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Monday, June 27, 2022

अफ़सर से बने नौकर --

 

रिटायरमेंट ने काम से नाता अटूट बना दिया है , 

हमें कामवाली बाई का सब्स्टीस्यूट बना दिया है।  


जब भी कामवाली बाई लम्बी छुट्टी भग जाती है , 

घर के काम करने की अपनी ड्यूटी लग जाती है।  


गर्मी के मौसम में समझो मुसीबत आ जाती है, 

शुक्र है लॉकडाउन की ट्रेनिंग काम आ जाती है।  


एक दिन तो सामने वाली आंटी ने आवाज़ लगाई, 

बोली बेटा आज छुट्टी पर है मेरी कामवाली बाई।  


कोई सबस्टीच्यूट हो तो दो चार दिन को बुलाना, 

हम समझ गए कि ये तो हमें पेलने का है बहाना।    


अब तो मोहल्ले भर में हम वेल्ले मशहूर हो गए हैं , 

लगता है जैसे अब डॉक्टर नहीं मज़दूर हो गए हैं।  


उस पर पत्नी कहती है काम करोगे तो व्यस्त रहोगे, 

हाथ पैरों के जोड़ सलामत रहेंगे और स्वस्थ रहोगे।  


जाने सरकार को क्या जल्दी थी हमें घर बिठाने की,

अभी तो हम बहुत सेवा कर सकते थे ज़माने की।  


पर जवानी में घर बिठाकर लल्लू शौहर बना दिया है,

और सरकारी अफ़सर से हमें घरेलू नौकर बना दिया है।    


Friday, June 24, 2022

प्रकृति से भयंकर छेड़ छाड़ --

 कंडाघाट से चैल जाने वाली सड़क यूं तो रूरल एरिया से होकर जाती है। लेकिन सारे रास्ते पड़ने वाले गांवों/घरों में अब होटल/रिजॉर्ट/होम स्टे खुल गए हैं। ज़ाहिर है, मेन रोड़ पर प्रॉपर्टी सदा ही सोना उगलती रही है। लेकिन जो सबसे ख़तरनाक बात देखी वो थी रास्ते मे पड़ने वाली एक पहाड़ी नदी का दोहन। चैल से लगभग 15 किलोमीटर पहले एक गांव पड़ता है जो अब कस्बा बन गया है। दो पहाड़ों के बीच बहती एक छोटी सी जलधारा के किनारे बसा यह गांव सतपुला कहलाता है। यहां तलहटी में नदी को पार करने के लिए एक पुल बना है जिसके द्वारा एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ तक जाया जाता है। शायद इसी से यह नाम पड़ा होगा।

2015 में जब यहाँ आये थे तब यह पुल टूट गया था। इसलिए सारी गाड़ियां नदी में उतरकर नदी को पार करती थीं। दोनो ओर सीधी ढलान पर कच्चा रास्ता बहुत कठिन था। लेकिन गांव वालों ने इसे ब्लेसिंग इन डिसगाइज समझकर व्यवसायिक लाभ उठाते हुए नदी किनारे चाय पानी के अनेक किओस्क/ ढाबे खोल दिये। गाड़ीवालों के उत्साह को देखते हुए नदी के बीचों बीच टेबल चेयर भी डाल दीं। लोग भी पानी मे पैर लटकाकर बड़े मजे से चाय पकौड़ों का आनंद लेते थे। नदी का पानी भी साफ था।
लेकिन इस बार देखा कि पुल तो सही सलामत था और सारा ट्रैफिक वहीं से गुज़र रहा था, लेकिन नदी का पाट अब एक कैम्पिंग साइट बन गया था। नदी के एक किनारे तो वही पुराने ढाबे थे, लेकिन दूसरी ओर आधुनिक टेन्टेड कैम्प्स बन गए थे। लगभग एक किलोमीटर तक बीसियों कैम्प बने थे। आगे की ओर तो बहुमंज़िला रिजॉर्ट/ होटल भी बने थे। एक 4-5 फुट ऊंची दीवार शायद यह सोचकर बनाई गई थी कि यदि बाढ़ आ जाये तो कैम्प्स को नुकसान न हो। हालांकि पहाड़ों में जब बादल फटता है तो 4 क्या, 40 फुट ऊंची दीवार भी काम नहीं आती।
सबसे खराब बात ये पता चली कि इन सभी होटल्स का सीवर नदी में ही जा रहा था। ऊपर की ओर जहां से नदी निकलती थी, वहां तो बिलकुल नदी के ऊपर होटल बने थे। कोई हैरानी नहीं थी कि नदी का पानी काला क्यों देख रहा था।
अब सोचने की बात ये है कि किसने इज़ाज़त दी होगी इस अतिक्रमण के लिए। क्या प्रशासन आंखे बंद कर के बैठा है। या सब मिलीभगत से हो रहा है। पता चला कि सब प्रॉपर्टीज वहां के प्रभावशाली लोगों की हैं। यानी रक्षक ही भक्षक हो गए हैं। फिर आम जन भी क्षणिक आनंद के चक्कर मे अपना फर्ज़ भूल रहे हैं, आने वाली पीढ़ी के लिए।
प्रकृति का ऐसा निर्मम दोहन कहीं और देखा है क्या !
rs






