दिल्ली जैसे शहर मे रहते हुए ऐसा लगता है जैसे हम कंक्रीट जंगल मे रह रहे हैं . इसलिये अक्सर शहरी लोग जंगल भ्रमण का आनंद लेने के लिये असली जंगलों की ओर अग्रसर होते हैं . हम भी कई जंगलों की खाक छान चुके हैं , इस उम्मीद मे कि कहीं कोई जंगली जानवर अपने क्षेत्र मे स्वतंत्र विचरण करता हुआ नज़र आ जाये . लेकिन तेंदुए को छोड और कोई जानवर आज तक नज़र नहीं अया , जबकि वह तो यूँ भी कई बार शहरों मे घुस कर खलबली मचा देता है .
अपनी बैंगलोर यात्रा के दौरान हमे पता चला कि वहां भी शहर से मात्र २५ किलोमीटर दूर एक जंगल है जहाँ जंगली जानवर देखे जा सकते हैं . हालांकि उम्मीद कम ही थी, फिर भी एक और जंगल देखने का प्रलोभन हम छोड नहीं सके .
प्रवेश टिकेट मे वहां बने चिडियाघर का प्रवेश भी शामिल था . इसलिये सभी पहले वहां जा रहे थे . हमने भी सोचा कि चलो पहले यहीं शेर देख लें ताकि जंगल मे निराश ना होना पड़े .
लेकिन बिग केट्स के रूप मे यहां बस ये तेंदुए ही मिले . इनके अलावा कुछ मगरमच्छ, एक शतुर्मुर्ग और अनेक बेबी कछुए देखकर कुछ संतोष मिला .
जंगल सफ़ारी के लिये करीब २० से ज्यादा हरे रंग की बसें लाइन मे लगी थी . खिड़कियों मे जाली लगाई गई थी . हमने सोचा , अवश्य ही यहाँ शेर नज़र आयेंगे . शायद इसीलिये सुरक्षा का पूरा इंतज़ाम किया गया है .
जंगल मे घुसते ही सबसे पहले हमेशा की तरह ये चीतल हिरण नज़र आये . हालांकि यह संभावित ही था क्योंकि ये हिरण सभी जगह दिख जाते हैं . लेकिन सड़क किनारे ही पानी का प्रबन्ध किया गया था जिससे कि लोगों को इंतज़ार ना करना पड़े .
लेकिन जल्दी ही हाथियों का एक बड़ा झुंड देखकर रोमांच महसूस हुआ और लगा कि ये सफ़ारी तो बहुत लाभदयक सिद्ध होने वाली है . फिर ध्यान से देखा तो पाया कि सभी हाथियों को चेन से बांधा गया था . यानि आँखों को धोखा दिया गया था . अब तो हमे कुछ कुछ आभास होने लगा था कि आगे क्या होने वाला है .
तभी सामने एक गेट नज़र आया जिस पर लिखा था -- भालू . यानि अब हम भालू के बाड़े मे जा रहे थे . फिर जल्दी ही हमे एक भालू सड़क पर टहलता नज़र आ गया . देखने मे तो यही लगा जैसे हम अफ्रिका के जंगलों मे घूम रहे हैं .
अब तक हम समझ चुके थे कि दरअसल हम एक बड़ी ज़ू मे गाड़ी मे बैठकर घूम रहे थे . फर्क बस इतना था कि यहाँ हम गाड़ी मे जालियों के पीछे बैठे थे और जंगली जानवर आराम से खुले मे विचरण कर रहे थे .
फिर भी इन बब्बर शेरों को खुले मे यूँ इतने पास से देखना और फोटो खींचना एक सुखद और रोमांचक अहसास था .
अगला बाड़ा टाईगर यानि बाघ का था . हालांकि यह बेचारा सुस्त और बीमार सा लग राहा था .
यह सफ़ेद टाईगर शायद बच्चा था . लगा जैसे भूखा था और खाने का इंतज़ार कर रहा था . इसलिये अपने भोजनालय के आस पास ही चक्कर लगा रहा था .
एक अकेला बन्दर मनुष्यों की बस्ती के आस पास खाना ढूंढ रहा था . यहाँ आम के पेड थे जिन पर कच्चे आम लगे थे .
जंगल मे स्वछंद विचरण करते जंगली जानवरों को इंसानों को दिखाने का यह तरीका हमे भी पसंद आया . यहाँ अलग अलग प्रजाति के जानवरों के लिये अलग अलग बड़े बड़े बाड़े बनाये गए थे . एक तरह से सब के लिये अलग अलग फार्म हॉउस से बने थे . उनके डाइनिंग हॉल भी सड़क के पास ही बनाये गए थे ताकि बस मे बैठे लोगों के लिये इनका दर्शन सुनिश्चित हो सके . लेकिन लगभग सभी जानवर सुस्त से लग रहे थे जैसे उन्हे हल्का नशा हो . एक टाईगर तो बीमार सा ही लग रहा था . निश्चित ही ये जानवर चिड़ियाघर के जानवरों की अपेक्षा ज्यादा सुखी रहे होंगे क्योंकि यहाँ इनको खाने के साथ साथ विचरण के लिये प्राकृतिक वातावरण मिल रहा था . हालांकि मुफ्त का खाना खाकर ये निकम्मे तो अवश्य हो गए होंगे और इनकी शिकार करने की स्वाभाविक प्रवृति कुंठित हो गई होगी .
सफ़ारी के अंत मे यह एक छोटी सी जंगली झील फोटो मे ज्यादा सुन्दर दिख रही है जैसे एक साधारण सी लोकेशन भी फिल्मों मे बड़ी सुन्दर दिखाई देती है . कुल मिलाकर यही लगा कि यह सफ़ारी लोगों को जंगली जानवरों को समीप से बेखौफ़ देखने के लिये एक अच्छा अवसर प्रदान करती है .