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Thursday, September 30, 2010

तन सुन्दर हो तो मन भी सुन्दर होना चाहिए ---

पिछली पोस्ट में मैंने राष्ट्र मंडल खेलों से सम्बंधित दिल्ली में हुए विकास पर सचित्र लेख लिखा था । इस पर बहुत से मित्रों ने अपने विचार प्रकट किये । अधिकांश मित्रों को इस बारे में जानकर आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई । कुछ मित्र ब्लोगर्स ने खेलों के आयोजन में हुई कुव्यवस्था और व्याप्त भ्रष्टाचार पर आक्रोश व्यक्त किया , जो वर्तमान परिवेश में स्वाभाविक लगता है। विकास कार्यों को लेकर स्थायित्त्व की भी शंका देखी गई ।


कहते हैं --तन की खूबसूरती के साथ मन की खूबसूरती भी हो तो क्या कहने । जहाँ तन की सुन्दरता क्षणिक होती है , वहीँ मन की सुन्दरता स्थायी होती है । मन सुन्दर होता है चरित्र से । और चरित्र निर्माण मनुष्य के व्यक्तित्त्व पर निर्भर करता है ।



दिल्ली की सुन्दरता पर भी यही लागु होता है । आज बाहर से भले ही दिल्ली की खूबसूरती बढ़ गई हो , लेकिन जब तक दिल्ली वालों का चरित्र निर्माण नहीं होगा , तब तक सारी सुन्दरता खोखली ही नज़र आएगी ।


यह कैसे संभव होगा ?


अदा जी की एक पोस्ट में पढ़ा था --किसी भी देश या शहर का चरित्र उसके यातायात से पता चलता है यहाँ भी सड़कों पर हमारा व्यवहार दर्शाता है कि हम कितने विकसित हुए हैं ।

हम पूर्ण रूप से विकसित तभी माने जायेंगे जब हम :

* रास्ते चलते सड़कों पर थूकना छोड़ देंगे यह हमारी आदत भी है और मजबूरी भी । मजबूरी इसलिए कि एक तो हम ऐसे देश में रहते हैं जहाँ आम तौर पर प्रदूषण ज्यादा है । उसपर हमारा बीडी सिगरेट पीने का शौक । अब थूक तो आएगा ही । तो क्यों न धूम्रपान ही त्याग दें ।

* पान की पीक मारना छोड़ देंगे शायद सबसे ज्यादा पान चबाने वाले यहीं मिलेंगे । इसीलिए सारी सरकारी इमारतों और सार्वजानिक स्थानों पर पान के धब्बे और रंग अलग ही नज़र आते हैं । क्यों न पान , सुपारी , गुटखा आदि चबाना छोड़ दिया जाए ।

* कहीं भी मूत्र वित्सर्जन करना छोड़ देंगे इस काम में तो हमारी मास्टरी है । भले ही इस सुविधा का लाभ सिर्फ पुरुष ही उठाते हैं । लेकिन देश में पुरुष भी तो महिलाओं से कहीं ज्यादा हैं ।
दिल्ली सरकार ने जगह जगह आधुनिक किस्म के टॉयलेट्स बनाये हैं । इनका इस्तेमाल किया जाए तो कैसा रहे ।

* सड़कों पर कूड़ा करकट नहीं डालेंगे आजकल बड़ों से बच्चे ज्यादा सचेत हैं ।

* सड़क पार करने के लिए जेब्रा क्रॉसिंग का इस्तेमाल करेंगे अभी तो हम रेलिंग फांदकर या तोड़कर रास्ता बना लेने में अपनी शान समझते हैं ।

* सड़कों पर बने फुट ओवरब्रिज या अंडर पास का इस्तेमाल करेंगे डरिये नहीं --ये नहीं गिरेंगे ।

* बिना बात होर्न बजाना छोड़ देंगे यह आदत भी यहाँ बहुतायत में पाई जाती है ।

* यातायात के नियमों का पालन करेंगे

अब यह तभी संभव है जब सारे भारत के लोग मिलकर प्रयास करें । क्योंकि दिल्ली में दिल्ली के मूल निवासी तो मुश्किल से १०-२० % ही हैं । बाकि सब तो अन्य राज्यों से विस्थापित या काम की तलाश में आये भारतवासी हैं ।

और अंत में सबसे प्रमुख बात ---आज अयोध्या मामले पर कुछ भी फैसला आए , हम अमन और भाईचारा बनाए रखेंगे

यदि सभी मिलकर प्रयास करें , तभी हम दिल्ली वाले विदेशियों और विदेश में रहने वाले भारतियों का दिल जीत सकते हैं



Sunday, September 26, 2010

दिल्ली है मेरी जान , दिल्ली है मेरी शान ।

राष्ट्रमंडल खेल अब शुरू होने ही वाले हैं । भले ही खेल गाँव के फ्लैट्स को लेकर मिडिया में कितना ही शोर शराबा क्यों न हो , एक बात अवश्य है कि यमुना तल पर बने खेल गाँव की वज़ह से इसके आस पास के क्षेत्र की कायापलट ही हो गई है ।

अप्रैल से जून तक गर्मी फिर जुलाई से सितम्बर तक बारिस होते रहने से , हम कुछ बंध से गए थे । पिछले कुछ दिनों से सूर्य देवता के दर्शन होने से मौसम काफी खुशगवार सा हो गया है ।

आज सुबह से ही धूप खिली हुई थी । ऐसे में अपना फोटोग्राफी का शौक कसमसाने लगा । वैसे भी दिल्ली की शक्ल ही बदल गई है गेम्स के कारण । बस अपना कैमरा चार्ज किया , ड्राइवर को पटाया --और हम निकल पड़े दौरे पर ।

