पिछली पोस्ट में हमने देखा कि बुजुर्गों का हमारे जीवन में कितना महत्त्व है. इस आयु वर्ग के लोगों की निरंतर बढती संख्या को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि हम उनकी समस्याओं पर ध्यान देते हुए उनका निवारण करने का प्रयास करें। कई प्रवासी भारतीय मित्रों की टिप्पणी से ज्ञात होता है कि विकसित देशों में बुजुर्गों की देखभाल के लिए अधिकारिक तौर पर प्रबंध किये जाते हैं जिनमे न सिर्फ आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जाती है बल्कि रहने , खाने पीने और मनोरंजन का भी ख्याल रखा जाता है.
लेकिन हमारे देश में इस तरह की सुविधाएँ या तो न के बराबर हैं , या उनका सही उपयोग नहीं हो पाता। ऐसे में परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. शहरीकरण के साथ और आधुनिक जीवन शैली से बिखरते परिवारों में यह और भी मुश्किल हो जाता है. इसलिए बुजुर्गों का आत्मनिर्भर होना अत्यंत आवश्यक हो जाता है. आत्मनिर्भरता में सबसे ज्यादा आवश्यक है , स्वस्थ रहना क्योंकि कहते हैं कि जान है तो जहान है.
स्वास्थ्य : सिर्फ रोगमुक्त होना ही स्वास्थ्य की निशानी नहीं है. आधुनिक परिभाषा अनुसार स्वास्थ्य -- शारीरिक , मानसिक , सामाजिक , आध्यात्मिक और आर्थिक सम्पन्नता का होना है. बुजुर्गों में विशेषकर ये सभी कारक बहुत महत्त्व रखते हैं क्योंकि इस उम्र में प्राकृतिक रूप से इन सभी शक्तियों का ह्रास होने लगता है. बढती उम्र के साथ स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं मुख्य रूप से इस प्रकार हैं :
* शारीरिक : ब्लड प्रेशर , डायबिटिज , हृदय रोग , घुटनों में दर्द ,नेत्र ज्योति का कम होना , मोतिया बिन्द , श्रवण शक्ति कम होना , प्रोस्टेट का बढ़ना और आम कमज़ोरी।
* मानसिक : इस उम्र में अकेलापन बहुत तंग करता है. अवसाद , स्मरण शक्ति कम होना और चिडचिडापन आम होता है. एलजाइमर्स डिसिज एक लाइलाज बीमारी है.
* सामाजिक : अकेलापन विशेषकर यदि पति या पत्नी में से एक न रहे. घरों में भी बच्चों और बड़ों को बुजुर्ग लोग एक बोझ सा लग सकते हैं. संयुक्त परिवार में संतुलन बनाये रखना दुर्लभ सा हो जाता है .
* आध्यात्मिक : इस रूप में कुछ इज़ाफा होता है. अक्सर लोग इस उम्र में आकर अत्यधिक धर्म कर्म में विश्वास रखने लगते हैं. हालाँकि इसमें कोई बुराई नहीं बल्कि यह उम्र अनुसार यथोचित ही लगता है.
* आर्थिक : अक्सर सेवा निवृत लोगों को आर्थिक रूप से बच्चों पर निर्भर होना पड़ सकता है यदि उन्होंने स्वयं अपने लिए उचित धन राशी का प्रबंध न कर रखा हो. यहाँ अभी भी प्रशासनिक आर्थिक सहायता का आभाव है.
बुजुर्गी की ओर बढ़ना एक स्वाभाविक और प्राकृतिक प्रक्रिया है. लेकिन इससे जुड़ी शारीरिक समस्याएँ बहुत पहले ही शुरू हो जाती हैं. इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि हम अपने स्वास्थ्य का ध्यान आरम्भ से ही रखें। यदि ज़वानी में सही रहे तो बुढ़ापे में भी सही रहने की सम्भावना बढ़ जाती है. आरामदायक जिंदगी की ही देन है -- मेटाबोलिक सिंड्रोम एक्स।
मेटाबोलिक सिंड्रोम एक्स :
यह शहरीकरण और सम्पन्नता का स्वास्थ्य प्रसाद है , इन्सान के लिए. अति निष्क्रियता से हमारे शरीर में विकार कुछ इस तरह पैदा होते हैं --
* मोटापा
* हाई बी पी
* डायबिटिज
* हाई कॉलेस्ट्रोल
* हाई यूरिक एसिड
उपरोक्त पांचों विकार पारस्परिक सम्बंधित होते हैं यानि एक से दूसरा रोग पनपता है और अंतत : पांचों विकारों से ग्रस्त होकर आप बन जाते हैं मिस्टर एक्स। आप मिस्टर एक्स न बन जाएँ , इसके लिए इन बातों का ध्यान रखा जाये :
१ ) वज़न -- ८ ० किलो से कम रखें।
२ ) बी पी -- नीचे वाला बी पी ८ ० से कम.
३ ) नब्ज़ की गति -- ८ ० से कम .
४ ) ब्लड शुगर फास्टिंग -- ८ ० से कम .
५) कमर का नाप -- ८ ० सेंटीमीटर से कम .
यह तभी संभव है जब आप खान पान पर नियंत्रण रखें और नियमित सैर करें। ऐसा करने से वज़न , बी पी , शुगर , और कॉलेस्ट्रोल सामान्य बने रहते हैं और आप बढती उम्र में भी ज़वान दिखाई देते हैं। खाने में घी और मीठा कम से कम खाना चाहिए क्योंकि ये दोनों ही अत्यंत ऊर्जावान खाद्य पदार्थ हैं. साथ ही नियमित रूप से ४५ मिनट की वॉक करने से आपका शरीर आपके नियंत्रण मे रहता है.
हमारा आने वाला कल स्वस्थ हो , इसके लिए अपने आज को संवारना सुधारना आवश्यक है. स्वस्थ शुभकामनायें .