Wednesday, June 22, 2022

चैल, शिमला के पास एक सुंदर, शांत हिल स्टेशन --

यदि आप भीड़ भाड़ से दूर एक शांत जगह पर गर्मी से राहत पाने के लिए पहाड़ों में कुछ दिन बिताना चाहते हैं तो चैल (चायल) एक ऐसी ही सुंदर, शांत और प्रकृति के नज़दीक जगह है। दिल्ली से लगभग 350 किलोमीटर दूर, यहां जाने के लिए रास्ता भी बिलकुल सीधा और साफ़ है। कालका शिमला हाइवे पर कंडाघाट से दायीं ओर एक सड़क जाती है जो विभिन्न गांवों से होती हुई सीधे चैल जाती है।

चैल में दो या तीन रात रुकना काफ़ी है। यहां एक पहाड़ पर काली टिब्बा नाम की चोटी पर काली मंदिर है, जहां से 360 डिग्री व्यू नज़र आता है। इसके अलावा चैल शहर में चैल पैलेस ही देखने लायक जगह है, जहां प्रवेश के लिए 100 रुपये का टिकट है। महल में कुछ खास नहीं है, लेकिन उसके बाहर लॉन और आस पास का क्षेत्र बहुत हरा भरा और मनमोहक है। आप चाहें तो यहां एक रात रह भी सकते हैं। लेकिन एक रात का किराया महाराजा सुइट में 25000, महारानी सुइट में 11500 है। हालांकि सबसे सस्ता कमरा राजकुमार का 5200 का है। बाकी एक क्रिकेट ग्राउंड है जिसे दुनिया का सबसे ऊंचाई पर बना क्रिकेट मैदान कहते हैं। हालांकि इसमें देखने वाली कोई बात नही है।
आप चैल से शिमला घूमकर भी शाम तक वापस आ सकते हैं। रास्ते में एक चोटी पर स्टोन टेम्पल बना है, जहां तक पहुंचने में आपकी ड्राइविंग स्किल्स का पूरा इम्तिहान हो जाएगा। शिमला के रास्ते मे कुफरी भी आता है, जहां आपको भीड़ के सिवाय कुछ नहीं मिलेगा। लेकिन कोई बात नहीं, वहां आप सरकारी कैफे में कॉफी पीकर आगे बढ़ सकते हैं।
चैल में रुकने के लिए ग्रैंड सनसेट होटल एक बढ़िया विकल्प है जो शुरू में ही मेन रोड़ पर है। यहां से वैली व्यू और सनसेट बहुत बढिया नज़र आता है। यह आस पास स्थित सभी होटल्स में सबसे बढ़िया है।
-- क्रमश:
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Sunday, June 12, 2022

एक लेखक की व्यथा --


फेसबुक पर फेसबुकी 

कवितायेँ लिखते लिखते

रामलाल को हो गया गुमान। 

कि अपुन तो लेखक बन गए महान।   

फिर एक दिन हिम्मत करके 

पत्नी के गुल्लक से पैसे निकाले

और कर दिए हिम्मत लाल प्रकाशक के हवाले।  

 

सीना २४ इंच से बढ़कर २५ इंच का हो गया

जब छपकर हाथ में आ गई किताब। 

सोचा अब तो साहित्य रत्न का 

लेकर रहेंगे खिताब।    

फिर जितने भी मिले बाल लाल पाल,

सबको बाँट कर सोचा

लो जी हम भी साहित्य में हो गए मालामाल।   

 

एक रात 

साहित्यकार श्यामलाल से हो गई मुलाकात

बात बात में रामलाल ने कहा

श्यामलाल

कैसा है हाल चाल ?  

