आदमी जागा ,
ना सोता हुआ आदमी भागा।
मैं सहमा सहमा , डरा डरा ,
सड़क पर खड़ा खड़ा देखता रहा।
जागते हुए आदमी को सोते हुए ,
और सोते हुए आदमी को भागते हुए।
मेरे जैसे और भी खड़े  थे अनेक ,
खड़े खड़े ये तमाशा देखते हुए।
हाथ में उठाये हुए स्मार्ट फोन
बन्दूक और तलवार की तरहाँ । 

2.

सड़क पर लम्बी लम्बी गाड़ियों के बीच, 
चला जा रहा था मस्त एक बाइक वाला, 
बाइक पर पांच गैस सिलेंडर टिकाये ।  

दूसरा जो शक्ल और अक्ल से दूधिया था,
ड्राइव किये जा रहा था टेढ़ा मेढ़ा होकर , 
बाइक की साइड में दो दो ड्रम लटकाये।  

तीसरा जो सब्ज़ीवाला था, स्कूटी पर, 
जैसे सरक रहा था , बस किसी तरह, 
आगे पीछे तीन तीन बोरियां अटकाए।  

बाइक वालों को बड़ी गाड़ियों वाले भी, 
देखते ही खुद साइड दिए जा रहे थे ,
उन बाइक वालों के बिना हॉर्न बजाये।  

दिल्ली की सडकों पर रोड़ रेज बहुत है, 
किन्तु सड़क पर यह समाजवाद देखकर ,
हमारी आँखों में कम्बख्त आंसू भर आये।  



Thursday, July 4, 2019

बाल यौन शोषण --

बाल यौन शोषण किसी न किसी रूप में सदियों से होता आया है।  भले ही वो इजिप्ट, ग्रीक या रोमन बाल वेश्यालयों का इतिहास हो या पाकिस्तान में बाल्की या आशना रीति , नेपाल में देवकी या दक्षिण भारत में देवदासी प्रथा, बाल यौन शोषण सदियों से प्रचलित रहा है, लेकिन समाज में इसे कभी पहचाना नहीं गया। विश्वव में पहली बार पश्चिमी देशों में १९६० में बच्चों के शारीरिक शोषण की पहचान हुई। बाल यौन शोषण के अस्तित्व के बारे में तो १९८० के दशक में विश्व ने पहली बार जाना और माना। भारत जैसे विकासशील देशों में इस सामाजिक समस्या के बारे में जन जागरूकता अभी भी बहुत ही कम है। पता चला है कि विश्व भर में प्रति वर्ष १४ वर्ष से कम आयु के ४ करोड़ बच्चे किसी न किसी रूप में शोषण के शिकार होते हैं। ऐसा पाया गया है कि १८ वर्ष तक की आयु के हर ५-६ लड़कों में से एक लड़का कभी न कभी यौन शोषण का शिकार हुआ होता है। इनमे से अधिकांश मामले कभी उजागर नहीं होते।  और सबसे आश्चर्यजनक और कष्टदायक तथ्य यह है कि यौन शोषण करने वाला बहुधा बच्चे का कोई रिश्तेदार या जान पहचान वाला ही होता है। एक गैर सरकारी संगठन ''प्रयास'' द्वारा महिला एवं बाल विकास मंत्रालय  के साथ मिलकर २००३ में १३ राज्यों में १६८०० बच्चों में किये गए सर्वेक्षण द्वारा पता चलता है कि लगभग ५० % बच्चे किसी न किसी रूप में शोषण का शिकार हुए होते हैं। लगभग ३०% का यौन शोषण जान पहचान के व्यक्ति द्वारा किया गया होता है। 

बच्चे देश के भावी नागरिक होते हैं। बालावस्था शारीरिक और मानसिक विकास का समय होता है।  इस कालावधि में हुआ कोई भी हादसा बच्चे के मन मस्तिष्क पर गहरी और अमिट छाप छोड़ जाता है। यह बच्चे के व्यक्तित्त्व पर अपरिवर्तनीय परिवर्तन का कारण बनता है। एक शोषित बच्चा बड़ा होकर स्वयं भी शोषक बन सकता है। बच्चे अक्सर मासूम होते हैं, सामाजिक बुराइयों को समझ नहीं पाते।  वे अपने बड़ों पर निर्भर भी होते हैं और अक्सर मानव अधिकारों से अनभिज्ञ और वंचित होते हैं। इसलिए बच्चे शोषण के लिए ग्रहणक्षम होते हैं। 

बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए अभिभावकों में यौन शोषण के लक्षणों की जानकारी होना अत्यंत आवश्यक है। यदि बच्चे को चलने या बैठने में कष्ट हो रहा है, या अचानक उसके व्यवहार में परिवर्तन आ गया है , विधालय जाने में आनाकानी करने लगा है , शैक्षिक स्तर में गिरावट आ गई है , बुरे सपने आने लगे हैं , बिस्तर गीला करना आरम्भ कर दिया है, बच्चा अचानक ज्यादा या कम खाने लगा है , यौन सम्बंधित बातें करने लगा है या कोई गुप्त रोग या गर्भावस्था हो गई है तो ये लक्षण निश्चित ही बच्चे के यौन शोषण की सम्भावना की ओर इशारा करते हैं और ऐसे में अभिभावकों को सचेत हो जाना चाहिए।

बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए आवश्यक है कि पारिवारिक संबंधों को मज़बूत बनायें। बच्चे के व्यवहार और गतिविधियों पर ध्यान रखें।  नियमित रूप से बच्चे के अध्यापक के संपर्क में रहें।  जहाँ तक संभव हो , बच्चे को घर में अकेला ना छोड़ें और किसी भी रिश्तेदार पर आँख मूँद कर विश्वास ना करें।  बच्चे को अच्छे और बुरे स्पर्श के बारे में अवश्य बताएं। यदि कुछ भी विपरीत नज़र आये तो फ़ौरन ध्यान दें और उचित कार्रवाई करें। आवश्यकता पड़ने पर "किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 (जेजे एक्ट)'' के अंतर्गत स्थापित ''बाल कल्याण समिति'' अथवा ''किशोर न्याय बोर्ड'' की सहायता लें। किसी भी अवस्था में सहायतार्थ १०९८ पर फोन कर चाइल्ड हेल्पलाइन की सहायता प्राप्त की जा सकती है। यथासंभव इस विषय पर समाज में अधिकाधिक रूप से विचार विमर्श करें ताकि जनसाधारण तक बाल यौन शोषण के बारे में जानकारी पहुँच सके। तभी बच्चों का भविष्य सुरक्षित रह पायेगा।     

Thursday, June 6, 2019

चलो ज़रा हंस लिया जाये --

१.

अमीर पत्नी गरीब कवि पति से :  मेरे पास कोठी है , बंगला है , गाड़ी है , साड़ी है , हीरे हैं , जवाहरात हैं।  तुम्हारे पास क्या है !
कवि पति : मेरे पास कविता है , रचना है , कल्पना है , गीत है , नगमा है और नज़मा भी है।

कवि जी अब फुटपाथ पर रहते हैं।

२.

लेबर डे पर पत्नी पति से : देखो कल तापमान ४५ को पार कर गया।  अब आप आज ही ऐ सी की सर्विस कराइये , स्विच ख़राब है , वो भी बदलवाना पड़ेगा , और ये ट्यूब लाइट तो जलती ही नहीं।  फ्रिज में सारी बोतलें खाली पड़ी हैं, भर देना।  अच्छा ऑफिस जाते समय ये चैक जमा कराते जाना।  और शाम को सब्ज़ी लेते आना।  कभी कुछ काम भी कर लिया करो। 

बेटा  :  पापा, मज़दूर दिवस की बधाई।

३.

पत्नी ( दूर से चिल्ला कर ) : अज़ी कहाँ हो !
पति :  अब क्या हुआ ! मैं यहाँ बैठा हूँ शांति के साथ।
पत्नी कमरे में आकर : हे भगवान ! मैं तो डर ही गई थी। आप तो अकेले बैठे हैं।  कहाँ है शांति ?
पति : उसी को तो खोज रहा हूँ।

अगले दिन से कामवाली बाई की छुट्टी हो गई।

४.

पति ( बड़े प्यार से ) :  अज़ी आप बुरा ना माने तो मैं एक दो दिन के लिए मायके हो आऊं !
पति : भाग्यवान, तुलसी दस को छोड़कर भला कौन ऐसा पति होगा जो पत्नी के मायके जाने पर बुरा मानेगा !

