एक समय था जब एक के बाद एक सभी मित्रों की शादी होने लगी थीं। अब 25-30 साल बाद जिंदगी का दूसरा दौर शुरू हो गया है जब मित्रों के बच्चों की शादियाँ होने लगी हैं। कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे पहले जिसकी बधाई गाई थी, अब उसी का सेहरा गा रहे हैं। शायद यही जीवन चक्र है जो अविरल चलता रहता है। उस ज़माने में शादियाँ भी घर के पास सड़क पर या गली में या पार्क में टेंट गाड़कर हो जाती थी। लेकिन अब ऐसा संभव नहीं। आजकल मिडल और अपर मिडल क्लास में शादियाँ या तो फार्म हाउस में होती हैं या किसी सितारा होटल में। लो मिडल और लो क्लास की पहुँच समुदाय भवन तक ही होती है जो लगभग हर कॉलोनी में बने हैं। लेकिन आजकल शादियों का स्वरुप इस कद्र बदल गया है कि कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना अत्यंत आवश्यक हो गया है। पिछली पोस्ट में आपने शादियों की तैयारियों के बारे में पढ़ा। आइये अब आपको एक आधुनिक शादी में लेकर चलते हैं।
शादी में कितने बजे पहुंचा जाये ?
सबसे पहले तो विचार करने की बात यह है कि शादी में कितने बजे पहुंचा जाये। कार्ड में कुछ भी लिखा हो, लेकिन यदि आप रात 9 बजे से पहले पहुँच गए तो यह निश्चित है कि आपका स्वागत करने वाला कोई नहीं मिलेगा। उलटे आपको ही मेजबानों का स्वागत करना पड़ सकता है। एक कार्ड में लिखा था , बारात ठीक सात बजे पहुँच जाएगी, और शादी की सभी रस्में , 11 बजे तक संपन्न हो जाएँगी। हम अक्सर समय के पाबंद रहते हैं। इसलिए जल्दी घर आकार पत्नी से कहा - भई जल्दी से तैयार हो जाओ, छै बज चुके हैं। पत्नी बोली -- एक घंटा पहले बन ठन कर क्या हो जायेगा। मैंने कहा भाग्यवान, एक घंटा तो तुम्हारे श्रृंगार में ही लग जायेगा। फिर भी पत्नी ने सजने में पूरे दो घंटे लगाये और हम विवाहस्थल पर साढ़े आठ बजे ही पहुँच पाए। जाकर देखा तो पाया , कुछ लोग इधर उधर चक्कर लगा रहे थे। पता चला वे तो टेंट वाले थे, अभी टेबल चेयर लगा रहे थे। आखिर फिर वही काम करना पड़ा। बाहर खड़े होकर बारात का इंतजार करना पड़ा।
बारात :
अब यदि आपको लड़की की शादी का निमंत्रण मिला है तो ज़ाहिर है आप सीधे विवाहस्थल ही पहुंचेगे। लेकिन आजकल लड़के की शादी में भी मेहमान बारात के साथ चलने के बजाय सीधे पंडाल में ही पहुँच जाते हैं। इसलिए क्या बाराती और क्या घराती , सब एक सामान नज़र आते है। इसका फायदा कभी कभी कुछ युवक फ़ोकट में मेहमान बनकर दावत उड़ाकर उठाते हैं। हमने देखा है कि आजकल बाराती तो सीधे विवाहस्थल पर पहुँच जाते हैं , और दुल्हे के साथ एक घोड़ी , दो रिश्तेदार, और बाकि बैंडवाले ही रह जाते हैं। उधर दुल्हे के चंद दोस्त दारू चढ़ाकर बैंड के साथ हुडदंग मचा रहे होते हैं, इधर बाराती और घराती सब मिलकर दावत उड़ा रहे होते हैं। फिर जाते जाते दूल्हा दिख गया तो बधाई , वर्ना लिफाफा पिता को सोंप काम तो निपटा ही दिया था भाई ।
खाना :
