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Tuesday, July 25, 2017

जिंदगी की दौड़ एक मृगमरीचिका है ---


तंग गलियारों में ही गुजरती रही ,
ये जिंदगी भी कितनी तन्हा सी रही।

खोलो कभी मन के बंद दरवाज़ों को,
मिलकर बैठो और बतियाओ तो सही।

जिंदगी गुजर जाती है ये सोचते सोचते,
तू अपनी जगह सही मैं अपनी जगह सही।

क्यों दौड़ते हो धन दौलत के पीछे बेइंतहा,
ये बेवफा कभी मेरी कभी तेरी होकर रही।

इज़्ज़त , सौहरत , दौलत तो बहुत कमाई ,
मन का सुख चैन पर कभी मिला ही नहीं।

जिंदगी की दौड़ मृगमरीचिका है 'दोस्त',
भला इसे कोई कभी पकड़ पाया है कहीं ।  

Monday, July 17, 2017

एक कविता ऐसी भी ---


घर में ऐ सी , दफ्तर में ऐ सी ,
गाड़ी भी ऐ सी।
ऐ सी ने कर दी , 'डी'  की ऐसी की तैसी !

चाय का पैसा , पानी का पैसा ,
चाय पानी का पैसा।
जब सब कुछ पैसा , तो ईमान कैसा !

ना जान , ना पहचान ,
बस जान पहचान।
जब यही समाधान , तो कैसा इम्तिहान !

वधु बिन शादी , शादी बिन प्यार ,
बिन शादी के लिव इन यार।
जब ऐसा व्यवहार , तो व्यर्थ संस्कार !

यार मतलब के , मतलब की यारी ,
बिन मतलब के रिश्ते भी भारी।
मतलब ने मति मारी, विमुख दुनिया सारी !  

भ्रष्ट इंसान , रुष्ट भगवान ,
तो बलिष्ठ तूफ़ान।
फिर ध्वस्त मकान , नष्ट सुन्दर ज़हान !

हिन्दू , सिख , ईसाई,  ना मुसलमान ,
बनो इंसान , रखो ईमान।  
फिर जीवन आसान , बने देश महान !  

Friday, July 7, 2017

जब टाइमिंग ख़राब हो तो टाइम भी ख़राब आ जाता है ---


कहते हैं , मनुष्य का टाइम ( समय ) खराब चल रहा हो तो सब गलत ही गलत होता है।  लेकिन हमें लगता है कि यदि आपकी टाइमिंग ( समय-निर्धारण ) ख़राब हो तो भी सब गलत ही होता है। अब देखिये एक दिन डिनर करते समय हमने सोचा कि श्रीमती जी को अक्सर शिकायत रहती है कि हम उनके बनाये खाने की तारीफ़ कभी नहीं करते। क्योंकि उस दिन दोनों का मूड अच्छा था तो हमने सोचा कि चलो आज बीवी को मक्खन लगाया जाये।
यह सोचकर खाते खाते हमने कहा -- भई वाह ! क्या बात है , आज तो सब्ज़ी बड़ी टेस्टी बनी है।
पत्नी ने बिना कोई भाव भंगिमा दिखाए कहा -- अच्छा !
हमने कहा -- हाँ भई , और दाल की तो बात ही क्या है , बहुत ही विशेष स्वाद आ रहा है। जी चाहता है , आपके हाथ चूम लूँ।
अब तक पत्नी के सब्र का बांध जैसे टूट सा गया था।  तुनक कर बोली -- क्या बात है , आज बड़ी तारीफें हो रही हैं ! इससे पहले तो आपने कभी खाने की तारीफ नहीं की।
हमने कहा -- भई हमने सोचा है कि आप जब भी अच्छा खाना बनाया करेंगी , हम तारीफ ज़रूर किया करेंगे।
अब पत्नी बिफर कर बोली -- तारीफ़ गई भाड़ में । दाल सब्ज़ी मैंने नहीं , नौकरानी ने बनाई हैं।
यह सुनकर हमारे तो होश उड़ गए।
हमने खींसें निपोरते हुए कहा -- ओह सॉरी डार्लिंग। हमने सोचा कि चलो आपकी शिकायत दूर कर दें कि हम कभी तारीफ़ नहीं करते।  लेकिन हमें क्या पता था !  शायद तारीफ करने की टाइमिंग गलत हो गई। वैसे ऐसा कुछ नहीं है आज के खाने में , बस सो सो है। बल्कि कुछ टेस्ट है ही नहीं , बकवास बना है। वो तो मैं तुम्हे खुश करने के लिए कह रहा था।
हमने सोचा कि शायद पलटी मारने से काम चल जाये।
लेकिन तभी पत्नी दहाड़ी --   मैं जानती हूँ , आप मेरे खाने की तारीफ कभी नहीं करेंगे। मैं ही बेवक़ूफ़ हूँ जो रोज रोज खाना बनाने में खटती रहती हूँ।  आपको मेरा बनाया खाना क्या , मैं ही अच्छी नहीं लगती।  मैं जा रही हूँ मायके।
और अब कान खोल कर सुन लो , आज का खाना भी मैंने ही बनाया था।
हमारे तो पैरों के नीचे से जैसे धरती ही खिसक गई और सोचा -- लगता है , टाइमिंग ही नहीं, ये तो टाइम ही खराब चल रहा है।      

