top hindi blogs

Monday, September 30, 2024

हाय रे बुढ़ापा...

 वज़न घटा, पके आम से पिचके गाल, 

देख आइने में खुद का हाल घबराने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा इतराने लगे हैं। 


रफ्ता रफ्ता सर के बाल हुए हलाल,

बचे खुचे सूरजमुखी से बिखरने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा निखरने लगे हैं। 


सूखी फसल बालों की, बची खरपतवार,

उसे भी खिज़ाब से काला कर बंदर लगने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा सुंदर लगने लगे हैं। 


मुंह में बचे दांत नहीं, ओरिजिनल आंख नहीं, 

खामख्वाह हरदम जवां होने का दम भरने लगे हैं,

पर पत्नी कहती है,अब आप ज्यादा हैंडसम लगने लगे हैं। 


दिल्ली को छोड़, बने हरियाणा के हरियाणवी,

अक्ल से और शक्ल से हरियाणवी जाट दिखने लगे हैं,

और पत्नी कहती है, अब आप ज्यादा स्मार्ट लगने लगे हैं। 


ना काम ना धाम, करते बस आराम ही आराम,

अपनी मर्ज़ी से खाते पीते और सोते जगने लगे हैं,

पत्नी कुछ भी कहे, हम फ़ाक़ामस्ती में मस्त रहने लगे हैं। 


बिना रोज लड़े पत्नी से अब तो भूख भी नहीं लगती,

पर जो पहले नहीं किया उसका इजहार करने लगे हैं, 

जीवन के पतझड़ में पत्नी से ज्यादा प्यार करने लगे है। 






Monday, September 16, 2024

ग़ज़ल...

 गांव छोड़कर शहर में गुमनाम हो गए,

सच बोलकर जग में बदनाम हो गए। 


काम बहुत था जब करते थे काम,

सेवा निवृत हुए तो नाकाम हो गए। 


तकनीकि दौर मे दिखता है विकास,

मोबाइल संग बच्चे बे लगाम हो गए। 


गुरुओं और बाबाओं के आश्रम में,

चोर उचक्के सारे सतनाम हो गए।


भ्रष्टाचार का यूं बोलबाला है यारा,

ज़मीर बेच अमीर जन तमाम हो गए। 


भेड़िए भले ही लुप्त होने को हैं पर,

इंसानी भेड़ियों के हमले आम हो गए। 


द्रोपदी की अस्मत बचाने को क्यों,

कलयुग में जुदा घनश्याम हो गए। 


जालिम अब बच नहीं पाएं सजा से,

उनके गुनाह के चर्चे सरेआम हो गए। 


बुजुर्गों का साया गर सर पर हो ' तारीफ',

समझो शुभ दर्शन चारों धाम हो गए। 



Monday, September 9, 2024

एक ग़ज़ल...

 पसीने की गंध जिनके गात नहीं आती,

नींद उनको सारी सारी रात नहीं आती। 


वो काम करते नहीं जब तलक,

काम के बदले सौगात नहीं आती। 


सड़कें टूटी, नालियां बंद, तो क्या,

इस शहर में कभी बरसात नहीं आती। 


बेटियां घर दफ्तर में महफूज हों,

देश में ऐसी कोई रात नहीं आती। 


जज़्बा बहुत है लड़ने का किंतु,

शैतान को देनी मात नही आती। 


क्या बतलाएं तुमको हम जात अपनी,

सिवा इंसानियत कोई जात नहीं आती। 


नेता हम भी बन जाते ' तारीफ', पर,

सच को छोड़ कोई बात नहीं आती। 

Monday, September 2, 2024

सेवानिवृत बुजुर्ग ...

 बुजुर्ग ना खाते हैं ना पीते है,

फिर भी चैन से मस्त जीते हैं।

ना कपड़ों का खर्च रहा ना कहीं आना जाना,

अब तो मुफ्त में गुजरता है सारा दिन सुहाना। 


ना किराए की चिंता ना बच्चों की फीस,

ना कोई कर्ज़ ना लोन चुकाने की टीस

ना सब्जीवाले, रिक्शावाले, रेहडीवाले से चकचक,

जिसने जो मांगा दे दिया ना मोल भाव की बकबक। 


खाली हाथ लटकाए बाजार जाते हैं,

बिन पैसे थैला भर सामान ले आते हैं। 

नोटों को अब तो हाथ तक नहीं लगाते हैं,

मोबाइल पर एक उंगली से काम चलाते हैं। 


सरकार भी इनकम टैक्स में देती है भारी छूट,

पेंशन कम नहीं, ये तो है ईमानदारी की सरकारी लूट।