आइये आपको भी दिल्ली के उस हिस्से की सैर कराते हैं जहाँ खेलों का सारा दारोमदार है ।

हमारे निवास स्थान के पास ही है --राष्ट्रिय राजमार्ग २४ ( नेशनल हाइवे २४)।


यह हाइवे पश्चिम की ओर जाता है निजामुद्दीन यमुना पुल की ओर जिसे पार कर यह रिंग रोड में जा मिलता है । हाइवे प़र आप देख सकते हैं पीली रेखा जो विशेष तौर पार खिलाडियों के वाहनों के लिए विशेष लेन सुरक्षित करने के लिए बनाई गई है ।
आधुनिक स्ट्रीट लाईट लगाई गई हैं । जिनसे रात में हाइवे जगमगा उठता है ।

सारे क्षेत्र में इस तरह के बस स्टॉप बनाये गए हैं । वैसे आजकल दिल्ली में बस में यात्रा करने वाले कम ही बचे हैं ।



नोयडा मोड़ पार करने के बाद एक नया फ्लाई ओवर बनाया गया है , खेल गाँव के सामने , जिस पर दायीं ओर साउंड प्रूफिंग की गई है । शीट्स पर सुन्दर नक्काशी की गई है । मध्य में पौधे लगाए गए हैं ।



रिंग रोड के पास आने जाने वाली सड़कों में काफी दूरी है । इस पूरे क्षेत्र को हरा भरा बनाया गया है । रिंग रोड टी जंक्शन को बहुत खूबसूरती से सजाया गया है ।



निजामुद्दीन पुल से रिंग रोड पर दायें मुड़ते ही आता है , इन्द्रप्रस्थ पार्क का प्रवेश द्वार ।



द्वार के सामने वाले हिस्से का नज़ारा ।



सामने दिखाई दे रहा है , दुनिया का सबसे बड़ा बस डिपो । जी हाँ , यहाँ १००० बसों के पार्क करने की सुविधा है । गहरे लाल रंग की खूबसूरत बसें खिलाडियों को लाने ले जाने के लिए इस्तेमाल होंगी ।



इन्द्रप्रस्थ पार्क का एक दृश्य ।



पार्क के बाहर , रिंग रोड पर फुटपाथ और सड़क के दोनों तरफ के भाग को सुन्दर घास लगाकर सजाया गया है । सभी जगह लगी टाइलें बड़ी आकर्षक लग रही थी ।



यह ओवर ब्रिज पैदल यात्रियों के लिए प्रगति मैदान के सामने , मथुरा रोड पर बनाया गया है । इस पर बेंच डाले गए हैं। आप यहाँ बैठकर मूंगफली चबाते हुए , ट्रैफिक का नज़ारा देख सकते हैं । बस छिलके अपने साथ ले जाएँ तो बेहतर रहेगा ।



सभी चौराहों और मोड़ों पर आधुनिक और फेंसी लाइट्स लगाई गई हैं ।



सड़कों पर एक लेन गेम्स के लिए सुरक्षित रखी गई है । इस पर चलने वालों को २००० रूपये तक का जुर्माना हो सकता है ।



सड़कों पर जगह जगह साइनेजिज लगाए गए हैं । यह खूबसूरत हरा रंग दिल्ली की हरियाली को और भी बढ़ा रहा है ।



रिंग रोड से निजामुद्दीन पुल पर जाते हुए । खम्भों पर लगे पोस्टर दिल्ली की खूबसूरती में चार चाँद लगा रहे हैं ।
बीच में रखे गमले भी खूबसूरती में अपना योगदान दे रहे हैं ।



और ये रहा खेल गाँव । यमुना के बीचों बीच । अक्षरधाम के पीछे । यहाँ ८००० लोगों के ठहरने का इंतजाम होगा ।




जहाँ खेल गाँव जाने के लिए विशेष मार्ग बनाया गया है । वहीँ बाकि ट्रैफिक के लिए यह फ्लाई ओवर बनाया गया है । इस पर बायीं ओर साउंड प्रूफ शीट्स लगाई गई हैं जिनपर खूबसूरत चित्रकारी की गई है ।




अंत में फ्लाई ओवर से नीचे उतरकर हम वहीँ पहुँच जाते हैं , जहाँ से यह सफ़र शुरू किया था । बायीं तरफ खेल गाँव और अक्षरधाम --दायीं तरफ बाढ़ का पानी जिसे सूखने में अब तो समय लगेगा ।

भले ही खेलों पर हजारों करोड़ रुपया खर्च हो गया हो ।
भले ही काम को समय पर पूरा न होने को लेकर शोर शराबा मचा हो ।
भले ही मिडिया बढ़ चढ़ कर गंदगी दिखा रहा हो ।

लेकिन एक बात तय है --दिल्ली के इस हिस्से में रहने वाले हम जैसे लोगों को अगले बीसियों सालों तक इन सुविधाओं का लाभ मिलता रहेगा

अब कुछ पाना है तो कीमत तो चुकानी ही पड़ेगी

भले ही खेल देखने के लिए हम टिकेट खरीद पाए हों , लेकिन १००-१५० रूपये किलो की सब्जियां खाकर हम भी अपना योगदान दे ही रहे हैं

दिल्ली है मेरी जान , दिल्ली है मेरी शान

नोट : यदि आप दिल्ली घूमना चाहते हैं तो इससे बढ़िया अवसर और कोई नहीं हो सकतादिल्ली इससे ज्यादा सुन्दर कभी नहीं दिखी