   

Saturday, July 1, 2017

ब्लॉग दिवस पर ब्लॉग्स पर ब्लॉगर्स की वापसी पर सभी को बधाई ---


हमने ब्लॉगिंग की शुरुआत की थी १ जनवरी २००९ को जब नव वर्ष की शुभकामनाओं पर पहली पोस्ट लिखी थी एक कविता के रूप में। फिर ५ -६ वर्ष तक जम कर ब्लॉगिंग की और ५०० से ज्यादा पोस्ट्स डाली।  लेकिन फिर फेसबुक ने कब्ज़ा कर लिया और सब ब्लॉगर्स फेसबुक पर आ गए और ब्लॉग्स सूने हो गए। इस बीच हमने भी अपने चिकित्सीय जीवन के ३५ वर्ष पूरे किये और अंतत: ३० अप्रैल २०१६ को सरकारी सेवा से सेवानिवृत हो गए। उस समय तो कुछ यूँ महसूस हुआ कि --

एक बात हमको बिलकुल भी नहीं भाती है,
कि आजकल ६० की उम्र इतनी जल्दी आ जाती है !

लेकिन फिर यह भी महसूस हुआ कि ---

मोह जब टूटा तो हमने ये जाना ,
कितना कम सामान चाहिए , जीने के लिए।

लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं जो जिंदगी भर चिपटे रहते हैं पैसे कमाने की होड़ से।  उनको देखकर ज़ेहन में ये पंक्तियाँ आती हैं --

भरी जवानी में धर्म कर्म करने लगे हैं ,
मियां जाने किस जुर्म से डरने लगे हैं।
साथ लेकर जायेंगे जैसे जो था कमाया ,
बक्सों में सारा ऐसे सामान भरने लगे हैं।

लेकिन हमने तो यही देखा है कि रिटायर होने के बाद इंसान की आवश्यकताएं एकदम से कम हो जाती हैं।