पत्नी का मायके जाना कैंसिल।  

Wednesday, May 8, 2019

उत्तर भारतियों को उत्तर पूर्व भारतियों से ही कुछ सीख लेना चाहिए --


उत्तर पूर्व भारत के राज्य मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग को पूर्व का स्कॉटलैंड कहा जाता है। समुद्र तल से लगभग ५००० फुट की ऊँचाई पर स्थित शिलॉन्ग एक हिल स्टेशन जैसा ही है। हालाँकि यह उत्तर भारत के हिल स्टेशंस की तरह पहाड़ की ढलान पर नहीं बसा है। सारा शहर लगभग समतल भूमि पर बसा है और चारों ओर छोटी छोटी पहाड़ियां हैं। लगभग सवा लाख की जनसँख्या वाले शहर में गाड़ियों की भीड़ देखकर एक बार तो घबराहट सी होने लगती है। शहर में प्रवेश करने के बाद शहर के मध्य तक पहुँचने में यदि एक घंटा भी लग जाये तो कोई हैरानी नहीं होगी। 




लेकिन गाड़ियों और लोगों की भीड़ भाड़ होने के बावजूद यहाँ कभी ट्रैफिक जैम नहीं होता , न ही किसी को कोई परेशानी होती है। इसका कारण है यहाँ के लोगों में यातायात के नियमों के प्रति जागरूक होना। यहाँ विदेशों की तरह पैदल यात्रियों को प्राथमिकता दी जाती है ताकि उन्हें सड़क पार करने में कोई कठिनाई न हो। कितना भी भारी ट्रैफिक क्यों न हो, पैदल सड़क पार करने वाले को देखकर गाड़ियां स्वत: ही रुक जाती हैं। यहाँ की सड़कें भले ही कम चौड़ी हों, लेकिन सड़क के दोनों ओर पक्के टाइल्स लगे हुए साफ सुथरे फुटपाथ बने हैं जिन पर पैदल चलने में बहुत सुविधा रहती है। 



यहाँ के निवासियों में महिलाओं की औसत ऊँचाई ५ फुट और पुरुषों की साढ़े पांच फुट नज़र आई।  यानि यहाँ के लोग आम तौर पर कम कद के हैं लेकिन स्वाभाव में सीधे और निश्छल नज़र आये। कहीं भी सडकों के किनारे कूड़े के ढेर नज़र नहीं आये। ज़ाहिर है, यहाँ प्रशासन का कूड़ा प्रबंधन उत्तम दर्ज़े का है। साथ ही यहाँ के निवासी भी सफाई पसंद और स्वच्छता के प्रति जागरूक हैं। बस यही जागरूकता और कर्तव्यपरायणता यदि उत्तर भारत के लोगों में भी आ जाये तो निश्चित ही सरकार का स्मार्ट सिटीज बनाने का सपना अवश्य पूरा हो पायेगा।            

Sunday, May 5, 2019

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्व हाथ स्वच्छता दिवस के उपलक्ष में --



मार्केट में सड़क किनारे , जब हमने गाड़ी करी खड़ी ,
और आधी ढकी नाली पर खड़े खोमचे वाले पर नज़र पड़ी। 
कुछ कमसिन नवयौवनाएँ, खीं खीं कर खिलखिलाती,
और सी सी कर चटकारे लेती दी दिखाई। 
तभी कानों में किसी के झगड़ने की आवाज़ आई  
पता चला बुआ और बबुआ में बहस छिड़ गई थी ,
बुआ यानि कोलाई अपनी जिद पर अड़ गई थी ,
शिगैला रुपी बबुआ को झिड़क रही थी ,
कि भैया चांस ख़त्म हो गया तेरा ,
आज तो ये खूबसूरत शिकार है मेरा। 
शिगैला बोला तुम हर बार मुझे हरा जाती हो ,
चार में से तीन शिकार तो तुम्ही मार ले जाती हो। 
हमारा ये बंधन गठबंधन है या ठगबंधन ये तुम जानो। 
लेकिन जब सम्बन्ध है तो , मेरी बस ये बात मानो।   
देखो सामने खड़ी तीन तीन कुड़ियां कुंवारी हैं ,
आज तो इश्क फरमाने की अपनी बारी है। 