Wednesday, September 22, 2010

हाइपोथायरायडिज्म---मोटापे का एक कारण ---

हमारे देश में मोटा होने को सेहतमंद और पतला होने को कमज़ोर होना समझा जाता है
लेकिन यदि आपका वज़न बढ़ता ही जा रहा है तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप की सेहत बेहतर होती जा रही है ।
ज़रा गौर कीजिये --हो सकता है आप हाइपोथायरायडिज्म के शिकार हों

थायरायड :

हमारी गर्दन के सामने वाले हिस्से में एडम्स एप्पल के नीचे एक ग्रंथि होती है जिसे थायरायड कहते हैं । इससे एक हॉर्मोन निकलता है जिसे थायरायड हॉर्मोन कहते हैं । इस हॉर्मोन से हमारे शरीर के सभी अंगों की सभी गतिविधियाँ नियंत्रित होती हैं ।
इस हॉर्मोन की कमी से उत्तपन होने वाली स्थिति को हाइपोथायरायडिज्म कहते हैं

हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण :

इसके मुख्य लक्षण हैं ---

लगातार वज़न बढ़ते जाना ।
शरीर में सूजन आना , विशेषकर हाथ , पैरों और आँखों पर ।
भूख न लगना ।
अधिक नींद आना ।
कमजोरी और थकावट रहना ।
ज्यादा सर्दी लगना --गर्मियों का मौसम अच्छा लगता है ।
त्वचा में खुश्की रहना ।
कब्ज़ रहना ।
महिलाओं में अधिक माहवारी आना ।
बच्चे पैदा न होना ।
बाल झड़ना ।

यानि आप को भूख लगती नहीं , कुछ खाना खाते नहीं , फिर भी वज़न बढ़ता जा रहा है तो समझ लीजिये आपको यह प्रोब्लम हो सकती है
निदान :

डॉक्टर को ज़रूर दिखाएँ । डॉक्टर पूर्ण निरिक्षण करने के बाद कुछ जाँच करवाएगा ।
रक्त जाँच में दो टैस्ट ज़रूरी हैं ---फ्री टी - और टी एस एच

एक बार निदान हो गया और दवा शुरू कर दी गई तो अक्सर जीवन भर खानी पड़ सकती है । क्योंकि अक्सर यह रोग थायरायड ग्रंथि के स्थायी तौर पर नष्ट होने की वज़ह से होता है । यह autoimmunity की वज़ह से होता है ।

उपचार :

इस रोग का कोई उपचार नहीं है ।
लेकिन हॉर्मोन की कमी को पूरा करने के लिए हॉर्मोन को दवा के रूप में दिया जाता है । यानि इलाज़ बस रिप्लेसमेंट के रूप में होता है ।

फिर भी दवा लेते रहने से सामान्य जिंदगी गुजारी जा सकती है
दवा :

एल -थाय्रोक्सिन की गोली जो २५ , ५० , १०० माइक्रोग्राम में आती है , रोज सुबह नाश्ते से पहले खाली पेट लेनी होती है । इसकी सही डोज़ तो डॉक्टर ही निर्धारित करते हैं , लेकिन आम तौर पर एक व्यस्क के लिए ७५ से १२५ माइक्रोग्राम काफी रहती है ।

फोलोअप :

आरम्भ में हर महीने डॉक्टर से मिलना पड़ेगा । लेकिन एक बार डोज़ निर्धारित होने पर ६ महीने या एक साल में एक बार डॉक्टर से मिलना काफी है ।
फोलोअप में सिर्फ टी एस एच का टैस्ट कराना काफी है ।

गर्भवती महिला :

इन महिलाओं को विशेष ध्यान रखना चाहिए । गर्भ के दौरान डोज़ बढ़ानी पड़ती है क्योंकि गर्भ में पल रहे बच्चे को भी इसकी ज़रुरत होती है । यदि ऐसा नहीं किया गया तो बच्चे को हाइपोथायरायडिज्म हो सकता है ।
बच्चे :

बच्चों में इस हॉर्मोन की कमी बहुत घातक सिद्ध हो सकती है । इससे विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है जिससे बच्चा अल्पविकसित रह सकता है --शारीरिक और मानसिक तौर पर । इन्हें क्रमश : ड्वारफिज्म और क्रेटीनिजम कहते हैं ।
बच्चों में दवा की डोज़ अक्सर ज्यादा रहती है ।

नोट : यह रोग महिलाओं में ज्यादा पाया जाता हैयदि मां को हो तो संतान में होने की सम्भावना काफी बढ़ जाती है लेकिन याद रखिये --समय पर निदान होने से कई तरह की मुश्किलों से बचा जा सकता है

Saturday, September 18, 2010

बीमारी का शर्तिया इलाज़ ---बीमार ही न पड़ें ---

यह पूरा सप्ताह अस्पताल में ही गुजरा लेकिन एक डॉक्टर के रूप में नहीं , बल्कि अटेंडेंट के रूप में । पिताजी को गंभीर रूप से अस्वस्थ होने के कारण अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा । हालाँकि अब अस्पताल के बिस्तर से मुक्ति प्राप्त कर घर आ चुके हैं , लेकिन रोगमुक्ति के लिए संघर्ष जारी है ।

पिछली पोस्ट में लिखी नज़्म , मैंने अस्पताल में अटेंडेंट के सोफा कम बेड पर बैठकर लिखी थी

