पर्वत हमें सदा ही अचंभित और रोमांचित करते रहे हैं। ऊंचे ऊंचे पहाड़ , पहाड़ों को काट कर बनाई गई सड़कें, दो पर्वतों के बीच बहती नदिया , नदिया का स्वरूप , कल कल करता निरंतर बहता निर्मल पानी देख कर प्रकृति की महानता का अहसास होता है। लेकिन पर्वत कितना भयंकर रूप भी धारण कर सकते हैं , यह अभी उत्तराखंड में आई प्राकृतिक विपदा से भली भांति समझा जा सकता है।
पहाड़ों में निरंतर कम होते पेड़ पौधे , लेकिन बढ़ते कंक्रीट जंगल और मानव जाति की प्रकृति के साथ छेड़ छाड़ तथा गाड़ियों का अविराम आवागमन पर्वतों के साथ मानवीय संतुलन को बिगाड़ देता है। नतीजा सामने है , हमने देख लिया। इस विपदा के समय , आइये एक नज़र डालें इस प्राकृतिक सम्पदा और इस पर मानवीय विकास के प्रभाव पर। एक फोटोग्राफर के लिए तो यहाँ जैसे खज़ाना छुपा रहता है। प्रस्तुत हैं , धर्मशाला में बिताये एक सप्ताह में खींची कुछ दिलचस्प तस्वीरें :
यह आकृति कोई फॉसिल नहीं बल्कि स्लेट नुमा पत्थरों से बनाई गई है। पहाड़ों में पत्थर अनेकों रंग रूपों में मिलते हैं। स्लेटी पत्थर किसी किसी जगह बहुतायत में पाए जाते हैं। टूट टूट कर ये पत्थर अलग अलग आकार और साइज़ में बदल जाते हैं।
स्लेटी पहाड़
बायीं वाली छाया को पहचानना कठिन नहीं , लेकिन दायीं ओर की छाया नारी की है , यह विश्वास करना मुश्किल सा लगता है।
बहते पानी में घिस घिस कर पत्थरों का आकार और शक्ल विभिन्न रूप धारण कर लेता है। लेकिन बीच नदी के यह मेमथ ( विशालकाय ) पत्थर कैसे आया , यह समझ न आया।
इस पेड़ की उम्र ज्यादा है या यह किसी शिकारी का शिकार बन गया है , यह समझना मुश्किल है।
पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है कि पहाड़ों पर कूड़ा करकट न फैलाया जाये। इसके लिए जगह जगह आवश्यक निर्देश जारी किये जाते हैं , फिर भी कुछ शरारती तत्त्व इस तरह की हरकत करने से बाज नहीं आते। हमें ख़ुशी है कि हमारे दोनों बच्चों को विधालय में इस बारे में अच्छा ज्ञान दिया गया था। अत:
हम भी कभी गलती नहीं करते। लेकिन क्या आप करते हैं , ज़रा सोचिये !
पहाड़ में बनी यह गुफा नुमा जगह आदि मानव का आशियाना होती थी, जो उसे न सिर्फ सर्दी गर्मी और बरसात से बचाती थी बल्कि जंगली जानवरों से भी रक्षा करती थी। ट्रेकिंग रूट पर यह ट्रेकर्स के लिए भी वरदान साबित होती है।
ऊंचे पहाड़ों पर चाय की दुकान मिल जाये तो बांछें खिल जाती हैं। ऐसे में ३० रूपये की एक गिलास चाय पीकर भी आनंद आ जाता है।
पहाड़ी नदियों की एक विशेषता यह होती है कि इनका पानी इतना साफ़ और निर्मल होता है कि नदी के तल में भी सब कुछ साफ़ दिखाई देता है। ज़ाहिर है , यह इन्सान के दुषप्रभाव से बचा हुआ होता है।
ये चोटियाँ कभी बर्फ से ढकी होती थी। लेकिन मानव जाति ने इतना विकास कर लिया कि पहाड़ों से उनका श्रृंगार ही छीन लिया। इसे ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव कहें या कलयुग का , लेकिन जिस तेजी से हमारे ग्लेसियर्स पिघलते जा रहे हैं और पहाड़ नंगे होते जा रहे हैं , वह दिन दूर नहीं जब पर्वतों की मनमोहक छवि केवल किताबों में देखने को मिलेगी और हमारी नई पीढ़ी पूछेगी कि हिम आच्छादित पर्वत क्या होते हैं !
नोट : यदि आप पर्यावरण की रक्षा करना चाहते हैं तो पहल स्वयं से कीजिये और दूसरों को भी सही रास्ता दिखाइए ताकि यह प्राकृतिक धरोहर सुरक्षित रहे और हम सालों साल इनका आनंद लेते रहें।