पूर्वी दिल्ली की दो आवासीय कॉलोनियों के बीच बहते नाले को ढककर बनाई गई सड़क के बनने से इस क्षेत्र में आना जाना काफी आसान हो गया है। सुबह जब पहली रैड लाइट पर रुकना पड़ा और नज़र सड़क के पार गई तो देखा कि दूसरी ओर की स्लिप रोड़ को स्कूल की बाउंड्री होने के कारण एक ओर से बंद कर दिया गया था जिससे कि कोई वाहन उधर न जा सके। इसका फायदा उठाते हुए स्थानीय निवासियों ने इस जगह को धर्म पुण्य के कार्यों के लिए इस्तेमाल करते हुए कबूतरों को दाना डालने की जगह के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। एक सूटेड बूटेड व्यक्ति गाड़ी सड़क किनारे पार्क करके अपने बैग से सामान निकालकर सड़क पर डाले जा रहा था। जब पॉलीथिन की थैली खाली हो गई तो उसने उसको वहीँ सड़क पर फेंक दिया। अभी हम उसकी धार्मिक मानसिकता का विश्लेषण कर ही रहे थे कि तभी हमने देखा कि वह सड़क से थैली उठा रहा था। यह देखकर हमें पर्यावरण के प्रति उसकी जागरूकता और कर्तव्यपरायणता पर ख़ुशी का अहसास हुआ। लेकिन तभी देखा कि उसने थैली उठाकर थोड़ा सा और आगे बाउंड्री के पास फेंक दी। अब तो हमें उसकी अक्ल पर हंसी भी आ रही थी और तरस भी।
तभी एक और व्यक्ति आया और उसी जगह पर खड़ा होकर बाउंड्री की दिवार पर मूत्र वित्सर्जन करने लगा और पहले व्यक्ति के किये पुण्य पर पानी फेर दिया। बेचारा जाने कब से रोके हुए था क्योंकि इतना बहाया कि कबूतरों के लिए सड़क पर पड़े दाने भी भीग गए। अब तक दो तीन और दानी व्यक्ति भी दाने बिखेरने में लग चुके थे इस प्रक्रिया से अनभिज्ञ। दान और महादान का यह संगम अद्भुत था। पता नहीं रोजाना कितने लोग यहाँ से पुण्य कमाकर जाते हैं लेकिन चौराहे पर सड़क किनारे का यह दृश्य हमें स्वयं को विकसित कहलाने से निश्चित ही रोकता है।