सारे माहौल का जायज़ा लेने के बाद एक सवाल ज़ेहन में उठता है ।

सवाल : यदि आप बीमार पड़ जाएँ तो क्या करेंगे ?
ज़वाब : आप भला क्या करेंगेजो भी करेंगे , डॉक्टर्स ही करेंगे
आप को तो बस डॉक्टर के पास जाना है ।

बस इतना जान लें कि डॉक्टर के पास जाना आपके हाथ में है , लेकिन वहां से आपका निकलना सिर्फ डॉक्टर के हाथ में ।
अब इलाज़ के जितने ऑप्शंस हमारे देश में हैं , उतने शायद ही किसी और देश में उपलब्ध हों ।

आपके ऑप्शंस :

१) घर में दादी नानी के नुश्खे ।
२) गली के नुक्कड़ पर बंगाली डॉक्टर की दुकान ।
३) वैध , हकीम या आर एम् पी ।
४) वैकल्पिक चिकित्सा प्रणाली के चिकित्सक जैसे आयुर्वेदिक , होमिओपेथिक , यूनानी आदि ।
५) एलोपेथिक डॉक्टर --फैमिली फिजिशियन । या फिर स्पेशलिस्ट्स , सुपर स्पेशलिस्ट्स और सुपर सुपर स्पेशलिस्ट्स ।

लेकिन यदि आपको अस्पताल में भर्ती करने की नौबत जाये तो क्या विकल्प हैं ?

सरकारी अस्पताल :

जहाँ आपको मिलेंगी हर जगह लम्बी लम्बी कतारें , भीड़ भाड़ , गंदगी का साम्राज्य , वार्ड्स में एक बिस्तर पर दो दो तीन तीन मरीज़ , पूरे वार्ड में बस एक या दो नर्सें , मुश्किल से ढूंढें से मिलते डॉक्टर जो बात बात पर डांट लगायें, टेस्ट्स की रिपोर्ट के लिए लम्बा इंतजार , मिल जाये तो गनीमत । ए सी की छोडिये , यदि आपके सर पर पंखा चल रहा हो तो बड़ी बात है । हर कोने में पान की पीक जैसे सारे पान चबाने वाले यहीं पैदा होते हैं ।

यहाँ इलाज़ कराना , सच में सबके बस की बात नहींबहुत बड़ा ज़िगर चाहिए , इसके लिए

प्राइवेट अस्पताल :

छोटे नर्सिंग होम से लेकर फाइव स्टार कॉर्पोरेट अस्पताल --ज़ाहिर है जितना गुड डालो , उतना ही मीठा होता है
यहाँ देखेंगे चमचमाते फर्श और दीवारें , कोई भीड़ नहीं , सेन्ट्रल ए सी , प्राइवेट रूम में सभी आधुनिक सुविधाएँ , एक बेड के लिए एक नर्स , आनन फानन में सब काम हो जाएँ । अदब से बात करते डॉक्टर्स ।

लेकिन बस यहीं तक ठीक है । एक बार आप भर्ती हो जाएँ , फिर देखिये क्या क्या होता है ।

* सबसे पहले जाते ही सारे टेस्ट्स --भले ही आपने दो दिन पहले कराए हों ।
* एक बार रेजिडेंट डॉक्टर द्वारा देख लेने और हिस्ट्री शीट भरने के बाद शुरू होता है , एक से बड़े एक स्पेशलिस्ट का आवागमन :

कार्डियोलौजिस्ट : वह आपकी ई सी जी से लेकर ईको तक सब जांच कर बताएगा कि आपका हार्ट ठीक है ।

डाईबीटोलौजिस्ट : शुगर के लिए ढेर सारे टैस्ट्स करा देगा ।

नेफ्रोलौजिस्ट : डायबिटीज है तो किडनी डिसीज तो होगी ही । एक और लिस्ट , टैस्ट्स की ।

यूरोलौजिस्ट : यूरिनरी सिस्टम में कहीं रूकावट है तो यूरोलौजिस्ट ही बताएगा ना । अब थोड़े टैस्ट और अल्ट्रा साउंड , सी टी स्केन आदि करेंगे तभी तो पता चलेगा , कहाँ रोग की जड़ है ।

न्यूरोलौजिस्ट : शुगर हो और नर्वस सिस्टम ठीक हो , ऐसा तो हो नहीं सकता । इसलिए एक बार पूरा नर्वस सिस्टम जांच करना पड़ेगा ।

गैस्ट्रोएंट्रोलौजिस्ट : पेट में खराबी है , बार बार दस्त आ रहे हैं , कोई बात नहीं ये डॉक्टर आकर अपनी एक्सपर्ट राय दे जायेगा । बस ५ -७ जाँच वो भी लिख जायेगा ।

हालाँकि इसके बाद और भी लौजिस्ट्स बचे हैं , जो आपकी किस्मत पर निर्भर करता है या आपके हालातों पर ।

इन सब ऐशो आराम के बीच बस एक ही चीज़ सताती है । और वो है --हर दो दिन बाद एक भारी राशी का एस्टीमेट जमा कराने के लिए ।

पैसे जमा करते करते एक दिन ऐसा आता है जब आप अपनी बीमारी के बारे में भूलकर बस यही सोचने लगते हैं कि ये डॉक्टर कब छोड़ेगा

ज़रा सोचिये --यदि आप करोडपति हैं जो लाखों हर महीने कमा रहे हैं या फिर ऐसी नौकरी करते हैं जहाँ आपका सारा खर्च दफ्तर उठाने को तैयार है , तब तो ठीक है । वर्ना एक आम आदमी के लिए ऐसा इलाज कराना क्या संभव है ?

