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Monday, October 25, 2021

करवा चौथ और दीवाली की सफाई --

रावण के जलते ही 

पत्नी हमें काम पर लगा देती है, 

दीवाली की सफाई के नाम पर 

हाथ में झाड़ू थमा देती है। 

हमने पत्नी से कहा,  

भई कभी करवा चौथ का 

व्रत नही रखती हो, 

क्या आपको हमारी 

लम्बी उम्र की चाह ही नहीं है। 

ऊपर से काम पर लगा देती हो, 

आपको हमारी 

सेहत की परवाह भी नहीं है। 

पत्नी बोली,  

माना कि हमारा जन्म जन्मांतर का साथ है, 

पर आपकी उम्र और आपकी सेहत 

आपके ही हाथ है। 

जब रोज़ाना जिम जाते थे, 

तब 60 में भी गबरू नज़र आते थे। 

अब रिटायर हुए तो 

पड़े पड़े रोटियां तोड़ते हो, 

और लम्बी उम्र का ठीकरा 

हम पर फोड़ते हो। 

अज़ी शर्म करो, 

कुछ शारीरिक श्रम करो। 

ये पकड़ो झाड़ू पोंछा 

और काम पर लग जाओ, 

दीवाली आने वाली है, 

सफाई अभियान में जुट जाओ। 

अब हम सोच रहे हैं कि 

दीवाली की सफाई का 

कोई विकल्प ढूँढना पड़ेगा।  

वरना इनकम हो ना हो,

सारी उम्र 

इनकम टैक्स रिटर्न्स भरने की तरह 

काम पर लगे रहना पड़ेगा। 😎



Monday, October 11, 2021

शिक्षित होकर भी अशिक्षित हो गया --

 

आदि मानव जब शिक्षित हो गया,

शिक्षित होकर वो विकसित हो गया।

 

विकसित होकर किये ऐसे कारनामे

कारनामों से खुद प्रतिष्ठित हो गया।  

 

प्रतिष्ठित होकर जुटाए सुरक्षा के साधन,

सुरक्षा के साधनों में वो प्रशिक्षित हो गया। 

 

प्रशिक्षित हुआ इन संसाधनों में इस कदर

कि सम्पूर्ण विश्व ही असुरक्षित हो गया।  

 

असुरक्षित होकर अब तो सोच :"तारीफ़"

शिक्षित होकर भी तू अशिक्षित हो गया। 



Friday, October 1, 2021

विश्व बुजुर्ग दिवस --

 

पार्क में एक पेड़ तले दस बुज़ुर्ग बैठे बतिया रहे थे,

सुनता कोई भी नहीं था पर सब बोले जा रहे थे ! 

भई उम्र भर तो सुनते रहे बीवी और बॉस की बातें,

दिन मे चुप्पी और नींद मे बड़बड़ाकर कटती रही रातें ! 

अब सेवानिवृत होने पर मिला था बॉस से छुटकारा,

बरसों से दिल मे दबा गुब्बार निकल रहा था सारा !


वैसे भी बुजुर्गों को मिले ना मिले रोटी का निवाला ,

पर कोई तो मिले दिन में उनकी बातें सुनने वाला ! 

लेकिन बहू बेटा व्यस्त रहते हैं पैसा कमाने की दौड़ में, 

और बच्चे कम्प्यूटर पर सोशल साइट्स के गठजोड़ में !

विकास की आंधी ने संस्कारों को चूर चूर कर दिया है, 

एक ही घर मे रहकर भी परिवारों को दूर कर दिया है ! 


फिर एक साल बाद :

उसी पेड़ तले वही बुजुर्ग बैठे बतिया रहे थे,

लेकिन आज संख्या में आधे नज़र आ रहे थे।

अब वो बातें भी कर रहे थे फुसफुसा कर,

चहरे पर झलक रहा था एक अंजाना सा डर।

शायद चिंतन मनन हो रहा था इसका,

कि अब अगला नंबर लगेगा किसका।

पार्क में छोटे बच्चों की नई खेप दे रही थी दिखाई,

शायद यह आवागमन ही ज़िंदगी की रीति है भाई।