शुभकामनाओं सहित
राजेन्द्र स्वर्णकार
हालाँकि मन तो नहीं था , लेकिन अनुज राजेन्द्र स्वर्णकार के विनम्र निवेदन ने समय से पहले ही लिखने पर मज़बूर कर दिया । ऐसे में और क्या लिखता , इसलिए जो काम कर रहे हैं , उसी पर लिख रहा हूँ ।
सोचिये यदि आप डाइटिंग और कसरत द्वारा वज़न घटाने की कोशिश कर रहे हों , और वज़न कम न हो रहा हो । ऐसे में एक दिन निराश होकर आप दोनों काम करना छोड़ देंगे । फिर एक दिन आपको अहसास होता है कि --अरे वज़न थोडा कम हो गया ।
ऊपर से किसी ने कह दिया कि भई वाह क्या फिगर मेंटेन की है, तो आप फूलकर कुप्पा हो जायेंगे ।
लेकिन फिर और वज़न कम होने पर आपको थोड़ी चिंता होने लगती है कि बिना कुछ प्रयास किये वज़न कम क्यों हो रहा है ।
दूसरे भी अब कहने लगते हैं कि क्या बात है , बड़े कमज़ोर दिख रहे हो ।
जी हाँ , यह चिंताज़नक बात हो सकती है । क्योंकि हो सकता है , आप हाईपरथायरायडिज्म के शिकार हो गए हों ।
हाईपरथायरायडिज्म क्या है ?
यह थायरायड ग्रंथि की बीमारी है और हाइपोथायरायडिज्म का बिल्कुल उल्टा है । यानि इसमें थायरायड हॉर्मोन की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाने से शरीर में कई विकार आ जाते हैं ।
हाईपरथायरायडिज्म के कारण :
अक्सर यह ऑटो इम्युनिटी की वज़ह से होती है । यानि शरीर में ऐसी थायरायड एंटीबोड़ीज बन जाती हैं जो हॉर्मोन की मात्रा को बढ़ा देती हैं । कुछ ऐसे भी रसायन होते हैं जो थायरायड को उत्तेजित करते हैं , ज्यादा हॉर्मोन बनाने के लिए ।
इस दशा को ग्रेव्ज डिसीज ( Graves desease) कहते हैं ।
इसके अलावा थायरायड में गांठ बन जाने से भी अधिक हॉर्मोन पैदा हो सकता है ।
लक्षण :
थायरायड हॉर्मोन की मात्रा अधिक होने से शरीर के सभी अंग उत्तेजित होकर तेजी से काम करने लगते हैं । इसलिए ऐसे लक्षण नज़र आ सकते हैं :-
* वज़न कम होते जाना ।
* अधिक भूख लगना ।
* नींद कम आना ।
* अधिक गर्मी लगना , अधिक पसीना आना ।
* घबराहट , दिल में धड़कन , हाथ कांपना ।
* आँखों में जलन और सूजन ।
* बाल पतले होकर झड़ना ।
* माहवारी का कम होना या रुक जाना ।
यदि आपको खूब भूख लगती है , फिर भी वज़न कम होता जा रहा है , गर्मी की अपेक्षा सर्दी अच्छी लगती है और घबराहट रहने लगी है , तो थायरायड की जाँच कराना न भूलें ।
जांच :
१) रक्त की जांच ---फ्री टी-३ , फ्री टी-४ , टी एस एच ( हॉर्मोन बढ़ जाते हैं , टी एस एच कम हो जाता है )।
२) रेडियो एक्टिव आयोडीन अपटेक ( बढ़ जाता है ), और स्केन ।
उपचार :
अत्यधिक हॉर्मोन से होने वाली परेशानियों को दवाओं से कंट्रोल किया जा सकता है । लेकिन पूर्ण उपचार के लिए ये तीन विकल्प होते हैं :
१) दवाएं --एंटी थायरायड दवाएं ।
आसान लेकिन असंतोषजनक ।
इनको १.५ से २ वर्ष तक लेना पड़ता है ।
ज़ाहिर है इलाज़ लम्बा होता है । छोड़ने के बाद दोबारा होने की सम्भावना रहती है । साइड इफेक्ट्स का भी खतरा रहता है ।
२) ऑप्रेशन :
यदि थायरायड काफी बढ़ी हुई है , तो सर्जरी कराना सही रहता है ।
दोबारा होने की सम्भावना काफी कम रहती है ।
लेकिन सर्जरी के कॉम्प्लीकेशंस भी रहते हैं ।
हाइपो होने की सम्भावना ४०-५० % रहती है ।
३) रेडियो आयोडीन थेरापी :
यह सबसे आसान और सुरक्षित इलाज़ है । बस एक बार रेडियो आयोडीन की दवा कैप्सूल या द्रव के रूप में दी जाती है और कुछ ही दिनों में सारे लक्षण ठीक होने लगते हैं ।
दोबारा होने की सम्भावना कम से कम होती है ।
हाइपो होने की सम्भावना अत्यधिक होती है । यानि बाद में आगे चलकर हॉर्मोन की कमी होने से परेशानी हो सकती है ।
लेकिन मात्र एक गोली रोज खाने से यह समस्या ख़त्म हो जाती है ।
आजकल यह तरीका सबसे ज्यादा प्रयोग में लाया जा रहा है ।
हालाँकि , कौन सा इलाज़ सही रहेगा , इसका फैसला तो डॉक्टर ही कर सकता है । फिर भी रोगी को भी उपचार का विकल्प दिया जाता है ।
नोट : इस रोग का उपचार किसी एंडोक्राइनोलोजिस्ट (endocrinologist) या न्यूक्लियर मेडिसिन स्पेशलिस्ट से ही कराना चाहिए ।
दिल्ली में इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज ( इनमास ), लखनऊ रोड तिमारपुर में स्थित है , जहाँ देश भर से रोगी उपचार के लिए आते हैं । यह देश का पहला न्यूक्लियर मेडिसिन इंस्टिट्यूट है ।