इससे बचने के लिए तो एक ही रास्ता है कि आप बीमार ही पड़ें
लेकिन क्या यह संभव है ?

शायद नहीं , लेकिन ऊपर वाले से कम से कम प्रार्थना तो कर ही सकते हैं

Monday, September 13, 2010

अस्पताल ----

अस्पताल

जहाँ ,
आशा निराशा की
आँख मिचौली में
झूलती है जिंदगी ।


कभी,
भंवर से निकल
साहिल से मिल
झूमती है जिंदगी ।


कभी,
मंझधार में फंसी
डगमगाती कश्ती सी
लगती है जिंदगी ।


जहाँ ,
उम्मीदों की हज़ारों
ख्वाहिशें दिल में लिए
मचलती है जिंदगी ।

वहां ,
सफ़ेद कोट में
इंसानी रब्ब के
लबों से निकलते
चन्द लफ़्ज़ों में
बसती है जिंदगी ।

Wednesday, September 8, 2010

ये है गीता का ज्ञान ---

बचपन से सुनते आये हैं कि ज्ञान बाँटने से बढ़ता है

ज्ञानी से ज्ञानी मिले , तो ज्ञान चौगुना हो
मूर्ख से मूर्ख भिड़े , तो खोंसडम खोंसडा हो ( लट्ठम लट्ठा )

इस जन्माष्टमी पर हमने भी कुछ ज्ञान अर्जित करने की सोची जिस समय लोग मंदिर में संगीत मंडली की मधुर धुनों पर थिरक रहे थे , हम ने सोचा क्यों ना गीता का ज्ञान प्राप्त किया जाये --विस्तृत रूप में

इसलिए पढना शुरू किया --श्रीमदभगवद गीता --पहले अध्याय से अठारहवें अध्याय तक
जो थोडा बहुत समझ में आया , वह संक्षिप्त में आपके सन्मुख प्रस्तुत है

अध्याय : विषाद योग

श्री व्यास जी ने धृतराष्ट्र के सारथी संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की संजय धृतराष्ट्र को युद्ध का आँखों देखा हाल सुनाने लगा संजय ने दोनों सेनाओं की तैयारी के बारे में बताया दोनों सेनाओं के योद्धाओं और उनके शस्त्रों के बारे में वर्णन सुनाया पांडवों की सेना सात यक्षिणी और कौवों की सेना ग्यारह यक्षिणी बताई

तद्पश्चात अर्जुन ने श्रीकृषण को अपना रथ दोनों सेनाओं के बीच ले जाने को कहा वहां का नज़ारा देखकर अर्जुन को मोह उत्पन्न हुआ और उसने शास्त्र त्याग कर युद्ध करने का ऐलान किया

अध्याय :

अर्जुन कहते हैं --हे श्रीकृष्ण जी , यहाँ तो मैं सब अपने ही देख रहा हूँ इनको मार कर मैं कौन सा सुख प्राप्त करूँगा अपने गुरुजनों को मार कर मैं पाप करूँगा मुझे ऐसा राज्य नहीं चाहिए , जो अपने प्रियजनों को मार कर मिले
अर्जुन किसी भी तरह युद्ध के लिए तैयार नहीं होते

इस पर श्रीकृष्ण जी कहते हैं --हे अर्जुन , युद्ध करना क्षत्रिय का धर्म है युद्ध करना पाप है , अधर्म है
मनुष्य का सिर्फ शरीर मरता है आत्मा तो अविनाशी है

अध्याय : कर्म योग

श्रीकृष्ण जी कहते हैं --देहधारी को इन्द्रियों से कर्म करना है लेकिन मन को इश्वर में लगाओ सत्कर्म करना मनुष्य का धर्म है काम और क्रोध मनुष्य के दुश्मन हैं

अध्याय : कर्म सन्यास योग

हे अर्जुन , जब जब धर्म की हानि होती है , तब तब मैं प्रकट होता हूँ मैं सर्वव्यापी सत्य रूप हूँ
जो लोग देवताओं की उपासना करते हैं , फल पाने की कामना लिए --वे फल पाते हैं वह फल भी मैं ही देता हूँ
लेकिन जो लोग सीधा मुझ में ध्यान लगाते हैं , बिना फल की कामना किये --उन्हें ज्ञान प्राप्त होता है
पंडित कौन होता है --जिसने सभी कर्म त्याग दिए मन को वश कर लिया सभी बंधनों से मुक्ति प्राप्त कर ली
मुझ अविनाशी में मन का निश्छल चेता रख मुझ से जुड़ गया वह मोक्ष को प्राप्त होता है

अध्याय :सन्यास योग

मनुष्य के शरीर में इन्द्रियां होती हैं इन्द्रियां कर्म करती हैं लेकिन आत्मा अकर्ता है इन्द्रियों से सत्य कर्म करने से शांति प्राप्त होती है कामना के वश होने से आदमी बंधनों में बंधा रहता है

अध्याय : आत्म संयम

यह मन चलायमान हैसांसारिक बातों से अलगाव रख मन को इश्वर से जोड़े --यह योग कहलाता हैइस अध्याय में योगासन की विधि बताई गई है
योगी तीन प्रकार के होते हैं --तप योगी , ज्ञान योगी और कर्म योगी
श्रीकृष्ण जी कहते हैं --जो श्वास श्वास मेरा स्मरण करे , वह मुझे सबसे प्यारा हैवही ज्ञान योगी भी कहलाता है

