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कवितायेँ लिखते लिखते,
रामलाल को हो गया गुमान।
कि अपुन तो लेखक बन गए महान।
फिर एक दिन हिम्मत करके
पत्नी के गुल्लक से पैसे निकाले,
और कर दिए हिम्मत लाल प्रकाशक के हवाले।
सीना २४ इंच से बढ़कर २५ इंच का हो गया,
जब छपकर हाथ में आ गई किताब।
सोचा अब तो साहित्य रत्न का
लेकर रहेंगे खिताब।
फिर जितने भी मिले बाल लाल पाल,
सबको बाँट कर सोचा ,
लो जी हम भी साहित्य में हो गए मालामाल।
एक रात
साहित्यकार श्यामलाल से हो गई मुलाकात,
बात बात में रामलाल ने कहा
श्यामलाल ,
कैसा है हाल चाल ?
पढ़ी ?
वो बोला क्या ?
रामलाल ने कहा, किताब।
वो बोला ज़नाब, अभी कहाँ पढ़ी है,
अभी तो जो पुस्तकें मेले में खरीदी थी,
वही अलमारी में बंद पड़ी हैं।
आजकल पढ़ने लिखने का
वक्त ही कहाँ मिल पाता है।
फिर कॉम्प्लिमेंट्री का नंबर तो
बड़ी मुश्किल से ही आता है।
फिर एक दिन
मिल गए प्रॉफेसर प्यारेलाल,
बिन पूछे ही हाल चाल
कर दिया वही सवाल,
कि पढ़ी ?
सुनते ही प्रॉफेसर ने लगा दी बहानों की झड़ी।
बोले अभी लेक्चर कई लेने हैं,
दो साल से पड़े पेपर्स जर्नल्स में देने हैं।
एग्जाम पास आ रहे हैं,
अब आप ही बताइये ज़नाब,
कि पी जी की थीसिस पढ़ें या आपकी किताब।
चार महीने बाद भी
किताब तो मोहन लाल ने भी नहीं पढ़ी थी,
पता चला कि
उन पर एक अजीब मुसीबत आन पड़ी थी।
बड़े सरकारी अफ़सर हैं पुरजोर ,
पर आजकल हाज़मा बिगड़ा हुआ है,
टॉयलेट में घंटों लगाना पड़ता है जोर।
रामलाल बोले, भाई साहब
ज़रा कम खाया करो,
भला इतना पेट क्यों भरते हैं ।
वैसे बड़े अफ़सर तो अक़्सर ,
टॉइलेट में बैठकर ही पढ़ा करते हैं।
किताब तो नेता नत्थूलाल
ने भी बड़े शौक से ली थी।
फिर संभाल कर घर पर रख दी थी।
लेकिन आज तक भी नहीं पढ़ी थी।
याद दिलाया तो बोले,
भैया आजकल वक्त ही नहीं निकल पाता है।
जब भी पढ़ने की सोचते हैं,
कोई न कोई चुनाव निकल आता है।
काका किशनलाल तो काम में
इस कदर रहते हैं मशगूल।
कि किताब का नाम ही गए भूल ।
आलसी तो ऐसे कि
सारे काम पड़े रहते हैं अधूरे,
उस पर भुलक्कड़ हैं पूरे।
एक दिन सारी किताबें कबाड़ी को दे आये,
फिर बड़े घबराए,
क्योंकि बहुत बड़ा कबाड़ा कर आए थे।
रामलाल की किताब के साथ साथ
अपनी पत्नी की किताबें भी कबाड़ी को दे आये थे।
दोस्तो,
लेखन लेखक का जुनून होता है,
वह जब भी खाता पीता
जागता सोता है।
मन में विचारों का ताँता लगा रहता है,
लेकिन दिल में बस
यही कामना रखता है।
कि लोग उन्हें पढें,
तारीफ़ करें या गलतियां निकालें,
पर उसकी धरोहर को संभालें ।
क्योंकि एक दिन लेखक तो चला जाता है,
पर उसका वज़ूद उसकी किताब में रह जाता है।