खोमचे वाला भी मंद मंद मुस्करा रहा था ,
अपने पोंछा बने गमछे से हाथ पोंछे जा रहा था। 
कभी यहाँ , कभी वहां , जाने कहाँ कहाँ ,
खुजाये जा रहा था। 
और पट्ठा उन्ही हाथों से गोल गप्पे खिलाये जा रहा था । 
फिर जैसे ही उसने ,
फिश पोंड जैसे मटके से कल्चर मिडिया निकाला,
और ज़रा सा अगार मिलाकर कल्चर प्लेट में डाला। 
शिकारियों का शोर और ज्यादा आने लगा  
जाने कहाँ से चचा साल्मोनेला धमका ,
और बुआ बबुआ को समझाने लगा।   
बोला देखो तुम दोनों का दम तो दो चार दिन में निकल जायेगा ,
इश्क मुझे फरमाने दो, मेरा तीन चार हफ्ते का काम चल जायेगा।   

अगले दिन अस्पताल की पी डी में भीड़ बड़ी थी।   
भीड़ के बीच वही नवयौवनाएं बेचैन सी खड़ी थीं।    
एक को शिगैला ने प्यार के जाल में फंसा लिया था
दूसरी पर धारा ३७७ की आड़ में,
कोलाई ने मोहब्बत का जादू चला दिया था।     
दोनों बेचैनी से रात भर करवटें बदलती रही थीं
दीर्घ शंका से ग्रस्त रात भर तबियत मचलती रही थीं।  
तीसरी तीसरे दिन साल्मोनेला संग अस्पताल आई
और जल्दी से ठीक करने की देने लगी दुहाई।  

उस दिन शाम को फिर उसी मार्किट में उसी जगह ,
वही मोमचे वाला खड़ा था।  
उसके कंधे पर वही पोंछा बना गन्दा सा गमछा पड़ा था।  
उसके चेहरे पर वही चिर परिचित मुस्कान नज़र रही थी
उस दिन तीन नहीं चार चार महिलाएं गोल गप्पे खा रही थीं।   
बेशक १३५ करोड़ के विकासशील देश में गोल गप्पे खाना भी मज़बूरी है
लेकिन हाथों के साथ साथ खाने पीने में स्वच्छता अपनाना भी ज़रूरी है।    

हाथों की चंद लकीरों में, बंद है किस्मत हमारी,
गंदे हाथों की लकीरों में, पर बसती हैं बीमारी।
स्वच्छ हो तन मन और , स्वच्छ रहे वातावरण ,
हाथों की स्वच्छता से ही, दूर हों मुसीबतें सारी।   



Saturday, April 27, 2019

काज़ीरंगा नेशनल पार्क , दुनिया का सबसे ज्यादा हरा भरा पार्क --

काज़ीरंगा नेशनल पार्क , दुनिया का सबसे ज्यादा हरा भरा पार्क --


काज़ीरंगा मुख्यतया एक सींग वाले गेंडों के लिए जाना जाता है।  ये घास खाते हुए सड़क किनारे तक आ जाते हैं।

गौहाटी से लगभग सवा दो सौ किलोमीटर और गाड़ी से ५ -६ घंटे दूर ४३० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है काज़ीरंगा नेशनल पार्क जिसे १९८५ में यूनेस्को ने वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्ज़ा दे दिया था और २००६ में सरकार ने इसे प्रोजेक्ट टाइगर के रूप में अपना लिया है। यहाँ विश्व भर में पाए जाने वाले एक सींग वाले गेंडों की संख्या के लगभग दो तिहाई एक हॉर्न वाले गेंडे ( सिंगल हॉर्न राइनो) पाए जाते हैं।  इनके अलावा हाथी, जंगली भैंसे , टाइगर और हिरन भी बहुतायत में पाए जाते हैं। घने जंगल, हरे भरे घास के मैदान, झीलों और पानी के श्रोतों से ओत प्रोत काज़ीरंगा पार्क अनेकों दुर्लभ पक्षियों के लिए भी एक सुरक्षित आवास प्रदान करता है।




घास के मैदानों में घास चरती गायें।

गौहाटी शहर से निकलते ही नेशनल हाइवे ३७ के दोनों और दूर दूर तक फैले घास के मैदानों में हज़ारों की संख्या में गायें घास चरती नज़र आती हैं। सरसरी तौर पर देखने से ऐसा लगता है जैसे ये जंगली जानवर हों। लेकिन पास से देखने पर पता चलता है कि ये पालतु गायें हैं जिनके गले में एक लम्बी रस्सी बांधकर उसे एक खूंटे से बांध दिया जाता है। हर एक गाय उसी दायरे में रहकर दिन भर घास खाती रहती है। इस तरह पूरे रास्ते यह दृश्य दिखाई देता है। इनके सारे दिन घास चरने का नज़ारा देखकर समझ में आता है कि इस कहावत का उद्गम शायद ऐसे ही हुआ होगा जब हम किसी को हर वक्त मुँह चलाते देखकर कहते हैं कि "सारे दिन चरती रहती है।"   


