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Tuesday, January 31, 2012

सर्दियों में अंडे सन्डे मंडे और खर्राटे यानि ---


चिकित्सा के क्षेत्र में नॉलेज जितनी जल्दी बदलती है , उतनी शायद किसी और क्षेत्र में नहीं बदलती होगीइसीलिए इस क्षेत्र में निरंतर शोध होती रहती हैशोध परिणामों को विभिन्न मेडिकल जर्नल्स में छापा जाता हैलेकिन सभी के लिए सभी जर्नल्स को पढना संभव नहीं हो पाता

ऐसे में दिल्ली के जाने माने कारडियोलौजिस्ट डॉ बी सी रॉय अवार्डी , पदमश्री डॉ के के अग्रवाल द्वारा प्रकाशित दैनिक -पत्रिका मेडीन्यूज डॉक्टर्स के लिए जानकारी का एक बड़ा अच्छा और सुगम श्रोत साबित हो रही है

प्रस्तुत हैं , यहीं से लिए गए कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी समाचार आपकी जानकारी के लिए :

* सन्डे हो या मंडे , रोज खाएं अंडे --

यह विज्ञापन तो आपने देखा सुना ही होगाइसके मुताबिक रोज एक अंडा खाना सेहत के लिए अच्छा होता हैलेकिन एक शोध से पता चला है कि सप्ताह के सातों दिन रोज एक अंडा खाने से पुरुषों में ५५% और महिलाओं में ७७% डायबिटीज होने के सम्भावना बढ़ जाती है

वैसे तो अंडे की सफेदी में प्रोटीन होती है जिसे स्टेंडर्ड प्रोटीन माना जाता हैलेकिन अंडे के मध्य जो ज़र्दी होती है वास्तव में वह कॉलेस्ट्रोल युक्त वसा होती है
यदि साबुत अंडा खाया जाए तो यह वसा सुगर मेटाबोलिज्म को प्रभावित कर मधुमेह को जन्म दे सकता है
इसलिए यदि अंडे खाने भी हों तो सिर्फ सफेदी ही खाना चाहिए जिससे वसा रहित भरपूर प्रोटीन मिल सके

* खर्राटे --

सोते हुए बहुत से लोग खर्राटे लेते हैंविदेशों में तो ये पति पत्नी के बीच तलाक का कारण भी बन जाते हैंवैसे भी दूसरे व्यक्ति की नींद तो खराब करते ही हैं
यह पाया गया है कि खर्राटे लेने वाले व्यक्ति को हार्ट अटैक , या अकस्मात मृत्यु की सम्भावना ज्यादा होती है
खर्राटे अक्सर गले में टोंसिल , एडिनोइड , या साइनस ब्लॉक होने की वज़ह से होते हैंमोटे व्यक्तियों में भी ज्यादा होते हैं
इनसे बचने के लिए वज़न कम करना चाहिए, सिग्रेट पीना छोड़ना चाहिएसोते समय करवट लेकर सोना चाहिए

* कुत्ते के काटने पर --

सबसे पहला और सबसे ज़रूरी काम है --घाव को बहते पानी में धोनासाबुन लगाकर धोना और भी अच्छा हैऐसा करने से ही रेबीज होने की सम्भावना ५०% कम हो जाती है

* सर्दियों के दिन और सुबह का समय --

हृदय रोगियों के लिए अक्सर घातक सिद्ध होते हैंइन दिनों में बी पी हाई होने , स्ट्रोक , हार्ट अटैक और हृदयाघात से मृत्यु होने की सम्भावना बढ़ जती हैइसलिए हृदय रोगियों को सर्दियों में ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए और अपने डॉक्टर से विमर्श कर दवा समय पर लेते रहना चाहिएअक्सर सर्दियों में दवा की मात्रा बढ़ानी पड़ती है

* छाती में दर्द --

छाती के बायीं तरफ होने वाले दर्द को अक्सर एंजाइना यानि दिल का दर्द समझा जाता हैहालाँकि यह दर्द नौन कारडिअक यानि किसी और वज़ह से भी हो सकता है
छाती के नीचे बायीं ओर पेट में होने वाले दर्द को अक्सर एसिडिटी की वज़ह से माना जाता हैलेकिन कई बार यह दर्द एसिडिटी होकर दिल का दर्द भी हो सकता हैयह विशेषकर इन्फीरियर वॉल इन्फार्क्शन में होता है

