पिछली पोस्ट में मैंने राष्ट्र मंडल खेलों से सम्बंधित दिल्ली में हुए विकास पर सचित्र लेख लिखा था । इस पर बहुत से मित्रों ने अपने विचार प्रकट किये । अधिकांश मित्रों को इस बारे में जानकर आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हुई । कुछ मित्र ब्लोगर्स ने खेलों के आयोजन में हुई कुव्यवस्था और व्याप्त भ्रष्टाचार पर आक्रोश व्यक्त किया , जो वर्तमान परिवेश में स्वाभाविक लगता है। विकास कार्यों को लेकर स्थायित्त्व की भी शंका देखी गई ।
कहते हैं --तन की खूबसूरती के साथ मन की खूबसूरती भी हो तो क्या कहने । जहाँ तन की सुन्दरता क्षणिक होती है , वहीँ मन की सुन्दरता स्थायी होती है । मन सुन्दर होता है चरित्र से । और चरित्र निर्माण मनुष्य के व्यक्तित्त्व पर निर्भर करता है ।
दिल्ली की सुन्दरता पर भी यही लागु होता है । आज बाहर से भले ही दिल्ली की खूबसूरती बढ़ गई हो , लेकिन जब तक दिल्ली वालों का चरित्र निर्माण नहीं होगा , तब तक सारी सुन्दरता खोखली ही नज़र आएगी ।
यह कैसे संभव होगा ?
अदा जी की एक पोस्ट में पढ़ा था --किसी भी देश या शहर का चरित्र उसके यातायात से पता चलता है । यहाँ भी सड़कों पर हमारा व्यवहार दर्शाता है कि हम कितने विकसित हुए हैं ।
हम पूर्ण रूप से विकसित तभी माने जायेंगे जब हम :
* रास्ते चलते सड़कों पर थूकना छोड़ देंगे । यह हमारी आदत भी है और मजबूरी भी । मजबूरी इसलिए कि एक तो हम ऐसे देश में रहते हैं जहाँ आम तौर पर प्रदूषण ज्यादा है । उसपर हमारा बीडी सिगरेट पीने का शौक । अब थूक तो आएगा ही । तो क्यों न धूम्रपान ही त्याग दें ।
* पान की पीक मारना छोड़ देंगे । शायद सबसे ज्यादा पान चबाने वाले यहीं मिलेंगे । इसीलिए सारी सरकारी इमारतों और सार्वजानिक स्थानों पर पान के धब्बे और रंग अलग ही नज़र आते हैं । क्यों न पान , सुपारी , गुटखा आदि चबाना छोड़ दिया जाए ।
* कहीं भी मूत्र वित्सर्जन करना छोड़ देंगे । इस काम में तो हमारी मास्टरी है । भले ही इस सुविधा का लाभ सिर्फ पुरुष ही उठाते हैं । लेकिन देश में पुरुष भी तो महिलाओं से कहीं ज्यादा हैं ।
दिल्ली सरकार ने जगह जगह आधुनिक किस्म के टॉयलेट्स बनाये हैं । इनका इस्तेमाल किया जाए तो कैसा रहे ।
* सड़कों पर कूड़ा करकट नहीं डालेंगे । आजकल बड़ों से बच्चे ज्यादा सचेत हैं ।
* सड़क पार करने के लिए जेब्रा क्रॉसिंग का इस्तेमाल करेंगे । अभी तो हम रेलिंग फांदकर या तोड़कर रास्ता बना लेने में अपनी शान समझते हैं ।
* सड़कों पर बने फुट ओवरब्रिज या अंडर पास का इस्तेमाल करेंगे । डरिये नहीं --ये नहीं गिरेंगे ।
* बिना बात होर्न बजाना छोड़ देंगे । यह आदत भी यहाँ बहुतायत में पाई जाती है ।
* यातायात के नियमों का पालन करेंगे ।
अब यह तभी संभव है जब सारे भारत के लोग मिलकर प्रयास करें । क्योंकि दिल्ली में दिल्ली के मूल निवासी तो मुश्किल से १०-२० % ही हैं । बाकि सब तो अन्य राज्यों से विस्थापित या काम की तलाश में आये भारतवासी हैं ।
और अंत में सबसे प्रमुख बात ---आज अयोध्या मामले पर कुछ भी फैसला आए , हम अमन और भाईचारा बनाए रखेंगे ।
यदि सभी मिलकर प्रयास करें , तभी हम दिल्ली वाले विदेशियों और विदेश में रहने वाले भारतियों का दिल जीत सकते हैं ।