बिहू फेस्टिवल मनाती युवतियां।

इस क्षेत्र में यह एक अजीब नज़ारा दिखाई देता है कि यहाँ गायें बहुत छोटे आकार की होती हैं। यहाँ तक कि गायें बकरी जैसी, बकरी मेमने जैसी और मेमने खरगोश जैसे दिखाई देते हैं। शायद यह खाने में बस घास ही उपलब्ध होने के कारण हो सकता है।  यहाँ पुरुषों और स्त्रियों का कद भी अपेक्षाकृत कम नज़र आता है। ज़ाहिर है, यहाँ देहात में लोग गरीब ज्यादा हैं जिसके कारण पूर्ण पोषण की कमी रहती है।





जंगल में जीप सफारी।




हरा भरा जंगल।


काज़ीरंगा पार्क में हरियाली इतनी ज्यादा है कि आपको एक भी हिस्सा सूखा या रेतीला नज़र नहीं आएगा।  यहाँ की हरियाली देखकर एक और कहावत के चरितार्थ होने की अनुभूति होती है - सावन के अंधे को हरा ही हरा दिखाई देता है - सचमुच यहाँ हरा रंग इस कदर देखने को मिलता है कि कुछ समय आप रंग शून्य होकर भूल से जाते हैं कि दुनिया में कोई और रंग भी है।


जंगल , झील और हरियाली।




जंगली भैंसों के झुण्ड। 


इस पार्क में प्रवेश के लिए तीन द्वार हैं जो अलग अलग हिस्सों को दर्शाते हैं - पश्चिमी द्वार, मध्य द्वार और पूर्वी द्वार। द्वार पर ही आपको एंट्री टिकट और सफारी के लिए जीप मिल जाएगी। टॉप सीजन के समय एडवांस बुकिंग कराना सही रहता है , हालाँकि ऑनलाइन बुकिंग महँगी पड़ती है। जहाँ गेट पर आपको कुल २५५० रूपये देने पड़ेंगे , वहीँ ऑनलाइन बुकिंग पर ३६०० रूपये देने पड़ते हैं। जीप सफारी में करीब २० किलोमीटर का सफर तय होता है जिसमे आपको पार्क के विभिन्न रूप और वन्य प्राणियों के दर्शन होते हैं। इस पार्क की एक विशेषता यह है कि हरियाली , पेड़ पौधे , पानी की झीलें और दूर पहाड़ियां देखकर आप एक पल के लिए भी बोर नहीं होते। यदि आपका जीप ड्राईवर ज़रा सा भी बातूनी हुआ तो आपको न सिर्फ गाइड करता चलेगा , बल्कि कई दुर्लभ पक्षियों के भी दर्शन कराता रहेगा। 


गेंडा , एक शुद्ध शाकाहारी जीव।




एक सुअरी और अनेक बच्चे।




जंगल में अकेला हाथी अक्सर नाराज़ रहता है और हमला कर सकता है।




जंगल में सभी जीव स्वतंत्र और मज़े में मिल जल कर रहते हैं।




जंगली भैंसे बहुत ताकतवर होते हैं।  इनके सींग भी बहुत बड़े होते हैं।

काज़ीरंगा पार्क जाने के लिए सबसे बढ़िया समय है सर्दियों का, यानि अक्टूबर से अप्रैल तक।  अप्रैल समाप्त होते होते यहाँ बारिश होनी आरम्भ हो जाती है और पार्क को सफारी के लिए बंद कर दिया जाता है। पार्क के पास हाइवे पर वैस्ट और सेंट्रल गेट के पास अनेक होटल और रिजॉर्ट्स बने हैं जो सभी बजट के सैलानियों के लिए उपयुक्त हैं।  यदि आप पैसा खर्च करने में सक्षम हैं तो आपको गेट के पास बने किसी रिजॉर्ट में ठहरना चाहिए।  यह अपने आप में एक अद्भुत अनुभव रहेगा।           


रिजॉर्ट का एक हिस्सा जो खाली पड़ा था लेकिन बहुत हरा भरा था ।