अफ़सोस तो यह है कि कई बार डॉक्टर्स भी इस दर्द को एसिडिटी समझ कर एंटएसिड्स प्रेस्क्राइब कर देते हैं
यह एक ब्लंडर है जो रोगी के लिए घातक हो सकता है

* हृदयाघात का रोगी और सेक्सुअल एक्टिविटी :

आजकल हार्ट अटैक की सम्भावना युवाओं में भी बढ़ने लगी हैऐसे में अक्सर एक सवाल पैदा होता है कि क्या हृदयाघात से पीड़ित होने के बाद सेक्सुअल एक्टिविटी बंद कर देनी चाहिए

जी नहीं , पूर्णतया ठीक होने के बाद सेक्स पर कोई पाबंधी नहीं होती बल्कि नॉर्मल सेक्सुअल एक्टिविटी स्वास्थ्य के लिए इन लोगों में भी उतनी ही लाभकारी होती है जितनी स्वस्थ लोगों में

लेकिन एक बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिएहृदय रोगियों को वायग्रा जैसी दवाओं के सेवन से बचना चाहिएइसके सेवन से फेटल हार्ट अटैक हो सकता है

वैसे भी वायग्रा सिर्फ उन्ही लोगों के लिए लाभदायक होती है जिन्हें किसी वज़ह से नपुंसकता हो गई है
वायग्रा को यौन शक्ति वर्धक दवा के रूप में लेना खतरनाक हो सकता है

नोट : स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई भी शिकायत होने पर अपने डॉक्टर से परामर्श करना भूलें


Friday, January 27, 2012

दिल्ली में गणतंत्र दिवस की अद्भुत छटा --राजपथ पर ।


बचपन में गणतंत्र दिवस की परेड देखने के लिए हम मूंह अँधेरे उठ जाते थे और ६-७ किलोमीटर पैदल चलकर राजपथ पहुँचते थे । बाद में ऑफिसर बन गए तो सरकार की ओर से विशिष्ठ अतिथि वाले पास मिलने लगे । लेकिन पिछले ३-४ साल से न जाने क्यों पास मिलने बंद हो गए । इसलिए इस बार भी घर बैठकर ही टी वी पर परेड देखनी पड़ी ।
हालाँकि हमारी कामवाली बाई ज़रूर पास का जुगाड़ कर परेड राजपथ पर ही देख कर आई ।

दिल्ली शहर में जुगाड़ एक अद्भुत कला है

हर वर्ष २६ जनवरी से २९ जनवरी को बीटिंग रिट्रीट के दिन तक सारे सरकारी भवनों को बिजली से रौशन किया जाता है । पहले सारे भवनों को सजाया जाता था लेकिन अब बिजली की बचत करने के लिए केवल राष्ट्रपति भवन , नॉर्थ ब्लॉक , साउथ ब्लॉक और संसद भवन को ही सजाया जाता है ।

शाम होते ही सारा राष्ट्रपति भवन कॉम्प्लेक्स और राजपथ जगमगाने लगता है
शाम होते ही हम भी पहुँच गए राजपथ पर यह मनोरम नज़ारा देखने के लिए ।
यदि आप दिल्ली नहीं आ सकते तो देखिये ये तस्वीरें और मज़ा लीजिये अपने देश की राजधानी का ।


लाइट्स देखने के लिए हज़ारों की संख्या में दिल्ली वाले पहुंचे हुए थेलेकिन एक अलग बात यह थी कि पहले की अपेक्षा अधिकांश लोग देखने से ज्यादा फोटो उतारने में लगे थे , हमारी तरह


साउथ ब्लॉक --दूर सेचाँद भी मानो यह छटा देखने को निकल आया था


नॉर्थ ब्लॉक


यह भी साउथ ब्लॉक


ज़रा पास से


राष्ट्रपति भवन की ओर से राजपथ का नज़ारा --दूर इण्डिया गेट दिखाई दे रहा है जिसे तिरंगे की तरह रौशनी से सजाया गया था


राष्ट्रपति भवन के प्रांगण का प्रवेश द्वार


द्वार से अन्दर का नज़ारा


सारा साउथ ब्लॉक


सारा नॉर्थ ब्लॉक


साउथ ब्लॉक के सामने फव्वारा --रिफ्लेक्शन


यह स्तंभ न्यूजीलेंड से मंगाया गया है


संसद भवन


विजय चौक के पास फव्वारासाथ में खुराफाती बच्चे



एक दृश्य यह भी --कैमरे के अलग मोड में

नोट : कुल मिलाकर सारा दृश्य एक स्वपन लोक जैसा दिखता हैएक बार देखिएगा ज़रूर


Monday, January 23, 2012

दिल्ली की सर्दी और शादियों का सीजन--टोटल कन्फ्यूजन...

