कहने को सारी दुनिया दमदार हुई,
फिर एक बार पर जिंदगी शर्मसार हुई।
कुछ जंगली भेड़ियों की कारिस्तानी से,
फिर एक बार इंसानियत की हार हुई।
सीने में जलन थी, पर रो ना सकी,
आंखों में नींद थी, पर सो ना सकी।
इतने जख्म दिए बेदर्द जालिमों ने,
उस दर्द की कोई दवा हो ना सकी।
निर्मल कोमल कच्ची धूप सी होती हैं,
बेटियां भगवान का ही स्वरूप होती हैं।
जो मासूमियत को कुचलते हैं बेरहमी से,
उनकी उजली शक्ल कितनी कुरूप होती है।