अध्याय : प्रकृति भेद योग

इस अध्याय में माया यानि प्रकृति के अनेक रूपों के बारे में बताया गया है
जल, तेज , वायु, पृथ्वी , आकाश , मन , बुद्धि , अहंकार --ये सब मेरी माया हैं जो मनुष्य के भीतर भी हैं और बाहर भी
श्रीकृष्ण जी आगे कहते हैं कि मनुष्य तीन कारणों से मुझे स्मरण करते हैंरोगों से मुक्ति के लिए , ज्ञान प्राप्ति के लिए और कामना के लिए
जो लोग कामना के लिए देवताओं की पूजा करते हैं उन्हें कामना की प्राप्ति होती है
लेकिन जो लोग मेरा योग ध्यान करते हैं , वे अविनाशी पद को प्राप्त होते हैंज्ञान योगी मुझे सबसे ज्यादा प्रिय हैं

अध्याय : अक्षक ब्रह्म योग

इस अध्याय में बताया गया है --- सृष्टि में चार युग हते हैं --सतयुग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग

सतयुग की अवधि --१७ लाख २८००० बर्ष है त्रेता युग -----------१२ लाख ९६००० वर्ष द्वापर युग ---------- लाख ६४००० वर्ष कलियुग ----------- लाख ३२००० वर्ष कुल अवधि --------४३ लाख २०००० वर्ष

ब्रह्मा का एक दिन इसका हज़ार गुना वर्षों का होता हैइसी तरह एक रात भी इतनी लम्बी ही होती है

अध्याय : राज विद्या योग

इस अध्याय में श्रीकृष्ण अपने विराट रूप का वर्णन करते हैंहे अर्जुन , यह सारी सृष्टि मुझी से जन्मी है और मुझी में समा जाती है
जो लोग देवताओं को मानते हैं , वे देवलोक को जाते हैंफिर सुख भोगकर वापस संसार में जाते हैं
जो लोग मुझे मानते हैं , वे अविनाशी पद को जा प्राप्त होते हैंवे आवागमन से छूट जाते हैं
यहाँ श्रीकृष्ण जी उन्हें याद करने के लिए मन्त्र का जाप करने को कहते हैं --

नमो भगवते वासुदेवाय
नमो नारायण यह जाप भी कर सकते हैं

श्रीकृष्ण जी कहते हैं , जो मुझे स्मरण करता है , उसे मैं याद करता हूँजो मेरे एक भी श्लोक को पढता है , मैं उसके पास जा खड़ा होता हूँ
मेरा साथ ऐसे मिल जाता है , जैसे पानी के साथ पानी मिल जाता है

अध्याय १० :विभूति योग

अर्जुन श्रीकृष्ण से कहते हैं --हे कुन्तीनन्दन मुझे अपने विराट रूप के बारे में और बताइए
श्रीकृष्ण जी बताते हैं --हे अर्जुन मैं सर्वव्यापी हूँ
मैं प्रकाश में सूर्य ,--- ४९ पवनों में भारी चिपवन , ---२८ नक्षत्रों में चन्द्रमा , ---चार वेदों में सामवेद , ---३३ करोड़ देवताओं में इंद्र , ---११रुद्र में शंकर रूद्र, -----पर्वतों में सुमेर पर्वत , ----सप्त ऋषियों में भ्रगु ऋषि , ---वचनों में ओंकार , ---वृक्षों में पीपल, ----ऋषियों में नारद , ----सिद्धों में कपिल मुनि, ---हाथियों में ऐरावत, ----नागों में शेषनाग , ----नदियों में गंगा , ----सप्त समुद्रों में क्षीर समुद्र , ----शस्त्रों में वज्र , ---और गौओं में कामधेनु मैं हूँ

अध्याय ११ : विश्व रूप दर्शन

इस अध्याय में श्रीकृष्ण जी अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाते हैंक्योंकि इसे साधारण नेत्रों से नहीं देखा जा सकता , इसलिए वे अर्जुन को दिव्य नेत्र की दृष्टि देते हैं
अर्जुन को दिखाई देते हैं ---

अनंत मुख , ---अनंत सूर्यों का प्रकाश , ---हाथ में गदा , शंख और चक्र , ----अनंत भुजाएं, ---अनंत नेत्र , कोटि देवता मुख में प्रवेश कर रहे हैं , ---सारे योद्धा मूंह में समाये जा रहे हैं ----पूरा संसार समाया है

श्रीकृष्ण जी कहते हैं --हे अर्जुन ये सारे योद्धा मेरे द्वारा पहले ही मरे हुए हैंतू तो निमित्त मात्र है
अर्जुन यह विराट रूप देखकर डर जाता है और कहता है --हे श्रीकृष्ण , मैं आपको नमस्कार करता हूँमैं आपसे क्षमा याचना करता हूँमैं तो आपके साथ जाने कैसी कैसी बात करता रहा हूँआपकी महिमा अपरम्पार हैआपका यह रूप देखकर मुझे डर लग रहा हैवापस उसी रूप में जाओ

श्रीकृष्ण कहते हैं --परम परमेश्वर का यह रूप किसी को नहीं दीखतातू मेरा सखा हैमुझे बहुत प्यारा हैइसलिए तुझे दिखाया हैतुम निडर होकर अपना कर्म करो --युद्ध करो