देश की १२२ करोड़ जनता में से करीब पौने दो करोड़ लोग दिल्ली में रहते हैं । हम जैसे हर औसत दर्जे के व्यक्ति की कम से कम १२२ लोगों से तो दोस्ती होती ही होगी । फिर रिश्तेदार , कार्यस्थल पर सहकर्मी और तत्कालिक सहयोगी भी मिलकर १२२ और हो जाते होंगे । इन सब को मिलाकर हर वर्ष शादियों के सीजन में १०-१२ परिवारों में शादी अवश्य होती होगी । यानि हर सर्दियों में कम से कम १०-१२ शादियों के निमंत्रण

गुजरे ज़माने में हरियाणा में शादियाँ गर्मियों में ही होती थी । इसकी वज़ह रही होगी -- अप्रैल तक रबी की फसल तैयार होकर आमदन का होना । एक बार पैसा हाथ में आ जाए तो किसान को तीन ही काम सूझते थे --एक लड़की की शादी करना --दूसरा घर बनाना --और तीसरा लड़ाई झगडा कर कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाना ।

लेकिन शादियों के लिए तपतपाती गर्मी में मई जून के महीने ही होते थे

पहले सगाई , फिर लगन और आखिर में शादी का दिन --यानि दावत का दिन । सारे गाँव को न्यौता दिया जाता । आस पड़ोस और करीबी घरों में चूल्हा न्यौत ( घर के सब सदस्य) निमंत्रण दिया जाता ।

लड़के की शादी में एक दिन पहले दावत का इंतजाम होता । दावत में लड्डू , साथ में पूरी और सीताफल की सब्जी होती । घर के दालान में सफाई कर , फर्श पर टाट बिछाकर पंगत लगाई जाती । ठीक वैसे जैसे गुरूद्वारे में पंगत में बैठकर खाना खाते हैं । लोगों में लड्डू खाने की होड़ लगी होती ।

लड़की की शादी में खाने में मिठाइयों में लड्डुओं के साथ जलेबी भी बनाई जाती । जिसका काम थोडा अच्छा होता वह सात तरह की मिठाइयाँ बनवाता जिसे तस्तरी कहा जाता था । रंग बिरंगी मिठाइयाँ बड़े चाव से खाई जाती ।

कुल मिलाकर गाँव में शादियाँ पूरे गाँववासियों के लिए एक जश्न का माहौल पैदा कर देती थी

धीरे धीरे गाँव में शहर का असर आने लगा । फिर वहां भी टेबल पर बफ़े सजाकर खड़े होकर खाने की रिवाज़ शुरू हो गई जिसे आरम्भ में बड़े बूढों ने बहुत बिसराया । लेकिन अंतत : वक्त के आगे सभी को झुकना पड़ा ।

अब शादियों के मामले में शहर और गाँव में कोई फर्क नहीं रह गया

इधर शहर में भी अब शादियों का स्वरुप बहुत बदल गया है ।
अब लगभग सभी लोग विद फैमिली निमंत्रण देते हैं । लेकीन बहुत कम लोग निमंत्रण देने के लिए घर पर आते हैं । या तो कार्ड ऑफिस में पकड़ा दिया जाता है या फिर कुरियर से घर भेज दिया जाता है ।

उस पर अक्सर दिल्ली की शादियाँ किसी पेज थ्री पार्टी से कम नहीं होती जहाँ मौजूद होना भी एक स्टेटस सिम्बल माना जाता है

लेकीन सबसे ज्यादा असमंजस्य की स्थित तब आती है जब कार्ड तो मिल जाता है लेकिन बुलाने वाला खुद कार्ड देने आता है , फोन करता है बस कार्ड भिजवाकर अपने घर में शादी की सूचना दे देता है


ऐसे में अब सवाल यह पैदा होता है कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए
क्या उस शादी में जाना चाहिए जिसमे आपको बस कार्ड भिजवा दिया गया है ?
या ऐसी शादी में नहीं जाना चाहिए ?
इस बारे में आपके क्या विचार हैं , कृपया अवश्य बताईयेगा