शादियों में सभी मेहमानों को भी,चाहे लड़के वालों की तरफ से हों या लड़की वालों की तरफ से, बस एक ही काम होता है , खाने का काम। दिल्ली जैसे बड़े शहर में अक्सर शादियों में जान पहचान वाले या तो बहुत कम मिलते हैं या हेलो हाय करने के बाद अपने में मस्त हो जाते हैं। वैसे भी शादियों में डी जे का इस कद्र शोर होता है कि बात करने के लिए भी, जोर लगाना पड़ता है। लेकिन गौर से देखा जाये तो बात करने की नौबत ही कहाँ आती है, क्योंकि तीस आइटम्स खाने के बाद पता चलता है , अभी तो चालीस और बाकि हैं।
सबसे पहले तो गेट में घुसते ही ताबेदार ट्रे में रंग बिरंगे पेय पदार्थ लिए तत्परता से आपका स्वागत करते हैं, मानो कड़ाके की ठंड में भी प्यास से आपका गला सूख रहा हो। फिर आप ढूंढते हैं अपने मेज़बान को क्योंकि उनके पास तो इतनी फुर्सत होती नहीं कि वे स्वयं आपसे मिल सकें। आरंभिक औपचारिकतायें निभाने के बाद आप स्वतंत्र होते हैं खाद्य यात्रा पर निकलने के लिए। हमारे जैसे बुद्धिमान मेहमान यात्रा का आरम्भ करते हैं फ्रूट चाट की दुकान से-- मांफ कीजिये फ्रूट स्टाल से। कभी इम्पोर्टेड कपड़ों का बोलबाला होता था , आजकल इम्पोर्टेड फ्रूट्स का होता है।
चाट पापड़ी: इसके बाद एक ही लाइन में गोल गप्पे , भल्ला पापड़ी , आलू चाट , आलू टिक्की , चिल्ला , पाव भाजी , राज कचोरी , लच्छा टोकरी देखकर आप राजसी भोजन का आनंद लेने से खुद को नहीं रोक पाएंगे।
सबसे पहले तो गेट में घुसते ही ताबेदार ट्रे में रंग बिरंगे पेय पदार्थ लिए तत्परता से आपका स्वागत करते हैं, मानो कड़ाके की ठंड में भी प्यास से आपका गला सूख रहा हो। फिर आप ढूंढते हैं अपने मेज़बान को क्योंकि उनके पास तो इतनी फुर्सत होती नहीं कि वे स्वयं आपसे मिल सकें। आरंभिक औपचारिकतायें निभाने के बाद आप स्वतंत्र होते हैं खाद्य यात्रा पर निकलने के लिए। हमारे जैसे बुद्धिमान मेहमान यात्रा का आरम्भ करते हैं फ्रूट चाट की दुकान से-- मांफ कीजिये फ्रूट स्टाल से। कभी इम्पोर्टेड कपड़ों का बोलबाला होता था , आजकल इम्पोर्टेड फ्रूट्स का होता है।
चाट पापड़ी: इसके बाद एक ही लाइन में गोल गप्पे , भल्ला पापड़ी , आलू चाट , आलू टिक्की , चिल्ला , पाव भाजी , राज कचोरी , लच्छा टोकरी देखकर आप राजसी भोजन का आनंद लेने से खुद को नहीं रोक पाएंगे।
पंजाबी रसोई : यहाँ आपको मिलेंगे छोले बठूरे , मक्के दी रोटी ते सरसों दा साग , साथ में लस्सी जिन्हें खाने के लिए मंजी ( खाट ) बिछाई गई हैं।
दक्षिण भारतीय : इस स्टाल पर गर्मागर्म सांभर के साथ डोसा , इडली , बड़ा आदि तुरंत तैयार मिलेगा।
चाइनीज़ : यदि आपका चीनी खाना खाने का मूड है तो चाउमीन , नूडल्स , मंचूरियन आदि आप सामने खड़े होकर बनवा सकते हैं।
पिज़्ज़ा : यहाँ आप जो भी टॉपिंग चाहेंगे , बिना हील हुज्ज़त के पाइपिंग हॉट पिज़्ज़ा के साथ पाएंगे।
स्नैक्स : अलग अलग तरह के स्नैक्स जो अक्सर ड्रिंक्स के साथ लिए जाते हैं, वेटर्स ट्रे में लिए बार बार आपके सामने लेकर आते रहेंगे। अंतत: आप स्वयं ही बोर होकर उन्हें देखते ही हाथ से इशारा कर भगाते नज़र आयेंगे।