पढ़ी

वो बोला क्या

रामलाल ने कहा, किताब।  

वो बोला ज़नाब अभी कहाँ पढ़ी है

अभी तो जो पुस्तकें मेले में खरीदी थी

वही अलमारी में बंद पड़ी हैं।  

आजकल पढ़ने लिखने का 

वक्त ही कहाँ मिल पाता है।  

फिर कॉम्प्लिमेंट्री का नंबर तो

बड़ी मुश्किल से  ही आता है।    

 

 फिर एक दिन 

मिल गए प्रॉफेसर प्यारेलाल,

बिन पूछे ही हाल चाल

कर दिया वही सवाल

कि पढ़ी

सुनते ही प्रॉफेसर ने लगा दी बहानों की झड़ी। 

बोले अभी लेक्चर कई लेने हैं,   

दो साल से पड़े पेपर्स जर्नल्स में देने हैं।  

एग्जाम पास आ रहे हैं

अब आप ही बताइये ज़नाब

कि पी जी की थीसिस पढ़ें या आपकी किताब।   

 

चार महीने बाद भी 

किताब तो मोहन लाल ने भी नहीं पढ़ी थी

पता चला कि 

उन पर एक अजीब मुसीबत आन पड़ी थी।  

बड़े सरकारी अफ़सर हैं पुरजोर

पर आजकल हाज़मा बिगड़ा हुआ है, 

टॉयलेट में घंटों लगाना पड़ता है जोर।  

रामलाल बोले, भाई साहब

ज़रा कम खाया करो

भला इतना पेट क्यों भरते हैं ।  

वैसे बड़े अफ़सर तो अक़्सर ,

टॉइलेट में बैठकर ही पढ़ा करते हैं।    

 

किताब तो नेता नत्थूलाल

ने भी बड़े शौक से ली थी। 

फिर संभाल कर घर पर रख दी थी। 

लेकिन आज तक भी नहीं पढ़ी थी।

याद दिलाया तो बोले,

भैया आजकल वक्त ही नहीं निकल पाता है। 

जब भी पढ़ने की सोचते हैं,

कोई न कोई चुनाव निकल आता है। 

 

 

काका किशनलाल तो काम में 

इस कदर रहते हैं मशगूल।  

कि किताब का नाम ही गए भूल । 

आलसी तो ऐसे कि 

सारे काम पड़े रहते हैं अधूरे

उस पर भुलक्कड़ हैं पूरे। 

एक दिन सारी किताबें कबाड़ी को दे आये,

फिर बड़े घबराए

क्योंकि बहुत बड़ा कबाड़ा कर आए थे।  

रामलाल की किताब के साथ साथ 

अपनी पत्नी की किताबें भी कबाड़ी को दे आये थे।  

 

 

दोस्तो

लेखन लेखक का जुनून होता है

वह जब भी खाता पीता 

जागता सोता है। 

मन में विचारों का ताँता लगा रहता है

लेकिन दिल में बस 

यही कामना रखता है।  

कि लोग उन्हें पढें

तारीफ़ करें या गलतियां निकालें

पर उसकी धरोहर को संभालें 

क्योंकि एक दिन लेखक तो चला जाता है

पर उसका वज़ूद उसकी किताब में रह जाता है।      

 

 

 

 

Saturday, June 4, 2022

 आज एक ग़ज़ल बन गई:


अकेले बहुत है दुनिया में पर,वो ख़ुशगवार नहीं मिलते,

केले तो बहुत मिलते हैं पर, वो चित्तीदार नहीं मिलते। 


ठंडा पानी तो बहुत मिल जाता है, बेस्वाद रेफ्रिजरेटर से,

पर सोंधा सा मटका बनाने वाले, वो कुम्हार नहीं मिलते। 


दोस्त तो बहुत मिल जाएंगे, इस दुनिया की भीड़ में, 

पर दोस्ती पर जान लुटाने वाले, वो यार नहीं मिलते। 


सवारियां तो बहुत दौड़ती हैं, इन शहरों की  सड़कों पर,

पर सम्मान के रक्षक जांबाज़, वो घुड़सवार नहीं मिलते। 


विकास ने लोगों की जिंदगी में, कर दिया ऐसा परिवर्तन,

कि तमाशा देखती गूंगी भीड़ में, वो मददगार नहीं मिलते। 


अपनी तो सोम से रवि सातों दिन, छुट्टी ही छुट्टी है दोस्तो, 

किया करते थे बेसब्री से इंतज़ार, वो इतवार नहीं मिलते।