अध्याय १२ : मुक्ति योग

अर्जुन --हे श्रीकृष्ण , आपका कौन सा रूप सर्वश्रेष्ठ है , यह बताओ
श्रीकृष्ण --मेरे रूप हैं :
) कमल नयन रूप ---जो प्रकट रूप है --यही सर्वश्रेष्ठ है
) अक्षर अविनाशी----जिसकी महिमा मन वाणी पर नहीं सकती
) अनिर्देश ----------जिसे जिह्वा कह नहीं सकती
) अव्यक्त -----------जो नेत्रों से देखा ना जाये
) सर्वव्यापी ---------मन से जिसका प्रकाश चितव्या नहीं जाता
) अचिंत ------------कोई विकार नहीं
) अचल ------------घटता बढ़ता नहीं , स्थान से चलता नहीं
) ध्रुव ---------------किसी का हिलाया हिला नहीं

मेरा कमल नयन रूप सर्वश्रेष्ठ हैजो इसके उपासक हैं , मैं उनका उद्धार करता हूँ , मुक्ति दिलाता हूँ
मन का निश्छल चेता मेरे में रख और बुद्धि भी
मेरी महिमा का कहना सुनना , मेरे ध्यान साथ जुड़ना --ऐसे जो ज्ञानी मेरे भक्त हैं , उनके गुण सुन
किसी का बुरा करे , किसी से शत्रुता नहीं , सुख दुःख एक समान , सदा संतुष्ट , निडर , हर्ष शोक से रहित , चिंता वांछा रहित , जिसके लिए शत्रु -मित्र , सुख -दुःख , शीत -उशन , सब एक समान हैं , ऐसे भक्त मुझे प्यारे हैं

अध्याय १३ : क्षेत्र , ज्ञान , प्रकृति

यह शरीर क्षेत्र कहलाता है , जीव क्षेत्री और शरीर रुपी क्षेत्र को जानने वाला क्षेत्रय्ग
शरीर पांच तत्त्वों से बना है : पृथ्वी ---मांस , जल ---रुधिर , अग्नि ---जठराग्नि , पवन ---श्वास और आकाश ---पोलापन
शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियाँ होती हैं ---नेत्र , नासिका , श्रवण , त्वचा और जिह्वा

पांच कर्म इन्द्रियां होती हैं ---- हाथ , पाँव , गुदा , लिंग और नाक

प्रकृति माया हैमाया से तत्त्व उपजे हैंतत्त्व से शरीर बनता है शरीर में आत्मा वास करती है
जो इन्द्रियों का दुरूपयोग करे और आत्मा को ब्रह्म में लगाये , वह परम अविनाशी पद को प्राप्त होता है

अध्याय १४ : गुणत्रय विभाग

परम ज्ञान क्या होता है ? यह जान लेना कि यह सारा संसार मुझ से ही प्रकट होता है और मुझ में ही प्रलय होता है
हर एक प्राणी में तीन गुण होते हैं : सात्विक , राजसी और तामसी

सात्विक गुण : निर्मल पवित्र मन , अज्ञान रहित , निष्पाप
राजसी गुण : कुटुंब के साथ मोह , ममता , द्रव्य कमाने कि तृष्णातामसी गुण : आलस्य , अति निंद्रा , असावधानता

तीनों गुण एक ही व्यक्ति में घटते बढ़ते रहते हैं
जो लोग सात्विक गुणों के साथ देह त्याग करते हैं , वे देवलोक को जाते हैं
राजसी -पृथ्वी पर लौट आते हैंऔर तामसी --पाताल लोक में जाते हैं

जो वांछा रहित प्रभु की शरण में जाकर प्रभु का दास हो जाता है , वह तीनों गुणों से अतीत होकर जीवन मुक्त हो जाता है

अध्याय १५ : पुरुषोत्तम योग

संसार एक वृक्ष है , जिसकी जड़ें ऊपर की ओर हैंवेद पत्र हैंयह ब्रह्म लोक से पाताल लोक तक फैला हैसत्व , राज और तम इसके डाल हैंप्रभु की चैतन्यता से यह उपजता है
कुटुंब इसके रस्से हैं , जिनसे बंधा हैइस माया रुपी वृक्ष में यह जीव फंसा है

मोह माया को त्याग कर मेरी शरण में आने से मुक्ति प्राप्त होती है

अध्याय १६ : देव असुर सम्पदा योग

मनुष्य का स्वभाव देवता स्वरुप हो सकता है या असुर जैसा

देवता स्वभाव मनुष्य ---निर्मल हृदय , अहिंसावादी , सत्यवादी , क्रोध रहित , संतुष्ट , निर्लोभ , निश्चल , दयावान , धैर्य पूर्ण होता हैश्वास श्वास मेरा स्मरण करता है

असुर स्वभाव मनुष्य ---पाखंडी , अपवित्र , नास्तिक , अहंकारी , लोभी , भोगी , भ्रष्ट , क्रोधी और चिंता में लीन रहता है

क्रोध , लोभ , मोह ----ये तीन नरक के द्वार हैं

अध्याय १७ : त्रिविध योग

गीतानुसार मनुष्य की प्रवृत्ति तीन प्रकार की होती है --सात्विक , राजसी और तामसी । आइये देखते हैं कैसे उत्तपन्न होती है यह प्रवृत्ति।

कर्म करने से ही मनुष्य की प्रवृत्ति का पता चलता है

गीतानुसार --पूजा करने की श्रद्धा , आहार , यज्ञ , तप और दान --मनुष्य की प्रवृत्ति दर्शाते हैं । ये सब तीन प्रकार के होते हैं --सात्विक , राजसी और तामसी।

पूजा करने की श्रद्धा :

सात्विक : एक ही भगवान को सर्वव्यापी मान कर श्रद्धा रखते हैं ।
राजसी : देवी देवताओं की पूजा करते हैं ।
तामसी : शरीर को कष्ट देकर , भूत प्रेतों की पूजा करते हैं ।