सूप : इतना कुछ खाने के बाद अब निश्चित ही आपको एपेटाईज़र की ज़रुरत महसूस होने लगेगी, वर्ना खाना कैसे खाया जायेगा । एक्स्ट्रा मसाले डाल कर आप सूप को एक्स्ट्रा स्ट्रोंग बनाकर मेन कोर्स के लिए साहस जुटाते हैं और आगे बढ़ जाते हैं प्लेट उठाने के लिए प्लेट्स के प्लेटफोर्म की ओर। आखिर एक प्लेट तो आपके नाम की भी रखी गई है जिसका आप न अनादर कर सकते हैं, न उपेक्षा।
एक ज़माना था जब लोग लड़की की शादी में प्लेट यह सोचकर छोड़ देते थे कि लड़की के पिता का कुछ खर्चा बचेगा। और चाट पकोड़ी खाकर ही पेट भर लेते थे। लेकिन आजकल यह सोच आउटडेटड हो गई है।
खाने का आखिरी पड़ाव : होता है सम्पूर्ण खाना। लेकिन यह क्या -- सामने एक स्टाल और बची है जहाँ मिल रहे हैं तवे की रोटी और दाल , तवा रोटी और साग , तवा सब्जियां और इन सबके साथ नान , तंदूरी रोटी , मिस्सी रोटी और देसी घी का तड़का। अब आपका कन्फ्यूज होना स्वाभाविक है। क्या गेट से होकर हॉल में प्रवेश करना चाहिए जहाँ रखे हैं सजे सजाये -- तरह तरह के पुलाव, पनीर की कई तरह की सब्जियां , मटर मशरूम , कोफ्ते, दही भल्ले , कढ़ी कोफ्ते, आलू भाजी , पालक कोफ्ते, और भी न जाने कितने तरह की सब्जियां जिन्हें देखकर लगता है जैसे अभी तक किसी ने उन्हें छुआ ही न हो। आखिर कन्फ्यूजन में आप क्या खाएं , यह आपको स्वयं भी न समझ आता है , न निर्णय कर पाते हैं।
एक और आखिरी पड़ाव :
अंत में आप स्वीट्स की ओर अग्रसर होते हैं। थोड़ा सा गाजर हलवा , मूंग का हलवा भी थोड़ा सा , दो चार जलेबियाँ , उस पर रबड़ी , एक गुलाब जामुन भी रख ही लेते हैं। अब तक प्लेट भर चुकी है , इसमें और रखने की जगह नहीं बची। कोई बात नहीं, आइस क्रीम के साथ रसमलाई एक अलग प्लेट में बाद में ले लेंगे। सब चट करने के बाद अब इसे हज्म करने के लिए गर्मागर्म दूध तो होना चाहिए , मलाई मार के। किसी तरह मुश्किल से ख़त्म कर के बाहर आते हैं, टाई के पीछे पेट पर हाथ फिराते हुए। बस अब तो घर का रास्ता नापना चाहिए।
लेकिन यह क्या , बाहर जाने का रास्ता तो दुल्हे ने घेर कर रखा है जो पिछले आधे घंटे से न जाने क्या कर रहे हैं कि अन्दर आ ही नहीं रहे। आप सोचते हैं , चलो कॉफ़ी ही हो जाये , उसे भी क्यों छोड़ा जाये। जब तक कॉफ़ी ख़त्म करेंगे तब तक तो रास्ता साफ हो ही जायेगा। अंतत : गेट पर आकर पता चलता है कि पान मुफ्त में मिल रहे हैं तो क्यों न यह शौक भी फरमा लिया जाये। यार सादा ही लगाना , मीठा अब नहीं खाया जायेगा -- यह कहते हुए पान का बीड़ा मूंह में डालते हैं , और चल पड़ते हैं मूंह हाथ से पोंछते हुए, गाड़ी की ओर यह सोचते हुए कि :
* हम शादियों में ऐसे ठूंस ठूंस कर क्यों खाते हैं जैसे एक ड्राइवर गाड़ी को हिला हिला कर पेट्रोल भरवाता है टैंक फुल करवाने के लिए ?
* शादियों में इतना खाना ही क्यों बनवाते हैं जो खाया ही न जाये ?
* बाहर खाने के इतने सारे व्यंजन होने के बाद क्या अन्दर के खाने की आवश्यकता रह जाती है ?
ज़रा सोचिये।