तन पर वस्त्र हों और खाने के लिए दो रोटी ,
फिर बस नीम्बू पानी चाहिए पीने के लिए।

लेकिन फिर एक प्रॉब्लम अवश्य सामने आने लगती है।  होता ये हैं कि अब जब भी हम घर से बाहर निकलते हैं और कोई मिलता है तो एक ही सवाल पूछता है --  आजकल क्या कर रहे हो ? आरम्भ में तो हम कहते रहे कि भई बहुत काम किया , अब थोड़ा आराम किया जाये।  लेकिन धीरे धीरे यह सवाल हमें भी खटकने लगा।  इसलिए हमने भर से बाहर निकलना ही बंद कर दिया।  लेकिन फिर एक और मुसीबत आ गई।  अब पत्नी शाम को घर आते ही पूछने लगी
कि बताइये , आज दिन भर क्या किया। अब यह तो हमारी स्वतंत्रता और पुरुषत्व दोनों पर आघात सा लगता था।  इसलिए हमने एक दिन जिम ज्वाइन कर लिया।  अब जब पत्नी पूछती है तो हम कहते हैं -- देखिये आपके जाने के एक घंटे बाद हम जिम गए , दो घंटे जिम में लगाए , फिर घर आकर एक घंटे बाद नहाकर खाना खाया और तीन घंटे के लिए सो गए। इस तरह बज गए शाम के चार और दिन पूरा।  लेकिन पत्नी तो पत्नी होती है।  अब उनका अगला सवाल होता है कि बताओ , कितनी मसल्स बनी ।  अब हम उन्हें कैसे समझाएं कि रोम एक दिन में नहीं बसा था। अरे भई भूतपूर्व जवान की मसल्स हैं , सोचते समझते धीरे धीरे ही बनेंगी।

वैसे जिम का नज़ारा भी बड़ा अजीब होता है। युवा लड़के , लड़कियां , गृहणियां , कुछ मोटे पेट वाले थुलथुल अधेड़ आयु के लोग , सब किस्म के प्राणी मिल जायेंगे बिगड़ी हुई फिगर को संवारने में जुटे हुए। अधिकतर लड़कियां तो ऐसा लगता है कि टाइम पास करने ही आती हैं। लेकिन युवक अवश्य मेहनत करते हुए मसल्स बनाने में गंभीर नज़र आते हैं। सबसे ज्यादा अजीब लगता है ट्रेनर्स को देखकर।  बेचारे ३० तक की गिनती इंग्लिश में सीख कर सारे दिन दोहराते रहते हैं जैसे स्कूल में पहली दूसरी क्लास में रटाया जाता था। कई बार दिलचस्प दृश्य भी देखने में आ जाते हैं। जैसे --  

सुन्दर मुखड़ा देखकर ज़िम ट्रेनर के चेहरे पर चमक आ गई ,
पहली बार आई लड़की की भोली सूरत उसके मन को भा गई।
उसने अपने हाथों से पकड़ कर उसको एक घंटा कसरत कराई ,
पर दिल टूट गया जब जाते जाते अपने पति का पता बता गई !

खैर अब हम दोस्तों को तो यही सुनाते हैं --

एक मित्र मिले बोले भैया , आजकल किस चक्कर में रहते हो ,
इस महंगाई में बिना जॉब के , कैसे गुजर बसर करते हो !
क्या रखा है बेवज़ह घूमने में , कुछ तो काम काज करो ,
कब तक खाली घर बैठोगे , कुछ तो शर्म लिहाज़ करो ।
हम बोले किया काम ताउम्र , अब तो पूर्ण विराम करो ,
इस दौड़ धूप में क्या रखा है , आराम करो आराम करो।

बचपन से लेकर जवानी , गृहस्थी , सरकारी नौकरी का कार्यकाल , सब पूरे हुए। अब वानप्रस्थ आश्रम में आकर वन के लिए तो प्रस्थान नहीं करना है , लेकिन मुक्त और स्वच्छंद भाव से विभिन्न कार्यकलापों द्वारा जनमानस के हित में कार्य करते रहने का संकल्प लिया है जिसे पूरा करना है। अपना तो यही कहँ अहइ कि --- हँसते रहो , हंसाते रहो।  क्योंकि ---

जो लोग हँसते हैं , वे अपना तनाव भगाते हैं ,
जो लोग हंसाते हैं , वे दूसरों के तनाव हटाते हैं।
हँसाना भी एक परोपकारी काम है दुनिया में ,
इसलिए हम तो सदा हंसी की ही दवा पिलाते हैं।

सभी को ब्लॉग दिवस , डॉक्टर्स डे , CA डे , GST और कनाडा में रहले वाले दोस्तों को कनाडा डे की बहुत बहुत बधाई।