आहार :

सात्विक : जिसके खाने से देवता अमर हो जाते हैं मनुष्य में बल पुरुषार्थ आये आरोग्यता , प्रीति उपजे दाल,चावल , कोमल फुल्के , घृत से चोपड़े हुए , नर्म आहार

राजसी : खट्टा , मीठा , सलुना , अति तत्ता , जिसे खाने से मुख जले , रोग उपजे , दुःख देवे

तामसी : बासी , बेस्वाद , दुर्गन्ध युक्त , किसी का झूठा भोजन

यज्ञ :

सात्विक : शास्त्र की विधि से , फल की कामना रहित , यह यज्ञ करना मुझे योग्य है , यह समझ कर किया गया यज्ञ सात्विक कहलाता है
राजसी : फल की वांछा करते हुए , भला कहाने को , दिखावा करने को किया गया यज्ञ
तामसी : बिना शास्त्र की विधि , बिना श्रद्धा के , अपवित्र मन से किया गया यज्ञ

दान :

सात्विक : बिना फल की आशा , उत्तम ब्राह्मण को विधिवत किया गया दान
राजसी : फल की वांछा करे , अयोग्य ब्राह्मण को दान करे
तामसी : आप भोजन प्राप्त कर दान करे , क्रोध या गाली देकर दान करे , मलेच्छ को दान करे

तप :

सात्विक : प्रीति से तपस्या करे , फल कुछ वांछे नहीं , इश्वर अविनाशी में समर्पण करे
राजसी : दिखावे के लिए , अपने भले के लिए तप करे , अपनी मानता करावे
तामसी : अज्ञान को लिए तप करे , शरीर को कष्ट पहुंचाए , किसी के बुरे के लिए तप करे


यहाँ तप चार प्रकार के बताये गए हैं --देह , मन , वचन और श्वास का तप।

देह का तप : किसी जीव को कष्ट पहुंचाए
स्नान कर शरीर को स्वच्छ रखे , दन्त मंजन करे
गुरु का सम्मान , मात पिता की सेवा करे
ब्रह्मचर्य का पालन करे

ब्रह्मचर्य : यदि गृहस्थ हो तो परायी स्त्री को छुए यदि साधु सन्यासी हो तो स्त्री को मन चितवे भी नहीं

मन का तप : प्रसन्नचित रहे मन को शुद्ध रखे भगवान में ध्यान लगावे

वचन का तप : सत्य बोलना मधुर वाणी --हाँ भाई जी , भक्त जी , प्रभु जी , मित्र जी आदि कह कर बुलावे
गायत्री पाठ करे अवतारों के चरित्र पढ़े

श्वास तप : भगवान को स्मरण करे भगवान के नाम का जाप करे


इस तरह मनुष्य के सभी कर्म तीन प्रकार के होते हैं --सात्विक , राजसी और तामसी
इन्ही कर्मों का लेखा जोखा बताता है कि आप सात्विक हैं , राजसी हैं या तामसी प्रवृत्ति के मनुष्य हैं

अध्याय १८ : मोक्ष सन्यास योग

अर्जुन पूछते हैं --हे माधव , सन्यास क्या है , त्याग क्या है , कृपया यह बताओ

श्रीकृष्ण जी --हे अर्जुन मनुष्य को सत्कर्मों का त्याग नहीं करना चाहिए
यज्ञ , दान , तपस्या , स्नान आदि तन और मन की शुद्धि के लिए होते हैंइन्हें बिना फल की वांछा किये करते रहना धर्म हैयही सात्विक त्याग कहलाता है

सब प्राणियों को एक समान समझ कर , किसी को दुःख दे, यह सात्विक ज्ञान कहाता है
तेरा मेरा फर्क करना --राजसी ज्ञान कहाता है
बुरी दृष्टि , कष्ट देने वाला कर्म करना -तामसी ज्ञान कहाता है
इसी तरह कर्म , कर्म कर्ता , बुद्धि , सुख और द्रढ़ता भी तीन प्रकार के होते हैं -सात्विक , राजसी और तामसी

चार वर्णों के गुण इस प्रकार हैं ---
ब्राहमण : इन्द्रियों को जीतना , मन जीतना , ताप करना , भजन करना , पवित्र , क्षमा , कोमल स्वाभाव , परमेश्वर से लगाव
क्षत्रिय : शूरमा , दानी , इश्वर में श्रद्धा
वैश्य : खेती करना , वाणिज्य , व्यापार , गौवों की सेवा
शूद्र : तीनों वर्णों की सेवा करनाजो प्राप्ति हो , उसी में संतुष्टि करना

अपने अपने धर्म का पालन करने से कल्याण होता है

इसलिए हे अर्जुन , युद्ध करना तेरा धर्म है
यह ज्ञान जो मैंने तुझको दिया है , श्रद्धालु भक्तों को ही सुनाना
जो मेरे एक श्लोक का भी पाठ करता है , मैं उसके निकट जा खड़ा होता हूँजो इसको सत्य मानकर ग्रहण करता है , वह मुक्त हो जाता है

अर्जुन ---हे श्रीकृष्ण जी , तुम्हारी कृपा से मेरा मोह भंग हो गया हैमैंने ज्ञान पाया हैबुद्धि निर्मल हुई है
मैं युद्ध करता हूँ

संजय कहता है --हे धृतराष्ट्र , जिस सेना में अर्जुन जैसा योद्धा और श्रीकृष्ण जैसे सारथि हैं , उन्ही पांडवों की जय होगी और तेरे अधर्म पुत्र हारेंगे --यह निश्चित है